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एमसीडी चुनाव और अरविन्द केजरीवाल की साख

एमसीडी चुनावों में भी अंतत: भगवा ही लहराया। कॉंग्रेस ने दिल्ली में वापसी की है और आम आदमी पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है। भारतीय जनता पार्टी की जीत से कहीं अधिक यह वैकल्पिक राजनीति लाने वाली आम आदमी पार्टी की हार है। ये चुनाव नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल की साख का सवाल थे और नई दिल्ली के विधान सभा चुनावों के बाद भाजपा के लिए एक इम्तहान के रूप में थे। इन चुनावों से ठीक पहले राजौरी गार्डन विधानसभा चुनावों में हालांकि इन परिणामों की झलक मिल चुकी थी,मगर फिर भी आम आदमी पार्टी को निगम में भाजपा के नकारेपन पर पूरा भरोसा था, उसे पूरा यकीन था कि एमसीडी में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण भाजपा को वोट नहीं मिलेंगे और उसके लिए मैदान साफ है। मगर आज के ये परिणाम कहीं न कहीं उस अवधारणा को भी तोड़ते हैं। यह सच है कि यदि काम के आधार पर वोट मिलते तो भाजपा आज हार रही होती क्योंकि भाजपा ने विगत दस वर्षों में कोई ख़ास ऐसा कार्य नहीं किया था जिसके कारण भाजपा को निगम में तीसरी बार मौका दिया जाताा। परन्तु ये चुनाव परिणाम है अरविन्द केजरीवाल के प्रति गुस्से के, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से दिल्ली का चुनाव जीतते ही हिटलरशाही का परिचय देना आरम्भ किया और जिस तरह से हर नियम और कायदे तोड़ते हुए केवल अपने ही अपने लोगों को मलाईदार पदों पर बैठाया, और अपने नेताओं के हर गलत कार्यों को प्रश्रय देते हुए नैतिक समर्थन किया, उससे जनता में बहुत गुस्सा था। भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर आया कोई दल यदि भ्रष्टाचार में पुराने दलों से भी आगे चला जाए तो उसके प्रति जनता का गुस्सा आना स्वाभाविक है। और यही गुस्सा एमसीडी के चुनावों के नतीजों में परिलक्षित हुआ है। तमाम तरह की जनाकांक्षाओं पर सवार होकर आई पार्टी ने जिस तरह से हर प्रकार की धूर्तता का परिचय दिया, उससे समाज का हर वर्ग आहत हुआ और उसके भरोसे को चोट पहुँची। धीरे धीरे कर आम आदमी पार्टी से उसके नेता निकलते रहे और अपनी क्षमताओं का उपयोग दूसरे दलों में करते रहे। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, एडमिरल रामदास, जस्टिस संतोष हेगड़े, शाजिया इल्मी, मधु भादुड़ी औऱ सबसे ऊपर अन्ना हजारे – अरविंद ने अपने अहंकार और आत्म-मुग्धता में सबको ठोकर मार दी। और आज के नतीजों के बाद अरविन्द केजरीवाल पर सवाल उठ रहे हैं, भगवंत मान ने सवाल उठा दिए हैं। अब जबाव अरविन्द केजरीवाल को देना है। अरविन्द केजरीवाल के इस हश्र के कारण और अरविन्द केजरीवाल के व्यवहार ने आने वाले समय में वैकल्पिक राजनीति के अवसरों को धूमिल कर दिया है। हर संभावना को हाल फिलहाल के लिए रोक दिया है। भाजपा का इन चुनावोंं मंं नए चेहरों के संग उतरने का दांव सही साबित हुआ।
रघुनाथ गुप्ता

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