अब तो आग की लपटों से बाहर निकल आई है दिल्ली। अब मासूमों को मारने के लिए सड़कों पर उतरे मौत के सौदागर अपना सुनियोजित काम करके पतली गली से निकल चुके हैं। लेकिन, तीन-चार दिनों तक दिल्ली में मानवता बार-बार मरती रही। दर्जनों लोग मार डाले गए और सैकड़ों घायल हुए। हजारों दूकानें और घर राख में तब्दील कर दिए गए। इतना सब कुछ होने के बावजूद अब भी यहां पर ‘मेरा-तुम्हारा’ करने वाले सक्रिय हैं। वे अब भी दुखी हैं इस बात से हैं कि किछ उनके मजहब वाले भी दंगों में शिकार हुए। उन्हें दूसरे मजहब के मानने वाले मृतकों या घायलों को लेकर किसी तरह का सहानुभूति का भाव ही नहीं है। तो इतना पत्थर दिल बन गये हैं हमारे समाज के कुछ नकाबपोश। गंगा-जमुनी तहजीब की बातें मानों बेमानी सी ही लगती है।
बहरहाल, दिल्ली के दंगों के लिए एक खास समूह कपिल मिश्र की गिरप्तारी की मांग कर रहा है। उन्हें इन दंगों के लिए दोष दे रहा है। अगर वे कानून की नजर में दोषी हैं तो उन पर एक्शन होगा ही। किसी के चाहने या ना चाहने से उन्हें खलनायक नहीं बनाया जा सकता है। पर मिश्र को दोष देने वाले ही वारिस पठान को दूध का धुला बता रहे हैं। वही पठान जो 15 करोड़ मुसलमान बनाम 100 करोड़ हिन्दुओं की जहरीली बातें कर रहा था। आम आदमी पार्टी (आप) के नगर पार्षद ताहिर हुसैन को भी दोषी नहीं माना जा रहा है। हुसैन इन दंगों का सबसे भयानक चेहरे के रूप में उभरा है। उसके घर से तमाम असलहे और बमों की फैक्ट्री मिली। उसके घर में छिपे सैकडों दॅंगाई गुंडों ने भारत सरकार के इॅंटेलीजेंस ब्यूरो के अधिकारी अंकित शर्मा पर 400 बार चाकुओं से वार करके उन्हें मौत के घाट उतारा।आंखें और अतडियां निकाल लीं और गर्दन को ठीक वैसे ही रेता जैसे बकरे को जबह किया जाता है। पर मजाल है कि ताहिर हुसैन को कोई सेक्यूलरवादी दंगों का दोषी मान रहा हो। फिलहाल वह फरार है। अगर वह निर्दोष है तो उसे फरार होने की तो जरूरत नहीं होनी चाहिए थी।आपको तो पता ही होगा कि १८ साल पहले मजदूरी करने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा से आये ताहिर हुसैन अब घोषित तौर पर १८ करोड की सम्पत्ति के मालिक हैं और आप पार्टी के रसूखदार नेता और पार्षद हैं।
क्या दिल्ली में दंगे अचानक से भड़क गए? नहीं, जी कतई नहीं। बेशक दंगों की लंबे समय से भूमिका बन रही थी। छतों और घरों में पेट्रोल बम रखे जा रहे हैं। पत्थर एकत्र किए जा रहे थे ताकि दिल्ली को दूसरा कश्मीर बना दिया जाए। यही कोशिश भी हुई।
फिलहाल दंगों के कारणों को अपने स्तर पर तलाशने की कई स्तरों पर चेष्टा हो रही है। जाहिर है। दिल्ली पुलिस जाॅंच तो पूरी ईमानदारी और पारदर्शी अंदाज में करेगी ही। उन्हीं से अपेक्षा है कि वे कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के भड़काऊ बयानों को भी नजरअंदाज करने की भूल नहीं करेंगे। इनके उकसाऊ और आग में घी डालने वाले भाषणों ने हालात बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोडी।