दिल्ली स्थित भारतीय जन संचार संस्थान में 20 मई को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता, मीडिया एंड मिथ विषय पर हुए पूरे दिन के सेमिनार में दिल्ली की मीडिया सेमिनार की जगह एक सप्ताह पहले से ही हवन केन्द्रित खबरें लिखती रही। मानों दिल्ली की मीडिया की चिन्ता में सेमिनार का विषय, वक्ता या सेमिनार का उददेश्य शामिल नहीं रह गया था, इसकी जगह यह जरूरी हो गया था कि हवन क्यों और कैसें? अधिक खबरिया संस्थानों में मीडिया रिपोर्टिंग बिना आयोजक से बात किए ही की गई। जिसकी वजह से कथित तौर पर प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने भी जमकर तथ्यात्मक भूल की। मसलन यज्ञ दो घंटे का होगा। मीडिया स्कैन साप्ताहिक पत्रिका है। अधिकांश लोगों ने बिना आयोजक से कन्फर्म किए संभावित वक्ताओं के नाम को अंतिम समझ कर रिपोर्टिंग की। कुछ प्रकाशन मीडिया स्कैन द्वारा तय कार्यक्रम की जानकारी साझा किए जाने के बावजूद पुराने संभावित नामों पर कायम रहे। संभव है कि संभावित नामों में कोई एक ऐसा नाम था जो उनके एजेन्डे पर सही बैठ रहा था। इसलिए कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति ना होने की बात सामने आने के बावजूद रिपोर्टिंग में उस नाम को शामिल किया जाता रहा।
मीडिया स्कैन के आयोजन में उदघाटन सत्र को मिलाकर कुल छह सत्र थे। प्रात 07 बजे यज्ञ के साथ औपचारिक तौर पर पूरे दिन की आयोजन की शुरूआत हुई। जब अंदर यज्ञ चल रहा था, कुछ चैनल और अखबार के पत्रकार भारतीय जन संचार संस्थान के दरवाजे पर आए थे। लेकिन चूंकि हवन मीडिया स्कैन का निजी आयोजन था, जिसे मीडिया स्कैन परिवार के सदस्य सम्पन्न करने में जुटे थे। मीडिया के लोगों को अंदर आने की अनुमति नहीं मिल पाई। यज्ञ के साथ साथ संस्थान के परिसर में उसी दौरान आचार्य अनल देव सेमिनार में शामिल होने आए प्रतिभागियों के योग का वर्ग ले रहे थे।
सेमिनार अपने पूर्व निर्धारित समय 9:30 पर प्रारंभ हुआ। कवि शंभू शिखर मंच पर आए। उस दौरान संस्थान के मुख्य द्वार पर अच्छी खासी भीड़ इकटठी हो चुकी थी। इसमें कुछ आमंत्रित लोग थे और कुछ प्रदर्शनकारी। इस भीड़ को देखकर कुछ तमाशबीन भी वहां इकटठे हो गए थे। दिल्ली पुलिस मुश्तैदी से द्वार संख्या 02 पर थी। प्रवेश के लिए सुरक्षा कारणों से यही एक द्वार खोले जाने निर्णय हुआ था। वसंत कुंज (उत्तरी) थाने के एसएचओ गगन भास्कर सुबह से ही आकर सुरक्षा में जम गए थे।
सेमिनार में उदघाटन सत्र प्रारंभ हुआ। संचालन की जिम्मेवारी जी न्यूज के युवा एंकर विद्यानाथ झा ने संभाली। दिल्ली प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ योगेश सिंह, जनजातीय समाज के बीच झारखंड में काम करने वाली संस्था विकास भारती के संस्थापक अशोक भगत और हरिद्वार में कुष्ठ रोगियों के बीच लंबे समय से काम कर रही संस्था दिव्य ज्योति सेवा मिशन के प्रमुख आशीष गौतम समय पर आ गए थे। सत्र प्रारंभ हुआ। सबसे पहले ‘कमल संदेशÓ पत्रिका के संपादक संजीव सिन्हा ने पुष्प गुच्छ की जगह पुस्तकों से अतिथियों का स्वागत किया। मंच से डॉ सौरभ मालवीय की किताब वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता का लोकार्पण हुआ।
इसी दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा सूचना आई कि बस्तर संभाग के पूर्व आईजी एसआरपी कल्लूरी का विरोध करने आने वाले प्रदर्शनकारियों ने एक बजे के पूर्व निर्धारित समय को बदल कर ग्यारह बजे कर दिया है। दरवाजे पर उनका शोर शराबा बढ़ गया। इस विरोध की वजह से द्वार पर सुरक्षा घेरा मजबूत किया गया। एक एक व्यक्ति को जांच के बाद और उनकी पहचान पत्र के साथ तस्वीर उतारे जाने के बाद ही प्रवेश दिया जाने लगा।
सत्र प्रारंभ हो गया था। मंच से अशोक भगत ने कहा कि आज की रिपोर्टिंग की वजह से आदिवासी और नक्सल पर्यायवाची हो गए हैं जबकि दिल्ली में बैठे लोगों की नजर से देखने पर आदिवासी समझ में नहीं आएगा। यह भी समझाया।
आशीष गौतम ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दिनों का अपना एक संस्मरण सुनाया। अल्फ्रेड पार्क जहां चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी अंतिम सांसे ली थी। श्री गौतम ने बताया कि किस प्रकार उन्होंने मित्रों के साथ तय किया कि उसी पार्क में चन्द्रशेखर आजाद को श्रद्धांजली देने के लिए हवन करगेें। जब सभी मित्र हवन कर रहे थे, उसी दौरान माक्र्स और मैकाले को मानने वाले इकटठे होकर आए कि चन्द्रशेखर की मूर्ति के सामने उन्हें श्रद्धांजली देने के लिए यज्ञ क्यों हो रहा है? उनमें एक माक्र्सवादी सांसद भी थे। श्री गौतम बीस पच्चीस की संख्या के साथ थे और विरोध करने वाले एक हजार के आस पास। श्री गौतम हवन में मंत्र पढ़ रहे थे और वे लगातार गालियां दिए जा रहे थे। अचानक धुएं का असर था या कि हवन का लेकिन हजारों मधुमक्खियां अपने छत्ते से निकल कर ना जाने कहां से आई और एक एक विरोध करने वाले पर ऐसी टूटी उनमें से कोई वहां जम नहीं पाया और इस दौरान यज्ञ करने वालों को कुछ नहीं हुआ।
डॉ योगेश सिंह ने भारतीय शिक्षा पर गम्भीर सवाल खड़े किए। डॉ सिंह के अनुसार यदि एक बच्चा जैसा बताया जाता है, वैसे ही एक एक कदम उठाता है उसके बावजूद उसकी शिक्षा देश के काम नहीं आ रही तो यह व्यवस्था का दोष है। शिक्षा का दोष है।
संस्थान के महानिदेशक केजी सुरेश ने मीडिया के अंदर स्वतंत्रता जिस प्रकार स्वच्छन्दता में बदल रही है, उसके प्रति अपनी चिन्ता जाहिर की। बकौल सुरेश- आप पत्रकार हैं तो बताया जाता है कि आपको नकारात्मक बनना ही है। आपके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
दूसरा सत्र दिल्ली पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष अनिल पांडेय के संचालन में हुआ। सत्र में वक्ता के नाते फायनेन्सियल क्रोनिकल के संपादक के ए बदरीनाथ, माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि में प्राध्यापक डॉ अरूण भगत, हरियाणा सरकार में सूचना आयुक्त भूपेन्द्र धरमानी और दिल्ली सरकार में अधिकारी नलिन चौहान शामिल थे। इस सत्र में पत्रकारिता से जुड़ी सरकारी सेवाओं की बात हुई और वहां विशेषज्ञता पर पूरी चर्चा केन्द्रित रही।
अगला सत्र धर्मपाल व्यानमाला का था। संचालन युवा पत्रकार केशव कर रहे थे। इस व्याख्यानमाला में आईआईएमसी अल्यूमिनाय रहे अतुल कष्ण भारद्वाज विस्तार से बताया कि नारद को आदि पत्रकार क्यों कहा गया है? अमेरिकी मूल की भारत में आकर सन्यासी बनी डेजा ओम ने भी इस सत्र में अपनी बात रखी।
इस पूरे सेमिनार का मुख्य आकर्षण बने एसआरपी कल्लूरी का सत्र भोजन के बाद प्रारंभ होने वाला था। सत्र का विषय था, वंचित समाज के सवाल। राजीव रंजन प्रसाद इस सत्र का संचालन कर रहे थें। इस सत्र में जवाहर लाल नेहरू विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर डा बौद्ध सिंह ने जेएनयू अंदर अंदर चल रहे और पल रहे उन अपराधों पर बात की जिस पर अब देश व्यापी चर्चा होने लगी है। किस तरह वामपंथी प्रोफेसर और छात्र वामपंथ के अंदर पल रहे और चल रहे अपराध पर पर्देदारी का काम करते हैं।
रांची विवि के प्रोक्टर डॉ दिवाकर मिंज ने कहा कि उन्होंने अपने लिए शोध का विषय ऐसा लिया है, जिसे पढ़कर आने वाले समय में आदिवासी समाज में आत्मविश्वास बढ़े। डॉ मिंज के अनुसार आदिवासी कभी गाली नहीं देता, बंदूक भले उठा ले। उन्होंने मीडिया पर यह सवाल उठाया कि वहां दयामणि बारला जैसी महिलाएं पसंद की जाती हैं, क्योंकि वह उनकी तरह की भाषा बोलती है जबकि आदिवासी समाज में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनका काम बहुत अच्छा है।
एसआरपी कल्लूरी का स्वागत हॉल में मौजूद लोगों ने एक स्वर में वंदे मातरम का जयघोष करके किया। कल्लरी की जैसी छवि मीडिया के माध्यम से बनी थी, कल्लूरी ने अपनी उपस्थिति से उस स्टिरियोटाइप अपनी छवि को तोड़ा। बकौल कल्लूरी – मैं बस्तर के चालीस लाख आदिवासियों की तरफ से बोल रहा हूं, मुटठी भर लोगों ने बस्तर के समाज की अवधारणा पूरे देश में बनाई है। यह वैसा ही जैसे जेएनयू की एक छवि पूरे देश में बनी है। उदाहरण के लिए आप छत्तीसगढ़ आइए और जेएनयू का नाम लीजिए। वहां आम आदमी यही समझता है कि जेएनयू देशद्रोहियों का अडडा है। जो देश को तोडऩा मरोडऩा चाहते हैं। यह परसेप्शन है। जेएनयू में ऐसे मुटठी भर लोग होंगे लेकिन यह अवधारणा समाज में पूरे जेएनयू के लिए बनी है। माओवादी कहते हैं कि क्रांति गरीब आदमी के भूुखे पेट से निकलता है और बस्तर का आदिवासी कभी भूखा रहता नहीं। उसे क्रांति की क्या जरूरत है?
