जब किसी अयोग्य व्यक्ति को किसी योग्य व्यक्ति के स्थान पर कहीं तरजीह मिलती है तब यह सिर्फ योग्य व्यक्ति का ही अपमान नहीं होता है। यह एक राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना का भी अपमान होता है। अयोग्य व्यक्ति के द्वारा किसी पद पर पहुंचने से उसके द्वारा किए जाने वाले फैसले भी गुणात्मक दृष्टि से कमजोर होते हैं। जब तक हम सरकारी सेवाओं को सेवा का माध्यम न मानकर नौकरी पाने का माध्यम मानते रहेंगे, न तो व्यवस्था में बदलाव आयेगा न ही जनता का सरकारी सेवाओं में विश्वास पैदा होगा। व्यापम में पिस रहे मेधावी छात्रों की मनोस्थिति भी कुछ ऐसी ही है। कुछ योग्य छात्रों के ऊपर अयोग्य एवं अपात्रों को मेडिकल में दाखिला मिल गया। एक ऐसे क्षेत्र में दाखिला जिसके बाद इन अयोग्यों को भारत की बीमार जनता का इलाज़ करना था।
इस तरह से पैसों के लालच में कुछ लोगों ने भारत की जनता के हितों से ही खिलवाड़ कर दिया। साल भर तन्मयता से दिन रात एक कर पढ़ाई करने वाले छात्रों के ऊपर ‘नकलची दौलतमंदों’ को कुछ लालचियों के द्वारा तरजीह दे दी गयी। इसके बाद इन मेधावियों की आवाज़ बनकर उभरे एक समाजसेवी प्रशांत पांडे। उन्होंने एक याचिका दायर कर दी। यह मामला प्रकाश में आ गया। वह सिर्फ यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने उच्चतम न्यायालय को ऐसे 634 चिकित्सकों की सूची सौंपी जो इस घोटाले में संदिग्ध थे। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने उनकी याचिका पर एक कमेटी का गठन कर जांच कराई। इस जांच की रिपोर्ट आने के बाद यह बात सिद्ध हो गई कि सूची में दिये गए 634 नामों ने फर्जी तरीके से परीक्षा पास की थी। वर्तमान में उच्चतम न्यायालय का फैसला इसी याचिका पर तीन सदस्यीय पीठ ने सुनाया है। महत्वपूर्ण फैसले में सभी 634 चिकित्सकों की एमबीबीएस की डिग्री को शून्य घोषित कर दिया गया है। अब मध्य प्रदेश के होनहार युवाओं में एक जोश भर गया है और वह फिर से अपनी मेहनत के द्वारा सरकारी सेवाओं की ओर देखने लगे हैं। इस फैसले से उन मेधावी छात्रों को भी काफी राहत मिल रही है जो कड़ी मेहनत करने के बावजूद पीएमटी की परीक्षा पास नहीं कर पाए थे।
मेडिकल क्षेत्र के अतिरिक्त भी हैं धांधलियां
व्यापम एक बहुआयामी और व्यापक घोटाला है। इसके परिप्रेक्ष्य में आत्महत्या, जालसाजी, प्रतिरूपण, रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी और पद के दुरुपयोग जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। इसने व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की हजारों सीटों पर प्रवेश की चाह रखने वाले एक करोड़ से अधिक छात्रों तथा पटवारी से लेकर आरक्षक और शिक्षकों के पदों पर सरकारी नौकरी की चाह रखने वाले लाखों युवाओं के जीवन को प्रभावित किया है। इस घोटाले में छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक के अधिकारी लिप्त हैं। कुछ दस्तावेज़ न्यायालय के संज्ञान में आये तो उस पर कार्यवाही हो गयी किन्तु अभी भी काफी मात्रा में छुपे पड़े हैं। इसमें तो इतनी अनियमितताएं हैं कि कई सफेदपोशों का संरक्षण भी इसमें दिखाई दे रहा है। अब चाहे वर्तमान सरकार हो या पूर्ववर्ती सरकार, बिना सरकारी संरक्षण के इतना बड़ा घोटाला संभव हो ही नहीं सकता है।
गहराई से देखने पर राजनैतिक और पूंजीवादी व्यवस्था को ठेंगा दिखाता यह फैसला स्वत: ही मानवहित में किया गया फैसला लगने लगता है। इसके साथ ही एक तथ्य यह भी है कि स्वास्थ्य सेवाओं में पैसे की बहुतायत के कारण अब भी देश में करीब पांच-छह हजार ऐसे चिकित्सक काम कर रहे हैं जिन्होंने फर्जी तरीके से परीक्षा पास की हैं। क्या ऐसे लोग समाज के लिए हानिकारक नहीं हैं? अब तक इन अयोग्य व्यक्तियों के कारण न जाने कितने लोग अपनी जान गंवा चुके होंगे। ज़ाहिर सी बात है कि यह लोग मेधावी छात्रों को बाई-पास करके ही चयनित हुये होंगे। अगर यह सारे अयोग्य चिकित्सा व्यवसाय में रहते तो न जाने कितने लोगों का नरसंहार कर देते। ऐसे में उच्चतम न्यायालय का यह फैसला देश के मेधावियों का सम्मान और शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की दिशा में एक सधा हुआ कदम है।
एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला धोखाधड़ी : सर्वोच्च न्यायालय
व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) के द्वारा मेडिकल के पाठ्यक्रम एमबीबीएस में दाखिले को सर्वोच्च न्यायालय ने धोखाधड़ी करार दिया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ का कहना है कि छात्रों के कृत्य ‘अस्वीकार्य बर्ताव’ के दायरे में पाए गए हैं और उन्हें संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेष अधिकार का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में व्यापम (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) परीक्षा के जरिये एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला लेने वाले 634 छात्रों का दाखिला रद्द किए जाने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को अब उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा है। इस फैसले की व्याख्या करते हुये आगे पीठ का कहना था कि हमारी नजर में उनकी करतूत धोखाधड़ी, न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था का उल्लंघन करना है और किसी व्यक्ति या समाज के फायदे के लिए राष्ट्रीय महत्व के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। एमबीबीएस कोर्स में उनके दाखिले को वैध करना सही नहीं होगा। इससे भी आगे जाकर तल्ख तेवर के साथ पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-142 के तहत मिले विशेष अधिकार का इस्तेमाल ऐसे छात्रों के लिए नहीं किया जा सकता। अगर हम देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जिसकी बुनियाद में नैतिकता है, तो हम ऐसे राष्ट्र के निर्माण के बारे में सोचेंगे, जहां कानून का शासन हो।
इस तरह उच्चतम न्यायालय के एक फैसले से छह सौ से अधिक चिकित्सकों की डिग्री शून्य घोषित हो गयी है। यह वे चिकित्सक हैं जिन्होंने फर्जी तरीके से वर्ष 2008 से 2012 तक मध्यप्रदेश में व्यापम के माध्यम से पीएमटी पास कर एमबीबीएस में प्रवेश लिया था। व्यापम एक ऐसा घोटाला बन कर उभर रहा है जिसके जिन्न ने अब तक कई लोगों की जानें ले ली हैं और इसकी परतें इतनी ज़्यादा है कि अभी और कितने गुल खिलाएंगी इसका अंदाज़ा लगाना कठिन है।
-अमित त्यागी