फ्रांस के बारे में एक कथन बहुत ही प्रसिद्ध है कि-‘फ्रांस इज पेरिस, पेरिस इज फ्रांस।’ पेरिस फ्रांस की राजधानी है और सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। फ्रांस के बारे में अक्सर यह बात कि ‘फ्रांस इज पेरिस, पेरिस इज फ्रांस’ इसलिए कही जाती है, क्योंकि फ्रांस दुनिया का बहुत ही स्वच्छ व सुंदर शहर है। फ्रांस की स्वच्छता और सुंदरता का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि फ्रांस के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि यहाँ मच्छर नाम की कोई चीज नहीं है। पेरिस के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी अपने पाठकों को देता चलूं कि पेरिस शहर के नीचे नाले यानी कि सीवरेज का एक बहुत बड़ा म्यूजियम बना हुआ है, यह दुनिया में अपनी प्रकार का बहुत ही अनोखा व प्राचीन म्यूजियम है। सिवरेज जिसे हमारे भारत में ‘गंदा नाला’ या ‘गटर’ की संज्ञा दी जाती है, पेरिस शहर में सीन नामक नदी के नीचे यह म्यूजियम है। गंदे नालों(सीवरेज) में किसी शहर का गंदा पानी बहता है और उस गंदे पानी को साफ किया जाता है। यहाँ मैं पेरिस शहर के नीचे बने इस सिवरेज म्यूजियम की बात इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि हमारे यहाँ के शहरों में, मैट्रो सीटीज में पेरिस शहर के अनुरूप माकूल ‘सिवरेज’ व्यवस्थाएं मौजूद नहीं हैं। पेरिस में जो सीवरेज म्यूजियम बना है, उसमें सीवरों के दौरों के लिए आगंतुकों को नावों और वैगनों पर सीवरों के माध्यम से ले जाया जाता था।संग्रहालय 14 वीं शताब्दी के अंत में पेरिस के प्रोवोस्ट ह्यूजेस ऑब्रियट द्वारा अपने प्रारंभिक विकास से सीवरों के इतिहास का विवरण देता है, जो कि 19 वीं शताब्दी में इंजीनियर यूजीन बेलग्रैंड द्वारा डिजाइन किया गया था । इस संग्रहालय में सीवर श्रमिकों की भूमिका और जल उपचार के तरीकों का भी विवरण है ।आज हमारे भारत में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है लेकिन बढ़ती आबादी, आधुनिकीकरण, शहरीकरण, बढ़ते औधोगीकरण, विज्ञान और विकास के बीच हमारे देश की मैट्रो सीटीज में सिवरेज की व्यवस्थाएं बहुत अधिक माकूल, व्यवस्थित व ठीक नजर नहीं आतीं हैं। हमारे देश के सिवरेज अक्सर या तो ब्लॉक रहते हैं अथवा उनमें से हर कहीं गंदा पानी लगातार निष्कासित होता रहता है। इन सीवरेज में प्लास्टिक, पॉलीथीन व अन्य सॉलिड कचरे की बहुत भरमार होती है, जिसे सफाईकर्मियों द्वारा समय समय पर अपनी जिंदगी को ताक पर रखकर साफ किया जाता है और उनकी जिंदगी सीवरेज के इस मैले(गंदगी) में हर पल मौत की सांसें गिनती रहतीं हैं। पेरिस शहर के नीचे जो सिवरेज म्यूजियम बनाया गया है, उसे हम सभी को कम से कम एक बार जरूर देखना चाहिए, और उससे हमें प्रेरणा लेने की जरूरत है। यहाँ इस सीवरेज में ऐसा खास क्या है, जिसे हमें देखना चाहिए ? तो इस संबंध में बताता चलूं कि पेरिस शहर के नीचे जो सिवरेज म्यूजियम बनाया गया है, इसे हमें अपनी शहरी जिंदगी से जोड़ते हुए(जिस प्रकार से आज हमारे शहरों में सीवरेज सिस्टम को लेकर (इनकी साफ-सफाई करने संबंधी) जो समस्याएं आतीं हैं, हम पेरिस के सीवरेज म्यूजियम की भूमिका को समझने का, जानने का प्रयास करें। वास्तव में पेरिस में सीवरेज नालों की दुर्गंध और उनकी सफाई का जो इतिहास है, वह दुनिया में हमें शायद ही कहीं देखने को मिले, क्योंकि इस म्यूजियम में बड़ी-बड़ी सीवरेज लाइन्स बनाई गई हैं, जहाँ सीवरेज को साफ करने वाले कार्मिकों के पहनने के विभिन्न प्रकार के कपड़ों, जूतों, हेलमेट, सिर पर लाइट सिस्टम, विभिन्न सीवरेज साफ-सफाई टूल्स को दुनिया के सामने बहुत ही बेहतरीन व नायाब तरीकों से प्रस्तुत किया गया है, ताकि विश्व के अन्य देश भी पेरिस से सिवरेज साफ-सफाई के मामलों में प्रेरणा प्राप्त कर हम उससे संज्ञान ले सकें और अपने देश,शहर में ठीक वैसी ही साफ-सफाई व्यवस्था के इंतजामात कर सकें। हमारे यहाँ गटरों में( सीवरेज) में बहुत गंदा पानी हमेशा बहता रहता है लेकिन पेरिस के सीवरेज म्यूजियम में आपको ऐसा नजर नहीं आएगा। आज हमारे देश में सफाई मजदूरों की जिंदगी क्या है ? कैसी है ? वो सीवरेज सिस्टम को कैसे और किन परिस्थितियों में साफ करते हैं ?, शायद ही हम या कोई भी व्यक्ति इस बारे में सोचते होंगे ? सीवरेज की सफाई करने के लिए गंदे सीवरेज में जान को जोखिम में डालकर उतरना कोई मामूली काम नहीं है, यह वास्तव में बहुत ही मेहनत का काम इसलिए है, क्योंकि सीवरेज में बहुत प्रकार की गंदगी, बैक्टीरिया, मल व अन्य विषैले पदार्थ हमेशा मौजूद रहते हैं। यहाँ बताता चलूं कि पेरिस में उन्नीसवीं सदी से नालों का पर्यटन होता रहा है और बहुत से लोग पेरिस के इन अनोखे सीवरेज म्यूजियम को देखने जाते हैं। इस म्यूजियम में ‘स्टिल इमेज’ के जरिए सफाई मजदूरों के काम को बखूबी दिखाया गया है कि वे सीवरेज में किन,कैसी परिस्थितियों के बीच किस प्रकार से सदियों से काम करते आए हैं। वास्तव में पेरिस में इस म्यूजियम में सफाई कर्मियों के कपड़ों, इनके विशेष उपकरणों को गौर से देखने की जरूरत है और उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है। इस म्यूजियम में बहुत पहले की साफ-सफाई व्यवस्थाओं मसलन 1867 से मजदूरों के कपड़ों, जूतों, मॉस्क, मजबूत बेल्ट, ग्लब्स, को दर्शाया गया है और इनमें समय के साथ किस प्रकार के बदलाव आए हैं, यह भी बखूबी दिखाया गया है। इस म्यूजियम में पेरिस के नाले की साफ सफाई के लिए विभिन्न मशीनों को भी प्रदर्शित किया गया है कि किस प्रकार से 19 वीं सदी में पेरिस में बने नालों की साफ सफाई होती रही है। उन्ननीसवीं सदी से 20 वीं सदी के मध्य तक किस प्रकार से किन-2 उपकरणों के साथ पेरिस के सफाई कर्मी गटर में उतरते थे,यह इस म्यूजियम में दर्शाया गया है। म्यूजियम में गटर में उपस्थित विषैली गैस का पता लगाने के भी आधुनिक यंत्र रखे गए हैं। भारत के संदर्भ में बेजवाड़ा विल्सन ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने वर्ष 1986 में मैला ढ़ोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए अपनी लड़ाई शुरू की थी। वे एक भारतीय कार्यकर्ता और सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) के संस्थापकों में से एक और राष्ट्रीय संयोजक हैं , जो कि एक भारतीय मानवाधिकार संगठन है, जो मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन , निर्माण, संचालन और रोजगार के लिए अभियान चला रहे हैं। जानकारी देता चलूं कि मैनुअल मैला ढोने वाले वर्ष 1993 से भारत में अवैध घोषित किया गया हैं। 27 जुलाई 2016 को उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मैला ढ़ोने की प्रथा को खत्म करने में अपना जीवन समर्पित किया है। वास्तव में आज सफाईकर्मियों के पास उनकी जिंदगी की सुरक्षा के लिए आधुनिक उपकरण होने चाहिए जो कि समय की जरूरत है, क्योंकि आज प्रदूषण बहुत ज्यादा हो गया है। इसलिए जब कभी भी हम भारत में सीवरेज की सफाई की कल्पना करें तो हम सफाईकर्मियों के हक की भी कल्पना करें, उनके अधिकारों की भी कल्पना करें। वास्तव में सफाईकर्मियों का काम एक पेशेवर काम है और इसके लिए हमें अवश्य ही पेरिस स्थित सीवरेज म्यूजियम से प्रेरणा लेने की जरूरत है। कितनी बड़ी बात है जिस समय 1857 में जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगी थी, उस समय के आसपास ही पेरिस में सिवरेज का बड़ा जाल बिछ चुका था। तो हम सब कल्पना कर सकते हैं कि उस समय भी पेरिस कितना एडवांस था। म्यूजियम में शहर के सीवरेज का एक नेटवर्क बनाया गया है। शायद पेरिस में यह सब इसलिए किया गया था ताकि लोग यह जान सकें कि हमारे शहरों में जो सीवरेज है, नाले हैं, उनका हमारी जिंदगी में क्या योगदान है और उनकी सफाई क्यों जरूरी है। एक आंकड़े के अनुसार पेरिस में लगभग तीस हजार मेनहोल हैं। हमारे यहाँ अक्सर सीवरेज खुले रहते हैं, मेनहोल में सफाई करते समय सफाई कर्मियों की मृत्यु तक हो जाती है, ऐसे समाचार अखबारों व मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं। यहाँ सीवरेज का गंदा प्रदूषित और विषैला पानी नदियों, समुद्रों तक में मिलता रहता हैं लेकिन पेरिस के सीवरेज म्यूजियम में सिवरेज के पानी को सफाई के बाद कहाँ और कैसे उपयोग में लाया जाता है, दिखाया गया है। यहाँ सफाई कर्मियों की गाड़ियां भी म्यूजियम में आपको देखने को मिल जाएं-
