पंजाब में चुनाव के बाद जैसा रुझान दिख रहा है उसके अनुसार भाजपा और अकाली दल से जनता बेहद नाराज़ है। वह इन दोनों दलों के गठबंधन को दूसरा कार्यकाल देने के पक्ष में नजऱ नहीं आ रही है। अब इस गठबंधन का विकल्प कांग्रेस होगी या आप, इस पर भी पंजाब का मतदाता विभाजित है। त्रिशंकु सरकार होने की स्थिति में कुछ गठजोड़ भी संभव हैं और राष्ट्रपति शासन का विकल्प भी। पंजाब का चुनाव बाद आंकलन कर रहे हैं विशेष संवाददाता अमित त्यागी।
शायद बदलाव की इतनी तगड़ी बयार और कहीं दिखाई नहीं दे रही है जितनी कि पंजाब में है। यहां अकाली-भाजपा सरकार से जनता बेहद नाराज़ दिख रही है। वह किसी भी कीमत पर इस सरकार को दूसरा कार्यकाल देने के पक्ष में नहीं है। अब अगर इन दोनों दलों के गठबंधन के विकल्प की बात करें तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी विकल्प बनती दिखती हैं। पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी की। लोकसभा चुनाव 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी उस समय आप ने पंजाब में चार लोकसभा सीट जीतकर पंजाब में अपना आगाज दिखा दिया था। पूरे देश में पंजाब के अतिरिक्त कहीं भी आप का खाता नहीं खुला। धीरे धीरे आप को विधानसभा चुनाव 2017 में अपने लिए सुनहरे सपने दिखने लगे। किन्तु आप के चार में से दो सांसद अलग होने के कारण उसके अंदर बिखराव दिखने लगा।
जब विधानसभा के लिए वोटिंग हुयी तो सत्ता विरोधी रुझान दो तरह से देखा गया। अमीर और मध्य वर्ग कांग्रेस को विकल्प के रूप में बेहतर मानकर उसका मतदाता बना तो निम्न वर्ग जिसमें रेहड़ी वाले, रिक्शे वाले आदि तबका शामिल है वह आप को मतदान करके आया है। पंजाब का युवा आम आदमी पार्टी की तरफ रुझान दिखा रहा है तो बुजुर्ग मतदाताओं ने विकल्प के रूप में कांग्रेस को वोट दिया है। इस तरह से पंजाब में बदलाव की बयार दो तरफ विभाजित हुयी है। पंजाब में इस बार अप्रवासी भारतीयों ने पिछले दो माह से डेरा डाल रखा है। वह पंजाब में बदलाव को फलीभूत होते देखना चाहते हैं। यह ज़्यादातर युवा हैं और आप के समर्थक ज़्यादा दिख रहे हैं किन्तु एक विरोधाभास यह है कि इनके परिजन आप के नहीं बल्कि कांग्रेस के हितैषी हैं। उनका तर्क है कि आप को सत्ता चलाने का अनुभव नहीं है। दिल्ली में आप ने कोई बड़ा उल्लेखनीय बदलाव नहीं किया है। उनके कार्यकर्ता और सांसद भी उनसे संभल नहीं रहे हैं ऐसे में पाकिस्तान का सबसे सीमावर्ती और संवेदनशील पंजाब ऐसे नौसिखियों के हाथों में कैसे दे दिया जाये।
अब यदि बात कांग्रेस की करें तो सिद्धू के आने से कांग्रेस मजबूत हुयी है इसमें कोई शक नहीं है। युवा जोश के बावजूद आप की गिरती लोकप्रियता के कारण कांग्रेस एक स्वत: स्वाभाविक विकल्प दिखने लगी है। एक बड़े वर्ग का वोट इस बार कांग्रेस को मिला भी है। कांग्रेस को वोट देने वालों का मानना है कि आप को वोट देकर वह दिल्ली की तरह मोदी और केजरीवाल के टकराव के बहाने नहीं सुनना चाहते हैं। उन्हें अब स्थायी काम करने वाली सरकार चाहिए। कैप्टन अमरिंदर सिंह को अंतिम समय में कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित करके जनता के सामने एक चेहरा भी दे दिया था जिसमें आम आदमी पार्टी पिछड़ गयी थी। आप के पंजाब प्रभारी सुच्चा सिंह के निष्कासन एवं बाद में उनके द्वारा नयी पार्टी गठन ने आप को कमजोर और कांग्रेस को मजबूत किया है। आप पर बाहरी होने का भी एक ठप्पा दिखाया जाता रहा है किन्तु उसके निम्न वर्ग के मतदाता पर इसका कोई प्रभाव मतदान के दौरान नहीं दिखा।
