पंकज के. सिंह
भारत संपूर्ण विश्व में सबसे अधिक आतंकवाद से पीडि़त और प्रभावित देश रहा है। यह आश्चर्यजनक है कि इसके बाद भी भारत का दृष्टिकोण अत्यंत उदार और लापरवाही भरा रहा है। पाकिस्तान और चीन द्वारा निरंतर भारत के विरुद्ध छद्म युद्ध तथा अवैध घुसपैठ जारी रखी है, तथापि भारत आम तौर पर शांति वार्ताओं की मेज पर बैठने की कोशिश करता ही दिखता रहता है। भारत 1960 के उस अप्रासंगिक हो चुके ‘सिंधु जल समझौतेÓ पर भी अमल कर रहा है, जिसे विश्व में अब तक कहीं भी हुए ‘सर्वाधिक उदारÓ जल बंटवारे समझौते के रूप में देखा जाता है। इसके तहत 6 नदियों के जल का 80 प्रतिशत भाग पाकिस्तान को मिलता है। यह समझौता शुद्ध रूप से भारत के राष्ट्रीय हितों के सर्वथा विरूद्ध है। पाकिस्तान भारत में आतंकवाद और अवैध घुसपैठ को निरंतर प्रोत्साहित कर रहा है।
पाकिस्तान के इस घोर आपत्तिजनक आचरण के बाद भी भारत द्वारा उससे बातचीत करने अथवा ‘सर्वाधिक प्राथमिकता वाला देशÓ घोषित करने जैसे उदारतापूर्ण कार्य करने की कहीं कोई आवश्यकता नहीं है। वस्तुत: हमें पाकिस्तान को उदारता दिखाकर उसे किसी भी रूप में पुरस्कृत नहीं करना चाहिए। वैसे भी भारत के लिए समस्या व दुविधा यह रहती है कि पाकिस्तान में किससे बातचीत की जानी चाहिए? भारत को ‘पाकिस्तानी आतंकवादÓ की तरफ विश्व का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए निरंतर रणनीतिक प्रयास करते रहने चाहिए। भारत के लिए सबसे अच्छी रणनीति यही होगी कि वह पाकिस्तान को तब तक हाशिए पर रखे, जब तक यह देश एक अच्छे पड़ोसी के रूप में सामान्य व्यवहार करना न सीख ले। यद्यपि इसकी संभावना क्षीण ही है।
यह सर्वथा उचित ही है कि कई दशकों से चली आ रही भारत सरकार की पाकिस्तान के प्रति उदार नीति को मोदी सरकार ने त्याग दिया है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यही दिखा रहे हैं कि वह उन पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे कदापि नहीं हैं, जो ‘किसी भी कीमत परÓ शांति के इच्छुक थे। बीते दशकों में ऐसे अनेक उदाहरण रहे हैं, जब पाकिस्तान जैसे छुटभैये देश ने भारत जैसे विशाल एवं शक्तिशाली राष्ट्र को न केवल आंखें दिखाई हैं, वरन भारत की प्रतिष्ठा और अस्मिता का भी तार-तार किया है। मोदी सरकार ने नए तौर-तरीकों के माध्यम से पाकिस्तान को यही समझाने की चेष्टा की है कि भारत विरोधी कोई भी गतिविधि उसे भविष्य में बहुत महंगी पड़ेगी, फिर वह चाहे परमाणु ब्लैकमेलिंग ही क्यों न हो? भारत का साफ-साफ संकेत यही है कि पाकिस्तान अपने आचरण और नीतियों में बदलाव लाए, अन्यथा उसे भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत द्वारा आतंकवाद के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर आवाज उठाई जाती रही है। भारत को एक बड़ी कूटनीतिक सफलता प्राप्त हुई, जब रूस और चीन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा लाए गए आतंकवाद विरोधी प्रस्ताव का समर्थन करने का फैसला किया। उल्लेखनीय है कि भारत का यह प्रस्ताव 1996 से ही संयुक्त राष्ट्र में लंबित पड़ा हुआ था। वास्तव में आज भारत का आतंकवाद विरोधी प्रस्ताव कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि लगभग संपूर्ण विश्व ही आज आतंकवाद और हिंसा की चपेट में आ गया है। भारत, रूस और चीन ने इस प्रस्ताव के संदर्भ में यह संकल्प व्यक्त किया है कि वे आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वाले आतंकी संगठनों और उन्हें किसी भी प्रकार की शरण और सहायता प्रदान करने वाले देशों के खिलाफ एक साझा रणनीति बनाएंगे। निश्चय ही आतंकवाद विरोधी भारतीय प्रस्ताव पाकिस्तान के लिए एक कठोर संदेश के रूप में है, क्योंकि संपूर्ण विश्व यह अच्छी तरह जानता है कि आज पाकिस्तान आतंकवाद के लिए विश्व की सबसे सहज उपलब्ध शरणस्थली बना हुआ है।
यह भी उल्लेखनीय है कि इस संदर्भ में चीन भी भारत के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। यह पहला अवसर है, जब चीन अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को निशाने पर लेने वाले एक सुस्पष्ट प्रस्ताव के पक्ष में खड़ा दिखाई पड़ रहा है। आम तौर पर चीन अब तक किसी भी मंच पर पाकिस्तान की सीधी आलोचना से बचता रहा है। निश्चित रूप से यह भारत की विश्व पटल पर बदलती हुई स्थिति और पहले से कहीं बेहतर और ठोस कूटनीतिक रणनीति का ही परिचायक है। भारत ने चीन को आतंकवाद के मुद्दे पर स्पष्ट रुख अपनाने के लिए विवश किया है। चीन स्वयं भी अपने शिनच्यांग प्रांत में तेजी से पनप रहे आतंकवाद के लिए बाहरी आतंकी संगठनों को जिम्मेदार ठहराता रहा है, ऐसे में वह भारत द्वारा लाए गए आतंकवाद विरोधी प्रस्ताव का खुलकर विरोध नहीं कर सकता था। यदि वह ऐसा करता, तो वह स्वयं ही अपनी कही बात से मुकरता और वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ा दिखाई देता।
यह उचित ही है कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के तेजी से उभरते नए स्वरूप से मुकाबला करने के लिए भारत, रूस और चीन ने एकजुट होकर साझा रणनीति बनाने की दिशा में सुविचारित कदम उठाए हैं। रूस, भारत और चीन (आरआईसी) की त्रिगुटीय बैठक में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने आतंकवाद के मुद्दे पर क्षेत्रीय संपर्क और परस्पर त्रिपक्षीय सहयोग पर साझा सहमति व्यक्त की है। तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने उचित ही आतंकवाद को समूल उखाड़ फेंकने के लिए समस्त आवश्यक उपायों पर चर्चा और चिंतन किया है। तीनों देशों ने इस संदर्भ में परस्पर सूचनाएं साझा करने, आतंकी संगठनों की भर्ती प्रक्रिया को रोकने तथा इन्हें किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता तथा शरणस्थली न मिल सके, इसके लिए हरसंभव प्रयास करने का संकल्प व्यक्त किया है।