*रजनीश कपूर
जब भी कभी आप टीवी पर किसी रियलिटी शो को देखते हैं तो आप उसमें दिखाए गए कुछ विषयों से इतने
प्रभावित हो जाते हैं कि आप भावुक हो उठते हैं। ऐसा होना स्वाभाविक है। परंतु यदि आपको पता चले कि टीवी
पर दिखाए जाने वाले ऐसे कुछ रियलिटी शो पहले से ही नियोजित किए जाते हैं तो क्या आप तब भी भावुक होंगे?
यह कुछ ऐसा ही है जैसा फ़िल्मों में दिखाया जाता है। सभी जानते हैं कि जैसे फ़िल्मों में चलने वाली बंदूक़ असली
नहीं होती और कलाकारों के शरीर से निकालने वाला खून भी असली नहीं होता। उसी तरह फ़िल्मों को लोकप्रिय
करने कि दृष्टि से उसमें ऐसी कहानी ली जाती है जो श्रोताओं को भाव-विभोर कर सके।
आजकल टीवी पर भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। रियलिटी शो और टैलेंट शो के नाम पर टीवी पर अक्सर ऐसा कुछ
दिखाया जाता है जिससे कि श्रोता उसे देख कर भावुक हो उठें और इन चर्चा करने लगें। इन शो पर आने वाले दिनों
में क्या होगा इसका अनुमान लगाने लगें। इतना ही नहीं एक घर में रहने वाले परिवार के सदस्य ही ऐसे रियलिटी
शो के विरोधी और समर्थक गुट में बंट जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि वे उस शो को वास्तविक मान लेते हैं।
जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। जो भी लोग ऐसे शो में भाग लेते हैं वो इसकी सच्चाई जानते हैं।
आप तक ऐसे रियलिटी शो रिकॉर्ड और एडिट होने के बाद ही पहुँचते हैं। इनका सीधा प्रसारण नहीं होता। इसलिए
इन्हें ‘रियलिटी शो’ कहना ठीक नहीं होगा। बिग बॉस, इण्डियन आइडल, कौन बनेगा करोड़पति, डांस इंडिया डांस
जैसे अनेकों रियलिटी शो आपने देखे होंगे। ऐसे सभी शो में भाग लेने वाले प्रतियोगियों को लेकर अक्सर कुछ ऐसा
दिखाया जाता है जो उनके निजी जीवन से संबंधित होता है। उसे देख करोड़ों दर्शक भावुक हो उठते हैं और उस
प्रतियोगी का समर्थन करने लगते हैं। आजकल के सोशल मीडिया के युग में उस प्रतियोगी को लेकर छोटे-छोटे
वीडियो भी वायरल होने लगते हैं। ऐसा होने से कार्यक्रम की लोकप्रियता बढ़ती है, जिसे टीआरपी भी कहते हैं। जैसे
ही किसी रियलिटी शो की टीआरपी बढ़ने लगती है टीवी चैनल पर विज्ञापन की आय भी बढ़ने लगती है। ऐसा होने
पर टीवी चैनल का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
आजकल कुछ ऐसा ही काम कुछ न्यूज़ चैनल भी कर रहे हैं। आपको याद होगा कि जब एक राजनैतिक दल की
राष्ट्रीय प्रवक्ता के बयान पर विवाद खड़ा हुआ था देश में आग सी लग गई थी। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने टीवी
एंकरों को आड़े हाथों लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे टीवी चैनलों को ऐसी अराजकता फैलाने का गुनहगार माना जो
अपनी टीआरपी बढ़ाने के लालच में आये दिन इसी तरह के विवाद पैदा करते रहते है। कुछ चुनिंदा चैनल जानबूझ
कर ऐसे विषयों को लेते है जो विवादास्पद हों। न्यूज़ चैनल के ऐंकर या पत्रकार पर्दे पर या मौक़े पर कुछ ऐसा करते
हैं जिसे देख भोली-भाली जानता विश्वास कर लेती है।
जिस किसी ने बीबीसी के टीवी समाचार सुने होगें उन्हें इस बात का खूब अनुभव होगा कि चाहें विषय कितना भी
विवादास्पद क्यों न हो, कितना ही गम्भीर क्यों न हो, बीबीसी के ऐंकर या पत्रकार संतुलन नहीं खोते। हर विषय
पर गहरा शोध करके आते है और ऐसे प्रवक्ताओं को बुलाते है जो विषय के जानकार होते है। हर बहस शालीनता से
होती है। जिन्हें देखकर दर्शकों को उत्तेजना नहीं होती बल्कि विषय को समझने का संतोष मिलता है।
पिछले दिनों एक ‘बाबा’ विवाद में आए। विवाद का विषय ‘चमत्कार’ था। उस चमत्कार को एक समाजिक संस्था
द्वारा चुनौती दी गई थी। बाबा पर आरोप है की वे उस चुनौती से बच कर भाग लिये। इस विवाद को आस्था का
चोला पहना कर पहले एक धार्मिक चैनल ने और फिर कुछ चुनिंदा न्यूज़ चैनलों ने जनता के सामने परोसा।
दरअसल एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के एक पत्रकार को जब इस ‘चमत्कारी’ बाबा ने भरे पंडाल में कुछ अप्रिय ढंग से
पुकारा तो सभी चौंक गये। बाबा ने पहले उनके चाचा का नाम लिया, फिर उनकी भतीजी का बताया और फिर
उनके भाई के बारे में कुछ बताया। ऐसा होने पर वो पत्रकार महोदय जो इस ‘चमत्कार’ का सच जानने के लिये गये
थे, बाबा के प्रति समर्पित हो कर जयकारे लगाने लग गए। परंतु कुछ अन्य न्यूज़ चैनलों ने इसकी पड़ताल की तो
पाया कि जो-जो उस बाबा ने उस पत्रकार के प्रति कहा था वो पहले से ही सोशल मीडिया पर पहले से ही उपलब्ध
था। तो फिर ‘चमत्कार’ कैसा? जैसे ही मामले ने तूल पकड़ा तो बाबा का समर्थन करने वाले कुछ अन्य न्यूज़ चैनल
भी सतर्क हो गये।
वे न्यूज़ चैनल भी संतुलन बनाने की नीयत से कुछ धार्मिक व्यक्तियों, मनोवैज्ञानिकों, वैज्ञानिकों व अन्य संबंधित
लोगों से चर्चा करते दिखाई दिये। मनोविज्ञान के विशेषज्ञों, शंकराचार्य व कुछ संतों ने अपना तर्क देते हुए इस
‘चमत्कार’ को नहीं स्वीकारा। तो क्या ऐसे बाबा भी टीवी पर दिखाये जाने वाले रियलिटी शो की तरह,
लोकप्रियता पाने के लिए, अंधविश्वास को चमत्कार का चोला पहना कर केवल जनता की भावनाओं के साथ खेलने
के लिए ही ऐसा करते हैं? वैसे भी पुरानी कहावत है ‘पानी पीजे छान के, गुरू कीजे जान के।’ इसलिये टीवी पर
आपको परोसी जा रही नक़ली भावुकता के प्रभाव से बचें और ऐसे शो को चैनल की मार्केटिंग स्किल मानकर शो
की तरह ही देखें हक़ीक़त की तरह नहीं।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं।