यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि अनेक अवसरों पर आतंकवादियों के समर्थन में बुद्धिजीवी व कट्टर मुसलमानो के अतिरिक्त ढोगी धर्मनिरपेक्षता वादी और जयचंदी हिन्दुओं की सहभागिता होने से आतंक की जड़ पर प्रहार नहीं हो पाता । इन विपरीत परिस्थितियों के कारण हमारा समाज व राष्ट्र जिहादियों के अनेक षडयंत्रो से घिरता जा रहा है।जिससे अनेक मोर्चो पर हमारे उदासीन रहने के कारण आतंकियों का दुःसाहस भी बढ़ रहा है।आतंकवाद को मिटाने वालों व आतंकवादियों की इस्लामी पहचान को ढाल बना कर बचाने वालों में जो समाजिक विभाजन हो गया है वह एक खतरनाक भविष्य का संकेत है।
प्रायः हमें मंदिरो में जो धर्म की शिक्षा दी जाती है उससे अच्छे-बुरे व पाप-पुण्य का ज्ञान अवश्य मिलता है परंतु इससे शत्रु की पहचान का भाव नहीं समझा जा सकता। जबकि मदरसो- मस्जिदों आदि मे धर्म का अर्थ कट्टरता से जोड़ा जाता है , उन्हें कैसे सुरक्षित रहना है बताया जाता है, काफिर व अविश्वासियों (गैर मुस्लिमों) से कैसे जिहाद करना है सिखाया जाता है। अनेक प्रकार से उन्हें दारुल – इस्लाम यानि कि विश्व का इस्लामीकरण करने और उस पर मरने के लिए फिदायींन(suicide bomb) तक बनाया जाता है।
सन 2008 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि तालिबान व अलक़ायदा आदि जिहादी संगठन पाक व अफगानिस्तान की सीमाओ पर अनेक छोटे छोटे बच्चों को धन देकर व जन्नत का वास्ता देकर “फिदायींन” बनाते है। तालिबान ने “फिदायीन-ए-इस्लाम” नाम से वजीरिस्तान में तीन ऐसे प्रशिक्षण शिविर तैयार किये हुए है जिसमें हज़ारो की संख्या में कम आयु (10 से 13 वर्ष) के मासूम मुस्लिम बच्चे प्रशिक्षण पा रहें है। अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार के अनुसार इन बच्चों को चौदह हज़ार से साठ हज़ार डॉलर में खरीदा जाता है और इनके माँ-बाप को समझाया जाता है कि धन के अतिरिक्त आपका बेटा इस्लाम के लिये शहीद होकर सीधे जन्नत पहुँचेगा। पाकिस्तान के कुनार व नुरिस्तान आदि क्षेत्रों में जो बच्चे आत्मघाती बनने को तैयार हो जाते है उन्हें घोड़े पर बैठा कर दूल्हे की तरह सजा कर पूरे गाँव में घुमाया जाता है और गाँव वाले कुछ तालिबानियों के भय से व कुछ समर्थक आदि बच्चों के माँ-बाप को मुबारकबाद देने भी आते है।समाचारों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान की सरकार भी इसको स्वीकार करती है। इसी प्रकार इस्लामिक स्टेट भी ऐसे क्षेत्रो में मुस्लिम बच्चों को इस्लाम के नाम पर “भविष्य के जिहादी” तैयार करने में जुट गया है।
हमारे देश की सीमाओं पर अवैध मदरसे व मस्जिदें अबाध गति से बढ़ते जा रहे है। इनमें घुसपैठ करके दुर्दान्त आतंकियों को शरण मिल जाती है।
उनके द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों के मुस्लिम बच्चे जिहाद की शिक्षा व अन्य प्रशिक्षण पाते है। अक्टूबर 2014 के एक समाचार पत्र में छपे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के लेख के अनुसार केवल बंग्लादेश से लगी हमारी सीमाओं पर ही लगभग 1680 मदरसे व 2800 मस्जिदें है और इनमें अरबी इस्लाम की शिक्षा दी जाती है जो उन्हें भारत की मुख्य धारा से जुड़ने ही नहीं देती। कट्टरपंथी धार्मिक शिक्षाओं से छोटे छोटे बच्चों के मन-मष्तिष्क पर इतना कुप्रभाव पड़ता है कि वे अपने परिजनों को भी काफिर समझने लगते है।इसप्रकार जिहाद के लिए आतंकियों की पौध हमारे देश में भी तैयार की जाती आ रही है।यही नहीं देश के अनेक नगरों व गावों में अवैध मस्जिद व मदरसे भी जिहादी षडयंत्रो का अप्रत्यक्ष सहयोग करते है।
अधिकांश वैश्विक समाज व हिन्दू समाज मानवता के विरुद्ध हो रहे ऐसे भयानक षडयंत्रो को समझ ही नहीं पाते और इसी भुलावे में उसको अपने मित्र व शत्रु का भी आभास नहीं होता । वह अपने परिवार व समाज में तो छोटी छोटी बातो में बाहें तान लेते है पर अंदर ही अंदर होने वाली बड़ी हानि वे समझ में ही नहीं पाते। वास्तव में ऐसी धार्मिक कट्टरता के विरोध से ही साम्प्रदायिकता को नष्ट किया जा सकता है जिससे सामाजिक सौहार्द बनेगा और मज़हबी आतंकवाद पर विजय मिल सकेगी । प्रचार के इस युग में मानवता की रक्षा के लिए समाचार पत्रो व चैनलो को भी ऐसे भयानक षडयंत्रो का खुलासा करके समाज की सुरक्षा के लिए उसको सतर्क व सावधान करते रहना चाहिये ।
अतः आज बड़ा प्रश्न है कि सभी राष्ट्रवादियों व मानवतावादियों को धर्म व देश के संकट को समझ कर उसकी रक्षा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये । ऐसे में अपने अस्तित्व व स्वाभिमान के लिए संघर्ष से बचने का मार्ग आत्मघाती होगा । यह अत्यंत चिंता का विषय है कि जब कोई अपने धार्मिक ग्रंथों व दर्शन के कारण हमको काफिर मानेगा तो हम उस कट्टरपंथी समुदाय के निशाने से कब तक बच पाएंगे ? उदारता, सहिष्णुता संवेदनशीलता व मानवता का अभाव जिसमें होगा और जो विश्व के इस्लामीकरण के लिए जिहाद की शिक्षाओ से बाहर आकर कोई मध्यम मार्ग नहीं बनाएगा तो फिर मानवता के उच्च मापदंड कैसे सुरक्षित रह पायेंगे ?
आज हमारे देश सहित विश्व के अनेक देशों की यही पीड़ा है और अधिकांश मानवतावादी इस पीड़ा को समझ चुके है फिर भी इस अन्यायकारी व अत्याचारी जिहादी जनून से मानवता की रक्षा के उपाय अभी अपर्याप्त है।इसलिये विश्व के नीतिनियंताओं को वैश्विक शान्ति व मानवता की रक्षार्थ प्रभावकारी उपाय करने ही होंगे अन्यथा इन मानवीय आपदाओं से पृथ्वी के विनाश को नियंत्रित करना संभव न होगा ?
विनोद कुमार सर्वोदय