9 जवानों बलिदान : 5 आतंकी मरे, मास्टर माइंड अफजल गुरू था सबसे पहले महिला सुरक्षा कर्मी कमलेश यादव का बलिदान -रमेश शर्मा
यह एक घातक आतंकवादी हमला था । जो योजना पूर्वक भारत की संसद पर किया गया था । इसमें पाँच आतंकवादी एक कार में तीस किलो आरडीएक्स लेकर संसद भवन में घुसे थे। हमले के पीछे आतंकवादी संगठन जैस-ए-मोहम्मद का षड्यंत्र था जिसे भारत में कुछ लोग कोआर्डिनेट कर रहे थे इनमें प्रमुख अफजल गुरु था ।
यह घटना 13 दिसम्बर 2001 की है । यह आतंकवादी प्रातः 11-25 बजे आरंभ हुआ था और कुल 45 मिनिट चला । आतंकवादी एक एम्बेसेडर कार से संसद के भीतर घुसे थे । जिस समय ये आतंकवादी संसद भवन में घुसे थे, सामान्यता यह समय संसद की कार्रवाई का होता है । प्रधानमंत्री सहित अधिकांश मंत्रीमंडल के सदस्य, सांसद और अधिकांश अधिकारी भी संसद भवन में होते हैं। किन्तु उस दिन किसी कारण से संसद की कार्यवाही बीच में चालीस मिनिट के लिये स्थगित हो गई थी । प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई और अधिकांश अधिकारी कुछ समय के लिये संसद परिसर से बाहर चले गये थे फिर भी उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवानी, कुछ केन्द्रीय मंत्री और अनुमानतः दो सौ सांसद संसद परिसर में मौजूद थे । ये आतंकवादी कुल पाँच थे जिन्हे आवश्यकता पड़ने पर आत्मघाती ब्लास्ट करने का प्रशिक्षण दिया गया था। सभी के पास ए के 47 रायफलें थीं और कमर में बम बंधे थे । कार पर लालबत्ती लगी थी इसलिए आरंभिक दो गेट आसानी से पार हो गये पर तीसरा द्वार जो गेट नम्बर 11 था, पर महिला एएसआई कमलेश यादव को कार के चलने के तरीके पर कुछ संदेह हुआ उसने कार रोकने केलिये हाथ दिया । पर कार न रुकी तो एएसआई कमलेश कुमारी यादव ने द्वार बंद करने का प्रयास किया । द्वार बंद होता देख एक आतंकवादी ने गोलियाँ चला दीं। कमलेश यादव का वहीं बलिदान हो गया । आतंकवादी आगे बढ़े वे किसी भी प्रकार संसद के भीतर सभा कक्ष में घुसना चाहते थे । उन्होंने कार के कोने से ही उस दरबाजे को धकेला जिसे कमलेश यादव ने बंद करने का प्रयास किया था । गोलियों की आवाज संसद परिसर में गूँज गई। सुरक्षा बल सतर्क हुआ अन्य गेट बंद करने के प्रयास हुये । सिपाही जीनतराम और जगदीश यादव कार के पीछे दौड़े। कार गेट नम्बर नौ की ओर बढ़ने लगी थी ताकि वे संसद भवन के सभा कक्ष में घुस सकें। अनुमान था कि वे संसद भवन की रैकी कर चुके थे । चूँकि यह यह पता था कि कौन सा गेट नम्बर कहाँ है और किस गेट से भीतर जा सकते हैं। यदि उन्होने रेकी नहीं की थी तो यह बहुत आश्चर्यजनक था कि वे सीधे महत्वपूर्ण द्वारों की ही ओर बढ़ रहे थे । उनका उद्देश्य संसद के भीतर घुसकर संसद को बंधक बनाने का था । पर कमलेश यादव के संदेह बलिदान से सुरक्षा बल सतर्क हो गये थे और वे कार को घेरने मेंजुट गये । कार गेट नम्बर नौ की ओर मुड़ी पर सुरक्षा बलों ने गोलीबारी आरंभ की इससे बचने केलिये कार गेट नम्बर बारह की ओर मुड़ी । उधर गेट नम्बर