उत्तर प्रदेश को पटरी से उतरा हुआ प्रदेश माना जाता था। उत्तर प्रदेश के निवासी यह आशा नहीं करते थे कि कोई सरकार ऐसी भी हो सकती है जिसके द्वारा उत्तर प्रदेश की शिथिल नौकरशाही के पेंच कस सके। उत्तर प्रदेश की पुलिस, गुंडों और माफियाओं पर बिना किसी राजनैतिक दवाब के कार्यवाही कर सके। प्राइवेट स्कूल की मनमानी रुक सकें। शिक्षा माफिया बाज़ार मूल्य पर किताबें देने लगे। मुस्लिमों के तुष्टीकरण के नाम पर बहुसंख्यकों का शोषण बंद हो सके। अफसर समय पर ऑफिस पहुचने लगे। पर उत्तर प्रदेश में ऐसा होने लगा है। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो नायक फिल्म के हीरो से भी तेज़ काम कर रहे हैं। बदलाव की ओर बढ़ चले उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की कार्यशैली पर अमित त्यागी प्रकाश डाल रहे हैं।
र्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने मोदी ने मंत्र दिया था कि ‘न खाऊँगा न खाने दूंगाÓ। 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने मंत्र जपा है कि ‘न सोऊंगा न सोने दूंगाÓ। बस इन्ही दोनों मंत्रों में भारत के भविष्य की रूपरेखा छुपी है। राष्ट्रवाद को कोसने वाले लोगों की नींदे उडी हुयी हैं। छदम सेकुलर ताक़तें दातों में उँगलियाँ दबाये बैठी हैं। उत्तर प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित महसूस कर रही हैं। यकायक उत्तर प्रदेश पुलिस जनता के करीब दिखने लगी है। खुले आम बिक रहा गोश्त भी नहीं दिख रहा है जिस पर मक्खियाँ भिनभिनाती रहती थीं। चौराहे पर देर रात खड़े रहने वाले शौहदे तो खैर मुख्यमंत्री के काम संभालते ही गायब हो गए थे। कॉर्पोरेट शैली में काम करने वाले मुख्यमंत्री ने एक आस जगा दी है। सिर्फ आस ही नहीं जगाई है बल्कि सोयी हुयी नौकरशाही को जगा दिया है। पिछली सरकार में जो अफसर कामचोर दिखते थे अचानक कर्मठ हो गए हैं। योगी जी ने सरकार बनने के बाद तबादलों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। उन्ही अफसरों के पेंच कस कर उन्हे छवि सुधारने का मौका दिया। रात के 2 बजे तक अब सचिवालय खुल रहे हैं। प्रेजेंटेशन हो रही हैं। जिस विभाग की प्रेजेंटेशन होती है सिर्फ उसी विभाग के संबन्धित मंत्री ही नहीं होते हैं बल्कि कैबिनट के अन्य मंत्री भी उपस्थित होते हैं। संदेश साफ है कि अपने क्षेत्र के दौरे के समय कोई मंत्री यह बहाना न बना पाये कि हमे दूसरे विभाग की जानकारी नहीं है।
मुख्यमंत्री की स्पीड बहुत तेज़ लगती है। जब मुख्यमंत्री से इस बारें में चर्चा की जाती है तो उनका कहना होता है कि सरकार की स्पीड ऐसी ही होनी चाहिए। सबसे बेहतरीन बात यह है कि मुख्यमंत्री को इतने त्वरित निर्णय लेने के बावजूद अपने किसी फैसले को अब तक रोल बैक नहीं करना पड़ा है। हमें 2012 का वह दौर नहीं भूलना चाहिए जब अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद नोएडा के शॉपिंग माल में रात्रिकालीन कटौती का फैसला लिया था जिसकी खूब किरकिरी हुयी थी। उनको फैसला वापस लेना पड़ा था। चुनाव के पहले डीपी यादव को पार्टी में न लेकर सुर्खियां बटोरने वाले अखिलेश यादव ने सत्ता में आते ही एक अन्य बाहुबली राजा भैया को कारागार मंत्री बना दिया था। उस समय ऐसे कई विवादित फैसले हुये थे जिसके आधार पर अखिलेश यादव एक प्रभावी शुरुआत में चूक गए थे। योगी जी के साथ ऐसा नहीं हो रहा है। उन्होने विवादों से स्वयं को दूर रखा है। वह 2019 तक सारे काम निपटाना चाहते हैं। उन क्षेत्रों पर ज़्यादा काम कर रहे हैं जो लोगों की मूलभूत जरूरतों से जुड़े हैं।
