प्रथम चरण में जैविक युद्ध के रूप में प्रारंभ हुआ अमेरिका व चीन के गुटों के बीच का विश्व युद्ध अब तीसरे चरण में प्रवेश करने जा रहा है। पहले चरण में ही चीन ने जो ब्रह्मास्त्र चला उससे दुनिया के थाने का एसएचओ अमेरिका अपने ही मातहत सब इंस्पेक्टर चीन के हाथों चारों खाने चित्त हो गया। अमेरिका सहित पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण से फैली महामारी के कारण एक ओर जहाँ अपने अपने नागरिकों की लाशें गिन रही है वहीं लॉकडॉउन के कारण बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था से बिगड़ते हालातों को देख रही है। पिछले कुछ बर्षों में चीन ने कब अमेरिकी व अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के शेयर भारी मात्रा में खरीदे व उन पर नियंत्रण स्थापित करता गया यह किसी को भी न पता और अभी भी पूरी दुनिया में उसका यह खेल जारी है। चीन ने पूरी दुनिया को कर्ज बांटकर भी उनको अपने नियंत्रण में ले रखा है तो दुनिया की उत्पाद फेक्ट्री होने के कारण भी दुनिया के देश उस पर बुरी तरह निर्भर हैं। ऐसे में चीन को लगा कि अब उसे दुनिया के थाने का एसएचओ होना चाहिए न कि अमेरिका को और इसीलिए उसने जैविक युद्ध का सहारा लिया। चीन के घातक वार के आगे दर्जनों देशों ने समर्पण कर दिया और अमेरिका की ओर एकतरफा झुकी दुनिया दो गुटों में बंट गयी। अमेरिका द्वारा यह स्वीकार करना कि अब वह चीन के साथ शीत युद्ध मे है, अपनेआप में चीन की बड़ी जीत है। इसका मतलब है कि अमेरिका ने स्वीकार कर लिया है कि अब वह विश्व की एकमात्र सुपर पावर नही है और चीन उसके बराबर की ताकत का देश बन चुका है। यानि दुनिया औपचारिक रूप से दो गुटों में बंट चुकी है।चीन लगातार सक्रिय है व वह दुनिया के देशों को अपने पाले में करने की हर संभव कोशिश कर रहा है। इस समय दुनिया के लगभग 125 देश ही अमेरिका के पाले में रह गए हैं और शेष या तो चीन के साथ हैं या तटस्थ।
अपने महाअभियान के दूसरे चरण में चीन पूरे साम दाम दंड भेद के साथ मैदान में उतरा हुआ है। उसको पता है कि चोट खाए नाटो देश यानि अमेरिका-यूरोप- आस्ट्रेलिया- जापान आदि अब पलटवार अवश्य करेंगे। यानि बदला और वह भी महातबाही का यानि महाभीषण संग्राम। इसीलिए वह लगातार अमेरिका समर्थित देशों में जो भी विपक्षी राजनीतिक दलो को अपने पक्ष में कर रहा है और इसके लिए उनको हवाला व वैध श्रोतों से व्यापक धन व संसाधन उपलब्ध करा रहा है। उद्देश्य स्पष्ट है पहले से ही महासंकट झेल रही सत्तारूढ़ सरकारों की विश्वसनीयता समाप्त कराना, विधमान संकट को और व्यापक करना व विभिन्न मुद्दों पर जनाक्रोश को भड़काकर अराजकता , अशांति व दंगे करवाना और अंततः जब भी चुनाव हो तब अपने पिट्ठू राजनीतिक दल की सरकार को स्थापित कर उसे अपने गुट में शामिल कर लेना या तख्ता पलट करवा अपनी कठपुतली सरकार बैठा देना। इसी क्रम में अपने पड़ोसी राज्यों सहित अमेरिका समर्थित राज्यों की सामरिक घेराबंदी करना, उनको धमकाना या उन देशो के उनके पड़ोसी देशों के साथ विवादों को भड़काना। अमेरिका व यूरोप सहित उनके समर्थक देश भी अब चीन से मुकाबले की तैयारियां शुरू कर चुके हैं। नए गठबंधन बनाए जा रहे हैं , रूठे व चीन के पाले में चले गए देशों को मनाने की कोशिश की जा रही है और पूरी दुनिया की सामरिक घेराबंदी की जा रही है। इस क्रम में दोनों पक्षों की ओर से लगातार हथियारों के परीक्षण, तैनाती, प्री रिहर्सल व मॉक ड्रिल की जा रही हैं इसके साथ ही कोरोना से युद्धस्तर पर लड़ाई के साथ ही अर्थव्यवस्था खोली जा रही है ताकि जीवन सामान्य हो सके व जनता को युद्ध के लिए तैयार किया जा सके। चीन अभी तक रूस के साथ मिलकर अनेक यूरोपीय देशों को अपने पाले में कर चुका है। ईरान, उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान व अधिकांश अफ्रीकी देश उसके पाले में है ही। चीन , रुस की मदद से सबसे बड़ा दाव अरब देशों पर लगाए हुए है और इसीलिए तेल की कूटनीति खेल रहा है जिस कारण अरब देशों की अर्थव्यवस्था हिली हुई हैं व ये देश चीन की बात मानने पर विवश हो रहे हैं। चीन की कोशिश इसे ईसाई – मुस्लिम युद्व में बदलने की भी है और अगर वह इसमें सफल रहा टी यह बड़ा टर्निंग प्वाइंट होगा। यह जोर जबरदस्ती व पाला बदली आगे और तेज