आदरणीय सम्पादक महोदय/महोदया, सादर अभिवादन!
गुणवत्तापूर्ण एवं रोजगारपरक शिक्षा किसी भी देश के विकास की आधारशिला होती है, जिसको मजबूत किये बिना हम एक स्वस्थ एवं सशक्त समाज और राष्ट्र की कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन जब इस आधारशिला की नींव सामाजिक भेदभाव एवं असमानता पर आधारित हो जाये तो इसे हम न तो स्वस्थ एवं सशक्त समाज के लिए शुभ संकेत मान सकते हैं और न हीं देश के विकास का मूल मंत्र। दुर्भाग्यवश शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 के अन्तर्गत निजी स्कूलों में दाखिला पाये हुए कमजोर एवं दुर्बल वर्ग के बच्चों के साथ यही हो रहा है।
इस गंभीर समस्या की जड़ में शिक्षा के अधिकार अधिनियम की वह धारा 12(1)(ग) है, जिसके तहत सरकार इन कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए निजी स्कूलों को फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि देती है। होना तो यह चाहिए था कि सरकार यह धनराशि सीधे पात्र बच्चों के अभिभावकों को भी दे सकती है और पात्र बच्चों के अभिभावक इस फीस की धनराशि को स्वयं स्कूलों में जमा करते, लेकिन हुआ इसका उलटा। जबकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 46 के अनुसार ‘‘राज्य, कमजोर तबकों के लोगों और खास तौर पर अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के शैक्षिक व आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने पर विशेष ध्यान देगा और उनको सामाजिक अन्याय और शोषण के सभी रूपों से बचाने के लिए संरक्षण देगा।’’ इसी के साथ ही अनुच्छेद 14 कहता है कि ‘‘राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के सामने बराबरी या कानूनों के समतामूलक संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।’’
उपरोक्त विचारों पर आधारित मैं अपना एक लेख ‘‘आर.टी.ई अधिनियम के तहत फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि निजी स्कूलों की बजाए सीधे पात्र बच्चों के अभिभावकों के बैंक खाते में भेजे सरकार!’’ आपको भेज रहा हूँ। कृपया इस लेख को अपने सम्मानित समाचार पत्र/पत्रिका में प्रकाशित करने की कृपा करें। इस कृपा के लिए हम आपके अत्यन्त आभारी रहेंगे।
सादर,
सादर,
निवेदक,
अजय कुमार श्रीवास्तव
अजय कुमार श्रीवास्तव