जैसे सूखे और पानी की कमी से जूझते बुंदेलखंड को दो साल में समस्या से निजात दिलाने की बात मुख्यमंत्री कहते हैं। उनका तर्क है कि अगर केंद्र सरकार की नीतियों को ठीक ढंग से बुंदेलखंड में लागू कर दिया गया तो दो साल में समस्या का नामोनिशान नहीं होगा। यह बात सुनने में अच्छी है। अब केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार है तो अब बहाना नहीं चलेगा। जनता चाहती है कि अब उसे उसके दुखों से मुक्ति मिले। योगी और मोदी की जोड़ी सरकारी नीतियों को जनता तक पहुचाना शुरू कर दें। योगी की बातों का कर्मचारियों पर फर्क दिखने लगा है। कर्मचारी समय से दफ्तर में दिख रहे हैं। कई स्थानों पर तो सुबह 10 बजे पहुँचकर मंत्रियों ने ताला लगा लिया। देर से आने वाले कर्मचारी कोई बहाना भी नहीं बता सके। सरकारी विभागों के बाबू जो गुटखा खा कर 11 बजे पहुँचते थे और खुद को बहुत बड़ा फन्ने खाँ समझते थे अब मुंह में इलायची खाते हुये 10 बजे दिखने लगे हैं। माथे पर टीका और वस्त्रों में भगवे रंग का पुट अब यूपी में आम हो गया है। सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी अब सहमति से भगवा धारण कर रहे हैं।
कॉमन सिविल कोड के पक्ष में हैं योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के तेवर नर्म नहीं हुये हैं। वह उन सभी मुद्दों पर खुल कर बात कर रहे हैं जिन्हे पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री विवादित कह कर बच कर निकल जाते थे। संविधान के अनु0-44 के अनुसार देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। माननीय उच्चतम न्यायालय ने 1995 में सरला मुद्गल वाद में केंद्र सरकार से इस बात का स्पष्टीकरण मांगा था कि इस संदर्भ में सरकार की प्रगति क्या है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव तब समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर चूक गए और मुस्लिम अपने अधिकारों से वंचित रह गए। वर्तमान प्रधानमंत्री लोकसभा में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का इस मुद्दे पर बड़ा बयान विषय को हल की तरफ ले जाता दिख रहा है। अब यह बात किसी से छुपी नहीं है कि मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाकर उनसे सिर्फ वोट लिए गये। उन्हे उतने अधिकार भी नहीं दिये गए जो भारतीय संविधान ने उन्हे प्रदान किए हैं। केंद्र और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद गुंडा तत्व नियंत्रित हो गया है । भारतीय मुसलमान स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगा है। स्वयं योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र के मुस्लिम लोग योगी की तारीफ करते हैं। वह योगी को कट्टर हिन्दू तो मानते हैं किन्तु मुस्लिम विरोधी नहीं। उनकी जो छवि दिखाई जाती है उससे इत्तिफाक़ गोरखपुर के मुस्लिम नहीं रखते हैं।