एक पर उपराष्ट्रपति जी कार लगी वे निकलने वाले थे किंतु इस हमले से वे लौटकर संसद के भीतर चले गये । आतंकवादियों ने यह देख लिया था । एक आतंकवादी कार से उतरा और गोलियाँ चलाता हुआ दौड़ा । उसने इस गेट नम्बर एक से संसद के भीतर सभा कक्ष में घुसने का प्रयास किया । सुरक्षाबलों ने गोलियाँ चलाईं, वह आतंकवादी ढेर हो गया । गिरते ही उसने अपनी कमर में बँधे बम से स्वयं को उड़ा दिया । दूसरा आतंक वादी गेट नम्बर पाँच के समीप मारा गया और शेष तीनों आतंकवादी गेट नम्बर नौ पर ढेर हुये । यह हमला कुल चालीस मिनट चला । पाँच मिनट सुरक्षाबलों को आतंकवादियों की लाशों के समीप जाने में लगे । चूँकि उनकी कमर में विसाफोटक बँधे थे इसलिये सावधानी और तकनीक दोनों का प्रयोग हुआ और 45 मिनट बाद पाँचों आतंकवादियों के सफाये की घोषणा कर दी गई।
वे संसद को बंधक बनाने आये थे । उनकी कार में तीस किलो बिस्फोटक लदा था । यदि वे संसद को बंधक बनाने में अथवा अपनी कार में लदे बिस्फोटक को उड़ाने में सफल हो जाते तो किसी को कल्पना भी नहीं हो सकती कि कितनी भयानक दुर्घटना होती किन्तु सुरक्षा बलों की सतर्कता से, विशेषकर एएसआई कमलेश यादव की सतर्कता से एक भीषणतम दुर्घटना से भारत बच गया । इस कठोर संघर्ष में कुल नौ लोगों का बलिदान हुआ और अठारह जवान घायल हुये । बलिदानियों में सुरक्षाबलों के आठ जवान और एक मीडिया कैमरामैन शामिल थे । बलिदान हुये सुरक्षा कर्मियों में कमलेश यादव, जगदीश यादव, जीतन राम, मातवर सिंह, देशराज सिंह विजेन्द्र सिंह, घनश्याम ओमप्रकाश और एएनआई कैमरामैन विक्रम सिंह थे ।
ये पाँचों आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे पर इन्हे भारत में ही बैठे लोग रास्ता बता रहे थे इनमें सबसे प्रमुख मास्टर माइंड अफजल गुरु था जिसे एक लंबी कानूनी कवायद के बाद घटना के लगभग सवा ग्यारह साल बाद 9 फरवरी 2013 को फाँसी दी जा सकी थी । बाद की जाँच में मास्टर माइंड अफजल गुरु साथ तीन और लोग अब्दुल रहमान गिलानी, शौकत गुरु नवजोत संधू भी पकड़े गये थे । इनमें दो को साक्ष्य के अभाव में अदालत से छूट गये थे । जो पाँच पाकिस्तान आतंकवादी संसद पर हमले के लिये आये थे, अफजल गुरु ने बाद में उनके नाम हमजा, हैदर, राणा, राजा और मोहम्मद बताये थे । पर ये नाम असली नहीं थे । उन पाँचों की असली पहचान उनके साथ ही चले गई। अफजल गुरु सहित जो कुल चार मास्टर माइन्ट पकड़े गये थे अदालत में उनका बचाव करने केलिये भारत के नामी गिरामी वकील खड़े हुये । इनमें दो लोग तो साक्ष्य के अभाव में छूट गये थे । पर अफजल को फाँसी से न बचाया जा सका । अफजल को बचाने केलिये कोर्ट में ही लंबी लड़ाई नहीं लड़ी गई बल्कि राष्ट्रपति जी के पास दया याचिका भी लगाई गई थी । पर अंत में फाँसी हो ही गई। इससे भारत में भारतीयों का ही एक वर्ग इतना आहत हुआ कि यह नारा भी गूँजा कि “अफजल हम शर्मिंदा हैं”
संसद को इस भयानक हमले से बचाने वाले सभी बलिदानी सुरक्षाबल जवानों के चरणों में शत शत नमन्