गी। यहाँ बीसवीं सदी की शुरुआत में ही इन गाड़ियों में लोकोमोटिव इंजन का इस्तेमाल होने लगा था। पेरिस शहर में नदियों को बचाने के लिए उस समय इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया, यह आश्चर्यजनक है, जबकि भारत की तरह यहाँ लोगों का नदियों से कोई भी धार्मिक रिश्ता नहीं है। जानकारी मिलती है कि पेरिस में 1889 में 67000 लोगों के घरों में पानी था, जिन्हें सबस्क्राइबर कहा गया है। यहाँ तक उस समय रईसों के यहाँ बाथरूम तक बनने लगे थे। सन 1800 में पेरिस में सोलह किलोमीटर तक सीवरेज बना हुआ था और शहर में उस समय साढ़े पांच लाख लोग रहते थे और 1824 में यह सीवरेज 37 किलोमीटर, और 1848 में यह 96 किलोमीटर तक का हो गया था। पेरिस में 1852 से लेकर नगर नियोजन की दिशा में अनेक प्रयास हुए,जिनमें सड़कों का चौड़ीकरण, सीवरेज साफ सफाई प्रमुख थे। कितनी आश्चर्यजनक बात है कि 1881 में पेरिस में म्यूनिसिपल कमेटी के वाटर एंड सीवर कमेटी के चेयरमैन ने उस वक्त पेरिस में सीवरेज सफाई के लिए फंडों की व्यवस्था की थी और जनता के लिए इस बात की पुष्टि की गई थी कि सीवर को आंगन यानी कि किसी ‘कोर्टयार्ड’ की भांति साफ व स्वच्छ रखा जाएगा। यहाँ पेरिस में पानी की निकासी,इसकी(गंदे पानी की) सफाई कैसे की जाती थी, को देखा जा सकता है। कितनी बड़ी बात है कि 1806 में पेरिस में सेनिटेशन डिपार्टमेंट बना दिया गया था। पेरिस में शहरों के आधुनिकीकरण के साथ सीवरेज नालों में गंदगी बढ़ी। पेरिस में सन 1832 में कोलेरा यानी कि हैजे से 18000 लोगों की मौत हो गई थी और सीवरेज व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के संबंध में निर्णय लिए गए जो आज देश-दुनिया के लिए एक मिसाल है।
जानकारी देना चाहूंगा कि इस सिवरेज म्यूजियम के ऊपर से पेरिस की सीन नदी बहती है, जिसकी आवाज़ इस म्यूजियम में आसानी से सुनी जा सकती है। सीन नदी उत्तरी फ्रांस में 777 किलोमीटर लंबी (483 मील ) नदी है और इसका जल निकासी बेसिन पेरिस बेसिन (एक भूवैज्ञानिक सापेक्ष तराई) में है जो उत्तरी फ्रांस के अधिकांश हिस्से को कवर करता है।यदि हम यहाँ भारत की बात करें तो भारत में सिंधु सभ्यता(हड़प्पा सभ्यता) के नगरों में नियोजित जल निकास प्रणाली आधुनिक नगर योजना से साम्य रखती है। हड़प्पा नगरों में घरों, नालियों एवं सड़कों का एक साथ नियोजित रूप से निर्माण कराया गया। सड़कों तथा नालियों को लगभग एक ग्रिड पद्धति में बनाया गया, जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। प्रत्येक घर में स्नानागार की उपस्थिति थी। भारत में सिंधु घाटी सभ्यता पहली नगरीय सभ्यता थी। खुदाई में प्राप्त हुए अवशेषों से पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की सोच अत्यंत विकसित थी। लेकिन पेरिस का यह सीवरेज म्यूजियम कहीं न कहीं दर्शाता है कि पेरिस के लोग भी बहुत समय से नगर नियोजन के मामले में काफी आगे थे। हम अपनी सभ्यता को भूल चुके लेकिन पेरिस सीवरेज सभ्यता को आज भी संजोए हुए हैं और हमसे नगर नियोजन के मामले में बहुत आगे है। अतः आइए आधुनिकीकरण के इस युग में हम पेरिस से नगर नियोजन व सीवरेज सिस्टम को बेहतरीन बनाने की प्रेरणा लें और स्वस्थ, स्वच्छ भारत के सपनों को साकार करें।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार