अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं जब सेना में पतली दाल या कुछ और छोटे बड़े मुद्दों को लेकर बुद्धिजीवियों के द्वारा कई तरह की हायतौबा मचाई जा रही थी. ऐसा लग रहा था कि इस दाल के खाने से सेना पर पहाड़ टूट पड़ा है और बिना किसी जांच के, बिना किसी सबूत के सरकार को और सेना में कठघरे में खड़ा कर दिया गया. बुद्धिजीवी रोने लगे, सेना के शौर्य और त्याग के गीत गाए जाने लगे और कहा जाने लगा कि सेना में भेदभाव कर रही है सरकार. पिछले दो तीन दिनों से कश्मीरी भटके युवाओं के द्वारा सीआरपीएफ के जवान के साथ दुर्व्यवहार का वीडियो सामने है. इस वीडियो पर सब मौन है, बुद्धिजीवी मौन हैं. अभिव्यक्ति की आज़ादी का तराना गाने वाले मौन हैं. आखिर इस चुनिन्दा मौन का अर्थ क्या है?