तो क्या अब माना जाए कि अब अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद का शीघ्र ही कोई सर्वमान्य हल हो सकता है? राम जन्मभूमि विवाद की अदालत के बाहर हल होने की संभावनाएं जगी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा बताते हुए पक्षकारों से बातचीत के जरिए आपसी सहमति से मसले का हल निकालने को कहा है। यानी अब सभी पक्षकारों को एक अनुपम अवसर मिल गया है कि वेअयोध्या विवाद पर कोई सहमति बना लें। लंबे समय से चले मसले पर कोई सर्वानुमति सामने आ जाए। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक सुझाव दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो विवाद के हल निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता को भी तैयार है। यह पहल इसलिए अहम है, क्योंकि, हिन्दुओं और मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग विवादित मसले को संवाद और सामंजस्य से ही सुलझाने की वकालत कर रहा है। हालांकि, कुछ कट्टरपंथी तत्व और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर मामले का हल नही होने देना चाह रहे हैं।
अब यह बताने की तो कोई आवश्यकता नहीं है कि अयोध्या में राम मंदिर विवाद को लेकर हजारों लोगों की हिंसा में जानें जा चुकी हैं, कई सरकारें गिरीं हैं और इस देश के दो प्रमुख समुदायों में कटुता भी पैदा हुई है। तो अब सवाल यह है कि किसी विवाद का कब तक कोई हल नहीं होगा?कबतक समाज में कटुता बनी रहेगी। देखा जाए तो इस विवाद का कोई हल अब तक आसानी से निकल सकता था, अगर दोनों पक्ष देश हित में सोचते। बहरहाल, गुजरे दौर की घटनाओं और कटुता को देश हित में भुलाने में ही भलाई है। माननीय उच्चतम न्यायालय की राय के बाद एक आशा की किरण तो अवश्य दिखी है। अब मुझे अनेकों एसे मुस्लिम मित्र और सांसद भी मिल रहे हैं जो चाहते हैं कि ले-देकर मामला हल हो जाए। बॉम्बे यूनिवर्सिटी में हिन्दी के अध्यापक और कथाकार डा. मोहसिन खान मानते हैं कि अयोध्य़ा में मंदिर की स्थापना करनी चाहिए और मुसलमानों को आगे रहकर बढ़-चढ़कर श्रीराम की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए। यही देशहित के लिए बेहतर है। उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में इस तरह के विचार रखे हैं। उनके विचारों को हजारों मुसलमानों का समर्थन भी मिल रहा है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक वरिस्ट निदेशक और मेरे कई दशकों के मित्र डॉ. के.के. मोहम्मद जो कि राममंदिर की खुदाई की टीम में शामिल थे, वे अपने कई लेखों में यह साक्ष्य रख चुके है कि बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।
कण-कण में राम
दरअसल राम मंदिर विवाद पर मुसलामानों का दावा ही ग़लत है। यह बहुत संवेदनशील मामला है और इसपर देश में सांप्रदायिक हिंसा भी हो चुकी है देश का भारी अहित हुआ है। मस्जिद का दावा जो कर रहे हैं उनका पक्ष कमजोर है। वे यह न भूलें कि श्रीराम भारत की कण-कण में मिलेंगे। अवध उनकी जन्मभूमि है और वह वहीँ रमण करते हैं। ख़ुदा मस्जिद में मिलने से अधिक इंसान के दिलों में मिलेगा। मंदिर बनेगा तो ख़ुदा भी ख़ुश होगा और देश में आपसी सौहार्द्र भी बढ़ेगा। मुसलमानों को मंदिर की स्थापना करने में आगे आते हुए सहयोग देते हुए, हमेशा के लिए इस विवाद को समाप्त करने की पहल करनी चाहिए। हिंदू और मुसलमान सब इसी देश के नागरिक हैं और रहेंगे भी। इसलिए, मंदिर बनाने में मदद करना सबका नैतिक दायित्व है, यही भावना देश की अखंडता को कायम कर सकेगी। देश सर्वोपरि है और आतंरिक शांति परमावश्यक है। देश के हित के लिए ऐसा प्रयास नए भारत के निर्माण में बहुत सहायक और ऐतिहासिक सिद्ध होगा।
अब हिन्दुओं और मुसलमानों के खास लोगों को भी मसले के हल के लिए जनमत तैयार करने के लिए जुटना होगा। अब जिम्मेदार लोगों को टीवी मीडिया के भड़काऊ कार्यक्रमों से और सोशल मीडिया में आए बहकाऊ पोस्टों से बचाना होगा। अपनी स्वतंत्र मानवीय बुद्धि से काम लेना होगा। विवेक सम्मत होकर हमें देश का निर्माण करना है।
