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जिम्मेदार चेहरों पर कालिख का लगना

आजकल राष्ट्र में थोडे-थोडे अन्तराल के बाद ऐसे-ऐसे घोटाले, काण्ड या भ्रष्टाचार के किस्से उद्घाटित हो रहे हैं कि अन्य सारे समाचार दूसरे नम्बर पर आ जाते हैं। सीबीआई की एक विशेष अदालत ने कोल आबंटन के एक मामले में कोयला मंत्रालय के चमकते चेहरे-पूर्व सचिव एच.सी. गुप्ता, मंत्रालय के तत्कालीन संयुक्त सचिव के. एस. करोपहा, तत्कालीन निदेशक के.सी. समरइया को दोषी ठहराया है, इन जिम्मेदार चेहरों पर कालिख का लगना न केवल चिन्ता का विषय है बल्कि शर्मसार करने वाला है। इन्हीं घोटालों एवं भ्रष्टाचार के कारण दुनियाभर के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के मुताबिक भारत साल 2016 में 2015 के मुकाबले रैंकिंग में नीचे चला गया है।
हमारे देश में भ्रष्टाचार के बहुत कम मामले ही अंत तक पहुंच पाते हैं। जब ऊंची पहुंच वाले लोग आरोपी हों, तब तो इसकी संभावना और भी क्षीण रहती है। इस लिहाज से कोयला घोटाले के एक मामले में बीते शुक्रवार को आया फैसला एक विरल घटना है। सीबीआइ की एक विशेष अदालत ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया है, उनको भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत सजा बाद में सुनाई जाएगी। इन पूर्व आला अफसरों ने गलत दस्तावेजों के आधार पर मध्यप्रदेश के थिसगोरा बी रुद्रापुरी कोल ब्लाक को मध्यप्रदेश की कंपनी कमल स्पांज स्टील एंड पॉवर लिमिटेड को आबंटित कर दिया। अदालत ने कंपनी और उसके निदेशक को भी धोखाधड़ी तथा आपराधिक साजिश का दोषी करार दिया है। इससे जुड़े पच्चीस से अधिक मामलों में से केवल तीन में फैसला आ पाया है। इससे पहले निजी कंपनी और उससे जुड़े अधिकारियों को ही सजा सुनाई गई थी। यह पहला मामला है जिसमें मंत्रालय के तब के आला अफसरों पर गाज गिरी है।
करीब एक हजार करोड़ के चारा घोटाले में लालू यादव को पांच साल की सजा मिली हुई है। उनसे चुनाव लडऩे का अधिकार छिन चुका है। उसी तरह अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर शुरुआती दिनों से चंदे के हेर-फेर के आरोप लगते रहे हैं। केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शनÓ के नेटवर्क का इस्तेमाल किया और गलत तरीके से चंदे की उगाही करते रहे। सबसे बड़ी बात है कि अन्ना आंदोलन के दौरान वेे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में जिस पारदर्शिता की वकालत करते थे। जब अपनी बारी आई तो उन चंदों पर और उन्हें देने वाले नामों पर कुंडली मारकर बैठ गए। बड़ी बात ये है कि इस मामले में कई बार उनके अपने ही साथियों ने गंभीर आरोप लगाए हैं। केजरीवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के और भी गंभीर आरोप हैं। जैसे दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री और उनके साले सुरेंद्र कुमार बंसल पर जाली कागजातों के आधार पर पीडब्ल्यूडी विभाग के ठेके लेने और फर्जी बिल बनाने के आरोप हैं। उसी तरह केजरीवाल ने राजेंद्र कुमार नाम के उस अफसर को अपना मुख्य सचिव बनाया जिसपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे। डिप्टी सीएम समेत कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के कथित हवाला लिंक की छानबीन भी की जा रही है।
जाहिर है, भ्रष्टाचार के इन ढेर सारे मामलों की तरह कोयला घोटाला भी भ्रष्ट नौकरशाही और बेईमान कारोबारियों के गठजोड़ की तरफ इशारा करता है। यह पद के दुरुपयोग का मामला भी है, जिसके बिना कोई घोटाला संभव नहीं हो सकता। यूपीए सरकार के दौरान कोयला घोटाले का खुलासा 2012 में सीएजी की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट से हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक 2004 से 2009 के बीच गलत तरीके से कोल आबंटन किए गए। नियम-कायदों की किस कदर धज्जियां उडाई गई, इसकी बानगी यह मामला भी है जिसमें कई पूर्व नौकरशाहों को दोषी पाया गया है। कंपनी के आवेदन में भरी त्रुटिया थी, अधूरापन था, दिशा-निर्देशों की अवहेलना की गई थी, कंपनी ने अपने राजनीतिक रिश्तों और पैसों की ताकत का गलत इस्तेमाल करके यह आवंटन हासिल किया था। यही नहीं, राज्य सरकार ने केएसएसपीएल को कोल ब्लाक आबंटित न करने की सलाह दी थी। इस सब के बावजूद उसका आवेदन मंजूर कर लिया गया। उस दौरान कोयला मंत्रालय का प्रभार तत्कालीन प्रधानमंत्री के पास था। इसलिए अदालत ने एचसी गुप्ता को प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखने का दोषी भी पाया है। लेकिन इससे मनमोहन सिंह बच नहीं सकते हैंँ।
यह कोई छोटा घपला-घोटाला नहीं है, सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक कोयला घोटाले से देश को 1.86 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। जाहिर है, यह प्राकृतिक संसाधनों की भारी लूट का मामला भी है। 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला भी इसी तरह का था। कोयला घोटाले में कई राजनीतिकों के भी नाम सामने आए थे। यह विडंबना ही है और सरकारी एजेन्सियों पर सरकार के दबाव का मामला भी है कि केएसएसपीएल को कोल ब्लाक आबंटित करने के मामले में सीबीआई ने आरोपपत्र दाखिल करने के बजाय क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी।
इस तरह की भारत में भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ कार्रवाही के लगातार खराब प्रदर्शन से पता चलता है कि सरकार छोटे और बड़े हर स्तर पर भ्रष्टाचार से निपटने में लगातार नाकाम हो रही है। भ्रष्टाचार के गरीबी, अशिक्षा और पुलिस कार्रवाइयों पर असर से दिखता है कि देश की अर्थव्यवस्था भले ही बढ रही हो लेकिन साथ ही असमानता भी बढ रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के परिणाम भविष्य के गर्भ में हैं। लेकिन यह एक शुभ संकेत है कि इस दिशा में कुछ तो सार्थक होता हुआ दिख रहा है।

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