कोरोना वायरस के असर से अब संसार का कोई भी देश बचा नहीं है। कोरोना वायरस ने सच में सारी दुनिया को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया है। हर जगह कोरोना से रोज हजारों मौतें हो रही हैं। दुनिया इस वायरस के असर के कारण डरी-सहमी है। पर इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन, जहां से इस वायरस की उत्पति हुई और अन्य कई विकसित देशों के पेशेवर मैनेजर मल्टीनेशनल कंपनियों के भारत में रहने वाले हजारों नागरिक अपने को यहां पर अपने खुद के देश की बजाय ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। फिलहाल ये अपने देशों में वापस जाने के लिए भी तैयार नहीं हैं। विमान की और मुफ्त सफ़र की व्यवस्था के बावजूद आनाकानी कर रहे हैं ।
अगर बात अमेरिका से शुरू करें तो वहां पर रोज बड़ी संख्या में लोग कोरोना के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। अपने को सर्वशक्तिमान समझने वाले अमेरिका की दर्दनाक स्थिति अब तो इतनी खराब हो गई है कि भारत में रहने वाले करीब चार-साढ़े हजार अमेरिकी नागरिक अपने देश में फिलहाल वापस जाना ही नहीं चाहते। ये दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बैंगलुरू, हैदराबाद, पुणे जैसे महानगरों में रहते हैं। ये भारत में किसी मल्टीनेशनल कंपनी के मुलाजिम हैं या फिर अपना कोई कारोबार करते हैं। इसके अलावा इनमें अमेरिकी एंबेसी में अमेरिकी राजनयिक हैं जो स्वदेश लौटने की अपनी पहले से तय छुट्टियाँ कैंसिल करवा रहे हैं।
हालांकि अमेरिका सरकार दुनिया के कुछ खास देशों में फंसे अपने नागरिकों को निकालने और अमेरिका में फंसे विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की कवायद में जुटी हुई है। लेकिन भारत में इस समय रह रहे अमेरिकी नागरिकों को भारत में ही रहने में अपनी और अपने परिवार की भलाई नजर आ रही है। उन्हें लगता है कि भारत उनके अपने देश की तुलना में कोरोना से कहीं अधिक बेहतर तरीके से लड़ रहा है। अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण मरने वालों का आंकड़ा तो अब चीन से भी कहीं ज्यादा अधिक हो गया है। वहां पर सरकार से लेकर वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि इस वायरस को किस तरह से मात दें। अमेरिका में अबतक लगभग अठ्ठाइस हजार तीन सौ से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। जबकि चीन में इस कारण 3,309 लोगों की मौत हुई है। अमेरिका में सबसे अधिक लगभग पंद्रह हजार मौतें सिर्फ न्यूयॉर्क में हुई हैं जबकि न्यू जर्सी में और वॉशिंगटन में भी हजारों लोगों की मौतें हुई है। अब खुद अँदाजा लगा लें कि अमेरिका के तीन सबसे खासमखास शहरों में हालात कितने बिगड़ चुके हैं।
कहना न होगा कि अपने देश से आ रही इन डरावनी खबरों के कारण भारत में रहने वाले अमेरिकी नागरिकों को अब भारत ही प्यारा लग रहा है। इधर ये अपने परिवारों के साथ अपने को पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर रहे हैं । इस बीच, अमेरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी चेतावनी पूर्ण लहजे में कह चुके हैं कि उनके देश केलिए आने वाले दो सप्ताह बेहद चुनौतीपूर्ण होंगे। यानी वे भी परोक्ष रूप से मान रहे हैं कि उनके देश में हालात पहले से ज्यादा बेकाबू होने जा रहा है। इसके विपरीत भारत में कोरोना वायरस का असर अब धीरे-धीरे ही सही काबू में हो रहा है। हालांकि हमें भी अभी लंबी लड़नी है।
