उत्तर प्रदेश में योगी सरकार पूरे एक्शन में दिख रही है। सरकार के तेवर सख्त हैं और लहजा तल्ख। 60 दिन के कार्यकाल के द्वारा उत्तर प्रदेश में एक हवा दिखने लगी है। पर उत्तर प्रदेश में सब ठीक हो गया हो, ऐसा भी नहीं है। कुछ अफसर अब भी जनता के सरोकारों से नहीं जुड़े हैं। कुछ भाजपा कार्यकर्ता दबंगों की तरह काम करते हुये सरकार को बदनाम कर रहे हैं। कुछ गौरक्षा की आड़ मे अपने स्वार्थसिद्ध कर रहे हैं। इनके द्वारा बदनाम हो रही है योगी सरकार। अगर इन पर तुरंत लगाम नहीं लगी तो कानून व्यवस्था के विषय पर सरकार को घिरने में देर नहीं लगेगी।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपने कार्यकाल के 60 दिन पूरा कर चुकी है। अब सरकार का हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है। जो संदेश सरकार को अपने प्रारम्भिक दिनो में देना होता है वह देने में सरकार कामयाब रही। जनता में एक अच्छी नीयत की सरकार का संदेश गया। सरकार बनने के बाद मुस्लिमों में जिस तरह का भय दिखाई दिया था वह अब नहीं दिख रहा है। वह सरकार की कार्यशैली के द्वारा योगी की चुनाव पूर्व छवि को भूल चुके हैं। अखिलेश यादव अभी भी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि एक्सप्रेस-वे बनाने के बावजूद वह चुनाव कैसे हार गये ? उनको लगता है उत्तर प्रदेश के लोग एक्सप्रेस-वे पर नहीं चले इसलिए उनको वोट नहीं दिया। लचर कानून व्यवस्था ने किस तरह से जनता के मन में गुस्सा भर दिया था इस पर उनका ध्यान नहीं है। यदि कानून व्यवस्था की बात करें तो सरकार बनने के बाद पुलिस में सुधार दिखाई दिया था। पर जैसे जैसे समय बीतता चला जा रहा है उत्तर प्रदेश में घटनाएँ दिखने लगी हैं। सहारनपुर में पहले एसएसपी के घर पर उनके परिवार के साथ दुव्र्यवहार एवं बाद में हुयी हिंसक घटनाएँ सरकार पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर रही है। समाजवादी पार्टी को इसके द्वारा कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार को घेरने का मौका मिल गया है।
योगी जी जितनी जल्दी इस बात को समझ लेंगे कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा रहता है, उतनी जल्दी वे मिशन 2019 में कामयाब हो जाएंगे। चूंकि, इसी मुद्दे पर जनता ने उन्हे वोट दिया था और समाजवादियों को तत्कालीन विपक्ष ने घेरा था इसलिए वह चाहते हैं कि कानून व्यवस्था के विषय पर सरकार असफल हो। अखिलेश यादव के अंदर हार का दर्द बहुत गहरे में उतरा हुआ है। इसकी मिसाल विधानसभा के अंदर पहले ही दिन हुआ वह हँगामा है जिसमे अखिलेश यादव की मौजूदगी में सपा विधायकों ने हँगामा कर दिया था। सपाइयों के व्यवहार को सिर्फ हँगामा कहना विधानसभा के अंदर हुये असंसदीय और अमर्यादित व्यवहार की अनदेखी के समान है। राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान सीटियाँ बजाना कितना अशोभनीय है यह बताने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही बैनर पोस्टर लहराना और राज्यपाल पर कागज के गोले फेंकना इस बात को बयान कर रहा है कि क्षेत्रीय दलों के विधायकों की मानसिकता क्या रही है। सपा के कार्यकाल में यह काम बसपा करती थी तो भाजपा के कार्यकाल में यह काम सपा ने शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था और अपराध के लिए यह मानसिकता जिम्मेदार रही है जिससे निपटना योगी सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
