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श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

श्रीराम की बारात में महिलाओं की सहभागिता

महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण तथा गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस में श्रीराम द्वारा शिव-धनुष भंग होने के उपरान्त राजा दशरथजी को श्रीराम के विवाह हेतु मिथिला नरेश ने दूतों द्वारा निमन्त्रण भेजा गया। इस निमन्त्रण पत्र के अनुसार अयोध्या से राजा दशरथजी गुरु वसिष्ठ, वामदेव, जाबालि, कश्यप, मार्कण्डेय, कात्यायन, ब्रह्मर्षि तथा मंत्रियों सहित श्रीराम के विवाह में सम्मिलित होने गए। दशरथजी के दो पुत्र भरत एवं शत्रुघ्न भी उनके साथ गए थे। इनके अतिरिक्त दशरथजी के साथ उनकी रानियों एवं दासियों का उनके साथ जाने का वर्णन नहीं है। इस तरह श्रीरामजी के विवाह में महिलाओं का बारात में न जाना उनकी सहभागिता का अभाव लगता है।
अत: सुधीजनों एवं पाठकों के लिए विभिन्न रामायणों में अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि श्रीरामजी के विवाह में बारात में उनके परिवार की महिलाओं (माताएँ-दासियों) की सहभागिता रही है। विवाह में गाना-बजाना न हो तो विवाह का आनन्द भी नहीं रहता है।
श्रीरामजी के विवाह में जिन रामायणों में महिलाओं की सहभागिता रही है उन रामायणों में से यह प्रसंग दिया गया है। इन रामायणों में उस विशेष प्रदेश के विवाह-बारात के रीति रिवाजों की एक झलक भी दिखाई देती है।
१. तमिल कम्ब रामायण रचियता महर्षि कम्बन
एत्तिन रिमैयव रिलिन्द पूमलै
बेततवै नडुक्कुर मुरिनदु वीरलनददे
तमिल कृत्तिवास रामायण कार्मुक पटल १२-८०२
एक ही क्षणमात्र में श्रीराम ने धनुष के एक सिरे को पैर के नीचे दबा लिया और उस धनुष को इस प्रकार झुकाया कि देखने वाले यही समझे कि यह धनुष तो इन्हीं के उपयोग में पहले से रहा मालुम पड़ता है। उसी समय उस स्वयंवर सभा में उपस्थित राजाओं ने कंपाते हुए टूट कर गिरा देखा। देवताओं ने श्रीराम की स्तुति कर पुष्प वर्षा की। महातपस्वी विश्वामित्रजी ने जनकजी को शीघ्र अपने पास बुलाने का कहा। यह सुनकर जनकजी को अपार आनन्द प्राप्त हुआ। उन्होंने दूतों को बुलाकर विवाह निमंत्रण पत्र और वहाँ जाकर (मिथिला) का सारा हाल कहा। यह सन्देश दिया और उनको अयोध्या भेजा।
महाराज दशरथ ने अपने मंत्री, परिवार तथा अन्य राजाओं के साथ मिथिला (जनकपुरी) प्रस्थान किया। रानियाँ हथनियों पर बैठकर बारात में गई। देवता लोग सुर, स्त्रियों के साथ आकाश में एकत्र हो गए। उनको विश्वास हो गया था कि अब राक्षसों का जो कि विशाल लोकों को हानि पहुँचाते हुए सकुशल रह रहे हैं, उनके वर्गों के साथ उनका नाश निश्चित है। अतएव वे नाचने लग गए।
अेञ्जलि लुलहत् तल्ल वेरियडै यरश वेल्लम्
कुञ्जरक कुलात्तिर चुर्रक कोररव निरून्द कूडम्
वेञ्जिनत् तनुव लानु मेरुमाल वरैयिर चेरूम्
शेञ्जडर्क कडवु लेन्नत् तेरिन्मेर चेन्रू शेर्न्दान्
तमिल कम्ब रामायण बालकाण्ड शुभविवाह पटल २१-१३१३