राजधानी दिल्ली में और मुम्बई में अमेरिकन स्कूल में भारत में रहने वाले हजारों अमेरिकी नागरिकों के बच्चे पढ़ रहे हैं। ये स्कूल लगभग 50 सालों से चल रहे हैं । इसमें अमेरिकी राजनयिकों के साथ- साथ भारत में रहने वाले अन्य अमेरिकियों के बच्चे भी पढ़ते हैं। अन्य अमेरिकियों से मतलब उनसे है जो किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था या फिर किसी मल्टी नेशनल कंपनी में काम करते हैं या भारत में अपना व्यवसाय करते हैं ।
अमेरिकन स्कूल के शिक्षक और अमेरिकी दूतावासों और मुम्बई, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई में कान्सुलेटों के राजनयिकों के लिये हर साल गुड फ्राइडे से लेकर पूरी गर्मीं दो महीने की छुट्टी मनाने का बड़ा माकूल अवसर माना जाता था। हर वर्ष कई-कई महीनों पहले से कौन छुट्टी मनाने स्वदेश अमेरिका जाये और कौन भारत की गर्मी झेलने के लिये यहीं पड़ा रहे इसकी होड़ मची रहती थी। इस बार स्थिति उलटी है । छुट्टी कैंसिल कराने वालों की लाइन लगी हुई है। सभी अपनी गर्मियां भारत में ही मनाने को इच्छुक हैं । नाम न बताने की शर्त पर वे खुलेआम कहते हैं कि उन्हें मोदी के नेतृत्व पर भरोसा ज्यादा है।
सिर्फ अमेरिका के ही नागरिक नहीं बल्कि दिल्ली,नोएडा, गुरुग्राम में हजारों जापानी नागरिक भी आराम से रह रहे हैं। सिर्फ इन तीन शहरों में ही लगभग 5 हजार के आसपास जापानी कामकाज कर रहे हैं। यकीन मानिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद जब देश के कोने-कोने में लोग जनता कर्फ्यू के बाद ताली-थाली बजा रहे थे तब उनका साथ यहां पर रहने वाले जापानी नागरिक भी खुलकर साथ दे रहे थे। इसके बाद कोरोना वायरस के खिलाफ एकजुटता का संदेश देने के लिए जब देशवासियों ने घर की लाइट बंद रखीं थी और दीये, मोमबत्ती, टॉर्च या मोबाइल फोन की फ्लैशलाइट जलाकर रोशनी की थी तब भी उनका यहां रहने वाले जापानी साथ मिलकर दिया जला रहे थे। यानी ये भारत में रहकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर आहवान का साथ दे रहे हैं। ये जापानी नागरिक भारत केउज्जवल भविष्य को लेकर बेहद आशावादी हैं। उन्हें लगता है कि नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में अब भारत को विकास के रास्ते पर जाने से कोई रोक नहीं सकता।
भारत में रहने वाले जापानी पेशेवर और राजनयिक भगवान बुद्ध के ही अनुयायी तो हैं। ये भारतभूमि को पूजनीय मानते हैं । ये मानते हैं कि भगवान बौद्ध का जीवन समाज से अन्याय को दूर करने के लिए समर्पित था। उनकी करुणा भावना ने ही उन्हें विश्व बहर के करोड़ों लोगों तक पहुंचाया। ये जापानी होंडा सिएल कार, होंडा मोटरसाइकिल, मारुति, फुजी फोटो फिल्मस, डेंसो सेल्ज लिमिटेड, डाइकिन श्रीराम एयरकंडशिंनिंग, डेंसो इंडिया लिमिटेड समेत लगभग दो दर्जन जापानी कंपनियों के भारत के विभिन्न भागों में स्थित दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम करते हैं। इन्हें भी प्रतिदिन अपने देश में कोरोना महामारी के कहर की खबरें मिल ही रही हैं। इन्हें मालूम पड़ रहा है कि राजधानी टोक्यो के अलावा और भी कई शहरों में कोरोना से संक्रमित मरीजों की तादाद बढती ही चली जा रही है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे विशेषज्ञों के साथ बैठकें कर रहे हैं। हालांकि यूरोप के देशों की तुलना में जापान में हालात तो अब भी इतने खराब नहीं हैं। लेकिन, फिर भी भारत में रहने वाले जापानी भारत में अपने को ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
