डाॅ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व सम्मोहक तथा बहुपक्षीय था। उनका महत्त्व रामेश्वरम् के एक अनजान ग्रामीण लड़के से राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा तक सीमित नहीं थी। वह बचपन से ही मानवीयता तथा आध्यात्मिकता से प्रेरित रहे। उन्होंने अपने जीवन में सपनों को साकार करने का प्रयत्न किया और सफलता ने उनका दामन नहीं छोड़ा। ‘मिसाइल पुरुष’ नाम से प्रख्यात् डाॅ0 कलाम सन् 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाना चाहते थे। वह हमेशा आकाश की ऊँचाईयों तक पहुँचने के इच्छुक रहे। वे समाज के सभी वर्गों के साथ-साथ विशेषरूप से बच्चों के मस्तिष्क को प्रज्वलित करने के लिए जीवनपर्यन्त प्रयत्नशील रहे।
जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आता था, वह उनके अनेक गुणों जैसे: सादगी, सद्भावना, संवेदनशीलता, विनम्रता, आत्मीयता, मैत्रीपूर्ण व्यवहार आदि से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। वे सदैव अच्छे कार्यों की प्रशंसा करके उनको अपने-अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का उनमें एक विशेष गुण था। देश के ऐसे अनेकों व्यक्ति हैं जिन्हांेने उनके द्वारा बताये गए मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के साथ अनेक प्रकार की उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। ऐसे महान व्यक्तित्व को कोई कैसे भूल सकता है?
राष्ट्रपति के रूप में भी उनकी सादगी एवं विनम्रता में कोई कमी नहीं देखी गयी। उनको शैक्षिक एवं धार्मिक संस्थाओं एवं स्थलों में जाना सदैव रुचिकर लगता था। प्रत्येक धर्म के धर्मगुरुओं से विस्तृत चर्चा करने में बहुत आनन्द आता था और वे बिना भेदभाव सभी धर्मों के श्रेष्ठ विचारों एवं आस्थाओं को ग्रहण करने में संकोच नहीं करते थे। एक बार जब वे गुजरात के एक आश्रम में गये तो वहाँ के एक संन्यासी ने पूछा कि डाॅ0 कलाम आप हर समय इतने ऊर्जावान एवं उत्साही कैसे रहते हैं? तो उन्होंने सहज भाव से उत्तर दिया और कहा कि स्वामी जब मैं लिफ्ट से प्रथम तल से भू तल तक आता हूँ तो उस अल्प समय में भी मैं सदैव एक ही बात सोचता रहता हूँ कि मैं देश एवं समाज को क्या दे सकता हूँ? जब मैं किसी बच्चे से मिलता हूँ तो मैं उसे क्या दे सकता हूँ जिससे उससे खुशी मिले। इसी प्रकार जब मैं किसी संन्यासी/साधु से मिलता हूँ तो मैं सदैव सोचता रहता हूँ कि उनको क्या दे सकता हूँ? मैं सदैव सोचता रहता हूँ कि मैं क्या दे सकता हूँ? इसी से मैं हर पल ऊर्जावान एवं उत्साहित बना रहता हूँ। उन्होंने स्वामी से कहा कि दुनिया हमको बताती है कि हम दूसरों से क्या ले सकते हैं? क्या हम कभी सोचते हैं कि हम दूसरों को क्या दे सकते हैं जिससे उनको आगे बढ़ने में मदद मिले? स्वामी ने बताया कि अहमदाबाद एक ऐसा नगर है जहाँ हम सदैव दूसरों से लेने की बात लगातार करते रहते हैं और देने की बात पर हम ध्यान ही नहीं देते। यदि जब हम किसी को कभी कुछ देते हैं तो उसके बदले में हमको क्या लाभ मिलेगा, ऐसी हमारी मानसिकता बन गयी है। इस प्रकार की सोच में कैसे परिवर्तन लाया जा सकता है? इसके उत्तर में डाॅ0 कलाम ने कहा कि हमको समाज में पूर्ण रूप से सकारात्मक सोच विकसित करनी होगी, उसी सोच के द्वारा हम समाज में परिवर्तन ला सकते हैं। इसलिए देश एवं समाज को आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक सोच और विचारों की बहुत ही आवश्यकता होती है।