इस तरह पंजाब का पूरा चुनाव इस बार बदलाव का चुनाव बन गया है जिसमें किसी एक दल के लिए बहुमत मुश्किल दिख रहा है। इस बार पंजाब का एक बड़ा मतदाता वर्ग खामोश है। इसने अपने पत्ते नहीं खोले हैं और इस वर्ग ने किसी एक तरफ अपना रुझान भी नहीं दिया है। ऐसे में गुप्त मतदाता पंजाब की किस्मत तय करने जा रहे हैं।
पंजाब में अधिकांश विधानसभा सीटों पर मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच रहा। शिअद-भाजपा गठबंधन तीसरे स्थान पर पिछड़ रहा है। पंजाब का मालवा क्षेत्र जहां सबसे अधिक 69 विधानसभा सीटें हैं। इसी क्षेत्र में सर्वाधिक सीटें जीतने वाली पार्टी की ही हमेशा सरकार भी बनती रही है। इसमें कांग्रेस और आप के बीच बराबर की टक्कर दिखाई दी है। गुर्जर और दलित वोटरों का ज्यादा झुकाव आप की तरफ देखा गया। शिअद के नाराज पंथक वोटर भी कांग्रेस और आप की ओर मतदान करके आए हैं। इस तरह के आंकड़ों से अनुमान लगाएं तो 19-20 के अंतर से जीत का सेहरा कांग्रेस या आप किसी के भी सिर बंध सकता है। लेकिन अगर डेरे के आह्वान पर अगर गुप्त मतदाता गठबंधन को मत देकर आया है तो चुनाव के नतीजे बिल्कुल अलग होंगे। किसी को भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं होगा।
इसको समझने के लिए हमें 2012 चुनावों के परिणामों पर नजऱ डालनी होगी जब शिअद-भाजपा गठबंधन ने अप्रत्याशित जीत हासिल कर सत्ता में कब्जा जमाए रखा था। यह जीत इतनी अप्रत्याशित थी कि उस समय के सभी सर्वे रिपोर्ट में कांग्रेस को अगली सरकार बनाते हुए दिखाया गया था। स्वयं मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी नतीजों का अनुमान लगाकर, नतीजे आने से पहले ही परिवार सहित विदेश घूमने तक निकल गए थे।
परिणाम बाद संभव हैं कई संभावनाएं।
पंजाब के चुनाव परिणाम के द्वारा जो परिस्थिति उत्पन्न हो रही है उसके अनुसार या तो कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलेगा या आम आदमी पार्टी को। ऐसा न होने की स्थिति में त्रिशंकु विधानसभा बनेगी। ऐसी स्थिति में अकाली दल और कांग्रेस गठबंधन कर सकते हैं। इसके पीछे वजह है कि ये दोनों दल पंजाब के पुराने दल हैं और आप से घृणा करते हैं। यह दोनों दल नहीं चाहते हैं कि आप पंजाब में अपने ज़्यादा पैर जमाये। चूंकि अकाली और कांग्रेस का राजनैतिक चरित्र एक दूसरे के धुर विरोधियों का है किन्तु आप को बाहर रखने के लिए यह एक बड़ी संभावना दिख रही है। चौथा विकल्प राष्ट्रपति शासन का है जो भाजपा के लिये सबसे ज़्यादा मुफीद है। ऐसा होने की स्थिति में वह चुनाव हारकर भी सत्ता सुख भोग सकती है। इस तरह से पंजाब के नतीजे न सिर्फ बदलाव को तैयार दिख रहे हैं बल्कि साथ ही साथ धुर विरोधियों को भी साथ लाते दिख रहे हैं।