श्रीराम चलते हुए महामेरू पर जाने वाले सूर्य के समान उस विवाह मण्डप में पहुँच गए, जिसमें राजा दशरथ विराजमान थे और उनके चारों ओर गजदलों के समान शस्त्रधारी राजा थे। वे राजा अत्यन्त विशाल भूमि के राज्यों के राजा थे। श्रीराम शत्रुओं पर भयंकर क्रोध कर सकते थे और धनुर्विद्या के प्रवीण थे अर्थात् वे पराक्रमी और परंतप थे।
श्रीराम मण्डप के सामने रथ से उतरे। दोनों भाई भरत और लक्ष्मण पार्श्वों में हाथों का सहारा देने आए। श्रीराम ने मण्डप के अन्दर आकर महर्षि वसिष्ठ, विश्वामित्रजी और शतानन्दजी को प्रणाम किया। तत्पश्चात् अपने पिताश्री महाराज दशरथजी के चरणों की वन्दना करके उनके पास विराजमान हो गए।
उस दिन सवेरे वीर श्रीराम ने कांक्षणीय अग्रिमुख में घी के साथ होने वाले सभी होम किए, सम्पूर्ण मंत्र पूर्ण पढ़े और सीताजी के पल्लव-सम-पाणि को अपने विशाल पाणि से ग्रहण किया। विवाह विधि-विधान एवं आनन्दपूर्वक सम्पन्न हुआ। विवाह उपरान्त श्रीराम ने समस्त महर्षियों को दण्डवत किया फिर पिताश्री दशरथजी के चरणों में सिर रखकर नमस्कार किया।
श्रीराम ने कैकेयी के उज्ज्वल चरणों पर जननी माता (कौसल्या) को उतना ही अधिक मातृ-प्रेम के साथ नमस्कार किया। फिर क्रम से उन्होंने अपनी माता के पैर सिर पर धारण किए और पवित्र हृदयवाली सुमित्रा माता के पैरों पर नमस्कार किया। माताओं ने उन दोनों को खूब-खूब आशीर्वाद दिए। तदनन्तर तीनों भाईयों के विवाह भी सम्पन्न हुए।
इस प्रकार स्पष्ट है कि कम्ब रामायण में श्रीराम के विवाह में उनके माता-पिता, दासियों, मंत्री तथा अनेक महर्षि सम्मिलित हुए थे। विवाह में नारियों के जाने का विवाह के आनन्द उठाने का विस्तृत स्पष्ट वर्णन भी है। विवाह में बारात के समय महिलाओं की सहभागिता स्पष्ट दिखाई देती है।
२. मलयालम अध्यात्म रामायण-उत्तर रामायण रचयिता
महाकवि तुञ्चतु रामानुजन् एलुत्तच्छन्
शिवजी (चन्द्रशेखर) के महिमान्वित धनुष को देखकर श्रीराम ने सानंद (धनुष को) प्रणाम किया। धनुष उठा सकते हो? बाण चला सकते हो? उसकी (धनुष की) धन्वा खींच सकते हो। ऐसे प्रश्न सुनकर विश्वामित्रजी के श्रीराम से कहा- नि:शक हो जो कर सकते करो। इससे मंगल ही होगा।
मन्दहासवुं पूण्टु राघवनतु केट्टु मन्दमन्दं पोय्च्चेन्तु कण्टितु चापं। ज्वलिच्च तेजस्सौटु मैटुत्तु वेगत्तो टै कुलच्चु वलिच्चुटन् मुरिच्चु जितश्रमं। निन्तरुलुन्न नेरमीरेलु लोकङ्डलु मौन्नु माटोलिक्कोण्टु विस्मयप्पैट्टुजन। पाट्टुमाझ्वुं कूत्तु पुष्पवृष्टिथुमोरो कूट्ट मे वाद्यङ्ङलुं मंगलस्तुतिकलूं देवकलोक्कै परमानंद पुण्टु देवदेवनै स्तुतिक्कयुप्सर: स्त्रीकलैल्लां उत्साहं कैकौण्टु विश्वेश्वरनुटै विवाहत्सावारंभ घोषं कण्टु कौतुकं पूटार्।
मलयालम अध्यात्मरामायण उत्तररामायण, बालकाण्ड सीतास्वयंवर ४०
यह सुनकर श्रीराम मुस्काये और मंद-मंद चलकर चाप देखा। तेजोज्वल श्रीराम ने धनुष वेगपूर्वक उठाया, लक्ष्य संधान किया, डोरी खींच ली और अनायास धनुष भंग किया। श्रीराम के ऐसा खड़े रहते समय चौदह भुवनों के पिता हुए और सारे लोग विस्मय विमुग्ध हो गए।
तब जनकजी ने विश्वामित्रजी की वन्दना करते हुए बताया कि महाराज दशरथजी को निमंत्रण देने के लिए अविलम्ब दूतों के हाथ पत्र भिजवा देना चाहिए। महर्षि विश्वामित्र तथा जनकजी ने मिलकर महाराज दशरथ को विश्वास दिलाते हुए पूरे समाचार लिखे और दूत तुरन्त ही अयोध्या चल पड़े। जनकजी का सन्देश पाकर दशरथजी ने भी सब को मिथिला जाने का आदेश दिया। उनके गुरु वसिष्ठ अपनी पत्नी अरुन्धती के साथ निकले (चले)। चतुरंगिणी सेना, कौसल्या आदि पत्नियों, भरत-शत्रुघ्न पुत्रों एवं उत्सव (विवाह) के लिए विशेष वाद्यों के साथ उत्साहपूर्वक दशरथ मिथिलानगरी में पहुँचे तो मिथिलेश ने आगे बढ़कर उन सबका स्वागत किया।
इतने प्रसंग से ही स्पष्ट है कि दशरथजी श्रीराम की बारात हेतु सपरिवार जिसमें रानियाँ, दासियों तथा दो पुत्रों सहित जनकपुर गए।
३. प्रसिद्ध पुस्तक ‘दशरथनन्दन श्रीरामÓ रचयिता चक्रवर्ती श्री राजगोपालाचार्य
मिथिलानगरी से आए दूतों ने आकर राजा दशरथजी को बताया कि आपके सुपुत्र श्रीराम ने सीतास्वयंवर के मंडप में शिवजी का धनुष चढ़ाकर उसे भंग कर दिया है। अब राजकुमार का विवाह सीताजी के साथ सम्पन्न कराने के लिए आपकी अनुमति माँगने और आपको मिथिला ले जाने के लिए हमें राजा जनक ने अयोध्या भेजा है। आपके पधारने से सभी अपार सुख और आनन्द प्राप्त करेंगे। अत: आप तुरन्त ही सपरिवार मिथिला को पधारने की कृपा करें।
यह सुखद समाचार सुनकर दशरथजी आनन्द से अभिभूत हो गए। उन्होंने उसी समय मंत्रियों को बुलवाया, यात्रा का सब प्रबन्ध करने के निर्देश दिए तथा दूसरे दिन ही सपरिवार मिथिला को प्रस्थान किया।
अत: इस प्रसंग से स्पष्ट है कि श्रीराम के विवाह में राजा दशरथ, उनकी रानियाँ तथा दो पुत्रों सहित वे विवाह में सम्मिलित हुए। जबकि अन्य रामायणों-श्रीरामकथाओं में उनकी माताओं या अन्य महिलाओं का सम्मिलित होने का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है।
४. मैथिली रामायण रचियता कवीश्वर श्री चन्द्रा झा
मैथिली रामायण में श्रीराम विवाह का वर्णन अन्य रामायणों से अधिक विस्तृत है। दशरथजी के साथ परिवार सहित बारात में मिथिला जाना वर्णित है। उनकी बारात में तीनों माताएँ-दासियाँ मंत्रीगण सहित अन्य महिलाओं की सहभागिता स्पष्ट है।
गुरु वशिष्ठ सौ-सौ बार मन्त्र पढ़-पढ़ कर श्रीराम को आशीर्वाद देते रहे और दर्शकवृन्द वहाँ देखते रहे। शिवजी के धनुष को तोड़ने के लिए उदार श्रीरामजी तैयार हैं। अपनी-अपनी पत्नियों सहित देवतागण जय ध्वनि करने लगे। फूल बरसने लगे। प्रभु श्रीराम हाथ से धनुष खींच रहे हैं।
वार-सहित जयकार करथि गेय-सुरभार अवनि हर।
वर्ष सुमन मन हर्ष बहुत, प्रभु कर्ष धनुष कर।।
भङग धनुष रव चड़ग, भवन सब रङग अवनि पुनि।
चाप टूटल परिताप छुटल कह लोक अमृत घुनि।।
मैथिली रामायण बालकाण्ड अध्याय-६-८४-८५