यह बात मैं पहले भी कहता रहा हूँ कि उत्तर प्रदेश में अपराध और लचर कानून व्यवस्था के लिए सिर्फ सरकारे जिम्मेदार नहीं हैं। यहाँ लोगों की मानसिकता एवं कानून तोडऩे को अपना अधिकार मानना इसकी बड़ी वजह है। उत्तर प्रदेश में हथियारों का शौक एवं बढ़े जातिवाद ने व्यवस्था को अंदर तक दीमक की तरह खोखला कर दिया है। इसको बदलना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता है। योगी सरकार को हाल फिलहाल में हो रही छिटपुट आपराधिक वारदातों को रोकना तो चाहिए किन्तु इसके साथ ही एक समग्र एवं दूरगामी अपराध नियंत्रण नीति की नितांत आवश्यकता है। गुंडा तत्वों पर सख्ती, नकल माफिया पर रोक, बेरोजगारी उन्मूलन एवं सिविक सेंस के ज्ञान के द्वारा यह संभव होगा। यह न तो आसान है और न ही कुछ महीनो में हो पाएगा। इसके लिए सख्ती की भी आवश्यकता है और जागरूकता की भी। दोनों का संतुलित इस्तेमाल उत्तर प्रदेश की अपराध मुक्त छवि का घोतक बन सकता है।
सहारनपुर को हल्के में न ले योगी सरकार।
सहारनपुर में भीम आर्मी द्वारा जो हुआ वह सरकार के लिये वेक अप अलार्म है। मायावती के भाई आनंद कुमार के भीम आर्मी के चन्द्रशेखर के संपर्क में रहने की भी जानकारी हुयी है। मायावती चन्द्रशेखर को न खुल कर सहयोग करना चाहती थीं न ही खुल कर विरोध। दलित और ठाकुर के बीच संघर्ष दिखाकर बसपा अपना खोया वोट बैंक वापस पाना चाहती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुतायत में हैं। एक बार बसपा का कोर वोट मजबूत हो गया तो मुस्लिम वापस बसपा की तरफ आ सकता है। ऐसे में सपा का सफाया हो जाएगा और बसपा ही भाजपा का विकल्प बनेंगी। सहारनपुर का खेल एक घिनौनी राजनीति का निकृष्टम स्वरूप है। जहां तक सरकार की बात है तो सरकार को इस पर कड़े फैसले लेने ही हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं है। विपक्ष तो राजनीति करता रहेगा किन्तु सरकार की छवि खराब होती है। योगी जी को सख्त मुख्यमंत्री माना गया है। उनके तेवर दिखाई भी देने होंगे। हाईवे पर बलात्कार की घटनाएँ उनको कटघरे में खड़ा करने लगी है। ये घटनाएँ उन क्षेत्रों में हो रही हैं जो समाजवादियों के गढ़ रहे हैं। पर अपराध तो अपराध होता है। उसके लिये कोई किन्तु परंतु नहीं हो सकता। योगी जी को प्रचंड बहुमत जनता ने शांति और सौहार्द के लिये दिया है न कि हिंसा और अपराध के लिये। इसलिए मुख्यमंत्री जी, इस ओर ध्यान दीजिये। इन घटनाओं को हल्के मत लीजिये। ये वह मुद्दे हैं जो जनता की नजऱ में सरकार की छवि बनाते हैं।
मायावती-नसीमुद्दीन में पड़ी फूट।
उत्तर प्रदेश में एक बड़े घटनाक्रम का आगमन तब हुआ जब नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बहन जी पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगाया। उन्होने कई टेप जारी किए और मायावती का चेहरा बेनकाब कर दिया। दोनों के बीच में पैसों के हिसाब किताब और लेंन देन के कई आडिओ टेप बाहर आए। इसके बाद मायावती ने नसीमुद्दीन के सवालों के जवाब दिये और उसको ब्लैकमेलर बताया। मायावती ने कहा कि उनके पास शिकायतें तो आती रहती थीं किन्तु आज साबित हो गया कि नसीमुद्दीन फोन टेप करता है।
