Shadow

बड़े बदलावों की नई सुबह

विधानसभा चुनावों में आयी भगवा सूनामी ने नकारात्मक राजनीति के कचरे को बेतरह बहा दिया है और अब देश में सकारात्मक वातावरण में राष्ट्रवादी और भारतपरक राजनीति का उदय हो गया है। हालांकि यह उदय तो मई 2014 में मोदी सरकार आने पर ही हो गया था किंतु देश के सेकुलर-वामपंथी खेमे की कलुषित मानसिकता, स्वार्थ की राजनीति एवं सरकार के हर कदम व कार्य की अबाध आलोचना और खिल्ली उड़ाने की घटिया हरकतों व किसानों, जवानों व जातीय-धार्मिक समूहों को भड़काने की राजनीति से चारों ओर भ्रम व अविश्वास का घना कोहरा छा गया था। मात्र विरोध के लिए विरोध करने वाले दलों कांग्रेस पार्टी, सपा, बसपा और आआपा को जनता ने आत्मकेंद्रित राजनीति की बहुत बड़ी सजा दी है और एक प्रकार से सेकुलर राजनीति की जड़ें ही हिला दी। यह चुनाव देश की जनता के लिए अमृत वर्षा की तरह है, क्योंकि या तो सेकुलर खेमा समाप्त होता जायेगा अथवा उसको राष्ट्रवादी सांचे में ढलना होगा। एक और बड़ी संभावना नये राष्ट्रवादी दलों के उभरने की भी रहेगी। नरम हिंदुत्व अब हर दल की नीतियों का हिस्सा होगा और तुष्टिकरण की राजनीति सिकुड़ती जायेगी।
देश की नौकरशाही, न्यायपालिका और मीडिया के दृष्टिकोण में भी बड़े बदलाव संघ परिवार की इस बड़ी जीत के बाद दिखने शुरू हो गए हैं। देश में बहुसंख्यक हिन्दू आजादी के बाद पहली बार आत्मसम्मानित महसूस कर रहा है। उत्तर प्रदेश में पिछले दो तीन वर्षों में जो मुस्लिम तुष्टिकरण, अराजकता और लूट का नंगा नाच चला उससे हिंदुओं का आत्मविश्वास और आत्मसम्मान ही हिल चुका था। विधानसभा चुनावों को अंतिम अवसर समझ शोषित हिंदुओं ने देश दुनिया के सेकुलर गैंग को झटका देते हुए बड़े बदलावों का आगाज कर दिया और इस तमाचे की गूंज ने यह भी बता दिया कि बांटो और राज करो की राजनीति के दिन अब पूरी तरह लदने जा रहे हैं, इसलिए बोरिया बिस्तर बांध कर निकल लो।
देश की राजनीति में अब नरेंद्र मोदी के लिए राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति चुनावों और आगामी विधानसभाओं, राज्यसभा और अंतत: सन् 2019 के लोकसभा चुनावों की राह खासी आसान हो गयी है। देश के दो तिहाई क्षेत्र पर अपनी पार्टी की सरकारें आने से अब समझौते की जगह आक्रामक राजनीति के रंग दिखेंगे। इससे सरकार को अपने एजेंडे, नीतियों और कार्यक्रमों के तीव्र क्रियान्वयन में खासी मदद मिलेगी। अब जबकि विपक्षी दल अपने अस्तित्व को बचाने के संघर्ष में लगे रहेंगे वहीं संघ परिवार तीव्र विस्तार के दौर में होगा। शीघ्र ही आप देखेंगे कि भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ ही 50 प्रतिशत से अधिक मतों की सरकारें बनने लगेंगी और सेकुलर खेमा मत प्रतिशत में भी नीचे आता जाएगा। अगर मोदी और संघ परिवार आगामी लोकसभा चुनावों में बहुमत के साथ ही अपना मत प्रतिशत 50 प्रतिशत से ऊपर ले गए तो यह भारत में आमूलचूल परिवर्तन के द्वार खोल देगा। तब देश में समग्र व्यवस्था परिवर्तन और भारत केंद्रित संविधान व कानूनों की शुरुआत हो जायेगी। देश में वैदिक संस्कृति की धूम होगी और पूरी दुनिया इसके रंग में रंगने लगेगी।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना संघ परिवार के अभियान 2019 को पूर्ण करने की रणनीति का बड़ा हिस्सा है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की 25 करोड़ जनसंख्या के समर्थन और सुदूर मणिपुर और गोवा में अपनी सरकारें बना लेने के बाद अब सेकुलर खेमे में और भगदड़ मचने वाली है, जिससे राष्ट्रवादी ताकतें मजबूत होंगी। विभिन्न दलों के नेताओं को भाजपा में मिलाने की संघ परिवार की नीति एक सोचा समझा खेल है जिसने सेकुलर खेमे के रणनीतिकारों और उनके विदेशी आकाओं को झझकोर और तोड़ दिया है। अब ममता बनर्जी के सिवाय विपक्ष का कोई नेता नहीं जो मोदी और संघ को टक्कर दे सके। ऐसे में अब संघ परिवार के केंद्र में अब पश्चिमी बंगाल का रहना तय है। पंजाब में कांग्रेस की जीत भी संघ परिवार की परोक्ष सहायता से ही हुई है और कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव पूर्व भाजपा में आने को तैयार बैठे थे, अन्तत: कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया तो बात बनी। अगर कांग्रेस में अंदरूनी लड़ाई तेज हुई तो गांधी परिवार की सल्तनत बिखर जायेगी और बहुत से और कांग्रेसी भाजपा में आते जाएंगे। संघ परिवार के पास वर्तमान में मोदी के रूप में सशक्त नेतृत्व है ही, अब योगी के रूप में भविष्य के नेतृत्व की तैयारी भी शुरू कर दी गयी है। केंद्र के दर्जनों मंत्रियों, राज़्यों के मुख्यमंत्रियों और पार्टी के अध्यक्ष व वरिष्ठ नेताओं के रूप में उसके पास लंबी चौड़ी टीम है जो सक्षम है, तुलनात्मक रूप से ईमानदार है, उद्यमी है और समर्पित है और सबसे बड़ी बात उसके पास राष्ट्रपरक चिंतन दृष्टि है। जिस तालमेल से केंद्र और भाजपा शासित राज़्यों में कार्य हो रहे हैं अगर यही दिशा बनी रही तो देश युगान्तरकारी बदलावों का गवाह होगा और भारत की पताका सारी दिशाओं में फिर लहरायेगी।

अनुज अग्रवाल
संपादक

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