इस कार्यक्रम के बाद जब डाॅ0 कलाम आश्रम से बाहर जा रहे थे तो लगभग 40 मीडियाकर्मियों ने उन्हंे घेर लिया और बातचीत करने के लिए आग्रह किया। उनके आग्रह पर डाॅ0 कलाम ने उनसे कहा कि आप सर्वप्रथम अपने कैमरे अलग कर लें और उसके उपरान्त एक शिक्षक के रूप में कहा कि आप अपने कलम और पैड भी अलग रख दें। सभी मीडियाकर्मियों ने उनके इस सुझाव का पालन किया। उसके उपरान्त डाॅ0 कलाम ने कहा कि मैं आपको ‘‘फ्री पार्टनरशिप’’ को ग्रहण करने का सुझाव देता हूँ। सभी उपस्थित महानुभावों ने बहुत ही उत्सुकता से पूछा कि यह ‘‘फ्री पार्टनरशिप’’ क्या चीज होती है? इसके उत्तर में डाॅ0 कलाम ने कहा कि ‘‘बिना किसी स्टेक के आप अपने-अपने तरीके से देश की प्रगति/उन्नति में भागीदार/साझेदार बनें।’’ आगे कहा कि आप अपने घर की प्रगति के साथ-साथ अपनी पत्नी की प्रगति में भागीदार बनें और आपकी पत्नी भी आपकी प्रगति में भागीदार बनने की भूमिका निभायें और आपस में किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार आप अपने बच्चे के उत्थान में भागीदार बनें और अपने-अपने कार्यालयों में अपने वरिष्ठ अधिकारियों एवं कनिष्ठों की उन्नति में भी भागीदारी की सक्रिय भूमिका निभायें। इस प्रकार के विचारों का पालन वही व्यक्ति कर सकता है जिसकी सोच पूर्ण रूप से सकारात्मक होती है। इन सकारात्मक विचारों को सुनने के उपरान्त कुछ मीडियाकर्मियों ने कलाम साहब से मुस्कुराने के लिए कहा तो तुरन्त इसके उत्तर में, उन्होंने बताया कि जैसे आप मुझे मुस्कुराने के लिए कह रहे हैं वैसे ही आपके द्वारा किये गये सकारात्मक कार्यकलापों से ‘‘देश मुस्कुराए’’।
डाॅ0 कलाम के इस गूढ़ संदेश में बहुत कुछ छिपा है। ‘‘देश तभी मुस्कुरायेगा’’ जब देश का प्रत्येक नागरिक अपने-अपने कार्य को ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित भाव से पूरा करे। जिस प्रकार की समाज की वर्तमान स्थिति है उसमें प्रत्येक छोटे-बड़े न्यायाधीश को बिना भेदभाव, लालच आदि में न फँसकर सत्यनिष्ठा से न्याय करना होगा। इसी प्रकार नेताओं और राजनेताओं को भी निजी स्वार्थ त्याग कर देश एवं समाज की उन्नति के लिए घोर ईमानदारी से कर्तव्य निभाना होगा। इसके अलावा समाज के एक और महत्वपूर्ण अंग हमारे ‘शिक्षकों’ को सबसे अधिक जिम्मेदारी से, बिना किसी भेदभाव के, लालच आदि में न फँसकर निःस्वार्थ भाव से छात्र/छात्राओं को अत्यंत योग्य बनाना होगा। इसी प्रकार चिकित्सकों को भी धनलोलुपता से दूर रहकर राष्ट्र को स्वस्थ बनाने में अपनी अहम भूमिका निभानी होगी। देश की नौकरशाही को भी पूर्ण रूप से पाक-साफ बनाने की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। देश की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति में उद्योगपतियों की एक अहम भूमिका होती है, उनको भी इस दिशा में सत्यनिष्ठा से आदर्श स्थापित करने की आवश्यकता है। जिससे उनके उद्योगों में कार्य करने वाले सभी छोटे-बड़े कर्मचारियों एवं अधिकारियों को भी बहुत ही मेहनत और ईमानदारी के साथ अपने-अपने कार्य को कर्मठता के साथ अंजाम देने की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों एवं टैक्नोलाॅजिस्ट्स को भी ‘‘देश के मुस्कुराने’’ में नयी-नयी खोजों एवं नये-नये उपकरणों, उत्पादों के विकास के द्वारा समाज की सेवा करने में सत्यनिष्ठा से योगदान करना होगा। समाज के अति पिछड़े वर्ग जैसे- किसान, मजदूर आदि को भी लगन एवं कठिन मेहनत के साथ अपने-अपने कामों को समर्पित भाव से करने की आवश्यकता है जिससे उनकी खुशहाली के साथ-साथ समाज की सोच में भी बदलाव आयेगा। इस प्रकार हम डाॅ0 कलाम द्वारा प्रतिपादित प्रस्ताव ‘‘फ्री पार्टनरशिप’’ मंे भाग लेकर उनके इस मंत्र द्वारा भारत को विश्व के सर्वश्रेष्ठ देशों की श्रेणी में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में सक्रिय भूमिका निभायें। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार आज़ादी की लड़ाई के लिए महात्मा गाँधी ने ‘‘करो या मरो’’ का नारा दिया था, उसी प्रकार भारत को एक ‘‘विकसित राष्ट्र’’ बनाने के लिए डाॅ0 कलाम ने ‘फ्री पार्टनरशिप’’ का मूलमंत्र दिया है, जो वास्तव में देश की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगा।
विज्ञानरत्न लक्ष्मण प्रसाद’