बिजली ट्रांसफॉर्मर की दक्षता बढ़ाने के लिए सिलिका का उपयोग
पिछले कुछ वर्षों से बिजली की निरंतर बढ़ती माँग के साथ-साथ विद्युत प्रणालियों को बेहतर बनाने की चुनौती भी बढ़ी है। बिजली व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग ट्रांसफार्मर है, जिसके कोर में ऊर्जा क्षरण के साथ-साथ करंट प्रवाह में भूमिका निभाने वाली वाइंडिंग में गर्मी उत्पन्न होती है। इस समस्या से बचने के लिए ट्रांसफार्मर में इंसुलेटिंग ऑयल का उपयोग किया जाता है, जो कूलेंट का काम करता है, और ट्रांसफार्मर के ताप को संतुलित रखता है।
ट्रांसफार्मर ऑयल उचित इन्सुलेशन प्रदान नहीं करता, तो ट्रांसफार्मर फेल हो सकता है, जिससे बिजली का प्रवाह बंद हो जाता है। ट्रांसफार्मर में तापमान 200 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से आग लग सकती है। पारंपरिक ट्रांसफार्मर ऑयल के साथ एक समस्या है कि यह अपघटित नहीं होता। इसीलिए, ट्रांसफार्मर में उपयोग होने वाले पारंपरिक ऑयल की जगह धीरे-धीरे एस्टर ऑयल ले रहा है, जो बेहतर इन्सुलेशन विशेषताओं के लिए जाना जाता है, और अपघटित हो सकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-मद्रास के एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि सिलिका और विशिष्ट पृष्ठ संक्रियक (Surfactants) बिजली के ट्रांसफार्मर के आकार को एक चौथाई तक कम करने के साथ-साथ विद्युत और थर्मल गुणों से समझौता किए बिना ट्रांसफार्मर की दक्षता बढ़ाने में भी सक्षम हैं । चयनित नैनो द्रव संभावित रूप से इन्सुलेशन के लिए आवश्यक तेल की मात्रा कम करने में मदद कर सकता है। परिणामस्वरूप, ट्रांसफार्मर का आकार भी लगभग 25 प्रतिशत कम हो सकता है।
आईआईटी-मद्रास के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के हाई वोल्टेज डिविजन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर आर सारथी कहते हैं – “एस्टर ऑयल 300 डिग्री सेल्सियस तक तापमान वहन कर सकते हैं। हालांकि, ट्रांसफार्मर का आकार बढ़ने के साथ आवश्यक ऑयल की मात्रा भी बढ़ जाती है। बड़ी मात्रा में तेल को शुद्ध रखना एक चुनौती बन जाता है। यहाँ तक कि एक पतले फाइबर कण या तेल को दूषित करने वाली अन्य सामग्री समय के साथ बड़ी समस्याएं पैदा कर सकती है।”
शोधकर्ताओं, जिसमें केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, स्वीडन के सदस्य शामिल हैं, ने सिंथेटिक एस्टर ऑयल में अपरिचालक पदार्थों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए नैनोफिलर्स के संभावित अनुप्रयोग की खोज की है। अपरिचालक सामग्री, इन्सुलेटर नहीं है, लेकिन इन्सुलेशन के रूप में कार्य करने के लिए इसे विकसित किया जा सकता है। किसी सामग्री को उच्च अपरिचालक शक्ति से लैस कहा जाता है यदि वह करंट प्रवाह नहीं होने देती है – दूसरे शब्दों में, ऐसी सामग्री एक इन्सुलेटर के रूप में बेहतर कार्य करती है।
शोधकर्ताओं ने नैनोफिलर्स को एस्टर ऑयल में प्रयुक्त किया है, जिससे ऑयल के बुनियादी विद्युत या थर्मल गुणों में परिवर्तन हुए बिना फिलर्स आवश्यक इन्सुलेशन को बढ़ाने में सक्षम पाये गये हैं। प्रोफेसर सारथी बताते हैं: “किसी तरल में नैनो कण विद्युत, थर्मल और यांत्रिक गुणों के मामले में उच्च क्षमता प्रदान कर सकते हैं। ट्रांसफॉर्मर के भीतर स्थानीय विद्युत रिसाव होता है, तो नैनो कण एक बाधा के रूप में कार्य करते हैं। नैनो कण उच्च वोल्टेज पर भी विद्युत रिसाव को आगे नहीं बढ़ने देंगे।” नैनो कणों में एक उच्च सतह क्षेत्र भी होता है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मी भी जल्दी समाप्त हो जाती है।
शोधकर्ताओं ने नैनो-फिलर के लिए सामग्री के रूप में सिलिका को चुना है। सिलिका में न केवल अच्छे अपरिचालक गुण होते हैं, बल्कि यह लागत प्रभावी भी होती है। हालांकि, वांछित इन्सुलेशन प्राप्त करने और द्रव में क्लस्टरिंग से बचने के लिए नैनो-फिलर्स को समान रूप से फैलाने की आवश्यकता होती है। नैनो कणों का एक समान फैलाव सुनिश्चित करने के लिए कई पृष्ठ संक्रियक (Surfactants) आजमाये गये हैं। वे पदार्थ; जो दो द्रवों या एक द्रव एवं एक ठोस के बीच पृष्ठ तनाव कम कर देते हैं, उन्हें पृष्ठ संक्रियक (Surfactants) कहते हैं। इनका उपयोग अपमार्जक के रूप में, भिगोने वाले पदार्थ के रूप में, पायसीकारक (emulsifiers) के रूप में, झागकारक के रूप में या परिक्षेपक (dispersant) आदि के रूप में होता है। इस अध्ययन में, सीटीएबी, ओलिक एसिड और स्पैन-80 में से आखिरी पृष्ठ संक्रियक को सबसे उपयुक्त पाया गया है।
आईआईटी-मद्रास के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रमेश जी. कहते हैं, “इस अध्ययन में, हमारा आइडिया ऐसी सामग्री का उपयोग करने का था, जो विद्युत और थर्मल गुणों से समझौता किए बिना सिस्टम की दक्षता को बढ़ाने में सक्षम हो।”