साइंस लेटर संस्था द्वारा “जलवायु परिवर्तन के प्रभाव व उनको रोकने में युवाओं व महिलाओं की भूमिका” विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में व्यक्त किए गए मेरे विचारो के प्रमुख अंश –
कारपोरेट और सरकारें बाज़ारवाद व उपभोक्तावाद के जिस रास्ते पर दुनिया को ले गयीं हैं उसने पृथ्वी के संसाधनों को तेजी से समाप्त करना शुरू कर दिया है। हमारी स्थिति टाईटेनिक जहाज जैसी हो चुकी है । जीवाश्म ईंधनो और मांसाहार के साथ ही प्लास्टिक, रासायनिक खादों व कीटनाशकों ने आग में चिंगारी का काम किया है। हर और प्रदूषण , कूड़े व गंदगी के ढेर और पश्चिमी जीवन शैली व भवन निर्माण ने हालात बद से बदतर कर दिए। बाज़ार ज़्यादा से ज़्यादा माल बेचना चाहता है इसलिए उसने संयुक्त परिवार व अब एकल परिवार भी तोड़ दिया है जिस कारण सब आत्मकेंद्रित व स्वार्थी हो गए हैं। सरकारें बस बातें करती हैं किंतु ज़मीनी सच्चाई अलग है। सरकारों की ग़लत नीतियो व ढुलमुल रवैए के कारण कार्बन उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है और दुनिया भर में ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। जिस कारण महासागर तेजी से वाष्पीकृत होकर अतिवृष्टि व अनावृष्टि कर रहें हैं। जंगल तेज़ी से जल रहे हैं और चक्रवात अधिक आ रहे हैं। सभी ज्वालामुखी जाग्रत हो गए हैं व भूकंप अधिक आने लगे हैं। बाढ़, सूखे व तूफ़ान कई गुना बढ़ गए हैं। मौसम का चक्र बदलने व अनियमित होने से विस्थापन, बीमारियाँ,बेरोज़गारी, ग़रीबी व भुखमरी तो बढ़ हो रही है साथ ही कृषि उपज का उत्पादन घटता जा रहा है। दुनिया के संसाधन व जीडीपी लगातार सिकुड़ती जा रही है। अगले दस पंद्रह सालों में मिट्टी, नदी, जंगल, पशु पक्षी, पेड़ पौधे, फल, सब्ज़ियाँ व अनाज सब बहुत ज़्यादा घट चुके होंगे तो मानव कैसे बचेगा? समुद्र व नदियाँ प्रलयंकारी रूप ले बहुत सारी ज़मीन हड़प लेंगे व करोड़ों लोगों को विस्थापन करना पड़ेगा।इस सबके बीच भी दुनिया लगातार युद्ध व हथियारों की होड़ में लगी है जो कार्बन उत्सर्जन को और बढ़ा रहे हैं और जनता को धोखा दे रहे हैं।
युवाओं और महिलाओं को आगे आना होगा व सनातन संस्कृति के प्रकृति केंद्रित जीवन शैली व कम संसाधनों में जीने की आदत के साथ ही जीवाश्म ईंधनो का तुरंत संपूर्ण त्याग, जैविक कृषि, अधिक से अधिक वृक्षारोपण, सभी देशों की सरकारों की ग़लत नीतियो का व्यापक विरोध ही वो उपाय हैं जो प्रकृति की उम्र बढ़ा सकते हैं और मानव के जीवन बचे रहने की संभावना बनी रह सकती है।
– अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया