चार ही वर्ष बीते हैं जिसके पूर्व भारत की जनता अरविंद केजरीवाल को योग्य प्रधानमंत्री के रुप में देखने लगी थी। अन्ना हजारे सहित अनेक लोगों ने उन पर विश्वास किया। अन्ना जी को धोखा देने के बाद भी दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को ऐतिहासिक समर्थन दिया। एक डेढ वर्ष बीतते बीतते ऐसा लगने लगा कि अरविंद केजरीवाल का भविष्य पागल खाने की तरफ बढ रहा है और अब एक डेढ वर्ष और बीता है तो पागल खाने की जगह जेलखाने की चर्चाएॅ शुरु हो गई हैं।
मैंने राजनीति में दो प्रकार के लोगों को देखा हैं-1 वे जो गलत काम भी ऐसे कानून सम्मत तरीके से करते है कि वे हर प्रकार के आरोपों से मुक्त रहते हैं। 2 वे जो सही काम गैर कानूनी तरीके से करते हैं। ऐसे लोगों को समाज में सम्मान मिलता है भले ही वह काम गैर कानूनी ही क्यों न हो। केजरीवाल ने एक तीसरी लाइन पकडी जिसमें उन्होनें गलत कार्य गैर कानूनी तरीके से करना शुरु किया। शुंगलू कमेटी सहित अन्य अनेक कार्य उनकी इस कसौटी से अलग भी रखें तब भी इनका राम जेठ मलानी को गुप्त रुप से चार करोड रुपया देने का प्रयास ऐसे संदेह के लिये पर्याप्त है कि उन्होने गलत कार्य गलत तरीके से किया।
अरविन्द केजरीवाल का काम करने का तरीका साम्यवादियों से मिलता जुलता है। साम्यवादी व्यक्तिगत जीवन में लगभग ईमानदार होते हैं किन्तु राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किसी भी सीमा तक गलत कर सकते हैं जिसमें हत्या या बलात्कार भी शामिल हो सकता है। पार्टी के लिये भ्रष्टाचार को तो ये लोग आम तौर पर सही मानते हैं। अरविन्द जी ने जिस तरह राम जेठ मलानी के नाम से इतनी बडी रकम निकालने की कोशिश की उसमें से जेठ मलानी जी को क्या देना था और पार्टी फंड कितना था यह अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है किन्तु राशि की बढाई गई मात्रा और गुप्तता से संदेह तो होता है । धीरे धीरे अरविन्द जी का राजनैतिक भविष्य साफ होता जा रहा है जिसके अनुसार वे प्रधानमंत्री की दौड से तो पूरी तरह बाहर हो गये हैं और यदि वे मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा कर सके तो स्पष्ट नहीं कि वे किस खाने की ओर जायेंगे।