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का कोई फैसला ऐसा नहीं आया है जिसे मुस्लिम विरोधी कहा जाये। जो न्यायप्रिय न हो। उन्होने तीन तलाक की तुलना द्रोपदी के चीर हरण से करके मुस्लिम महिलाओं को संबल प्रदान कर दिया है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप रहने वालों को उन्होने अपराधी की संज्ञा देकर उसी कटघरे में खड़ा कर दिया है जैसा महाभारत काल में भीष्म पितामह और उनके अन्य साथियों ने गलती की थी। योगी आदित्यनाथ के द्वारा तीन तलाक पर दिया गया वक्तव्य एतेहासिक बन जाता है जब वह कहते हैं कि Óदेश के लोग जब एक ज्वलंत समस्या पर मुंह बंद किए हुये हैं तब मुझे महाभारत की सभा की याद आती है जब द्रोपदी का चीरहरण हो रहा थाऔर द्रोपदी ने तब भरी सभा में पूछा था कि इस घटना का जिम्मेदार कौन है? जब कोई नहीं बोल पाया था तब महात्मा विदुर ने उनके सवाल का जवाब देते हुये कहा था कि एक तिहाई दोषी अपराधी हैं। तिहाई दोषी उनके सहयोगी हैं और तिहाई दोषी मौन रहने वाले हैं। तीन तलाक देश की सबसे बड़ी समस्या है जिस पर देश का राजनैतिक क्षितिज मौन है।Ó
योगी आदित्यनाथ की स्पष्टता के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तलाक़ के सम्बन्ध में कोड ऑफ़ कंडक्ट जारी कर दिया। इसमे उन्होने तीन तलाक़ देने वालों का हुक्का-पानी बंद करने तक की बात कही है। बोर्ड का कहना है कि इस्लामी शरीअत ने मर्द और औरत दोनों को बराबर के अधिकार दिए हैं और यह अधिकार औरत को दिलाना हम सबकी जि़म्मेदारी है। अब ऐसा करके बोर्ड ने महिलाओं के पक्ष में बात कहकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। हाँ यह बात सही है कि मुस्लिम लॉ पर अमल करने का पूरा संवैधानिक अधिकार मुस्लिमों को हासिल है किन्तु यह भी एक सच है कि मुस्लिम धर्म गुरुओं की यह जि़म्मेदारी भी है कि वह पर्सनल लॉ की खुद हिफाज़त करे। उस पर राजनीति न करें।
एक और बड़ा काम मुख्यमंत्री ने मुस्लिम महिलाओं की शादी के समय मेहर की रकम के भुगतान का किया है। अल्पसंख्यक विभाग की समीक्षा बैठक लेते समय मुख्यमंत्री ने इस पर अमली जामा पहनाने के निर्देश दिये हैं। सरकार के इस फैसले में निराश्रित मुस्लिम महिलाएं शामिल की जाएँगी और उत्तर प्रदेश सरकार उनके लिये समूहिक शादियों का आयोजन करेगी। इस योजना के तहत सालाना लगभग 100 शादी कराने का लक्ष्य बनाया जा रहा है। यह सभी शादियाँ सदभावना मंडप में करायी जायेंगी। इन शादियों में मेहर की रकम को सरकार वहन करेगी। गरीब महिलाओं को दी गयी यह थोड़ी सी आर्थिक मदद उनके लिये एक बड़ी मदद बनने जा रही है। आम तौर मुस्लिम निकाह में मेहर की रकम तय तो कर दी जाती है किन्तु इसको तुरंत देने का प्रावधान चलन में नहीं है। मेहर के बारें में एक बात जानना बेहद आवश्यक है कि यह मुस्लिम धर्म में एक रस्म है जिसमे शादी से पहले लड़के वाले लड़की वालो को एक तय की गयी रकम देते हैं, जिसे मेहर कहा जाता है। यह मेहर इसलिए दिया जाता है ताकि लड़की वालो पर शादी का कोई बोझ न रहे और वह इसी रकम में अपनी बेटी की शादी कर सके।
शायद यही है मुख्यमंत्री के काम करने का स्टायल। वह गैर ज़रूरी बयान न देकर संतुलित और सटीक काम कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों के अधिकारों को देकर बार बार मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों की जड़ों में म_ा डाल रहे हैं। कभी शिवपाल यादव उनसे शिष्टाचार भेंट करने आते हैं तो कभी अर्पणा यादव। समाजवादी सरकार के बड़े और चर्चित चेहरे मन ही मन योगी से जुड़ चुके हैं। ये मुलाकातें इस बात का सबूत हैं कि राजनैतिक पंडित यह बात मान चुके हैं कि यह सरकार सिर्फ पाँच साल की सरकार नहीं है। यह सरकार पाँच साल यदि वर्तमान रफ्तार से चलती रही तो अगले 10-15 सालों तक इसमे बदलाव शायद ही हो।
छुटने लगी ज़ंग। महापुरुषों के नाम पर छुट्टियाँ बंद।
महापुरुषों का सम्मान होना चाहिए। महापुरुषों का जीवन अनुकरणीय होता है। उनके द्वारा किए गए त्याग और तपस्या को युवा पीढ़ी तक पहुचाना चाहिए ताकि हम भविष्य के महापुरुष तैयार कर सकें। किन्तु महापुरुष के नाम स्कूल की छुट्टियों का तर्क समझ से परे था। यह न तो महापुरुषों के सम्मान का प्रतीक कहा जा सकता था और न ही किसी दूरगामी दृष्टिकोण का प्रतीक। जैसे ही मुख्यमंत्री ने महापुरुषों के नाम पर छुट्टियों के बंद होने का ऐलान किया तो संबन्धित लोगों को छोडकर सबने इस निर्णय का स्वागत किया। एक राष्ट्र का निर्माण महापुरुषों के नाम की छुट्टियों से नहीं बल्कि उस महापुरुष की जीवन शैली को आत्मसात करने से होता है।
भारत में महापुरुषों की संख्या काफी ज़्यादा है। उत्तर प्रदेश में 36 से ज़्यादा सरकारी छुट्टियाँ महापुरुषों के नाम पर हैं। यदि पूरे भारत(केंद्र सरकार) की बात करें तो 21 सार्वजनिक छुट्टियाँ होती हैं। इसके उलट विदेशों में छुट्टियाँ बेहद कम हैं अमेरिका, पुर्तगाल, उक्रेन, न्यूज़ीलैंड एवं नीदरलैंड में 10 अवकाश होते हैं। पाकिस्तान, तुर्की एवं थाईलैंड में लगभग 16 अवकाश होते हैं। जापान, वियतनाम, फिऩलैंड एवं स्वीडन में 15 दिन के अवकाश हैं। स्पेन में 14 और ब्रिटेन में लगभग 8-9 छुट्टियाँ होती हैं। यह आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश में महापुरुषों के नाम पर छुट्टियों की इतनी ज़्यादा संख्या बढ़ा दी गयी कि सरकारी व्यवस्था तंत्र ही चरमराने लगा। कार्य संस्कृति का अभाव हमेशा राष्ट्र निर्माण में बाधक होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य स्वभाव काम न करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति रखता है। वह आराम पसंद होता है। मनुष्य की इसी प्रवृत्ति को भुनाने के लिए क्षेत्रीय दलों की सरकारों ने महापुरुषों की आड़ में छुट्टी संस्कृति का निर्माण कर दिया। कार्य संस्कृति को बढ़ावा नहीं दिया। जिन महापुरुषों के नाम पर यह अवकाश हुये थे वह स्वयं कर्मयोगी थे। उन्होने अपना जीवन अवकाशों में नहीं गंवाया बल्कि अपनी मेहनत और कर्मक्षेत्र के जरिये एक बड़े आकाश को पाया।
अब नयी योगी परिपाटी में अवकाश के स्थान पर स्कूल खुला करेंगे। छात्र इन महापुरुषों के बारें में ज्ञान प्राप्त किया करेंगे। इनकी जीवन शैली और इनके कार्यों पर वाद विवाद हुआ करेंगे। शायद इससे बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती किसी भी महापुरुष के लिए। हाँ, इसके साथ एक काम और सरकार द्वारा किया जा सकता है कि होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस जैसे त्योहारों पर एक साथ ज़्यादा छुट्टियाँ की जा सकती हैं। अपने घर से दूर रहने वाले और नौकरी पेशा लोग इन त्योहारों के माध्यम से अपने घर जाते हैं। इनमे छुट्टियाँ कम होने से उनके अपने नाते रिश्तेदारों से मिलने का समय कम हो जाता है। इन पर अवकाश की संख्या बढ्ने से भारत की पुरातन मेलजोल संस्कृति का विकास होगा जो वर्तमान दौर में सिर्फ फ़ेसबुक और व्हाट्सअप तक सिमट कर रह गया है।
सपा-बसपा गठबंधन : फैसलों से घबराये धुर विरोधी मिला रहे हाथ ?