बहुत से जापानियों से परिचय होने के चलते मैं कह सकता हूं कि इनमें भी भारतीय संस्कार होते हैं। ये मितव्ययी होते हैं। ये संयुक्त परिवार की संस्था को महत्व देते हैं। अगर कुछ जापानी एक-दूसरे के करीब रहते हैं, तब ये कार पूल करके ही दफ्तर जाना पसंद करते हैं। ये बड़ी-बड़ी कारों में अकेले दफ्तर जाने तक से बचते हैं।
एक खास बात यह भी है भारत में रहने वाले जापानी नागरिक लॉकडाउन का पूरी ईमानदारी से पालन कर रहे हैं। ये अपने घरों में ही है। ये नागरिक प्रशासन या पुलिस के लिए कभी कोई संकट खड़ा नहीं करना चाहते। इस बीच, इन्हें अपने मुल्क से भी खबरें मिल रही हैं कि वहां पर सरकार ने जनता से आग्रह किया है कि लोग जब तक बहुत जरूरी न हो, घर से न निकलें। लोगों को अपने घरों से काम करने के निर्देश जारी किये गये हैं।
आप यह जानकार हैरान होंगे कि भारत के कई शहरों में हजारों चीनी नागरिक भी रहते हैं। य़े भी यहां अपने को सुरक्षित मान रहे हैं। ये अलीबाबा, हुआवेई, ओप्पो मोबाइल, मित्तु, बेडु जैसी कंपनियों से जुड़े हैं। हुआवेई में शायद सबसे चीनी पेशेवर हैं। इनमें महिलाओं की संख्या भी कच्ची-खासी है। अकेले गुरुग्राम में लगभग चार हजार से ज्यादा चीनी नागरिक विभिन्न कंपनियों में काम कर रहे हैं। इनमें से लगभग आधे चीनी नूतन वर्ष मनाने पिछली जनवरी में अपने देश में गए भी थे। पर कोरोना के फैलने के कारण फंस गए। ये वहां से भारत आने की भरसक कोशिश भी कर रहे हैं। पर भारत सरकार इन्हें फिलहाल वीजा नहीं दे रही है। जो भारत में बचे हैं, वे तो यहां से किसी भी सूरत में निकलने को तैयार नहीं है।
और अंत में भारत में काम करने वाले साउथ कोरियाई पेशेवरों और कारोबारियों की भी। ये फिलहाल देश में पांच हज़ार से अधिक हैं। ये साउथ कोरिया की सैमसंग, एल जी और ह्युन्डई जैसी बड़ी और मशहूर कंपनियों में काम करते हैं। ये भी मानते हैं कि जब सारी दुनिय़ा कोरोना के कारण खराब स्थिति में है, तब भारत ही एक आशा की किरण के रूप में उभरता है। इधर हालात इतने बिगड़े नहीं हैं। भारत में रहने वाले साउथ कोरिया के बहुत से नागरिकों ने अपने यहां स्टार्टअप भी शुरु किये हैं। इनमें से कुछ आटो सैक्टर की कंपनियों के लिए स्पयेर पार्ट भी बनाने लगे हैं।
अब आप खुद सोच लें कि दुनिया के तमाम विकसित और अति महत्वपूर्ण देशो के भारत में रहने वाले नागरिक कोरोना के असर के समय अपने को भारत में सुरक्षित क्यों मान रहे हैं। ये किसी भी सूरत में भारत को छोड़ने के लिए तैयार क्यों नहीं है।
जाहिर है कि भारत में रह रहे इन विदेशी नागरिकों का विश्वास भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व पर भरोसा ज्यादा है और वे अपने को भारत में ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं । हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि भारत के कुछ चिर असंतुष्ट सरकार की निंदा करने से तनिक भी नहीं चूक रहे है। उन्हें लगता है कि भारत सरकार कोरोना के निबटने के लिए कोई कदम उठा ही नहीं रही है। सोशल मीडिया पर इस तरह के ज्ञानियों की तादाद काफी मिलेगी। ये सरकार की मीनमेख तो निकालते हुए मिल ही जाएँगे, पर इनके पास सरकार के लिए कभी कोई सकारात्मक सुझाव नहीं होता है। ऐसे एहसान फरामोश अफवाह वजों से जनता सावधान रहे और पुलिस सख्ती से कारवाई करे।
आर.के. सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ संपादक,स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)