पर्यावरण व ऊर्जा विकास के क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था सेंटर फाॅर एन्वाॅयरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘एम्बिएन्ट एयर क्वालिटी फाॅर दिल्ली’ के अनुसार बीते सर्दी के मौसम में राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर पाया गया, जिसका साफ मतलब है कि यहां की हवा सांस लेने योग्य नहीं रही। रिपोर्ट के अनुसार जाड़े के चार महीनों के मौसम में ऐसा कोई इकलौता दिन नहीं रहा, जब वायु की गुणवत्ता की केटेगरी ‘अच्छी’ रही हो, बल्कि 89 प्रतिशत दिनों में यह ‘खराब’ या ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता के अंतर्गत रही। 6 प्रतिशत दिनों में यह ‘गंभीर’ दर्जे की मानी गयी। वायु प्रदूषण की यह दशा हमारी राजधानी के जीवन स्तर और रहन-सहन पर गंभीर खतरे पेश करती है। बवाना इंडस्ट्रीयल एरिया के समीप दिल्ली टेक्नोलाॅजिकल युनिवर्सिटी में स्थापित माॅनिटरिंग स्टेशन से प्राप्त प्रदूषित कण यानी पर्टिकुलेट मैटर ( PM2.5) का औसत संकेद्रण संबंधी आंकड़ा 5 नवंबर को सर्वाधिक (981 ug/m3) रहा, जो दिल्ली में स्माॅग के बहुचर्चित दिनों के दरम्यान था। यह राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक की तय सीमा (60 ug/m3) से करीब 16 गुणा ज्यादा है। यह आंकड़ा किसी दिन के चैबीस घंटों में प्रदूषित कणों की औसत संकेंद्रण की गणना पर आधारित होता है।
दिल्ली में अलार्मिंग लेवल पर पहुंच गये वायु प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए सीड के प्रोग्राम आॅफिसर डिम्पी सुनेजा ने कहा कि ‘‘महानगर की हवा सांस लेने योग्य नहीं है और इससे लोगों का दम घुट रहा है खासकर कमजोर लोगों का, जिससे जन स्वास्थ्य पर बड़ा भीषण संकट पैदा हो गया है। यह संकट हमारे सामने आ खड़ा हुआ है। ऐसे में हम आंख मूंद कर बैठे नहीं रह सकते। इस संकट की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार को माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूर ग्रेडेड रिस्पाॅन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) की अविलंब पुष्टि करनी चाहिए, ताकि जमीनी स्तर पर इसे फौरन लागू किया जा सके।’’
रिपोर्ट के नतीजे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा स्थापित दिल्ली के 10 रियल टाइम एयर क्वालिटी माॅनिटरिंग स्टेशनों से गत नवंबर 2016 से फरवरी 2017 के सर्दी के मौसम के दौरान प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है। यह रिपोर्ट दिल्ली में वायु प्रदूषण के वर्तमान स्तर की पड़ताल भर नहीं है, बल्कि यह वायु प्रदूषण से मानवों पर पड़ते दुष्प्रभावों को भी परलक्षित करती है। इसके अलावा यह शोध रिपोर्ट यह भी खुलासा करती है कि नवंबर से फरवरी के बीच माहवार माध्य गणना सामान्य तौर पर नीचे की ओर गिरती गयी है। नवंबर में पर्टिकुलेट मैटर के औसत संकेंद्रण की गणना करीब 282.7 ug/m3 रही (उच्च्तम), जबकि जाड़े के तीन महीनों – दिसंबर, जनवरी और फरवरी में यह 224.57 ug/m3, 172.7 ug/m3 और 140.74 ug/m3 क्रमशः रही।
नवंबर महीने में प्रदूषित कणों का उच्चतम दैनिक औसत संकेंद्रण 7 नवंबर को सर्वाधिक यानी 558 ug/m3 रहा, जबकि दिसंबर माह में 24 तारीख को यह सर्वाधिक 300 ug/m3 दर्ज किया गया। जनवरी और फरवरी महीने में उच्चतम दैनिक औसत संकेंद्रण क्रमशः 1 जनवरी (225ug/m3) और 28 फरवरी (215 ug/m3) को दर्ज किया गया।
रिपोर्ट के नतीजों के बारे में और विस्तार से बताते हुए डिम्पी सुनेजा ने कहा कि ‘यह खौफनाक सच है कि दिल्ली में वायु की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहंुच गयी है, जो जन स्वास्थ्य व सुरक्षा पर गंभीर खतरे पेश करती है। हरेक साल लाखों लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण असमय मर जाते हैं। यह खतरनाक स्थिति आपातकालीन कदमों की मांग करती है। ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूर किये गये ग्रेडेड रिस्पाॅन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) की दिल्ली सरकार द्वारा अविलंब पुष्टि की जानी चाहिए, जिससे कि धरातल पर इससे जुड़े काम शुरू हो सके।’
उन्होंने आगे बताया कि ‘सबसे महत्वपूर्ण कदम जन स्वास्थ्य में सुधार लाने की दिशा में काम करना है और इसके लिए हमें पब्लिक इनफाॅरमेशन मेथड को बढ़ावा देना होगा। इसके तहत आम लोगों को शहर के हरेक वार्ड में आसानी से उपलब्ध हेल्थ एडवाइजरी के जरिये बेहतर ढंग से सूचित व जागरुक किया जा सकता है। वायु गुणवत्ता के दूरगामी व सतत प्रभाव के लिए हमें दीर्घकालिक व अल्पकालिक कदमों को उठाना चाहिए, जिसमें वाहन जनित प्रदूषण, पावर प्लांट व इंडस्ट्रीज द्वारा गैस उत्सर्जन, कूड़ा के दहन और भवन निर्माण के कारण बढ़ते प्रदूषित कणों को रोकने के लिए समयसीमा के आधार पर कई कदम उठाने होंगें। साथ ही सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में भी सुधार लाने होंगे, जिसके तहत उच्च प्रदूषण वाले दिनों में पार्किंग फीस को चार-पांच गुना तक बढ़ाया जा सकता है। यही नहीं हमें पंजाब व हरियाणा के खेतों में अपशिष्ट जलाने से पैदा प्रदूषित धुएं से निबटने के लिए अंतर-राज्यीय समन्वयन पर भी काम करना होगा।’
रिपोर्ट लिंक:- http://ceedindia.org/wp-conten