मायावती का दलित वोट बैंक अब तक सबसे पुख्ता वोटबैंक माना जाता रहा है। अब यही वोट बैंक सिकुड़ रहा है। मायावती अपने जीवन काल के सबसे खराब दौर से गुजऱ रही हैं। 2014 में सबसे पहले मायावती के गैर जाटव वोट बैंक ने मायावती को छोड़ दिया था। अब 2017 आते आते है एक आंकड़े के अनुसार लगभग 15 प्रतिशत जाटव वोट भी भाजपा के खाते में चले गए हैं। मायावती हताश हैं लाचार हैं। इसकी वजह आंकड़े भी बता रहे हैं। लोकसभा चुनाव में बसपा को 19.6 प्रतिशत वोट मिला किन्तु उनका एक भी सांसद नहीं बना। 2017 में बसपा को 22.2 प्रतिशत वोट मिला है तो भी उनके सिर्फ 22 विधायक ही जीते हैं। इन सबसे ज़्यादा एक आंकड़ा तो और भी चौकाने वाला है। उत्तर प्रदेश में 85 विधानसभा सीटें सुरक्षित सीट थीं जिसमे से सिर्फ दो पर बसपा के प्रत्याशी जीत पाये।
राजनीति के इस खेल के दूसरे दावेदार सपा की स्थिति मायावती से बेहतर है। उनका यादव एवं मुस्लिम वोटबैंक अभी भी उनके ही साथ जुड़ा है। हालांकि, यादव सपा से छिटक कर भाजपा की तरफ भी गया है किन्तु विकल्प न होने के कारण सपा से लगातार जुड़ाव दिखा रहा है। तीन तलाक के विषय पर कुछ मुस्लिम महिलाएं भाजपा से जुड़ी किन्तु उनका प्रतिशत बहुत ज़्यादा नहीं कहा जा सकता है। सपा के द्वारा 54 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किए गए थे जिसमे से 19 विजयी रहे वहीं दूसरी तरफ बसपा ने 97 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े किए थे जिसमे से सिर्फ पाँच ही सफल रहे। इस आंकड़े के आधार पर सपा अभी भी बसपा से बेहतर दिख रही है। यदि आंकड़े पर ही बात करें तो 29 प्रतिशत वोट पाने वाले दल की सरकार बन जाती है। भाजपा ने लगभग 40 प्रतिशत वोट प्राप्त किए। 2012 में भाजपा ने 15 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। वोटों में 25 प्रतिशत के इस इजाफे ने धुर विरोधियों (सपा एवं बसपा) को साथ आने पर मजबूर कर दिया है। अब जिस तरह से योगी तड़ातड़ फैसले ले रहे हैं और जनता उनको पसंद कर रही है तब 2019 आते आते भाजपा का वोट 40 प्रतिशत से बढ़ भी सकता है। अखिलेश यादव की निगाह भाजपा को नहीं मिले 60 प्रतिशत वोटों को एक मंच पर लाने की है। मायावती इस बात को जानती हैं कि अगर उन्हे राजनैतिक रूप से जि़ंदा रहना है तो उन्हे गठबंधन के साथ आना ही होगा। अखिलेश यादव ने इस गठजोड़ की जरूरत को चुनाव पूर्व ही भाँप लिया था और कांग्रेस से हाथ मिला लिया था। हालांकि, जमीनी सच्चाई यह है कि भाजपा को मिली विराट जीत में इस गठबंधन का भी योगदान था। बहुत से ऐसी सीटें थी जहां अगर बिना गठबंधन के लड़ा जाता तो मतदाता भाजपा के पक्ष में गोलबंद नहीं होता। पर गठबंधन के पैरोकार कहाँ समझने वाले हैं। वह फिर गठबंधन करने जा रहे हैं। कांग्रेस, बसपा और सपा 2019 के लिए एक मंच पर आना चाह रहे हैं। सपा और बसपा को 1993 में मुलायम और काशीराम का वह गठबंधन याद आ रहा है जब इन दोनों ने हाथ मिलाकर भाजपा को चुनौती दी थी। गेस्ट हाउस कांड को भुलाने के पक्ष में अब मायावती भी दिखने लगी है।
अगर योगी आदित्यनाथ के स्थान पर अन्य कोई और मुख्यमंत्री होता तो उस पर आरोप लगने की संभावनाएं होती। किन्तु योगी तो एक त्यागी पुरुष हैं। मोह माया से दूर हैं ऐसे में भाजपा के विरोधी दल भी जानते हैं कि योगी का कोई बहुत बड़ा विरोध होने नहीं जा रहा है। जिस तरह से ईमानदार अफसर चुन चुन कर प्रमुख पदों पर बैठाये जा रहे हैं उसके हिसाब से भ्रष्टाचार की संभावनाएं भी नगण्य हैं। ऐसे में सब विरोधी दल 2019 के लिए आपस में हाथ मिलाये न तो क्या करें ?
