नई दिल्ली, 10 अगस्त 2020
‘बनारस के घाट’ वेबनार में हिंदू संस्कृति को सशक्त करने की आवश्यकता पर बल देते हुए बनारस के घाटों, वहां की संस्कृति, संगीत, कला, साहित्य, जीवनशैली की जीवंत एवं प्रभावी प्रस्तुति की गई। ये घाट न केवल वाराणसी के बल्कि हिंदुत्व के समृद्ध इतिहास एवं संस्कृति के प्रतीक है। इन संस्कृति एवं शक्ति केंद्रों को धुंधलाने की कोशिशों को नाकाम करने की जरूरत पर बल देते हुए विभिन्न वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए।
लाॅयंस क्लब नई दिल्ली अलकनंदा द्वारा आयोजित इस विशिष्ट वेबनार में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डाॅ. सच्चिदानंद जोशी प्रमुख वक्ता थे। जिसमें राजधानी दिल्ली की विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। कार्यक्रम के संयोजक श्री अरविंद शारदा एवं सहसंयोजक डाॅ. चंचल पाल ने इस वेबनार की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि काशी या बनारस नाम से विख्यात वाराणसी न केवल आध्यात्मिक ज्ञान और बेहतरीन मनभावन दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह हिंदू संस्कृति की सांस्कृतिक राजधानी है। समारोह की मुख्य अतिथि जनपदपाल लाॅयन नरगिस गुप्ता थी। समारोह की अध्यक्षता क्लब के अध्यक्ष लाॅयन हरीश गर्ग ने की।
डाॅ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने प्रभावी वक्तव्य में बनारस के घाटों की जीवंत प्रस्तुति करते हुए कहा कि बनारस एक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी है। यह एक शक्ति एवं सिद्धि केंद्र भी है। यह शहर दुनिया भर के असंख्य हिंदू तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। गंगा नदी के किनारे धनुषाकार बसे अस्सी से अधिक घाटों की बहती हवा और सांस्कृतिक नाद इस आध्यात्मिक शहर को एक अनूठा एवं विलक्षण परिवेश देती है। ये घाट समृद्ध इतिहास एवं संस्कृति के प्रतीक है और विभिन्न विचारधाराओं एवं सांस्कृतिक उपक्रमों के संगम स्थल है। इन घाटों के साथ अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं वहीं अनेक चमत्कारों एवं सिद्धियों का अनूठा इतिहास समाया हुआ है। जिनसे रूबरू होना जीवन का एक विलक्षण अनुभव है। डाॅ. जोशी ने बनारस और उनके घाटों की संस्कृति को जीवंत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इस धार्मिक नगरी एवं इन घाटों की उपेक्षा के कारण एक जीवंत संस्कृति के धुंधले होने की संभावनाएं प्रबल हो गई थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीर्थों के उद्धार और स्वच्छता अभियान के कारण इस नगरी को एक नया जीवन एवं इसकी विरासत को संजोय रखने की पहल हुई है।
डाॅ. जोशी ने इन घाटों पर अपनी पुस्तक एवं उनमें संकलित अपनी कविताओं का वाचन करते हुए इन घाटों के साथ-साथ उनसे जुड़े प्रसंगों को प्रस्तुत किया। उन्होंने काशी के संगीत, यहां बनने वाले उत्पाद, अखाड़ा, गंगा, मुक्तिधाम, संगीत की विशिष्टताओं, संध्या आरती, कवि तुलसीदासजी, कबीरजी, विभिन्न घाटों से जुड़े राजपरिवारों एवं राज्यों की चर्चा करते हुए ऐसा महसूस कराया कि सुनने वालों को प्रतीत हुआ कि वे काशी में विचरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संध्या काल में गंगा आरती के दौरान दशाश्वमेघ घाट की जीवंतता मन को लुभाती है। जो पूजा, नृत्य, अग्नि (आग) के साथ समाप्त की जाती है। नदी किनारे जलती दीपकों की रोशनी और चंदन की महक एक अलौकिक अनुभव का अहसास कराती है।
इस अवसर पर लाॅयंस क्लब नई दिल्ली अलकनंदा की पूर्व अध्यक्ष डाॅ. चंचल पाल एवं कार्यक्रम संयोजक अरविंद शारदा ने वाराणसी के लिए क्लब का सामूहिक टूर आयोजित करने के साथ-साथ किसी एक घाट को गोद लेकर उसके विकास के उपक्रम करने का संकल्प व्यक्त किया। अनेक श्रोताओं ने अपनी जिज्ञासाएं व्यक्त की जिनका समाधान डाॅ. सच्चिदानंद जोशी ने किया।