होने जा रही है। चीन ने अमेरिका को बहुत बेचैन कर दिया है व अमेरिका व यूरोपीय देशों में नस्लवाद विरोधी दंगो व प्रदर्शनों के पीछे चीन का ही हाथ है। अमेरिका भी चीन की घेराबंदी कर रहा है और यदि क्रम में हांगकांग, तिब्बत, उजाईगर मुस्लिमों, ताइवान व भारत के साथ उसके विवादों को हवा दी जा रही है ताकि चीन कई मोरचों पर उलझ जाए। एशियान देशों को भी अमेरिका अपने साथ करने में सफल रहा है व उसने दक्षिण चीन सागर सहित सभी महासागरों में अपने युद्धपोत भी उतार दिए हैं। अंतरिक्ष युद्ध की तैयारियां भी पूरी कर ली गयी हैं तो सायबर युद्ध छिड़ ही चुका है। कोरोना संक्रमण फिर से चीन में फैलाने की कोशिशों में भी अमेरिका लड़ रहा है तो परमाणु हमलों की बाजी तैयारी में है। अमेरिका भी अब चीनी कैम्प में घुसपेठ कर रहा है और फिलीपींस को अपने पाले में लाने में सफल रहा है व रूस व ईरान पर डोरे डाल रहा है।
अमेरिका व चीन दोनों की कोशिश है कि भारत जो उभरती हुई महाशक्ति है व जिसमे मोदी के रूप में विश्व का सबसे विश्वसनीय नेताओ में एक है को अपने पाले मे लाने की है।इसके लिए चीन जहाँ धमकाने व सीमा विवाद खड़ा करने और नेपाल व पाकिस्तान के माध्यम से सीमा पर गोलाबारी करवा भारत को दबाब में लाने की रणनीति पर काम कर रहा है वहीं अमेरिका भारत से रिश्ते बढ़ाने, निवेश बढ़ाने, चीन से अपनी कंपनियों को भारत ले जाने , भारत को जी -7 देशों के समूह का सदस्य बनाने व अमेरिका- आस्ट्रेलिया- जापान- भारत सैन्य गठजोड़ बनाने की बात कर भारत को फुसलाने की कोशिश कर रहा है। मोदी सरकार दोनों ही देशों से बहुत चतुराई से निबट रही है ताकि किसी से भी संबंध भी न बिगड़े , अपनी स्थिति मजबूत भी बने और भारत किसी भी प्रकार आसन्न विश्व युद्ध का मैदान न बन पाए। निश्चित रूप से देश के लिए यह परीक्षा की घड़ी है और समय ही बतायेगा कि हम इस कूटनीति में कितने सफल होंगे। मोदी सरकार के लिए बिगड़ते हुए आंतरिक हालात भी बड़ी चुनोती हैं। उनकी कुछ रणनीतिक भूलों से ये और बिगड़ गए हैं। उम्मीद है अपने रण कौशल से वे पुनः इनको काबू में कर पाएंगे अन्यथा वे राजनीतिक रूप से एक बडी चुनोती से घिर सकते हैं।
चीन अब व्यग्र हो चला है और आमने सामने के युद्ध मे आना चाहता है। इससे पहले वह करेंसी वार , अन्य वायरस हमले व दुनिया के कई देशों में आपसी युद्ध शुरू करवा सकता है। वह जानता है कि अमेरिकन कैम्प अभी तक कोरोना के हमले से उभर नहीं पाया है व खासा कमजोर है , ऐसे में सीधी लड़ाई छेड़ कर वह जल्द जीत सकता है। अगर लंबे समय तक युद्ध नहीं छिड़ा तो अमेरिकन कैम्प फिर मजबूत हो सकता है और स्वयं चीनी कैम्प भी कोरोना की मार से उतना मजबूत नहीं रहा जैसा पहले था। उधर आंतरिक असंतोष व कुछ ही महीनों में चुनावों के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते और युद्ध मे जीत ही उनकी राष्ट्रपति के रूप में वापसी का मार्ग प्रशस्त कर पायेगी। चीनी राष्ट्रपति जिन पिंग को भी अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने व चीन की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अधिक से अधिक देशों को अपने पाले में लाना है। जितने देश आ चुके वो तो ठीक है मगर अन्य देश तभी आ सकते हैं जब चीन अमेरिका से युद्ध मे निर्णायक जीत प्राप्त कर सके। ऐसे में जबकि चीन लंबे समय से युद्ध में नही कूदा है ऐसे में उसकी वास्तविक ताकत का अहसास किसी को भी नहीं। इसलिए वैशिवक व्यवस्था को अपनी शर्तों पर खड़ी करने के लिए उसे अपनी असली युद्व शक्ति को दुनिया को दिखाना ही होगा। इसीलिए चीन के लिए भी युद्ध छेड़ना अपरिहार्य है। विश्व युद्ध के इस तीसरे चरण जो बस अब अगले कुछ सप्ताह में शुरू होने जा रहा है के बाद ही तय होगा कि दुनिया का अगला सम्राट कौन होगा चीन या अमेरिका। जो जीतेगा वही नई विश्व व्यवस्था की नींव रखेगा। अगर हालात ऐसे ही बिगड़ते रहे तो यह युद्ध कुछ महीने भी चल सकता है और कुछ बर्ष भी मगर इसकी विभीषिका दशकों तक बनी रह सकती है। अगर कोई हालात बने समझौते के तब ही दुनिया महाविनाश से बच पाएगी। मगर अब यह निश्चित है कि प्रत्यक्ष युद्ध छिड़ने जा रहा है।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
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