मीडिया और राजनेता कैसे समाज विरोधी नैरेटिव सेट करते हैं इसे Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) के परम पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी के हालिया बयान और उसकी व्याख्या से समझा जा सकता है।
“सत्य यह है कि मैं सब प्राणियों में हूँ इसलिए रूप नाम कुछ भी हो लेकिन योग्यता एक है, मान सम्मान एक है, सबके बारे में अपनापन हैं। कोई भी ऊँचा नीचा नहीं है। शास्त्रों का आधार लेकर पंडित (विद्वान) लोग जो (जाति आधारित ऊँच-नीच की बात) कहते हैं वह झूठ है- डॉ. मोहन भागवतजी”
अब इसकी व्याख्या ऐसे कि कई मानो सरसंघचालक ब्राह्मण विरोधी हों। इसी संदर्भ में पंडित और विद्वान की जो व्याख्या है उसे प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि सनद रहे कि जो कहा उसे विकृत करके समाज में कैसे विभेद डालने का प्रयास किया जा रहा है।
“पंडित” नाम का अर्थ विद्वता होता है। किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने वाले को ही पंडित कहते हैं। पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दक्ष या कुशल। पंडित को विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं। किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ही पंडित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था। इस पंडित को ही पाण्डेय, पाण्डे, पण्ड्या आदि कह कर पुकारते हैं। आजकल यह नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है।
“ब्राह्मण” शब्द ब्रह्म से बना है। जो ब्रह्म यानि ईश्वर को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई कर अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं होता, ज्योतिषी होता है। पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है। इस प्रकार वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कोई भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता, वह ब्राह्मण नहीं। स्मृतिपुराणों में ब्राह्मण के आठ भेदों का वर्णन मिलता है- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। आठ प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अतिरिक्त वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं होता है।
अब आप स्वयं तय करें कि सरसंघचालक ने क्या कहा था और उसकी क्या व्याख्या कर दी गई।
– सिद्धार्थ शंकर गौतम