वास्तव में बसपा के प्रत्याशियों ने पैसे देकर बसपा का टिकट तो ले लिया किन्तु इस बार दलित वोट भी मायावती से छिटक गया। एक से पाँच करोड़ देकर टिकट खरीदने वाले प्रत्यशियों ने अपने पैसे वापसी का दवाब बनाना शुरू कर दिया। जैसे की पूर्व में स्वामी प्रसाद मौर्य भी नसीमुद्दीन को मायावती का कलेक्शन अमीन बताते रहे हैं वैसा ही कुछ प्रत्याशियों से सुनने में मिल रहा है। चूंकि पैसा सीधा मायावती को नहीं गया था इसलिए इन हारे प्रत्याशियों ने नसीमुद्दीन पर दवाब बनाना शुरू कर दिया। अपनी गर्दन फँसते देख उन्होने बहन जी पर ही ठीकरा फोड़ दिया। इन दोनों के बीच में नैतिकता की कोई बात नहीं है बल्कि यह विशुद्ध पैसों के लेन देन का मामला है। ठीक वैसे ही जैसे अखिलेश और शिवपाल के बीच में हुआ था। क्षेत्रीय दलों ने जो उत्तर प्रदेश को लूटा है उसके चेहरे अब बेनकाब होने लगे हैं।
अब बड़े बदलाव पर बढ़े योगी। संयमित रहें भाजपाई ।
योगी जी को अब उत्तर प्रदेश की रूपरेखा बदलनी है। उत्तर प्रदेश को दूर से देखने पर सम्मानित प्रदेश बनाना है। इसके लिये सबसे पहले भाजपा के आक्रामक कार्यकर्ताओं पर लगाम जरूरी है। अभी कुछ ऐसा देखा जा रहा है कि जो गुंडा तत्व पहले हरा अंगोछा पहन कर गुंडागर्दी करते थे अब वह भगवा अंगोछा पहने हैं। वह किसी भाजपा के सदस्य से दोस्ती गांठ लेते हैं और गुंडा तत्व भाजपाई लगने लगता है। ये लोग सरकार की छवि खराब कर रहे हैं। इसके साथ ही ब्लॉक और तहसील स्तर के अधिकारी अभी नयी सरकार की कार्यप्रणाली के साथ सामंजस्य नही बैठा पाये हैं। वहाँ अभी स्थानांतरण की प्रक्रिया नहीं हुयी है। इस ओर योगी जी को ध्यान देने की जरूरत है ताकि उनकी सोच के अधिकारी उनकी नीतियों के अनुरूप काम कर सकें। इसके साथ साथ एक तथ्य यह भी है कि अधिकारी तो सीमित हैं। आपको उन्ही पत्तों को फेंटना है। उन्ही से काम चलाना है। ऐसे में बदलाव के लिये मुख्यमंत्री जी की प्रारम्भिक 60 दिनो की सख्ती से कुछ नहीं होगा। लगातार 600 दिनो तक सख्त रहना होगा। नाक में नकेल डाल कर रखनी होगी। तभी 2019 का सपना उत्तर प्रदेश से पूरा हो पाएगा। ठ्ठ
भाई से भाई को लड़ाने, और हिंदुओं को 2019 से पहले बाँटने की अदभुत साज़िश
• सहारनपुर में महाराणा प्रताप सेना बनाने वाला कर्ण सिंह राजपूत सपा का नेता! और भीम सेना बनानेवाला चंद्रशेखर, बसपा का नेता।
• दुधवा बस्ती, जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र जिसमे कभी भी अम्बेडकर शोभा यात्रा दलितों को नही निकालने दिया गया, जिसको इस साल लखनपाल,बीजेपी के नेता के द्वारा दलितों के साथ निकाला जिसमे मुस्लिमों ने दलितों के साथ दंगा किया, घर जलाया, पत्थरबाजी, आगजनी और गोली चलाई, जिसमे 6 दलित मारे गए, पर भीम सेना के चंद्रशेखर ने दलितों के बीच एक ठ्ठशह्लद्बष्द्ग घुमाकर सबको शांत रहने के लिए बोला।
• फिर करण सिंह, सपा के नेता ने इस बार महाराणा प्रताप की जयंती पर जानबूझकर दलितों की बस्ती से जूलूस निकाला, जिसमे दलित राजपूत का दंगा हुआ… फिर भीम सेना के चंद्रशेखर ने दलितों को एक करके भीम सेना बनाकर राजपूतों के बिरुद्ध जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया।
• अब कल मायावती ने सहारनपुर जाकर दलितों की रैली की, और रैली से लौटते वक्त इस भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने राजपूतों के घरों पर हमला किया और आग लगाने की कोशिश की, जिसमें राजपूतों की तरफ से जवाबी हमला हुआ और भीम आर्मी के 4 गुंडे गम्भीर रूप से घायल और 1 जान से मारा गया. और अब मीडिया इसे “बेचारे दलितों” पर हमला बनाकर पेश कर रही है…
-सुरेश चिपलुनकर
क्यों भीड़तंत्र में बदल रहा है देश ?
झारखंड में बच्चा चोरी की अफ़वाहों के बीच दो जगहों पर उग्र भीड़ का छह लोगों की पीट-पीटकर हत्या करने की दर्दनाक घटना अनेक सवाल खड़े करती है। न कोई एफआईआर दर्ज हुई, केवल अफवाह फैला कर 6 लोगों को बेरहमी से मार डाला गया। ये कहां का न्याय है? झारखंड में बच्चा चोरी के आरोप में पिटाई और हत्या के शिकार कोई मुसलमान नहीं हो रहे। हिन्दू मारे गए हैं। कुछ स्तरों पर यह बात फैलाई जा रही है कि भीड़ के शिकार सभी मुसलमान थे। ये मिथ्या प्रचार देश के विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने की कोशिश है। इस पर रोक लगनी चाहिए और जो बेबुनियाद प्रचार को खाद-पानी दे रहे हैं, उन पर कठोर कार्रवाई हो। झारखंड की घटना को इस घटना के वीभत्स रूप में देखने की जरूरत है कि आखिऱ क्यों पुलिस का खौफ आम जन के मन से खत्म होता जा रहा है? अब समाज का एक तबका पुलिस का इंतजार करने से पहले ही किसी को मार डालता है, यह दर्शाता है कि न तो अब आम जनता में पुलिस की वर्दी का खौफ बच गया है, न ही पुलिस से कोई आशा ही रह गई है। आम जन का पुलिस पर से विश्वास उठना खतरे की घंटी है।
जान के प्यासे
अब दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सहारनपुर जिला में बीते कुछ समय पहले जातीय हिंसा के मामले की बात भी कर ही लेते हैं। सहारनपुर यूपी के बेहतरीन जिलों में एक रहा है। वहां पर राजपूत और दलित समुदाय के लोग एक-दूसरे की जान के प्यासे हो गए थे। जमकर आगजनी हुई। कौन दोषी है, यहां पर इस सवाल का जवाब नहीं खोजा जा रहा है। यह काम जांच एजेंसियां करेंगी। पर यह सबको जानने का हक है कि आखिर हिंसा और आगजनी में लिप्त उपद्रवियों को पुलिस का कोई भय क्यों नहीं रहा? अगर नहीं रहा तो क्यों नहीं रहा? आपको मालूम होगा कि पिछली 5 मई को सहारनपुर के थाना बडगांव के शब्बीरपुर गांव में दलित और राजपूत समुदाय के बीच जमकर हिंसा हुई। इस जाति आधारित हिंसा के दौरान पुलिस चौकी को जलाने और 20 वाहनों को आग के हवाले कर देने की घटना को दिन दहाड़ें अंजाम देखिए कश्मीर घाटी में भी पुलिस पर स्कूली बच्चों से लेकर बड़े तक पथराव करते नज़र आते हैं। उनके साथ बदतमीजी करते हैं।
निशाने पर पुलिस
आपने झारखंड की खबर में पढ़ा ही होगा कि घटना स्थल पर पुलिस के पहुंचने पर भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर भी हमला बोल दिया। बात यहां पर ही समाप्त नहीं हुई। जमशेदपुर में आदिवासियों की भीड़ द्वारा मारे गए युवकों की हत्या का विरोध कर रही खास संप्रदाय विशेष की भीड़ ने पुलिस के साथ जमकर मारपीट भी की। पुलिस अफसरों की वर्दी को फाड़ दिया गया। आदिवासियों के कृत्यों की निंदा करने वाले इस घटना की भर्त्सना करने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे हैं।
दरअसल खाकी वर्दी का भय अब खत्म होता जा रहा है। कानून के दुश्मनों के निशाने पर पुलिस वाले भी आ गए हैं। शातिर अपराधियों को पुलिस का रत्तीभर भी खौफ नहीं रहा। ये बेखौफ हो चुके हैं। ये पुलिस वालों की हत्या करने से भी परहेज नहीं करते। झारखंड में आदिवासियों और एक अल्पसंख्यक समुदाय के लफंगों की घटनाओं को इसी रूप में देखा जाना चाहिए।
हालत यह है कि देश में रोज औसत दो पुलिसकर्मी मारे जा रहे हैं बदमाशों से लेकर आतंकियों के हाथों। साल 2015 में देश भर में 731 पुलिसकर्मी जानलेवा हमलों में जान गंवा बैठे। ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हैं। इन 731 में से 412 यानी 48.8 फीसद उत्तर प्रदेश 95, महाराष्ट्र 82, पंजाब और तमिलनाडू में 64-64, गुजरात में 55, राजस्थान में 52 पुलिसवाले ड्यूटी के दौरान मारे गए। इन अभागे पुलिसकर्मियों में 427 कांस्टेबल, 178 हेड कांस्टेबल तथा 68 सहायक सब इंस्पेक्टर शामिल थे। गौर करें कि इन छह राज्यों पर जहाँ सर्वाधिक पुलिस कर्मी मारे गए ड्यूटी देते हुए।