गठबंधन की सुगबुगाहट से सक्रिय हुयी भाजपा।
जैसे ही भाजपा के नेताओं को इस बात की सुगबुगाहट हुयी कि विपक्षी दल गठबंधन करने जा रहे हैं उसके नेता सक्रिय हो गए। 40 प्रतिशत वोट पाने वाली भाजपा ने अब अपना लक्ष्य 50 प्रतिशत वोट का कर लिया है। यदि भाजपा के अतिरिक्त अन्य तीन दलों के वोटों को जोड़ लिया जाये तो यह लगभग 50 प्रतिशत होता है। यह भाजपा को मिले वोटों से 10 प्रतिशत ज़्यादा है। भाजपा अब पिछड़ा और अति पिछड़े वर्ग के उन वोटों पर काम कर रही है जो 2014 और 2017 में उसको नहीं मिल पाये थे। उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं को ताकीद कर दी है कि किसने वोट दिया और किसने नहीं दिया। इसको सोचने के स्थान पर सबके लिए कार्य करें। मोदी का इशारा साफ है कि जितना मिला है वह पर्याप्त नहीं है। अभी और पाना है। भाजपा अब अगड़े, पिछड़े को पूरी तरह एक करके विपक्ष को ध्वस्त करने पर लगी है। भाजपा पर मुस्लिम विरोधी और हिन्दुओं की पार्टी होने के आरोप लगने पर पहले भाजपा बैकफुट पर आ जाती थी। इन चुनावों ने हिन्दुओ की पार्टी होने की बात को खुल कर भुनाया। वह यह संदेश देने में कामयाब रहे कि हिन्दुओ के सरोकार कोई समझता है तो वह सिर्फ भाजपा है। भाजपा के संकल्प पत्र में अवैध बूचडख़ानों पर रोक, राम मंदिर की प्रतिबद्धता और तीन तलाक जैसे विषयों ने भाजपा को मजबूत करके उभार दिया। रही सही कसर योगी आदित्यनाथ जैसे फायर ब्रांड नेता की प्रचार शैली ने कर दी। अब वहीं योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनके फैसले जनता पसंद कर रही है। अब अगर विपक्षी दल गठबंधन करके उनके विरोध में एकजुट होते हैं तो बहुत कुछ संभव है कि उनका यह दांव इस बार भी उल्टा पड़ जाये और चुनावी लड़ाई 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत होकर रह जाये।
योगी के फैसलों में दिख रही सुशासन की बहार :
योगी आदित्यनाथ विपक्षियों को संभलने का मौका भी नहीं देते दिख रहे हैं। विपक्षी दल भले ही एकजुट होने की कवायद में लगे दिख रहे हों। पर योगी जिस तरह से काम कर रहे हैं वह तो उनको वोट न देने वालों के भी चहेते बनते जा रहे हैं। योगी ने पिछली सरकार के चहेते अफसरों से भी काम लेकर यह साबित कर दिया है काम करने की आदत होना अच्छी बात है। जरूरत पडऩे पर ज्यादा काम करना पड़े तो उसके लिए भी तैयार रहना चाहिए। योगी जी ने जो ऊंचे मापदंड स्थापित किए हैं उसके अनुसार जब आप किसी ऊंचे पद पर होते हैं तो फिर जिम्मेदारियां तो बढ़ ही जाती हैं। मुख्यमंत्री की यह कर्मयोगी वाली आदत काफी अफसरों और मंत्रियों को परेशान कर रही है। मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों को यहां तक कह दिया है कि 24 घंटे में 16 से 18 घंटे तक काम करना पड़ेगा। इसके लिए सभी तैयार रहिए। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो रास्ते सबके लिए खुले हैं। कुछ मंत्री और अफसर तो इस बात को लेकर ही परेशान दिखने लगे हैं कि वह उनके बराबर काम कैसे करेंगे। मुख्यमंत्री ने जब नवरात्रों में व्रत रखे थे तब भी वह उतने ही चुस्त और फुर्तीले दिखाई दिये। यह ऐसी छोटी छोटी बातें हैं जो जनता के बीच में पहुचने पर उनको वोट न देने वाला भी उनसे जुडने लगा है। जब कोई मुख्यमंत्री इतना ज़्यादा लोकप्रिय हो जाये तो विपक्षी दलों का गठबंधन भी क्या कर लेगा। मुख्यमंत्री के द्वारा अपने मंत्रियों को एक और स्पष्ट आदेश है कि अगले छह महीने में कौन मंत्री क्या करेगा इसकी पूरी जानकारी उनको मिल जानी चाहिए। कोई भी मंत्री काम के दिनों में छुट्टी नहीं लेगा और न ही लखनऊ से बाहर जाएगा। बहरहाल कुछ भी कहा जाये, यूपी में जितना मज़ा चुनाव के पूर्व बाप बेटे के झगड़े में आया था उससे ज़्यादा मज़ा अब मुख्यमंत्री की कार्य शैली में आ रहा है। रोज़ कोई न कोई ऐसा फैसला होता है जिससे जनता का विश्वास अपने मुख्यमंत्री पर बढ़ता चला जा रहा है।
राष्ट्रवाद की सुगबुगाहट नहीं अब खुल्लम खुल्ला ऐलान :
अब तक राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नाम पर भाजपा को कोसने वालों के मुंह पर योगी आदित्यनाथ ने तब करारा तमाचा मारा जब उन्होने घोषणा की कि प्रदेश के स्कूलों के पाठ्यक्रम में Óराष्ट्रवादÓ, Óदेशभक्तिÓ और Óसंस्कृतिÓ शामिल किए जाएंगे। नये शैक्षणिक सत्र से यूपी की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लोगों को दिखने लगेगा। यह एक बड़ा और सकारात्मक कदम है। अभी तक पाठ्यक्रम में तोड़ा और मरोड़ा गया इतिहास ही पढ़ाया जा रहा है। बच्चे जिन महापुरुषों को पढ़ते हैं उन्हे ही अपना रोल मॉडेल मान लेते हैं। संस्कृति का पाठ्यक्रम में होना भारत की विरासत को मजबूत करेगा और उत्तर प्रदेश में पर्यटन की असीम संभावनाओं को भी मजबूत करेगा।
उत्तर प्रदेश में जमीनी बदलाव तो दिखने लगा है। अभी तक के काम काज के आधार पाए सरकार की नियत भी साफ दिख रही है। नीतियों में जहां जहां अपेक्षित है सिर्फ वहीं पर बदलाव किया गया है। जिस तरह से योगी काम कर रहे हैं उसके अनुसार वह पूरे उत्तर भारत के नेता बन कर उभर रहे हैं। वह 2024 में प्रधानमंत्री के प्रबल दावेदार दिखने लगे हैं। पर उसके पहले 2019 भी है। वहाँ भी उनकी भूमिका अहम होनी है। जैसा मेरा अनुमान है 2019 के चुनावों में योगी आदित्यनाथ उत्तर भारत के राज्यों में प्रचार की कमान संभालेंगे और मोदी का यहाँ से बचा हुआ समय अन्य स्थानों पर प्रयोग हो जायेगा। मोदी दक्षिण और पूर्वोत्तर में मजबूत होती भाजपा के जरिये अपनी सीटें बढ़ाने का जिम्मा संभालेंगे। केंद्र में मोदी और प्रदेश में योगी ने एक करंट तो पैदा कर ही दी है। सुशासन दिखने लगा है। राम राज आने में तो समय लगेगा किन्तु झलक मिलने लगी है। उत्तर प्रदेश की जनता को अब इंतज़ार है कि अब कब रामलला भव्य मंदिर के अंदर विराजमान होंगे ? रामराज की स्थापना के लिए राम मंदिर भी तो एक अहम शर्त है। न्यायालय द्वारा बातचीत का प्रावधान और इस विषय पर सक्रियता देखते हुये जल्दी ही इस ओर से भी कोई शुभ सूचना आने वाली है। ठ्ठ
उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को किया उच्चतम न्यायालय ने तलब
पुलिस रेफ़ोर्म की बात बहुत समय से चल रही है। जब राज्य सरकारें इस पर जागरूक नहीं हुयी तब माननीय उच्चतम न्यायालय ने स्वयं उत्तर प्रदेश सहित छह राज्यों के गृह सचिव को न्यायालय में तलब कर लिया है। उच्चतम न्यायालय ने लंबे समय से खाली पड़े इन पदों को भरने में राज्य सरकारों द्वारा की जा रही देरी को गंभीरता से लिया है और एक एक समय सीमा के अंदर एक निश्चित रोड मैप बनाने को कहा है। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त जिन अन्य प्रदेशों के अधिकारी तलब किए गए हैं उसमे बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इन राज्यों में पुलिस कर्मियों के बड़ी संख्या में खाली पड़े पदों की रिपोर्ट देखते हुये कहा यह मामला 2013 से लगातार सुना जा रहा है और न्यायालय लगातार रिक्तियों को भरने की बात कह रहा है। राज्य इन पर कुछ नहीं कर रहे हैं। केवल उत्तर प्रदेश में ही पुलिस में डेढ़ लाख पद खाली हैं। गौरतलब है कि इस याचिका में पुलिस कर्मियों के देश में 5 लाख 42 हज़ार पदों को खाली होने का दावा किया गया है।
ईमानदार सुलखान सिंह भदौरिया को योगी आदित्यनाथ ने बनाया यूपी का डीजीपी