राम के बिना भारत की कल्पना करना भी असंभव है। राम मनोहर लोहिया ने लिखा है,देश के तीन सबसे बड़े पौराणिक नाम – राम, कृष्ण और शिव हैं। उनके काम के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम से कम दो में एक को तो होगी ही। उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन-से शब्द कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक दस में एक तो जानता ही होगा। भारतीय आत्मा के लिए तो बेशक और कम से कम अब तक के भारतीय इतिहास की आत्मा के लिए और देश के सांस्कृतिक इतिहास के लिए, यह अपेक्षाकृत निरर्थक बात है कि भारतीय पुराण के ये महान लोग धरती पर पैदा हुए भी या नहीं। इससे अधिक क्या कहा जा सकता है कि पचास या शायद सौ शताब्दियों से भारत की हर पीढ़ी के दिमाग पर राम की कहानी लिखी हुई है। राम की कहानियाँ लगातार दुहराई गई हैं” और इस तरह के मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मस्थान पर विवाद खड़ा करना घृणित और शर्मनाक कृत्य ही कहा जायेगा। राम मंदिर वहीं बनना चाहिए जहां करोड़ों की आस्था है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या के इसी स्थान पर हुआ। अगर मान लीजिए वहां श्रीराम का जन्म नहीं भी हुआ था तो भी, मुसलमानों को क्या फ़र्क़ पड़ता है। मस्जिद के लिए तो कोई भी उचित जगह देखी जा सकती है। मस्जिद के लिए ऐसा तो है नहीं कि वहीं बनेगी जहां कोई ‘खास‘ हस्ती पैदा हुई थी या दफ़नायी गई थी। यही ईमानदारी की बात है।
यदि पुरातत्वविदों के साक्ष्य पर आधारित प्रमाणों को माना जाय तो मुग़ल आक्रंताओ ने (भारतीय मुसलमानों ने नहीं) सैकड़ों मंदिरों को तोड़कर उन्हीं के ऊपर, उन्हीं मंदिरों में थोड़ा बहुत ढांचागत परिवर्तन मात्र करके मात्र बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने और हिन्दू के आस्था केन्द्रों और देवी-देवताओं को अपमानित करने के लिए यह कुकृत्य किया। अब यह तो उचित नहीं ही होगा कि जहाँ-जहाँ भी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाये गए थे उन सभी स्थानों पर अब वही गलती दुहरायी जाये जो मुगलों ने की थी और फिर से उन सभी स्थानों पर खड़ी मस्जिदों को तोड़कर मंदिर बनाया जाये। उदारवादी हिन्दू समाज यह कभी नहीं चाहेगा। लेकिन, अयोध्या, मथुरा और कशी जो हिन्दुओं के प्रमुख आस्था केंद्र हैं उनके बारे में तो मुसलमानों को भी सोचना चाहिए।
नियम मस्जिद बनाने के
शरीअत में मस्जिद बनाने के नियम तय है, दान की गई, छीनी गई, हडपी गई, दबाई गई, गैर मालिकाना ज़मीन पर बनी मस्जिद में नमाज़ हो ही नहीं सकती। इस बात की आप किसी भी इस्लाम के जानकार से पुष्टि कर सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब सकारात्मक सोच रखने वाले मुसलमान आगे आकर कठमुल्ला तत्वों से नेतृत्व अपने हाथों में लेंगे।
अगर सकारात्मक सोच रखने वाले मुसलमान सक्रिय हो जाएं तो कभी कोई विवाद ही नहीं होगा मजहब के नाम पर। दुर्भाग्यवश अब भी मुसलमानों में जिलानी,ओवैसी और आजम खान सरीखे भड़काऊ बयान देने वाले कथित नेता ही आगे हैं जो माहौल को बिगाड़कर रखना चाहते हैं ।
निःसंदेह इस गूढ़ विषय पर हर पक्ष के लिए विचार विमर्श अत्यावश्यक है। अब बुध्दिजीवी वर्ग आगे आये और इसका हल निकालने के लिए अपने अपने तर्क व समाधान प्रस्तुत करे। एक बात और भी स्पष्ट है। देश 6 दिसंबर,1992 से बहुत आगे निकल चुका है। इस 25 बरसों के दौरान दो नई पीढ़ियां भारत में आ गईं। भारत आर्थिक उदारीकरण के चलते संसार की बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है। देश की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। सुप्रीम कोर्ट की राय को इस पृष्ठभूमि में भी लिया जाए तो बेहतर रहेगा। 25 सालों में उन क़ड़वे दिनों की यादें कमजोर पड़ने लगीं जब मंदिर -मस्जिद विवाद के कारण देश के अनेक शहरों में कत्लेआम हुए थे। कुल मिलाकर अब लग यह रहा है कि मुसलमान अयोध्या मसले पर लचीला रवैया अपना सकते हैं। अपनाना चाहिए भी। और, वैसे भी हिन्दू संगठनों का कहना है कि उन्हें राम मंदिर के निर्माण के बाद अयोध्या में भव्य मस्जिद के निर्माण पर कोई आपत्ति भी नहीं है।
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)