आज हम इंटरनेट तथा सैटेलाइट जैसे आधुनिक संचार माध्यमों से लैस हैं। संचार तकनीक ने वैश्विक समाज के गठन में अहम भूमिका अदा की है। हम समझते हैं कि मानव इतिहास में यह एक अहम घटना है। हम एक बेहद दिलचस्प युग में जी रहे हैं। आओ, हम सब मिलकर एक अच्छे मकसद के लिए कदम बढ़ाएं। पिछले कुछ साल से विभिन्न देशों की दर्दनाक घटनाएं इंटरनेट के जरिये दुनिया के सामने आ रही हैं। इनसे एक बात तो तय हो गई कि चाहे हम दुनिया के किसी भी कोने में हों, हम सब एक ही समुदाय का हिस्सा हैं। इंटरनेट ने मानव समुदाय के बीच मौजूद अदृश्य बंधनों को खोल दिया है। दरअसल हम सबके बीच धर्म, नस्ल और राष्ट्र से बढ़कर आगे भी कोई वैश्विक रिश्ता है और वह रिश्ता नैतिक भावना पर आधारित है। यह नैतिक भावना न केवल हमें दूसरों का दर्द समझने, बल्कि उसे दूर करने की भी प्रेरणा देती है। यह भावना हमें प्रेरित करती है कि अगर दुनिया के किसी कोने में अत्याचार और जुल्म हो रहा है, तो हम सब उसके खिलाफ खड़े हों और जरूरतमंदों की मदद करें।
आज हम पलक झपकते दुनिया भर के लोगों तक अपनी बात पहुँचा सकते हैं। हमारा संवाद बेहद आसान हुआ है। दुनिया भर की जानकारियाँ हमारी पहुँच में हैं। हमें इन संचार माध्यमों का इस्तेमाल मानवीय भलाई के लिए करना होगा। हमारे लिए ऐसे लोगों को बारे में जानना और समझना आसान हुआ है, जिनसे हम कभी नहीं मिले। हमारे पास संवाद के ऐसे माध्यम उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से हम घर बैठे दुनिया भर के लोगों की आपस में मानव जाति की भलाई के लिए संगठित कर सकते हैं। हम आपसी सहयोग से अहम मसलों पर संयुक्त प्रयास कर सकते हैं। आज से सौ साल पहले यह मुमकिन नहीं था।
हम एक विलक्षण युग में जी रहे हैं। आज से दो सौ साल पहले की घटना को याद कीजिए, जब ब्रिटेन में गुलामों के व्यापार को लेकर जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन हुए थे। उस आंदोलन को जनता का पूरा समर्थन मिला था, लेकिन ऐसा होने में 24 साल का लंबा वक्त लगा। काश! उस जमाने में उनके पास आज की तरह ही आधुनिक संचार माध्यम होते। लेकिन पिछले एक दर्शक में बहुत कुछ बदला है। वर्ष 2011 में फिलीपींस में करीब दस लाख लोगों ने वहां की भ्रष्ट सरकार के खिलाफ मोबाइल पर संदेश भेजकर विरोध किया और सरकार को जाना पड़ा। इसी तरह जिम्बाॅब्वे में चुनाव के दौरान वहां की सत्ता के लिए धांधली करना मुश्किल हो गया, क्योंकि जनता के हाथ में मोबाइल फोन था, जिसकी मदद से वे मतदान केंद्रों की तस्वीरें लेकर कहीं भी भेज सकते थे। बर्मा के लोगों ने ब्लाॅगों के जरिये दुनिया को अपने देश के हालात से अवगत कराया। तमाम कोशिशों के बावजूद वहां की सत्ता आंग सान सू की की आवाज को दबा नहीं पाई।
समस्याओं के हल के लिए सिर्फ संस्थाएं बनाने से बात नहीं बनेगी। हमें लोगों के व्यवहार और सोच को बदलना होगा। हमें देशों के बीच जिम्मेदारी और नैतिकता का भाव जगाना होगा। हमें अमीर और गरीब देशों के बीच स्वस्थ साझेदारी विकसित करनी होगी। हमें देखना होगा कि गरीब देशों के कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़े, ताकि उनकी अर्थव्यवस्था सुधर सके, ताकि अफ्रीका जैसे देश हमेशा के लिए अनाज के आयातक बनकर न रह जाएं। कृषि की स्थिति सुधरे, ताकि अफ्रीका भी अनाज का निर्यात कर सके। दुनिया के कई देश मानवाधिकार हनन की त्रासदी से जूझ रहे हैं, हमें इस दिशा में पहल करनी होगी। हम आधुनिक सूचना व संवाद के साधनों से लैस हैं। हमें यह अवसर नहीं खोना चाहिए। हमें एकजुट होकर इन समस्याओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
हमारा मानता है कि आधुनिक तकनीक ने हमें वैश्विक रूप से एकजुट होने की ताकत प्रदान की है। यह पहला अवसर है, जब आम लोगों को दुनिया को बदलने की ताकत मिली है। अब चंद शक्तिशाली लोग मनमाने ढंग से अपने देश की नीति तय नहीं कर सकते। नीतितय करते समय उन्हें लोगों की भावनाओं का ध्यान रखना होगा, जो इंटरनेट के जरिये बाकी दुनिया से जुडे़ हैं। समय के साथ समस्याओं का स्वरूप बदला है। दो सौ साल पहले हमारे सामने दासता से छुटकारा पाने का मुद्दा था, 150 साल पहले ब्रिटेन जैसे देश में बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने जैसा मुद्दा छाया था, सौ साल पहले यूरोप के ज्यादातर देशों में राइट टू वोट का मुद्दा गूंज रहा था। पचास साल पहले सामाजिक सुरक्षा व कल्याण का मुद्दा गरम था। पिछले पचास-साठ वर्षों के दौरान हमारा सामना नस्लवाद और लिंगभेद जैसी समस्याओं से हुआ।
आज का मुद्दा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा शरणार्थियों की बढ़ती संख्या है। साथ ही गुणात्मक शिक्षा एवं सारे विश्व की एक न्यायपूर्ण तथा युद्धरहित विश्व व्यवस्था बनाने का है। संयुक्त राष्ट्र संघ को लोकतांत्रिक विश्व संसद का रूप प्रदान करके यह साकार किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने के लिए सभी देशों के सहमति विश्व सरकार, प्रभावशाली विश्व न्यायालय तथा गुणात्मक शिक्षा आज की आवश्यकता है। इन मद्दों पर अभियान वे लोग चला रहे है, जिनके अंदर दुनिया को बदलने का जज्बा है। आओ, हम सब मिलकर एक अच्छे मकसद के लिए कदम बढ़ाएं।
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक