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नोटबंदी की तरह शराबबंदी भी

शराबबंदी पर आजकल हमारी अदालतें और सरकारें काफी जोर दे रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिशकुमार ने तो शराबियों का हुक्का-पानी ही बंद कर दिया है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के एक ताजा फैसले ने शराबियों से ज्यादा शराब-विक्रेताओं के होश फाख्ता कर दिए हैं। उनके साथ-साथ कई मुख्यमंत्रियों के भी पसीने छूट रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यदि हमने अदालत के फैसले को लागू कर दिया तो हमें 50 अरब रु. के टैक्स का नुकसान हो जाएगा। कोई मुख्यमंत्री 70 अरब, कोई 30 अरब और कोई 20 अरब के नुकसान की बात कर रहा है। क्या है, वह फैसला? वह यह है कि देश में बने राजमार्गों (हाईवे) और प्रांतीय मार्गो के आजू-बाजू 500 मीटर की दूरी तक कोई शराब नहीं बेच सकेगा। इन राजमार्गों के आजू-बाजू ही देश की लगभग 50 प्रतिशत शराब बिकती है। इन बड़ी सड़कों पर यात्रा करनेवाले लोग जमकर शराब पीते हैं और उनमें से कई दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। खुद भी मरते हैं और दूसरों को भी मारते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन 1 अप्रेल से शुरु हो गया है। शराब-विक्रेताओं के साथ-साथ केंद्र सरकार ने भी अदालत से कुछ ढील देने की प्रार्थना की थी लेकिन अदालत ने कहा कि सरकार को पैसा प्यारा है लेकिन अदालत को लोगों की जान प्यारी हैं। अब प्रांतीय सरकारें इन राजमार्गों और प्रांतीय मार्गो का नाम बदलकर जिला-मार्ग करनेवाली हैं ताकि शराब की बिक्री को आंच न आए।
अदालत का यह फैसला काबिले-तारीफ है लेकिन क्या यह काफी है? राजमार्गों पर खुले होटल, रेस्तरां, मैखाने, गुमटियां कुछ दिनों के लिए परेशान जरुर होंगे लेकिन आम लोगों ने जैसे नोटबंदी की बधिया बिठा दी, वैसे ही वे इस शराबबंदी की भी हवा निकाल देंगे। अगले हफ्ते-दो हफ्ते में ही वे सड़क से 500 मीटर से दूर अपनी गुमटियां खोलकर बैठ जाएंगे। वहां शराब की मंडी-सी खुल जाएगी। 500 मीटर तक ट्रक या कार से जाने में कितने मिनिट लगेंगे? अदालत का कानून भी चलेगा और शराब भी चलेगी, धड़ल्ले से। इसके अलावा अब ट्रक और कार वाले शराब की दो-चार बोतलें नहीं, क्रेट के क्रेट खरीदकर अपने साथ रख लेंगे ताकि रास्ते में उन्हें तरसना न पड़े। यह वैसे ही होगा, जैसे कि लोगों ने अपना काला धन सफेद कर लिया। आज जरुरत इस बात की है कि देश में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। इस प्रतिबंध के बावजूद शराब रुकेगी नहीं, जैसे कि हत्याएं नहीं रुकतीं। इस्लाम में शराब की मनाही है लेकिन इस्लामी देशों के घरों में शराब के भंडार भरे होते हैं। इसीलिए कानून से भी ज्यादा संस्कार की जरुरत है। बचपन से ही यदि शराब या नशाबाजी के खिलाफ संस्कार दिए जाएं तो शराबबंदी के कानून का पालन सही ढंग से हो सकता है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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