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महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?

8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समानता केन्द्रीय बिंदु रहा. आज भी हमारे समाज में, यदि महिलाओं को बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तो यह विकास के ढाँचे पर भी सवाल उठाता है क्योंकि आर्थिक विकास का तात्पर्य यह नहीं है कि समाज में व्याप्त असमानताएं समाप्त हो जाएँगी. बल्कि विकास के ढाँचे बुनियादी रूप से ऐसे हैं कि अनेक प्रकार की असमानताएं और अधिक विषाक्त हो जाती हैं.

दुनिया के अन्य क्षेत्र में, जैसे कि यूरोप में आर्थिक विकास होने में कई-सौ साल लगे जिसके दौरान, विकास के साथ-साथ समाज में लैंगिक समानता भी बढ़ी. परन्तु भारत समेत, एशिया और पैसिफिक क्षेत्र के देशों में, आर्थिक विकास तो दुनिया के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले, बड़ी तेज़ी से हुआ, परन्तु महिला असमानता उस रफ़्तार से कम नहीं हुई.

उदाहरण के लिए अत्याधुनिक जापान में आर्थिक विकास के बावजूद भी महिला असमानता व्याप्त है. जापानी नागरिक टोमोको फुकुदा जो इंटरनेशनल प्लैंड पैरेंटहुड फेडरेशन की क्षेत्रीय निदेशक हैं, ने कहा कि हाल ही में जापान में यह मुद्दा उठा था कि अविवाहित माताओं को वह लाभ नहीं मिलेंगे जो विवाहित, तलाकशुदा या विधवा माताओं को मिलेंगे. ऐसी तमाम लैंगिक गैर-बराबरी हमारे समाज में व्याप्त हैं. एक ओर है अत्याधुनिक जापान और दूसरी ओर है उसी समाज में इतनी रुढ़िवादी सोच.

यूनाइटेड नेशन्स पापुलेशन फण्ड (संयुक्त राष्ट्र जनसँख्या कोष) के एशिया पैसिफिक के निदेशक ब्योर्न एंडरसन का कहना है कि महिला हिंसा, बाल विवाह, कम उम्र की किशोरियों में गर्भावस्था, मातृत्व मृत्यु दर, आदि ऐसे कितने पहलु हैं जहाँ एशिया पैसिफिक क्षेत्र में स्थिति बहुत चिंताजनक है.

संयुक्त राष्ट्र जनसख्या कोष 2018 रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में मातृत्व मृत्यु दर, प्रति 1 लाख शिशु जन्म पर, 127 है, जिसको 2030 तक सतत विकास लक्ष्य के अनुसार, 70 से कम करना है. एक सभ्य समाज में, किसी भी महिला को प्रजनन के दौरान असामयिक मृत्यु का शिकार क्यों होना पड़े? हालाँकि पिछले 20 सालों में, एशिया पैसिफिक क्षेत्र के मातृत्व मृत्यु दर में 56% गिरावट आई है पर आज भी हर घंटे 10 महिला प्रजनन के दौरान मृत होती हैं जो अत्यंत खेदपूर्ण हैं.

एशिया पैसिफिक क्षेत्र के देशों में, परिवार नियोजन के आधुनिक तरीकों का उपयोग सिर्फ 67% है, यानि कि 33% ज़रूरतमंद महिलाएं (14 करोड़) इन साधनों का उपयोग नहीं कर पा रही हैं. यदि प्रभावकारी साधन लोगों तक नहीं पहुंचेंगे तो यौन रोग (जिनमें एचआईवी शामिल है) और अनचाहे गर्भ का खतरा कैसे कम होगा?

इस क्षेत्र में, किशोरी-गर्भावस्था दर में लगभग 50% गिरावट आई है, जिसमें से अधिकाँश गिरावट दक्षिण एशिया के देशों (जैसे कि भारत) में बाल विवाह दर पर अंकुश लगने के नतीज़तन है. अभी भी 18 साल से कम उम्र में किशोरियों का विवाह होना बहुत चिंताजनक है – जिसका दर बांग्लादेश में 60%, नेपाल में 40% और अफ़ग़ानिस्तान में 35% है.

महिला हिंसा अभियान सशक्त हुआ है परन्तु एशिया पैसिफिक क्षेत्र में महिला हिंसा दर 21% है. कुछ देशों में महिला हिंसा में बहुत गिरावट आई है जैसे कि फिलीपींस और लाओस, परन्तु अनेक देश ऐसे हैं जहाँ महिला हिंसा बहुत ज्यादा है जैसे कि पैसिफिक द्वीप देश जहाँ महिला हिंसा 60% से ऊपर है.

ब्योर्न एंडरसन और टोमोको फुकुदा दोनों का मानना है कि व्यापक यौनिक शिक्षा बहुत ज़रूरी है. एशिया पैसिफिक क्षेत्र के 25 देश, व्यापक यौनिक शिक्षा पर विचार कर रहे हैं और किसी न किसी रूप में उसको लागू कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र जनसख्या कोष के ब्योर्न एंडरसन ने कहा कि यह सही धरना नहीं है कि व्यापक यौनिक शिक्षा से, यौनिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी. बल्कि सत्य इसका उल्टा है क्योंकि व्यापक यौनिक शिक्षा से, सही जानकारी मिलती है कि कैसे यौन रोगों से बचें, एचआईवी से बचे, अनचाहे गर्भ से बचे, और सबसे ज़रूरी बात यह है कि यह प्रशिक्षण मिलता है कि कैसे आपस में लिंग-जनित हिंसा और शोषण पर चर्चा कैसे कर सकें, “न” कैसे कह सकें, और खुल कर बात कर सकें. व्यापक यौनिक शिक्षा से लड़कों की नींव मज़बूत होगी कि वह लड़की या महिला के साथ किसी भी रूप में हिंसा, शोषण या छेड़छाड़ नहीं करें, और सभी के साथ सम्मान के साथ कैसे जी सकें.

2020 मई में प्रजनन और यौनिक स्वास्थ्य और अधिकार पर एशिया पैसिफिक के सबसे महत्वपूर्ण अधिवेशन में यह मुद्दे केन्द्रीय रहेंगे. 10वीं एशिया पैसिफ़िक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ और राइट्स (APCRSHR10) इस साल सीएम रीप कंबोडिया में होगी.

सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका शोभा शुक्ला ने कहा कि आखिरकार, लैंगिक समानता से ही महिला सशक्तिकरण का सपना पूरा होगा. यदि सतत विकास लक्ष्य पर खरा उतरना है तो महिला समानता और अधिकार अत्यंत ज़रूरी हैं. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा विकास का रास्ता ऐसा हो जिसपर बढ़ने से समाज में व्याप्त हर प्रकार की लैंगिक असमानता समाप्त हो.

बॉबी रमाकांत – सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

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