Shadow

इजरायल में सत्ता परिवर्तन. भारत के लिये मायने

आर.के. सिन्हा

भारत के मित्र बेंजामिन नेतन्याहू के इजराइल के आम चुनावों में जीत से भारत का प्रसन्न होना स्वाभाविक है।  भारत-इजरायल संबंधों को नयी बुलंदियों पर लेकर जाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बेंजामिन नेतन्याहू ने अब तक कई शानदार इबारतें लिखी है।  दोनों नेताओं के बीच निजी मधुर संबंध स्थापित हो गये हैं जो अब तक कायम हैं! इसका लाभ यह हुआ कि दोनों देश तमाम क्षेत्रों में आपसी सहयोग करने लगे। प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइल के आम चुनावों में अपने मित्र की विजय पर उन्हें बधाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, “चुनाव में जीत पर मेरे प्रिय मित्र नेतन्याहू को बधाई। मैं भारत-इजरायल रणनीतिक साझेदारी को और अधिक प्रगाढ़ करने के लिए हमारे संयुक्त प्रयासों को जारी रखने के लिए उत्सुक हूं।”

 यह मानना होगा कि वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल के निवर्तमान प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के साथ भी मधुर संबंध थे। दोनों के बीच मुलाकातें भी हुईं। नफ्ताली बेनेट ने प्रधानमंत्री मोदी की एक बार तारीफ करते हुए कहा था कि आप इजरायल में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं। उन्होंने हंसी मजाक में मोदी जी को अपनी पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण भी दे दिया।  नफ्ताली के इस प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री मोदी ने जमकर ठहाके भी लगाए थे। तो कहने का मतलब यह है कि इजरायल में सत्ता परिवर्तन से पहले और बाद में दोनों मुल्कों के बीच आपसी सहयोग जारी रहा है और रहना वाला है।

इजरायल भारत के सच्चे मित्र के रूप में लगातार सामने आता रहा है। यह बात अलग है कि फिलिस्तीन  मसले पर भारत आंखें मूंद कर अरब संसार के साथ खड़ा रहा। कश्मीर के सवाल पर अरब देशों ने सदैव पाकिस्तान का ही साथ दिया। लेकिनइजराइल ने हमेशा भारत की हर तरह से मदद की। हमारे यहां कुछ तत्व इजरायल का खुलकर विरोध करते  रहते हैं। उनमें वामपंथी मित्र सबसे आगे रहते हैं। वे भूल जाते हैं कि इजरायल हमारा संकट का मित्र है। यह युद्ध काल में भी हमारे साथ रहा है। अगर हम भारत- इजरायल संबंधों के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो हमें पता चलता है कि भारत ने 17 सितम्बर 1950 को इजराइल को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की थी। उसके बाद इजरायल के साथ भारत के 1992 में ही राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हो गए ! शायद यह मुस्लिम राजनीति के पोषण की कांग्रेस नीति के कारण ही हुआ। लेकिनतत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने इजरायल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने को मंजूरी दी। उसके बाद नई दिल्ली और तेल अवीव में दोनों देशों की एबेंसी भी स्थापित हुईं। इजरायल ने शुरू में राजधानी के बाराखंबा रोड  पर स्थित गोपालदास टावर्स में अपनी एंबेसी स्थापित की थी। हालांकि कुछ सालों के बाद इजरायल ने लुटियंस दिल्ली के पृथ्वीराज रोड पर अपनी एंबेसी स्थापित कर ली। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल  में इजरायल के साथ सम्बन्धों को नए आयाम तक पहुँचाने की पुरजोर कोशिश की गयी। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए ही इजरायल के तत्कालीन राष्ट्रपति एरियल शेरोन ने भारत की यात्रा की थी। वह यात्रा भी किसी इजरायल राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी।