कितने सस्पेंड
उत्तर प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की सरकार के बनने के बाद प्रदेश के विभिन्न शहरों में अभी तक 100 से अधिक पुलिसकर्मी सस्पेंड भी किए जा चुके हैं। सस्पेंड किए गए ज्यादातर पुलिसकर्मी गाजियाबाद, मेरठ, नोएडा और लखनऊ के हैं। पुलिस अधिकारियों ने सस्पेंड किए गए पुलिसकर्मियों को दागी बताया है। दागी पुलिसकर्मियों को निलंबित करने का फैसला शिखर स्तर से लिया गया। यानी पुलिस महकमें को दीमक खा रही है।
बेशक झारखंड और सहारनुपर जैसी घटनाएँ नहीं होनी चाहिए। इस लिहाज से पुलिस को अधिक चुस्त होना पड़ेगा। अगर कानून की रक्षा करने वाले पुलिसकर्मी ही अपराधियों से हारने लगेंगे या दागी होने लगेंगे तो फिर देश के सामान्य नागरिक का क्या होगा? उसे कौन बचाएगा?एक बात और पुलिस वालों की हत्या का तो नोटिस ले लिया जाता है। मीडिया में खबरें दिखा दी जाती हैं या छप जाती हैं। पर पुलिसवालों के साथ अब लगातार मारपीट भी हो ही है। झारखंड में ही देख लीजिए। वहां पर उसे आदिवासियों की भीड़ ने भी मारा और फिर एक वर्ग विशेष से जुड़े नौजवानों ने भी अपना निशाना बनाया। ये बेहद गंभीर ट्रेंड है। इसी तरह से पिछले साल 14 मई को पंजाब के बटाला शहर में भीड़ ने एक सब इंसपेक्टर को खंभे से बांध कर पीटा। दरअसल एक हादसे में युवक की मौत हो जाने के बाद भीड़ का गुस्सा पुलिस वाले पर टूट पड़ा। भीड़ ने उस पर आरोपी ड्राइवर को भगाने का आरोप लगाया। बाद में वहां पहुंची पुलिस ने किसी तरह सब-इंसपेक्टर को भीड़ के चंगुल से छुड़ाया। कोई ये नहीं कह रहा कि सारे पुलिसकर्मी दूध के धुले हैं। अनेक पुलिसकर्मियों पर अलग-अलग तरह के आरोप तो लगते ही रहते हैं। मसला यह है कि जनता को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार किसने दे दिया है?
अपराधियों के दिलों-दिमाग में पुलिस का भय फिर से पैदा करने के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम सभी राज्यों में पुलिस के रिक्त पद भरे जाएं। पुलिस वालों की ड्यूटी का टाइम तय हों। आबादी और पुलिककर्मियों का अनुपात तय हो। हर हालत में देश में गुंडे और मवालियों पर भारी पडऩी चाहिए पुलिस। तब ही देश में पुलिस का भय रहेगा और जनता पुलिस की आभारी होगी।
आर.के. सिन्हा
60 दिन सरकार के प्रसंशा लायक कुछ फैसले
दो महीने में योगी सरकार ने दर्जनों फैसले लिए हैं, लेकिन इनमें 10 ऐसे प्रमुख फैसले हैं, जिनकी यूपी ही नहीं देश भर में प्रशंसा हो रही है। राजनीतिक पार्टियों के चुनाव के दौरान आने वाले घोषणापत्र को महज रस्म अदायगी ही माना जाता था। लेकिन, योगी सरकार ने बीजेपी के घोषणापत्र को अपनी सरकार के काम का आधार बनाकर नई परंपरा शुरू की है। इन घोषणाओं को सार्थक बनाने के लिए योगी सरकार ताबड़तोड़ फैसले ले चुकी है। सरकार ने यूपी को स्वच्छ बनाने की मुहिम और सरकारी दफ्तरों में अनुशासन पर अमल करने के साथ ही अवैध कारोबार पर नकेल कसने, महिला सुरक्षा पर खास ध्यान और शिक्षा स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में अहम फैसले लिये जिसके द्वारा शुरुआती 60 दिन में सरकार सफल कही जा सकती है।