एक खास वर्ग को चीख- चीख कर यह एहसास करा दिया कि उनके साथ इस देश में वाकई घोर अन्याय हो रहाहै। सोनिया गांधी का एक वीडियो वायरल हो रहा है। वे नागरिकता संसोधन नियम के खिलाफ एक जनसभा को संबोधित करते हुए कह रही हैं- “हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम घरों से बाहर निकलें और आंदोलन करें और इसके (नागरिता संशोधन अधिनियम) खिलाफ आँदोलन करें। किसी देश की जिंदगी में इस तरह का वक्त आता है कि उसे इस पार या उस का फैसला लेना पड़ता है। हमें कठोर संघर्ष करना होगा। मोदी सरकार को अपनी आवाज बुलंद करके बताइये कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हम कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं…।” सोनिया गांधी देश की सबसे पुरानी पार्टी की अध्यक्ष हैं। उनसे कम से कम इतनी अपेक्षा देश अवश्य ही करता है कि वे माहौल को विषाक्त नहीं करेंगी। पर वह तो मानो मुसलमानों को सड़कों पर उतरने का आहवान कर रहीं थीं। लेकिन, जब दंगे भड़के तो वे अज्ञातवास में चली गईं। जिस कांग्रेस पार्टी से महात्मा गांधी का संबंध रहा हो उसका अध्यक्ष इतनी गैर-जिम्मेदारी भरा भडकाऊ भाषण देगा यह कभी नहीं सोचा था। सोनिया गांधी यह क्यों भूल गई कि नागरिता संशोधन अधिनियम को संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पारित किया गया है। क्या वह संसद में लिए गए निर्णय को नहीं मानेगी जिसकी वह खुद सदस्य हैं? क्या वे सॅंसद और सॅंविधान का अपमान नहीं कर रहीं हैं? राष्ट्रदोह और होता क्या है?
जरा देखिए कि जब दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा जब जल रहा था तब सोनिया गांधी लुटियन दिल्ली के अपने विशाल बंगले से बाहर तक नहीं निकली। क्यों नहीं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस के आला नेता दंगाइयों से लड़ने के लिए निकले जब उनकी ही एक नेता और पार्षद इशरत जहां पत्थरबाजों के एक उग्र गिरोह से पुलिस पर पत्थरबाजी करवाकर पुलिस को दॅंगाग्रस्त इलाको में जाने से रोक रही थीं।इसी तरह दॅंगा के केन्द्र बने शिवपुरी से सटे गोविन्दपुरी में फिरोज खान नाम के एक शख्स की अवैध फैक्ट्री से साठ हजार लीटर तेजाब बरामद की गई है। लगता है कि दॅगों के लिये तेजाब की सप्लाई यहीं से हो रही थी। साठ हजार लीटर तो लाखों लोगों को जला मारने के लिये पर्याप्त था। यह बिना किसी राजनीतिक सॅंरक्षण के हो रहा होगा क्या?
राहुल गांधी भी पीछे कहां रहे। वे भी मुसलमानों को भड़काने में लगे रहे अपने भाषणों के माध्यम से। उनके एक हालिया रिकार्ड किये गये भाषण के अंश पढ़ लें। वे कहते हैं- “जिम्मेदारी आपकी भी है। जब आपको दबाया जाता, कुचला जाता है. तो ये आप पर आक्रमण नहीं होता। ये हिन्दुस्तान की आत्मा पर आक्रमण होता है। डरो मत। आपके साथ कांग्रेस पार्टी ख़ड़ी है। आज जो डर का माहौल है। इस डर के माहौल को मिटा डालेंगे।” कुछ इसी तरह की उकसाने वाली भाषा उनकी बहन प्रियंका गांधी भी बोलती हैं नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ।वे कहती हैं “इस तरह के कानून बनाए जाते हैं जिससे लाखों नागरिक बंदी की तरह रखे जाते हैं। इस देश को बचाना है तो भाइयों और बहनों मन बना लो…। इस देश की मिट्टी प्यारी है तो साहस बांधों।” प्रियंका गांधी को यह बताना होगा कि किस भारतीय नागरिक को बंदी की तरह से रखा गया। वे तो लाखों नागरिकों की बातें कर रही हैं। यहां पर बात सियासत से परे की हो रही है और देश देख रहा है कि किस तरह से देश की सबसे बड़ी पार्टी के तीन शिखर नेता दंगों की जमीन को तैयार कर रहे हैं और लगता है कि उनसे प्रेरणा लेकर ही कुछ छुटभैये नेता पत्थरबाजी तक कर रहे हैं। आने पर इनसे सवाल तो जरूर पूछे जाएंगे। याद रखें कि दिल्ली दंगों के लिए कुछ और खासमखास लोग भी जिम्मेदार हैं जिनके ऊपर के परत एक- एक करके खुल रहे हैं।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)