जानने वाले जानते हैं कि इजरायल तब भी भारत के साथ खड़ा था जब उसे मदद की सर्वाधिक आवश्यकता थी।  इजरायल  ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाइयों के दौरान भी भारत को मदद दी। उसने 1965 और 1971 में  भारत को लगातार गुप्त जानकारियां देकर मदद की थी। 1999 के कारगिल युद्ध में इजरायल मदद के बाद भारत और इजरायल खासतौर पर करीब आए। तब इजरायल ने भारत को एरियल ड्रोनलेजर गाइडेड बमगोला बारूद और अन्य हथियारों की मदद दी। बेशकपाकिस्तान के परमाणु बम ने दोनों देशों को नजदीक लाने में मदद की। इजरायल को डर रहा है कि कहीं यह परमाणु बम ईरान या किसी इस्लामी चरमपंथी संगठन के हाथ न लग जाए।

भारत- इजरायल संबंधों को मजबूती कृषि क्षेत्र में आपसी सहयोग से भी मिलती है। पिछले साल मई के महीने में दोनों देशों की सरकारों ने कृषि सहयोग में विकास के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते ने दोनों देशों के बीच लगातार बढ़ती द्विपक्षीय साझेदारी की पुष्टि करते हुए द्विपक्षीय संबंधों में कृषि और जल क्षेत्रों की प्रमुखता को मान्यता दी है। कहना ना होगा कि कृषि क्षेत्र हमेशा भारत के लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र रहा है। भारत सरकार की कृषि नीतियों के कारण कृषि क्षेत्र और किसानों के जीवन में एक निश्चित परिवर्तन आया है। भारत और इजरायल के बीच 1993 से कृषि क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंध हैं। इजरायल में पानी की भारी कमी है फिर भी वहां ड्रिप सिंचाई एरीगेशन पद्धति के विशेषज्ञ भरे पड़े है। बागवानीखेतीबागान प्रबंधननर्सरी प्रबंधनसूक्ष्म सिंचाई और सिंचाई के बाद कृषि प्रबंधन क्षेत्र में इजरायल प्रौद्योगिकी से भारत को काफी लाभ मिला है। इसका हरियाणामहाराष्ट्र और गुजरात में काफी उपयोग किया गया है। भारत इजरायल को मुख्यत: खनिज ईंधनतेलमोती और रत्नों का निर्यात करता है। यानी दोनों देश एक-दूसरे के विकास में सहयोग कर रहे हैं।

इस बीचभारत-इजरायल को करीब लाने में भारत में सदियों से बसे हुए यहूदियों के योगदान को कम करके नहीं देखा जा सकता है। भारत में केरलमहाराष्ट्रदिल्ली वगैरह में हजारों यहूदी बसे हुए हैं। राजधानी के इंडिया गेट के पास हुमायूं रोड पर जूदेह हयम सिनगॉग है। ये उत्तर भारत का एक मात्र सिनगॉग है। इसे आप यहूदियों का मंदिर भी कह सकते हैं। यहां राजधानी में रहने वाले यहूदी परिवार नियमित रूप से पूजा करने के लिए आते हैं। इसी तरह से मुंबई में भी काफी यहूदी हैं। इनका मुंबई के महालक्ष्मी में ज्यूइश सेमेटरी भी है। जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि ये मुंबई के यहूदियों का कब्रिस्तान है। इधर 1927 से दफनाए जा रहे हैं शहर के यहूदी परिवार के सदस्य। हिन्दी फिल्मों के गुजरे दौर के एक्टर  डेविड भी इधर ही दफन हैं। वे यहूदी ही थे। अंग्रेजी के नामवर लेखक और कवि निजिम एजिकल और दूसरे कई यहूदी भी यहां दफन हैं।  महाराष्ट्र के सभी यहूदी मराठी बोलते हैं। भारतीय यहूदियों की हमेशा चाहत रही है कि भारत-इजरायल आपसी सहयोग और मैत्री आगे बढ़ता रहे। अच्छी बात यह है कि वे जैसा चाहते हैंवैसा हो भी रहा है। मतलब भारत-इजरायल लगातार करीब आ रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *