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बारूद के ढ़ेर पर खड़े विश्व को धर्म-धम्म की आवश्यकता।

हाल ही में भारत के मध्यप्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल में 3 मार्च को कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में तीन दिवसीय सातवें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का शुभारंभ हुआ तथा जिसका समापन पांच मार्च को हो गया। यह सम्मेलन ‘नए युग में मानववाद का सिद्धांत” विषय पर सांची यूनिवर्सिटी ऑफ बुद्धिस्ट-इंडिक स्टडीज के सहयोग से इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें 15 देशों से  350 से भी अधिक विद्वान शामिल हुए। निश्चित ही इस प्रकार के सम्मेलन से धर्म धम्म के वैश्विक विचारों को एक साझा मंच मिला। इस सम्मेलन में भूटान, मंगोलिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम, नेपाल, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, रूस, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से विभिन्न प्रतिनिधियों, विद्वान लोगों ने अपनी सहभागिता की। इस सम्मेलन में विषयों का निरूपण हुआ, मानववाद सिद्धांत पर लगातार तीन दिनों तक विभिन्न लोगों द्वारा शोध-पत्र पढ़े गए। यह सम्मेलन धर्म-धम्म पर आधारित था और धर्म तथा धम्म दो अलग विषय-वस्तु हैं। साधारण शब्दों में ‘धर्म’ का अर्थ यदि हम समझें तो धर्म का मतलब धारण करने से है। मतलब ‘धारयेत इति: धर्म:’ यानी कि जो धारण करने योग्य हो वही धर्म है। वास्तव में, धर्म शब्द की  व्युत्पत्ति संस्कृति भाषा के ‘धृ’ शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है ‘धारण करना’ अर्थात् सभी जीवों के प्रति मन में दया धारण करने को ही धर्म कहा गया है। हिंदू धर्म-ग्रंथों में सात्विक गुणों को धारण करने को ही धर्म माना गया है। वास्तव में धर्म ही मानव को मानव बनाता है। धर्म मतलब धारणा,जिसे सबको धारण करना चाहिए। धर्म का संबंध कर्तव्य, अहिंसा, सदाचरण व अच्छे गुणों या सद्गुणों से लिया जा सकता है। वैसे, हिन्दू समाज में ‘धारणात धर्ममाहुः’ अर्थात् धारण करने के कारण ही किसी वस्तु को धर्म कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो धर्म से हमारा आशय ‘अलौकिक शक्ति’ पर विश्वास है। अलौकिक हम उसे कहते हैं जो लौकिक जगत से परे है। इंद्रियगम्य नहीं है। जो अगम और अगोचर है। कहा भी गया है कि- ‘बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना। 

कर बिनु कर्म करै विधि नाना।’ यानी कि जिसे हम स्पर्श नहीं कर सकते, जिसे हम देख नहीं सकते, किन्तु उसका अस्तित्व है। वह सर्वशक्तिमान है और मानव जीवन व इस संपूर्ण जीव- जगत को नियंत्रित करता है। यदि अलौकिक शक्ति साकार अर्थात् इंद्रिय गम्य है तो भी वह मानव की समझ और नियंत्रण से परे है। टेलर के अनुसार-‘धर्म का अर्थ किसी आध्यात्मिक शक्ति मे विश्वास करना है।’ अर्थात् धर्म ‘सुपर ह्यूमन'(अलौकिक) शक्ति पर विश्वास है। वहीं दूसरी ओर ‘धम्म’ शब्द की उत्पत्ति पाली भाषा से हुई है। वास्तव में ‘धम्म’ का अर्थ ‘सदाचरण’ से लिया गया है और सदाचरण का अर्थ है-‘ जीवन के सभी क्षेत्रों में एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ अच्छा संबंध।’ वास्तव में ‘धम्म’ है क्या ? इसे समझने की जरूरत है। तो जानकारी देना चाहूंगा किसामान्य रूप से सम्राट अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए जिन आचारों की संहिता प्रस्तुत की थी उसे उसके अभिलेखों में ‘धम्म’ कहा गया है। ‘धम्म’ संस्कृत के ‘धर्म’ का ही प्राकृत रूपांतर है। धम्म का मुख्य सिद्धांत ‘साधुता’ है। अच्छे कल्याणकारी कार्य करना, पाप रहित होना, मृदुल और मधुर व्यवहार होना, दया, दान और शुचिता ही वास्तव में ‘धम्म’ है।बौद्ध धर्म के अनुसार ‘धम्म’ का अर्थ ही ‘सदाचरण'(अच्छा आचरण) है जिसका अर्थ है जीवन के सभी क्षेत्रों में एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ अच्छा सम्बन्ध।  यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि ‘धम्म’ भी ब्रह्मांड के धर्म और प्राकृतिक व्यवस्था को धारण करता है। बहरहाल, भारत एक आध्यात्मिक देश रहा है और भारत ने संपूर्ण विश्व को धर्म और आध्यात्मिकता के माध्यम से शांति, संयम व सौहार्द, आपसी सहमति, भाईचारे का मार्ग ही दिखलाया है। कोई दौराय नहीं है कि भारतीय आध्यात्मिकता के महान वट की जड़ें भारत में हैं और इसकी शाखाएं और लताएं पूरे विश्व में फैली हुई हैं। वास्तव में, धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना की मूल आवाज रही है। यह हम सभी के लिए अत्यंत गर्व व हर्ष का विषय है कि हमारे देश की सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक गतिविधियों में अनादिकाल से धर्म का केन्द्रीय स्थान रहा है। आजादी के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई, उस पर ‘धर्म-धम्म’ का गहरा असर साफ दिखाई दे रहा है। हमारा राष्ट्रीय चिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में भी धर्मचक्र सुशोभित है। महात्मा गांधी जी ने अपने मूल्यों और कार्यों के माध्यम से भगवान बुद्ध की अहिंसा और करुणा का संदेश दुनिया भर में फैलाया। हाल ही में जो सम्मेलन आयोजित किया गया, इस सम्मेलन की विषय वस्तु नए युग में मानववाद के सिद्धांत पर केंद्रित रही। युगों युगों से धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रहा है। हमारी परंपरा में कहा गया है कि जो सबको धारण करता है, वही वास्तव में धर्म है। धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है। धर्म नहीं तो कुछ भी नहीं है। वैसे करूणा, शील,मैत्री, प्रज्ञा धम्म है। महात्मा बुद्ध जिसे धम्म कहते हैं वह वास्तव में मूल रूप से धर्म से सर्वथा भिन्न है। धम्म एक सामाजिक विषय-वस्तु है। बुद्ध ने धम्म के जो दो आधार तत्व बताये हैं उनमें करूणा(दया/प्रेम) व प्रज्ञा(निर्मल बुद्धि) है। बुद्ध ने प्रज्ञा को धम्म का आधार स्तंभ इसलिए माना था क्यों कि वे अंधविश्वास के लिए कहीं भी कोई भी स्थान नहीं छोड़ना चाहते थे। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ‘प्रज्ञा‘ और ‘करूणा‘ का एक अनूठा सम्मिश्रण ही तथागत का ‘धम्म‘ है। आज विश्व को धर्म व धम्म दोनों की जरूरत है, क्यों कि ‘मानवता’ का विकास यही से संभव होता है। राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करुणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। मानवजाति का कल्याण तभी संभव हो सकता है जब मानव संपूर्ण धरती को अपना परिवार समझे।संस्कृत में कहा भी गया है-‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।’ मतलब यह है कि यह मेरा है,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है। महात्मा बुद्ध जी ने मानव को  दु:ख से निकलने के मार्ग सुझाए थे। आज के युग में उनके विचार बहुत ही प्रासांगिक हैं। महात्मा बुद्ध कहते हैं कि-‘ जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो। फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी, इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता।’ उनका यह विचार था कि बुराई से बुराई कभी खत्म नहीं होती। घृणा को तो केवल प्रेम द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है, यह एक अटूट सत्य है। उन्होंने कहा था कि- ‘क्रोध में हजारों शब्दों को गलत बोलने से अच्छा, मौन वह एक शब्द है जो जीवन में शांति लाता है।’ हमारे देश में न केवल महात्मा बुद्ध जी ने वरन अनेक महान् विभूतियों, आत्माओं ने जिनमें महर्षि पतंजलि, गुरु नानक जी शामिल हैं, दु:ख से निकलने के मार्ग सुझाए हैं। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की पद्धति स्थापित की। भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग प्रदर्शित किया। गुरु नानक देव जी ने नाम सिमरन का रास्ता सुझाया, जिसके लिए कहा जाता है- ‘नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार।’ हाल ही में जो सम्मेलन हुआ है उसमें विभिन्न देशों के लोगों के धर्म-धम्म चिंतन से सद्भाव बढ़ेगा। हमारे भारतीय दर्शन की मान्यता इस विश्वास में निहित है कि विश्व सबके लिए है। युद्ध की कोई आवश्यकता ही नहीं है। कोई भी युद्ध कभी भी समस्याओं का हल कभी नहीं होता। हम मानव हैं, इसलिए मानव की भांति जीएं। खुद भी जीएं और दूसरों को भी जीने दें। आज रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते हुए एक साल से अधिक का समय हो गया है। बहुत से लोग मारे जा चुके हैं, हर तरफ़ दुख,हताशा व नैराश्य का वातावरण है। बताना चाहूंगा कि युद्ध किसी समस्या का हल कभी नहीं हो सकता है। मानवता के कल्याण के लिए शांति, प्रेम और एक-दूसरे के प्रति विश्वास आज के युग की अहम् आवश्यकता है। वास्तव में, इस हाल ही में आयोजित धर्म-धम्म चिंतन से विभिन्न विचारों के परस्पर विनिमय से सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा। आज हिंसा और युद्ध से कराहते विश्व के लिए बुद्ध एक समाधान हैं। भारतीय परंपरा में सारी धरती को एक परिवार माना गया है। जरूरत है तो इस बात की है कि संपूर्ण विश्व आज इस बात को समझे। ईश्वर ने हमें जीवन जीने के लिए दिया है, कुछ अच्छा करने के लिए दिया है, हमें इस जीवन में मानव बनना है और मानवता की भलाई के लिए काम करना है। हमारे देश में तो ‘जिओ और जीने दो’ सिद्धांत को मान्यता दी गई है। ‘धर्म की जय हो-अर्धम का नाश हो-प्राणियों में सद्भाव हो और विश्व का कल्याण हो’ के भाव हमारे देश की संस्कृति, धर्म में निहित हैं।  भारतीय सभ्यता- संस्कृति में पशु-पक्षियों, नदियों, वृक्षों और पहाड़ों को भी पूजा गया है। दशावतार की अवधारणा में यह स्पष्टत: परिलक्षित होता है। भारतीय संस्कृति और परंपरा में सारी धरती को एक परिवार माना गया है। सभी जीवों के साथ दया और सम्मान तथा आंतरिक शांति और निर्विकार भाव विकसित करना आवश्यक है। भारत भूमि सदियों सदियों से दुनिया के लिए प्रकाश, ज्ञान और सीखने की भूमि रही है, आज भी है। हमारा देश कभी भी किसी पर आक्रांता नहीं हुआ, हम शान्ति, संयम,पंचशील के सिद्धांतों में विश्वास करते आए हैं। हमने सभी देशों के विचारों और विश्वासों, धर्मों, मान्यताओं का सदैव स्वागत किया है। धम्म और धर्म भविष्य के विश्व की आशा के केन्द्र हैं। आज विश्व बारूद के ढ़ेर पर खड़ा है, उसे धर्म-धम्म की जरूरत है। भारत से प्रेरणा लेने की जरूरत है, क्यों कि यहाँ मानवता के लिए प्रकाश की किरण है।यहां से निकला प्रकाश ,किरण ही मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला,

स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार

पटियाला, पंजाब

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