सुलखान सिंह भदौरिया उन चुनिदा अफसरों में से हैं जो किसी राजनेता के पैर नही छूते हैं। न कभी झुकते है। 36 साल की नौकरी में सिर्फ 3 कमरों का घर बना पाने वाले सुलखान सिंह ने पहले आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग फिर एफ़आईआई की डिग्री हांसिल की। भारतीय पुलिस सेवा में 1980 में चुने गए। वर्ष 2001 में वो लखनऊ के डीआईजी बनाये गये। इस दौरान उन्होंने कई भ्रष्ट पुलिस अफसर का तवादला किया और वे सुर्खियों में रहे। आज जब एक छोटा सा सरकारी कर्मचारी अरबों की दौलत बना लेता है वही उ प्र में ये इतने बड़े अधिकारी होने के बाद भी 3 कमरों के घर बनाने के लिए बैंक से लोन ले रखा है। गृह जनपद बांदा में महज 2.5 एकड़ जमीन है। कल्याण सिंह के जमाने में अगर पुलिस का इकबाल बुलंद हुआ तो तो उस वक्त डीजीपी की कुर्सी प्रकाश सिंह जैसे तेजतर्रार और ईमानदार अफसर के हाथ में थी। जो जिलों और थानों की नीलामी नहीं लगाते थे। आज सुलखान सिंह के हाथ में यूपी पुलिस की कमान है। उम्मीद है कि अब थाने नहीं बिकेंगे जैसा कि सपा सरकार में खबरें आती थीं। जब दारोगाओं को योग्यता नहीं बल्कि माल कमाकर देने की योग्यता से थाने मिलते थे।
सुलखान सिंह की ईमानदारी ही अब तक उनकी करियर की राह में रोड़ा बनी रही थी। अगर 2007 के बसपा राज में सुलखान सिंह मुलायम के समय यूपी पुलिस भर्ती घोटाले की पोल न खोलते तो अब तक कब के डीजीपी बन चुके होते। भला सोचिए, यूपी के आइपीएस अफसरों की सीनियारिटी लिस्ट में नंबर 1 पर नाम है। मगर अखिलेश यादव के राज में उनसे आठ सीढ़ी नीचे बैठे जावीद अहमद को डीजीपी की कुर्सी मिल गई। जावीद अहमद भी काबिल अफसर माने जाते रहे हैं मगर ऊपर के सात अफसरों को नजरअंदाज कर डीजीपी पद पर बैठाना सरकार की विशेष रुचि की तरफ इशारा करता है। जब 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो भर्ती घोटाले की जांच करने की कीमत चुकानी पड़ी। आम तौर पर उन्नाव के जिस पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में डीआइजी स्तर के अफसर की तैनाती होती थी, वहां सुलखान सिंह को तब भेजा गया, जब वह एडीजी रैंक के अफसर थे। जिस पद को अफसर अपने लिए सजा मानते थे उस पद पर रहकर आपने ( सुलखान सिंह ने) ट्रेनिंग के तौर-तरीकों को सुधारने में खास भूमिका निभाई।
उत्तर प्रदेश सरकार के
कुछ महत्वपूर्ण एवं त्वरित निर्णय
1. किसानों का 1 लाख रुपए तक का कर्जा माफ
2. शोहदों पर लगाम लगाने के लिए एंटी रोमियो स्क्वॉड
3. सभी जिला मुख्यालयों पर 24 घंटे बिजली देने के लिए केंद्र सरकार से करार
4. अवैध बूचडख़ानों पर कठोर कार्रवाई
5. 15 जून तक प्रदेश की सभी सड़कों को गड्ढामुक्त बनाने का लक्ष्य
6. मंत्रियों और अफसरों को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का निर्देश
7. दफ्तरों में कर्मचारियों की हाजिरी के लिए बायोमीट्रिक सिस्टम लगेंगे
8. सरकारी कार्यालयों में स्वच्छता रखने के लिए पान-गुटखे पर पाबंदी
9. दिसंबर तक 30 जिलों को शौचमुक्त करने का लक्ष्य
10. गन्ना मिलों को किसानों का पूरा बकाया चुकाने का आदेश
11. किसानों से पूरा गेंहू खरीदने के लिए प्रदेश भर में सरकारी खरीद केंद्र
12. मेरठ, इलाहाबाद, आगरा, गोरखपुर और झांसी में मेट्रो का ऐलान
13. सबको सस्ती दवाएं देने के लिए 3000 मेडिकल स्टोर खोले जाएंगे
14. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा में छात्र-छात्राओं को दो अतिरिक्त मौके
15. मायावती सरकार के दौरान बेची गयी 21 चीनी मिलों की जांच
16. लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट परियोजना और वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार के आरोपों की तफ्तीश
17. अखिलेश सरकार की समाजवादी नाम वाली योजनाओं से समाजवादी शब्द हटाया
18. गंभीर मरीजों के लिए हाईटेक एएलएल एंबुलेंस सेवा की शुरुआत
19. कैलाश मानसरोवर यात्रियों को सरकार की ओर से 1 लाख की सब्सिडी
20. गरीब मुस्लिम बेटियों की शादी में सरकार करेगी सहायता