• योगी सरकार ने सत्ता में आते ही पहली कैबिनेट बैठक में ही किसानों के एक लाख तक के कर्ज माफी पर मोहर लगा दी। इस फैसले से राज्य के सवा दो करोड़ किसानों को सीधा फायदा पहुंचने की उम्मीद है। इससे यूपी सरकार के खजाने पर 36 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार बढ़ा, लेकिन सरकार का दावा है कि वह इस कमी को बिना कोई टैक्स बढ़ाए पूरा करने में सक्षम है।
• योगी आदित्यनाथ ने महापुरुषों के नाम पर छुट्टियों की व्यवस्था को बदल कर रख दिया। सरकार ने छुट्टी को रद्द कर महापुरुषों के जन्मदिन पर समारोह आयोजन का ऐलान किया है। इस दिन स्कूल में समारोह का आयोजन कर बच्चों को महापुरुषों से जुड़ी जानकारी दी जाएगी। यही नहीं दफ्तरों में भी इस तरह के आयोजन होंगे।
• घोषणापत्र के वादे को पूरा करते हुए योगी सरकार ने यूपी में चल रहे अवैध बूचडख़ानों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए। सरकार की ही इस सख्ती का असर है कि यूपी में 26 अवैध बूचडख़ाने बंद किए गए। यही नहीं हजारों की संख्या में बिना मानकों के चल रहे बूचडख़ाने और मीट की दुकानें अब मानकों को पूरा करती दिख रही हैं।
• भू-माफियाओं पर लगाम लगाने के लिए योगी सरकार ने टास्क फोर्स का गठन किया है. तीन स्तर पर बनाई जाने वाली ये टास्क फोर्स प्रदेश भर में जमीनों पर अवैध कब्जे चिन्हित करने के साथ ही भू-माफियाओं की भी लिस्ट तैयार कर रही है।
• योगी सरकार ने 15 जून तक प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने का अभियान चलाया है। इसके तहत पीडब्ल्यूडी को निर्देश दिया गया है कि सड़कें क्षतिग्रस्त पाई गईं तो अधिकारी दंडित होंगे। यूपी में कई सड़कें ऐसी हैं, जहां सड़क कम गड्ढे ज्यादा हैं। ऐसे में योगी सरकार के इस कदम का सीधा लाभ आम जनता को मिलता दिख रहा है।
• सरकारी दफ्तरों में पान-गुटखे खाने पर रोक लगाई गई। सरकारी दफ्तरों में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर भी बैन लगाया गया। सीएम ने बाबुओं को दफ्तर में समय पर आने का निर्देश दिए गए। कर्मचारियों की उपस्थिति के लिए बायोमेट्रिक व्यवस्था लागू हो रही है। यही नहीं आदेश है कि मंत्री किसी भी योजना से जुड़ी फाइल घर नहीं ले जा सकेंगे। इसके साथ ही मंत्रियों को हर हफ्ते अपनी रिपोर्ट देने के निर्देश भी दिए गए हैं।
• योगी सरकार ने अगले साल 2018 तक यूपी को 24 घंटे बिजली देने का ऐलान किया है। यही नहीं सरकार बनते ही यूपी के गांव में 18 घंटे, शहरों को 24 घंटे बिजली देने का फैसला किया। बिजली चोरी रोकने पर बेहद सख्त रुख अख्तियार करते हुए सरकार ने 100 दिनों में 5 लाख नए बिजली कनेक्शन देने का फैसला किया है, जिसका अभियान जारी है।
• प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वसूली से जूझ रहे अभिवाभकों को राहत देते हुए योगी सरकार ने बढ़ती फीस पर लगाम लगाने का फैसला किया। सरकार द्वारा स्कूल-कॉलेजों में शिक्षकों की उपस्थिति भी शत-प्रतिशत करने की तैयारी चल रही है। यही नहीं योगी सरकार ने राज्य में छात्रों को नर्सरी से ही अंग्रेजी शिक्षा पर जोर देने का फैसला किया है।
• सरकार बनते ही सीएम योगी ने एंटी रोमियो स्क्वॉड टीम का यूपी में गठन किया। राज्य के 75 जिलों में 996 एंटी रोमियो स्क्वॉड टीम का गठन किया गया ।
• मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले तीर्थ यात्रियों की सहायता राशि में इजाफा करते हुए योगी सरकार ने एक लाख रुपये की सहायता का ऐलान किया। राजधानी में मानसरोवर भवन बनाने का भी फैसला किया गया।