हाल ही में एक्सडीआई यानी कि ‘क्रॉस डिपेंडेंसी इनीशिएटिव’ ने जलवायु परिवर्तन को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें जलवायु परिवर्तन के ‘हैजार्डस’ यानी कि खतरों से अवगत कराया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के 9 राज्यों समेत दुनियाभर के 2,600 राज्यों व प्रांतों पर जलवायु परिवर्तन का बड़ा खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के आंकड़ें निश्चित तौर पर मानवजाति को चिंता में डालते हैं। यह अत्यंत ही गंभीर व संवेदनशील है कि भारत के 9 राज्यों पर बाढ़, जंगलों की आग, हीटवेव, समुद्र सतह के बढ़ने और लू जैसे गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं। बताया गया है कि शीर्ष पचास में भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, असम,राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और केरल जैसे राज्य शामिल हैं। वर्ष 2050 तक विश्व के पचास राज्यों में भारत के नौ राज्यों को जलवायु परिवर्तन के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील बताया गया है। जो सूची जारी की गई है उसमें अस्सी प्रतिशत राज्य भारत,चीन और अमेरिका के हैं। पाकिस्तान पर भी इस रिपोर्ट में बड़ा खतरा बताया गया है। चीन के सत्ताइस प्रांतों के बाद सर्वाधिक नौ राज्य भारत से ही हैं। इसमें अमेरिका के पांच, इंडोनेशिया और ब्राजील के तीन-तीन और पाकिस्तान के दो तथा अफगानिस्तान के एक राज्य को शामिल किया गया है। यहाँ जानकारी देता चलूं कि यह पहली बार है जब दुनिया के हर राज्य, प्रांत और क्षेत्र की तुलना में विशेष रूप से निर्मित एनवायरमेंट पर केंद्रित भौतिक जलवायु जोखिम का इस प्रकार से बड़ा विश्लेषण किया गया है। बताता चलूं कि एक्सडीआई द्वारा दुनिया के 2600 राज्यों, प्रांतों, क्षेत्रों को इस रिपोर्ट में कवर किया गया है। क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव की रिपोर्ट की मानें तो साल 2050 में 200 में से 114 जोखिम वाले प्रांत एशिया के ही हैं। सबसे ज्यादा खतरा चीन,भारत व अमेरिका को है।दस सबसे ज्यादा खतरे वाले इलाकों में नौ चीन के हैं।शियांगजू और शांगडोंग जैसे शहर जो कि चीन के सबसे बड़े आर्थिक केंद्र हैं, को गंभीर खतरा बताया गया है। एक ही देश के सबसे ज्यादा खतरे वाली जगहों में चीन सबसे ऊपर है जबकि अमेरिका दूसरे नंबर पर है। रिपोर्ट में फ्लोरिडा को दसवें नंबर पर बताया गया है। इस रिपोर्ट में सरकारों द्वारा कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए फौरन कदम उठाने की जरूरत बताते हुए कहा गया है कि खतरे वाले क्षेत्रों को बाढ़ के लिए सुरक्षा जैसे उपाय भी करने होंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान को भी बर्बादी का एक बड़ा खतरा बताया गया है। आज कार्बन के अत्यधिक उत्सर्जन से हमारे पर्यावरण का लगातार सत्यानाश हो रहा है और वर्ष 1990 की तुलना में लगभग धरती का तापमान यदि तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तो हमें इसमें कमी लाने के प्रयास करने होंगे और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकना होगा। जानकारी देता चलूं कि इस रिपोर्ट में मानव गतिविधियों और घरों से लेकर इमारतों तक यानी मानव निर्मित पर्यावरण को जलवायु परिवर्तन व मौसम के चरम हालात से नुकसान के पूर्वानुमान का प्रयास हुआ है। इसी आधार पर रैंकिंग की गई है। आज मनुष्य अपने स्वार्थ और लालच के चलते हर कहीं मनमाकिफ कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर रहा है, उसे पर्यावरण से कोई विशेष सरोकार नहीं रह गया है। मनुष्य ने अपनी जरूरतों के अनुसार पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में न रखते हुए अंधाधुंध रूप से मकान, भवन,इमारतें, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा,पुल,सुरंग, अस्पताल आदि का निर्माण किया है। शहरीकरण में तेजी से इजाफा हुआ है। गांव भी अब शहर बनते चले जा रहे हैं। कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि आज जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मनुष्य ही है। जंगलों की लगातार अंधाधुंध कटाई, धरती का अंधाधुंध तरीके से दोहन का प्रभाव हमारे देश की जलवायु, वातावरण, पारिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ा है। आज बढ़ते औधोगीकरण, विकास व तकनीक के बीच प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी होती चली जा रही है। धरती पर ग्रीन हाउस गैसों में काफी इजाफा हुआ है, लेकिन उस अनुरूप प्रदूषण को रोकने के उपाय नाकाफी ही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण आज लगातार रेगिस्तानों में इजाफा हो रहा है। जल संसाधनों में कमी आई है। मानव केवल और केवल अपनी प्रगति व विकास चाहता है और वह अपनी जीवनशैली को और अधिक उन्नत बनाने की दिशा में लगातार क्रियाशील है लेकिन पर्यावरण पर उसका ध्यान बहुत कम ही है। वह अपने स्वार्थ के चलते प्राकृतिक संसाधनों, संपत्तियों का लगातार अविवेकपूर्ण तरीके से दोहन करने में रत है। ऊर्जा के लिए आज मानव लगातार कोयले का उपयोग कर रहा है। लगभग 35 % से लेकर 40 % तक ऊर्जा की ज़रूरत मानव कोयले से करता है। कोयले को जलाने से उसमें से बहुत अधिक मात्रा में कार्बन मुक्त होता है यह कार्बन पृथ्वी का तापमान बड़ने का मुख्य कारण है। पृथ्वी को सूर्य से जो ऊर्जा मिलती है उसमें से कुछ ऊर्जा पृथ्वी वापस सौर मंडल में भेजती है कार्बन और अन्य कुछ गैस मिलकर उस उष्णता को पृथ्वी से बाहर जाने नहीं देते। यही कारण है कि आज पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। नैसर्गिक गतिविधियां जैसे महाद्वीपों का वहन, पृथ्वी का झुकाव व समुद्री धाराएं भी कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन के कारण हैं। लेकिन इनके परिणाम मानव गतिविधियों के मद्देनजर नगण्य अथवा बहुत कम ही हैं,क्योंकि जलवायु में अधिक परिवर्तन मानव गतिविधियों के कारण ही होते हैं। आज मानव निरंतर अधिक उत्पादकता की चाह में प्राकृतिक खाद का उपयोग न करके विभिन्न रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, दवाइयों का प्रयोग कर रहा है। मानव स्वास्थ्य के साथ ही इससे जैव-विविधता पर भी संकट पैदा हो गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सन 1961 तथा 1990 के बीच पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 14 डिग्री सेल्सियस था। वर्ष 2005 में पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म तापमान ईरान के लुट रेगिस्तान में 70.7 डिग्री सेल्सियस मापा गया था, और अंटार्कटिका के वोस्तोक में सबसे ठंडा तापमान -89.2 डिग्री सेल्सियस था। तापमान बढ़ने से ध्रुवों की बरफ पिघलती है और समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी होती है। बताता चलूं कि वर्ष 2022 को गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया था।धरती का ताप वर्ष 2022 में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के औसत ताप के मुकाबले करीब दो डिग्री फॉरेनहाइट या करीब 1.11 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के दौरान मानवीय गतिविधियों से संबंधित ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में थोड़े समय के लिए कमी आई थी, लेकिन अब यह फिर वही स्थिति हो गई है। कुछ समय पहले नासा के वैज्ञानिकों समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने वर्ष 2022 में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा सर्वाधिक दर्ज की थी। अतः, अब समय आ गया है कि हम अपनी बंद आँखों को खोलें और प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझें। इसके लिए मानव को चारों दिशाओं से प्रयास करने की जरूरत है।
सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार