‘ताजमहल’ वास्तु मुसलमानों की नहीं, अपितु वह मूलतः #हिंदुओं की है । वहां इससे पूर्व #भगवान #शिवजी का मंदिर था, यह इतिहास सूर्यप्रकाश के जितना ही स्पष्ट है । मुसलमानों ने इस वास्तु को ताजमहल बनाया । #ताजमहल इससे पूर्व #शिवालय होने का प्रमाण पुरातत्व विभाग के अधिकारी, अन्य पुरातत्वतज्ञ, इतिहास के अभ्यासक तथा देश-विदेश के तज्ञ बताते हैं ।
मुसलमान आक्रमणकारियों की दैनिकी में (डायरी) भी उन्होंने कहा है कि #ताजमहल #हिंदुओं की वास्तु है । तब भी मुसलमान इस वास्तु पर अपना अधिकार जताते हैं । #शिवालय के विषय में #सरकार के पास सैकडों प्रमाण धूल खाते पड़े हैं । #सरकार इस पर कुछ नहीं करेगी । इसलिए अब अपनी हथियाई गई वास्तु वापस प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति प्रयास करना ही #हिंदुओं का धर्म व कर्तव्य है । ऐसी वास्तुएं वापस प्राप्त करने हेतु एवं हिंदुओं की वास्तुओं की रक्षा के लिए ‘हिंदु राष्ट्र’ अनिवार्य है ।
मुसलमान आक्रमणकारियों ने #भारत के केवल गांव एवं नगरों के ही नामों में परिवर्तन नहीं किया, अपितु वहां की विशाल वास्तुओं को नियंत्रण में लेकर एवं उसमें मनचाहा परिवर्तन कर निःसंकोच मुसलमानों के नाम दिए । मूलतः मुसलमानों को इतनी विशाल एवं सुंदर वास्तु बनाने का ज्ञान ही नहीं था । परंतु हिंदुओं ने इस्लाम पंथ की स्थापना से पूर्व ही अजिंटा तथा वेरूल के साथ अनेक विशाल मंदिरों का निर्माण कार्य किया था । मुसलमान आक्रमणकारियों को केवल भारत की वास्तुकला के सुंदर नमूने उद्ध्वस्त करना इतना ही ज्ञात था । #गजनी द्वारा अनेक बार उद्ध्वस्त श्री #सोमनाथ मंदिर से लेकर अफगानिस्तान तक उद्ध्वस्त बामयान की विशाल बुद्धमूर्ति तक का इतिहास मुसलमान आक्रमणकारियों की विध्वंसक मानसिकता का प्रमाण है ।
अंग्रेज सरकार द्वारा भी निश्चित रूप से विध्वंस !!
मुसलमान आक्रमणकर्ताओें के पश्चात आए #अंग्रेज सरकार को भारतीय संस्कृति के विषय में तनिक भी प्रेम न रहने के कारण उन्होंने मुसलमान आक्रमणकर्ताओं का ही अनुकरण किया ।
आक्रमणकर्ताओं की दैनिकी में ताजमहल के विषय में सत्य !
आग्राकी ताजमहल वास्तु की भी कहानी इसी प्रकार की है । #डॉ. राधेश्याम ब्रह्मचारी ने ताजमहल का तथाकथित निर्माता शाहजहाँ के ही कार्यकाल में लिखे गए दस्तावेजों का संदर्भ लेकर ताजमहल का #इतिहास तपास कर देखा है । अकबर के समान शाहजहाँ ने भी बादशहानामा ऐतिहासिक अभिलेख में अपना चरित्र एवं कार्यकाल का इतिहास लिखकर रखा था । अब्दुल हमीद लाहोरी ने अरेबिक भाषा में बादशहानामा लिखा था, जो एशियाटिक सोसायटी ऑफ बेंगाल ग्रंथालय में आज भी उपलब्ध है । इस बादशहानामा के पृष्ठ क्रमांक 402 एवं 403 के भाग में ताजमहल वास्तु का इतिहास छिपा हुआ है । इस भाग का स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
‘शुक्रवार दिनांक 15 माह जमदिउलवलको शाहजहाँ की पत्नी मुमताजुल जामानिका पार्थिव बुरहानपुर से आग्रामें (उस समयका अकबराबाद) लाया गया । यहां के राजा मानसिंह के महल के रूप में पहचाने जाने वाले अट्टालिका में गाड़ा गया । यह अट्टालिका राजा मानसिंह के नाती राजा जयसिंह के मालिक की थी । उन्होंने यह अट्टालिका शाहजहाँ को देना स्वीकार किया । इसके स्थान पर राजा जयसिंह को शरीफाबाद की जागीर दी गई । महारानी का विश्व को दर्शन न होने हेतु इस भवन का रूपांतर दर्गा में किया गया ।
मुमताजुुल की मृत्यु !
#शाहजहाँ की पत्नी का मूल नाम था #अर्जुमंद बानू । वह 18 वर्षों तक शाहजहाँ की रानी थी । इस कालावधि में उसे 14 अपत्य हुए । बरहानपुर में अंतिम जजगी में उसकी मृत्यु हो गई । उसका शव वहीं पर अस्थायी रूप से गाड़ा गया ।
ताजमहल शिवालय होने का सरकारी प्रमाण !!
ताजमहल से 4 कि.मी. दूरी पर #आग्रा नगर में बटेश्वर नामक बस्ती थी । वर्ष 1900 में पुरातन सर्वेक्षण विभाग के संचालक जनरल कनिंघम द्वारा किए गए उत्खनन में वहां संस्कृत में 34 श्लोक में मुंज बटेश्वर आदेश नामक पोथा पाया गया, जो लक्ष्मणपुरी के संग्रहालय में संरक्षित है । इसमें श्लोक क्रमांक 25,26 एवं 36 महत्त्वपूर्ण हैं । इनका स्वच्छंद भाषांतर आगे दिया है ।
‘राजा ने एक संगमरवरी #मंदिर का निर्माण कार्य किया । यह #भगवान #विष्णु का है । राजा ने दूसरा #शिव भगवान का संगमरवरी #मंदिर का #निर्माण कार्य किया । ‘ #यह अभिलेख विक्रम संवत 1212 माह आश्विन शुद्ध पंचमी, शुक्रवार को लिखा गया । (वर्तमान समय में विक्रम संवत 2074 चालू है । अर्थात #शिवालय का निर्माण कार्य लगभग 854 वर्षों की कालावधि बीत गई है ।) (यह कालावधि लेख लिखने के समय का अर्थात वर्ष 1900 के संदर्भ के अनुसार है – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
#शिवालय के प्रमाण को पुरातत्व शास्त्रज्ञों का समर्थन !
1. प्रख्यात पुरातत्व #शास्त्रज्ञ डी.जे. काले ने भी उपरोक्त दस्तावेज को समर्थन दिया है । उनके संशोधन के अनुसार #राजा परमार्दीदेव ने 2 विशाल संगमरवरी मंदिरों का निर्माण कार्य किया, जिसमें एक श्रीविष्णु का तो दूसरा भगवान शिवजी का था । #कुछ समय पश्चात मुसलमान #आक्रमणकर्ताओं ने इन मंदिरों की पवित्रता भंग की । इस घटना से भयभीत होकर एक व्यक्ति ने दस्तावेज को भूमि में गांडकर रखा होगा। मंदिरों की पवित्रता भंग होने के कारण उनका धार्मिक उपयोग बंद हो गया । इसीलिए बादशहानामा के लेखक अब्दुल हमीद लाहोरी ने मंदिर के स्थान पर महल ऐसा उल्लेख किया होगा ।
२. प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदार के अनुसार #चंद्रात्रेय (चंदेल) राजा परमार्दिदेव का दूसरा नाम था परमल एवं उसके राज्य का नाम था #बुंदेलखंड । आज #आगरा में दो संगमरवरी प्रासाद हैं, जिसमें एक नूरजहां के पिता की समाधि (श्रीविष्णु मंदिर) है एवं दूसरा (शिवमंदिर) ताजमहल है ।
ताजमहल हिंदुओं का शिवालय होने के और भी स्पष्ट प्रमाण !
प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदारके मत का समर्थन करने वाले प्रमाण आगे दिए हैं ।
1. ताजमहल के प्रमुख #गुंबज के कलश पर #त्रिशूल है, जो शिवशस्त्र के रूप में प्रचलित है ।
2. मुख्य गुंबज के ऊपर की छत पर एक संकल लटक रही है । वर्तमान में इस संकल का कोई उपयोग नहीं होता; परंतु मुसलमानों के आक्रमण से पूर्व इस संकल को एक पात्र लगाया जाता था, जिसके माध्यम से #शिवलिंग पर अभिषेक होता था ।
3. अंदर ही 2 मंजिल का ताजमहल है । वास्तव समाधि एवं रिक्त समाधि नीचे की मंजिल पर है, जबकि 2 रिक्त कबरें प्रथम मंजिल पर हैं । 2 मंजिल वाले शिवालय उज्जैन एवं अन्य स्थान पर भी पाए जाते हैं ।
4. #मुसलमानों की किसी भी वास्तु में #परिक्रमा मार्ग नहीं रहता; परंतु #ताजमहल में परिक्रमा #मार्ग उपलब्ध है ।
5. फ्रांस देशीय प्रवासी तावेर्नियार ने लिखकर रखा है कि इस #मंदिर के परिसर में #बाजार भरता था । ऐसी प्रथा केवल हिंदु मंदिरों में ही पाई जाती है । मुसलमानों के प्रार्थनास्थलों में ऐसे बाजार नहीं भरते ।
ताजमहल शिवालय होने की बात आधुनिक #वैज्ञानिक प्रयोगद्वारा भी सिद्ध !!
वर्ष 1973 में न्यूयार्क के प्रैट संस्था के प्राध्यापक मर्विन मिल्स द्वारा ताजमहल के दक्षिण में स्थित लकड़ी के दरवाजे का एक टुकडा अमेरिका में ले जाया गया । उसे ब्रुकलिन #महाविद्यालय के #संचालक डॉ. विलियम्स को देकर उस टुकड़े की आयु कार्बन-14 प्रयोग पद्धति से सिद्ध करने को कहा गया । उस समय वह लकड़ा 610 वर्ष (अल्प-अधिक 39 वर्ष) आयु का निष्पन्न हुआ । इस प्रकार से #ताजमहल वास्तु #शाहजहाँ से #पूर्व कितने वर्षों से अस्तित्व में था यह सिद्ध होता है ।
शिवालय (अर्थात तेजोमहालय) 848 वर्ष पुराना !
यहां के मंदिर में स्थित शिवलिंग को ‘तेजोलिंग’ एवं मंदिर को तेजोमहालय कहा जाता था । यह #भगवान शिव का मंदिर #अग्रेश्वर नाम से प्रसिद्ध था । इससे ही इस नगर को आगरा नाम पड़ा । मुंज बटेश्वर आदेश के अनुसार यह मंदिर 848 वर्ष पुराना है । इसका 354 वां स्मृतिदिन मनाना अत्यंत हास्यजनक है ।
(संदर्भ : साप्ताहिक ऑर्गनायजर, 28.11.2004)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
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