जबसे पैदा हुए, बड़े हुए, संस्कार मार्जन होता रहा और भगवान राम जी के आदर्शों व कर्ममय जीवन का अनुसरण करते हम सब बढ़ते रहे।
कोई भी हिन्दू बिना राम जी के हिन्दू कैसे रह पायेगा ?
जो अपने माई बाप को माई बाप न माने उसके वजूद को क्या कहेंगे फिर….
लेकिन हिंदीपट्टी क्षेत्र में जितने सर्जक व संस्कृतिकर्मी दिखेंगे आपको सब पिता से द्रोह करने वाले, मातृहन्ता दिखेंगे !
बड़े बड़े नामवरी पुरुषों का तथाकथित जनवाद व प्रगतिशील आडम्बरी उद्घोष ऐसे ही निर्मूल दिखेगा !
एक बड़े प्रपंचक का उदाहरण देखिए लिखे दे रहा हूँ :
मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कर्ता, कविवर कुंवरनारायण की तरह पाखण्ड नहीं रचना है कि [‘अयोध्या 1992’] लिखकर वाल्मीकि और राम जी का करुण विलाप चित्रित करते हुए पूरे सन्दर्भ को एक खूबसूरत मक्कारी भरे लहजे में याद करूँ।
बाबरी विध्वंस पर बुक्का फाड़कर रोऊँ और 1992 ईस्वी से 464 वर्ष पहले यानी 1528 ईस्वी में जो “अस्मिता-अपहरण” हुआ उस पर कुटिलता और धूर्तता बरतते हुए एकदम मौन रहूँ।
वहां इतिहास की बर्बरता और अत्याचार न सुनूँ — केवल एक खास समय और सन्दर्भ में मेरी संवेदना और आकुलता तड़प उठे।
ऐसे ही सेकुलर और लिबरल आदिकवि वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति, बाबा तुलसीदास भी होते तथा उन्हें समझने वाले आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी तब तो हिन्दुओं की सांस्कृतिक इयत्ता और स्वत्व बोध पापड़ की तरह गल बह गया होता !!
यह राम ही रहे हैं जिनकी बांह गहकर महाकवि तुलसी नरशार्दूल हुए और हिन्दू जनमानस अपने सबसे विपरीत समय में भी हिन्दुत्व व अपने जातीय आत्मविश्वास को सुरक्षित रख सका था !
विधर्मी और आक्रांताओं के हाथों राजकीय मशीनरी व उनके कट्टर उलेमाओं द्वारा बलात धर्म परिवर्तनों के अंधाधुंध तूफानी आगोश तथा अभियान के बीच एक घायल प्रजाति व सभ्यता ने अपने आत्मगौरव व जातीय मर्यादा को निष्कंटक किया —- सिर्फ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुरुषार्थ और कर्मसौन्दर्य पर अप्रतिहत आस्था रखकर —- यह हम सबके जातीय जीवन धारा का सर्वोच्च व धवल अध्याय है। इससे बड़ी और कोई उपलब्धि हो ही नहीं सकती।
इसका महत्व जिन्हें न पता हो उन्हें रीढ़विहीन, लोभी और बिकाऊ मानना चाहिए। आन, बान, शान और मान अभिमान किसी भी प्रजाति के जीवन का गौरव मुकुट है और उसे सतत प्रेरणा देने वाली दिव्यतर विभूति होनी चाहिए उस प्रजाति के जातीय इतिहास परिसर में।
भगवान श्रीराम जी का कालातीत नायकत्व ऐसे ही है।
संकट व महासंकट आये हम हिन्दुओं के जीवन में और उनका सफलतापूर्वक प्रतिरोध व प्रशमन भी किया हम सबने। इतिहास और उसके कठोरतम प्रहारों ने हमे हताहत और बेध्य किया, हम झुके, गिरे, टूटे लेकिन हमारा हृदय राममय ही रहा।
हमारी आत्मा के भूगोल का बहुत हिस्सा दुष्प्रभावित हुआ लेकिन उसका नाभिकेन्द्र राममय ही रहा।
हम इसलिए बचे रहे हैं…
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