अपनी-अपनी पत्नियों सहित देवा जय ध्वनि कर रहे हैं। धरती के भार का हरण हो रहा है। फूलों की वर्षा हो रही है। सबके मन में अपार हर्ष है। प्रभु रामचन्द्र हाथ से धनुष खींच रहे हैं। धनुष टूट गया। सारा संसार चकित हो उठा, धरती पर आनन्द की लहर फैल गई। धनुष टूटा। चिन्ता दूर हुई, लोग आनन्दपूर्वक बातें करने लगे।
श्रीराम के हाथ का स्पर्श होते ही धनुष टूट गया। मिथिलावासी बोल उठे विधाता ने हम लोगों की प्रतिष्ठा बचा ली। नगर की सारी नारियाँ और जनकजी की स्त्रियाँ बार-बार दूल्हे को देख रही थी। महाराज जनक ने महर्षि विश्वामित्र से कहा ‘अब तो राजा दशरथजी के यहाँ निमन्त्रण जाना चाहिए। रानियों और बेटों के साथ राजा दशरथ आएंगे और अपने साथ जात-बिरादरी के लोगों की भारी बारात सजाकर लाएंगे। दूत पत्र लेकर वहाँ पहुँचा, जहाँ अयोध्या के राजा दशरथ इन्द्र के समान दरबार में विराजमान थे। जब दशरथजी ने रामजी के कृत्य को सुना तो प्रसन्न हो उठे, मानों सूखा हुआ पेड़ हरा हो उठा हो। राजा दशरथ ने दूत को पुरस्कार के रूप में बहुत धन दिया। राजा दशरथजी ने मंत्रियों को बुलाया। सबको पत्र पढ़कर सुनाया कि, ‘हम रानियों और राजकुमारों सहित मिथिला जाएंगे। जनक हमारे समधी होंगे, यह बड़े आनन्द की बात है।Ó
हाथी, घोड़े, रथ और पैदल चारों अंगोंवाली विशाल सेना और भारी सम्पत्ति साथ लेकर गुरु वसिष्ठजी को आगे कर राजा दशरथ चले और बोले, मेरा मन हर्ष से विभोर हो गया।
हुति संग चलली रामक माय। हम रथ चढ़ि जाएब अगुआय।।
प्राप्त जनकपुर दशरथ भूप। अयला जनक समधि अनुरूप।।
मिथिलारामायण बालकाण्ड अध्याय ६-धनुर्भग १२०-१२१
दशरथजी के साथ रामजी की माता कौशल्या चली और बोली- मैं रथ पर चढ़कर आगे ही पहुँचूँगी। राजा दशरथ जनकपुर पहुँचे। उनके अनुसार समधी राजा जनक उनके पास आए और दूर से आकर अगवानी करके उन्हें अपने यहाँ ले आए। यही रीति उनकी जात-बिरादरी में प्रचलित थी।
अयोध्या के राजा दशरथजी के आने पर दोनों राजकुमारों और रानियों को उसी भवन में ठहराया गया, जिसमें राजा दशरथ ठहरे थे। राजा जनक ने प्रसन्नतापूर्वक यथोचित स्थान की व्यवस्था करके उनके परिवार सहित सबको ठहराया गया। विवाह का प्रस्ताव लेकर शतानन्दजी राजा दशरथ के पास गए और कहा-
हे नृप-वर एव नृपति विचार। राजकुमार सभ होथु सदार।।
जनकात्मजा उर्म्मिलानाम। लक्ष्मण परिणय विधि तहिराम
जनक भ्रातृ कन्यादूइ गोटि। जेठि श्रुत कीर्त्ति माण्डवी छोटी।
भरत तथा शत्रुघ्न जमाय। यथासंख्य होमहि बुझ न्याय।।
से शुनि कहल अयोध्याधीश। अद्यटन घटना कर जगदीश।।
मैथिलीरामायण बालकाण्ड सीता विवाह अध्याय ६-६ से १०
हे महाराज हमारे राजा जनक की कामना है कि सभी राजकुमारों का विवाह करें। जनकजी की पुत्री उर्मिला नाम की है उनके साथ लक्ष्मण का विवाह किया जाए। जनक के भाई की दो कन्याएँ हैं- बड़ी श्रुतिकीर्त्ति और छोटी माण्डवी। इन दोनों का विवाह क्रमश: भरत और शत्रुघ्न से होना परम अनुरूप होगा। इतना सुनकर अयोध्या के नरेश दशरथ बोले- ‘ईश्वर की कृपा से सब कुछ सम्भव है।Ó
