अप्रेल 15, 2017 आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की घोषणा में कोई नया पन न होकर, नई बोतल में पुरानी शराब की तरह, केवल पुरानी बातों को ही दोहराया गया है। उसने तीन तलाक को नाजायज ठहराने की बजाए, केवल बे-बजह तलाक लिया जाता है, तो, समाज उसका बहिस्कार करेगा, यह कहा है। वह बे-बजह है कि नहीं, यह तय करने का अधिकार भी फिर उन्हीं मुल्ला-मौलवियों का ही होगा। विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डा सुरेन्द्र जैन ने आज कहा कि मध्य युगीन परंपराओं में जीने वाले ये वही लोग हैं जो आज भी उस युग की बर्बर परंपराओं को ही अपना धर्म तथा महिलाओं को भोग की वस्तु समझते हैं। अपनी आधी आवादी को ये सामान्य मानव अधिकार भी देने को तैयार नहीं हैं। तलाक देने का अधिकार महिलाओं को भी उतना ही मिले जितना पुरुषों को है, किन्तु, ये उसके लिए तैयार ही नहीं हैं। ऊपर से, हलाला जैसी बर्बर अमानवीय परंपरा को भी उचित ठहराकर इन लोगों ने महिलाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करा दिया है। इसलिए, मुस्लिम महिलाओं को मानवाधिकार दिलाने हेतु अब केंद्र सरकार को ही अपने संकल्प पर द्रढ़ रहते हुए इस बाबत आवश्यक कानून अविलंब बनाने चाहिए।
बोर्ड के राम मन्दिर संबंधी बयान पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डा जैन ने कहा कि इस मामले में भी बोर्ड ने अपनी हठ-धर्मिता को ही दोहराया है। वे राम जन्म भूमि के मामले में तो न्यायालय का निर्णय चाहते हैं किन्तु, तीन तलाक में न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं। उनकी इस दोहरी मानसिकता से ही स्पष्ट हो जाता है कि वे न्यायपालिका का कितना सक्वमान करते हैं। इसलिए उनके बहकावे में आने की बजाए केंद्र सरकार को आगे बढ़कर तीन तलाक, हलाला व बहु विवाह जैसी बर्बर परक्वपराओं को समाप्त करने हेतु अतिशीघ्र कानून लाना चाहिए। मुस्लिम महिलाओं तथा जागृत मुस्लिम समाज की मांग के साथ मानवता का भी यही तकाजा है।
विहिप प्रवक्ता श्री विनोद बंसल द्वारा जारी इस बयान में डा जैन ने यह भी कहा कि मुस्लिम पर्र्सनल लॉ बोर्ड अब दिवालिया हो चुका है, जिसका मुस्लिम समाज में न कोई जनाधार है और न ही यह सम्पूर्ण मुस्लिम समाज की भावनाओं का प्रतिनिधित्व भी करता है। वल्कि, यह केवल उनमें कट्टरता को बढ़ाकर अपनी उपयोगिता सिद्ध करना चाहता है। अत: इसकी पूर्ण रूपेण उपेक्षा कर देनी चाहिए. तभी, मुस्लिम समाज से सक्वबंधित सभी समस्याओं का समाधान हो पाएगा।