विश्वभर से यात्री हमारा पुरातन देखने तीर्थों पर आते हैं या फिर नए आकार बदलते जा रहे तीर्थ ?
पुरातन सांस्कृतिक विरासत को बाजार में बदलना , कितना उचित , कितना घातक ; चर्चा होनी चाहिए !
हिन्दू मठ मंदिरों से भारत सरकार को सालाना 3 लाख 65 हजार करोड़ की कमाई होती है !
इसका कितना रिटर्न मंदिरों के रखरखाव में सरकार करती है , ऐसा कोई आंकड़ा हमारे पास नहीं है !
तिरुपति बालाजी जैसे सबसे कमाऊ दक्षिण के तमाम मंदिर सरकार के कब्जे में हैं , बद्री केदार जैसे मंदिर हों या वैष्णोदेवी ; सभी का धार्मिक चढ़ावा सरकारों के खजाने में जाता है !
इस कमाई का सरकारें मनमाना प्रयोग करती आई हैं , आरोप तो यह भी है कि सरकार अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों को दी जाने वाली राशि भी सरकारें इसी मद से खर्च करती आई हैं !
बावजूद इसके सरकारें तीर्थों के विशुद्ध विकास के लिए बहुत कम धन राशि खर्च करती हैं !
अब इसका प्रयोग तीर्थों के लिए किया जाएगा । भारत सरकार तीर्थों पर भारी संख्या में पर्यटक लाने के लिए कारीडोर पॉलिसी बना चुकी है । काशी और उज्जैन में कोरिडोर्स का उदघाटन हो चुका है । अयोध्या में तो मंदिर के साथ साथ विशाल कारीडोर का काम चल ही रहा है । केदारनाथ का भव्य स्वरूप सामने है । पुरी में जगन्नाथ कॉरिडोर पर काम चल रहा है ।
हरिद्वार में हर की पैड़ी कारीडोर की डीपीआर तैयार हो रही है । वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि कारीडोर की योजना भी कागजों पर है । अभी प्राचीन सप्तपुरियों पर कारीडोर बनाने की योजना चल पड़ी है । जाहिर है सरकार चाहती है कि अन्य तीर्थस्थल भी भारी संख्या में पर्यटन का हिस्सा बन जाएं । ऐसा होने पर तीर्थों की कमाई में कईं गुणा वृद्धि हो जाएगी ।
तो क्या भारत के प्राचीन तीर्थों को पर्यटन स्थल बनाए बगैर तीर्थों का विकास संभव नहीं है ? क्या तीर्थाटन और पर्यटन अलग अलग रखे जाने वाले विषय नहीं हैं ? एक साथ रखना है तो भारत सरकार और राज्य सरकारों ने पर्यटन मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय अलग अलग क्यों बनाए हैं ? पर्यटन और तीर्थत्व को अलग अलग रखने बात देश का आध्यात्मिक जगत बार बार करता आया है ।
कल बड़ा हादसा हो गया जब झारखंड में जैन मुनि सुज्ञेय सागर महाराज ने लंबे अनशन के बाद प्राण त्याग दिए । झारखंड सरकार प्रसिद्ध जैन तीर्थ सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल में बदलना चाहती है । जैन समाज ऐसा नहीं होने देना चाहता , तीर्थ को केवल तीर्थ रखना चाहता है और निरंतर आंदोलन पर है । सुज्ञेय महाराज इसके खिलाफ आमरण अनशन पर थे और कल शरीर छोड़ दिया । सभवतः तीर्थत्व को लेकर देश का यह पहला बलिदान है । सरकार को समझ लेना चाहिए की तीर्थाटन और पर्यटन में अंतर है । दोनों को जोड़ना तीर्थों की प्राचीनता और मूल अस्तित्व के लिए घातक साबित न हो जाए !
पावन तीर्थ स्थली को, मौज मस्ती की पर्यटन स्थली मत बनाइए