दशरथजी ने कहा राजा जनक की जो राय है नि:सन्देह इसमें मेरी भी सहमति है। तब उनके पुरोहित शतानन्द ने लौटकर राजा जनक से कहा कि चारों कन्याओं के लिए दूल्हें (वर) मिल गए। सारे नगर में यह बात फैल गई कि विवाह का शुभ सिद्धान्त (मैथिली के विवाह में शादी तय होने की रस्म को सिद्धान्त कहते हैं) हो गया है। सर्वत्र हलचल मच गई और उद्योग (व्यवस्था) प्रारम्भ की गई। महिलाएँ विवाह सम्बन्धी गीत गाते हुए ‘परिछनिÓ नामक रस्म (परम्परा) करने लगी। विधिकारी (विवाह में दुलहिन की मदद करने के लिए तैनात महिलाएँ) मिथिला में प्रचलित रीति से रस्म करने लगी। तदनन्तर श्रीराम सहित तीनों भाईयों के विवाह सम्पन्न हुए। डंका बोल उठा। सवारी चल पड़ी। बारात के साथ महाराज दशरथ विदा हुए। दशरथजी और जनकजी दोनों समान समधियों के बीच प्रेमपूर्वक परस्पर अनुनय-विनय की बात हुई।
इस वर्णन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि दोनों पक्षों की महिलाओं का भी रीति रिवाज में योगदान रहा है तथा दशरथजी श्रीराम के विवाह हेतु बारात में सभी रानियों तथा महिलाओं के सहित गए थे।
५. अध्यात्मरामायण रचयिता महर्षि वेदव्यास
महर्षि विश्वामित्र ने लक्ष्मण सहित श्रीरामचन्द्रजी से कहा- ‘वत्स! अब हम महाराज जनक की नगरी मिथिलापुरी को चलेंगे। वहाँ यज्ञोत्सव देखकर फिर तुम अयोध्यापुरी को लौट सकते हो।Ó श्रीराम गंगा पार कर लक्ष्मण तथा विश्वामित्रजी के साथ मिथिलानगरी पहुँच गए। विश्वामित्रजी ने जनकजी से कहा-
पूजितं राजभि: सर्वैर्दुष्य मित्यनुशुश्रवे।
अतो दर्शय राजेन्द्र शैवं चापमनुतमम्।
दृष्टवायोध्यां जिगमिषु: पितरं द्रष्टुमिच्छति।।
अध्यात्मरामायण बालकाण्ड सर्ग ६-१६
हमने सुना है उस धनुष की तुम्हारें यहाँ पूजा होती है और सब राजा उसे देख गए हैं। अत: हे राजेन्द्र आप महादेवजी का वह उत्तम धनुष इन्हें दिखा दीजिए क्योंकि ये उसे देखकर शीघ्र ही अपने माता-पिता से मिलने के लिए अयोध्या जाना चाहते हैं।
तदनन्तर राजा जनक ने अपने बुद्धिमान मंत्री को भेजकर कहा कि तुम शीघ्र ही विश्वेश्वर (शिवजी) का धनुष लाकर श्रीरामचन्द्रजी को दिखाओ। मंत्री के चले जाने पर राजा ने विश्वामित्रजी से कहा यदि श्रीरामचन्द्रजी उस धनुष को उठाकर उसकी कोटियों पर रौंदा चढ़ा देंगे तो निश्चय मैं उन्हें अपनी कन्या सीता से उनका विवाह कर दूँगा। तब विश्वामित्रजी ने श्रीराम की ओर देखते हुए मुस्कराते हुए कहा राजन! आप शीघ्र ही वह श्रेष्ठ धनुष रघुनाथजी को दिखाओ। मुनीश्वर के इतना कहते ही बड़े-बड़े शक्तिशाली पाँच हजार धनुष-वाहक उस श्रेष्ठ धनुष को लेकर वहाँ आ गए। प्रसन्नाचित श्रीरामजी ने उसे देखते ही दृढ़तापूर्वक कमर कसकर उस धनुष को खेल करते हुए बाएं हाथ से उठाकर थाम लिया और सब राजाओं को देखते-देखते उस पर रोंदा चढ़ा दिया।
ईष्दाकर्णयामास पाणिना दक्षिणेन स:।
बभञ्जाखिलह्रत्सारो दिश: शब्देन पूरयन्।।
अध्यात्मरामायण रचयिता वेदव्यास बालकाण्ड सर्ग ६-२५
तत्पश्चात् सबके हृदय सर्वस्थ भगवान् श्रीराम ने अपने दायें हाथ से उस धनुष को थोड़ा सा खींचा और दसों दिशाओं को गुञ्जायमान करते हुए तोड़ डाला। धनुष के दो खण्ड हुए देखकर राजा जनक ने श्रीराम का आलिंगन किया और अन्त:पुर के आँगन में स्थित सीताजी की माता अत्यन्त विस्मित हुई। सीताजी ने नम्रतापूर्वक मुसकाते हुए जयमाल श्रीराम के ऊपर (गले में) डालकर प्रसन्न हुई। महाराज जनकजी ने मुनिवर विश्वामित्रजी से कहा-
भौ कौशिक मुनिश्रेष्ठ पत्रं प्रेषय सत्वरम्।
राजा दशरथ: शीघ्रमागच्छतु सुपत्रक:।।
विवाहार्थ कुमारणां सदार: सहमन्त्रिभि:।
तथेति प्रेषयमास दूतांस्त्वरित विक्रमान्।।
अध्यात्मरामायण रचियतावेदव्यास बालकाण्ड सर्ग ६-३३-३७
मुनिवर कौशिकजी! आप तुरन्त ही महाराज दशरथ के पास पत्र भेजिए, वे कुमारों के विवाहोत्सव के लिए शीघ्र ही पुत्र, महिषियों (रानियों) और मंत्रियों के साथ यहाँ पधारें। तब विश्वामित्र ने बहुत अच्छा कहकर शीघ्रगामी दूतों को (अयोध्या) भेजा।
दूतों ने जाकर दशरथजी से श्रीराम का कुशलक्षेम कहा। उनसे रामचन्द्रजी के अद्भुत कृत्य का वृत्तान्त सुनकर राजा परमानन्द में डूब गए, फिर उन्होंने मिथिलापुरी को चलने के लिए शीघ्रता करते हुए मंत्रियों से कहा- हाथी घोड़े रथ और पदातियों के सहित सब लोग मिथिलापुरी चलो।
रथमानय मे शीघ्रं गच्छाम्यद्यैव मा चिरम्।
वसिष्ठस्त्वग्रतो यातु सदार: सहितोऽग्निभि:।।
राममातृ: समादाय मुनिर्मे भगवान गुरु।
एवं प्रस्थाप्य सकलं राजर्षिर्विपुलं रथम्।।
अध्यात्मरामायण बालकाण्ड सर्ग ६-३७-३८
मेरा भी रथ तुरन्त ले आओ, देरी न करो, मैं भी आज ही चलूँगा अग्नियों के और अरुन्धती के सहित मेरे गुरु मुनिश्रेष्ठ भगवान् वसिष्ठजी राम की माताओं को लेकर सबसे आगे चले।
इस प्रकार सबका कूच करा एक विशाल रथ पर आरूढ़ हो राजा दशरथ बड़े दल बल के सहित शीघ्रतापूर्वक मिथिलापुरी को चले। उनके स्वागत हेतु राजा जनक अपने पुरोहित शतानन्द को साथ लेकर गए। उन पूजनीय राजा ने यथोचित रीति से उनका सत्कार कह पूजन किया। शुभ दिन शुभ मुहूर्त और लग्न के समय धर्मज्ञ जनकजी ने श्रीराम को भाईयों सहित बुलाकर उनका विवाह कर दिया। विवाह मण्डप वेदपाठी ब्राह्मणों से भरा हुआ था और सुन्दर वस्त्र धारण किए निष्कण्ठी (सुहागिन) नारियों से समाकुल था।
इस वर्णन से स्पष्ट है कि श्रीराम के विवाह की बारात में उनके परिवार की समस्त माताएँ तथा दासियाँ सम्मिलित हुई थी।
सन्दर्भ ग्रन्थ-
१. तमिल कम्ब रामायण खण्ड १ प्रकाशक भुवनवाणी ट्रस्ट मौसम बाग लखनऊ, उ.प्र. २२६ ०२०
२. मलयालम अध्यात्मरामायण-उत्तररामायण रचयिता महाकवि तुञ्चतु रामानुजन् एलुत्तच्छन, प्रकाशक भुवनवाणी ट्रस्ट लखनऊ २२६ ०२०
३. दशरथ नन्दन श्रीराम-रचितया चक्रवर्ती श्री राजगोपालाचार्य सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन एन ७७ कनॉट सर्कस नई दिल्ली ११० ००१
४. मैथिलीरामायण-रचियता कवीश्वर श्री चन्द्रा झा, भुवनवाणी ट्रस्ट लखनऊ २२६ ०२०
५. अध्यात्मरामायण महर्षि वेदव्यास गीता प्रेस गोरखपुर, उ.प्र. २७३ ००५

    प्रेषक
डॉ. नरेन्द्रकुमार मेहता
‘मानसश्रीÓ, मानस शिरोमणि, विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर

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