कल्लूरी ने आगे कहा- बस्तर में माओवादी सिद्धान्तविहिन हो गए हैं। वे अपराधी गिरोह बन कर रह गए हैं जो पैसा उगाही करते हैं। सिर्फ बस्तर से आईबी रिपोर्ट के अनुसार 1100 करोड़ रुपए की उगाही होती है। यह सारा पैसा उन नक्सलियों के पास नहीं जाता जो जंगल में रहकर लड़ते हैं या फिर बंदूक चलाते हैं। यह पैसा इनके शहरी नेटवर्क और एनजीओ के पास जाता है। हयूमन राइट वालों के पास जाता है और एकेडमिशियन्स के पास जाता है। ये सभी कहते हैं कि हम ये पैसा समाजसेवा पर खर्च करते हैं। ये लोग एक परिवार पूरे बस्तर में नहीं दिखा सकते जिसका उद्धार इनकी वजह से हुआ हो। ये लोग पैसा नक्सलियों के केस लडऩे में खर्च करते हैं और जहां जहां जाते हैं, वहां सुरक्षा बलों पर रेप, डकैती और हत्या का आरोप लगाते हैं। और ये चंद लोग हैं जो पूरे देश में एक परसेप्शन बनाते हैं।
इस सत्र का संचालन आमचो बस्तर के लेखक राजीव रंजन प्रसाद ने किया।
पिछले सत्रों में समय पर ध्यान नहीं दिए जाने का परिणाम यह हुआ कि जिस जम्मू कश्मीर के सवाल सत्र को 3:30 में प्रारभ हो जाना चाहिए था, वह 4:30 बजे प्रारंभ हुआ। बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ अपना झंडा झोला समेट कर विदा हो चुकी थी। गर्मी भी बहुत थी। जम्मू कश्मीर के सत्र में वरिष्ठ पत्रकार पदम श्री जवाहर लाल कौल, जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र से अरूण कुमार और सेवानिवत कर्नल जयवंश सिंह मौजूद थे। इस सत्र का संचालन वरिश्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी कर रहे थे।
जयवंश सिंह ने बताया कि प्रारम्भिक दौर में वहां मुश्किल से 17-18 समाचार पत्र हुआ करते थे और आज वहां 700-800 समाचार पत्र निकल रहे हैं। श्री सिंह बताना चाह रहे थे कि जम्मू कश्मीर के बिगड़ते हालात के लिए समाचार पत्र भी जिम्मेवार हैं। श्री सिंह ने सवाल उठाया कि डीएवीपी का विज्ञापन आता नहीं। राज्य सरकार बहुत कम विज्ञापन देती है फिर इतने सारे समाचार पत्र चल कैसे रहे हैं? किसकी मदद से बचे हए हैं?
पदम श्री जवाहर लाल कौल ने घाटी को लेकर एक महत्वपूर्ण बात बताई। घाटी में एक ही खबर को सभी अखबार और चैनल दिखाने को बाध्य हैं। वहां खोजी खबर के लिए स्पेस नहीं है। यह दबाव है अलगाववादियों का।
अरूण कुमार ने जम्मू कश्मीर पर बात करते हुए कश्मीरियत का जिक्र किया। बकौल श्री कुमार – कश्मीरियत शब्द को दिमाग से निकाल देना चाहिए। हमारी कोई संस्कति है, हमारे कुछ मूल्य हैं जो जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक। कच्छ से लेकर कामरूप तक। समान रूप से प्रवाहित है। जम्मू कश्मीर उससे अलग नहीं है।
जम्मू कश्मीर के सत्र के बाद हॉल खाली होने लगा था। शाम हो गई थी। तय कार्यक्रम के अनुसार सेमिनार के समाप्त होने का समय हो गया था। लेकिन अब अंतिम सत्र इतिहास पुनर्लेखन के सवाल को लेकर बचा हुआ था। इतिहास पुनर्लेखन आवश्कता या षडयंत्र। इस सत्र का संचालन ‘सभ्यता अध्ययन केन्द्र के प्रमुख रविशंकर ने किया। सत्र में शिक्षा संस्कति उत्थान न्यास से अतुल कोठारी। दिल्ली इन्स्टीटयूट फॉर हेरिटेज मैनेजमेन्ट से आनंद वर्धन, भाषाविद प्रमोद दुबे और प्रसिद्ध इतिहासकार कुसूम लता केडिया रहीं।
पूरे दिन चलने वाले इस विद्वानों से सम्पन्न सेमिनार में पूरे दिन दिल्ली की मीडिया हवन के धूंए की सुध लेती रही और हवन कुंड के नीचे कौन सा अखबार बिछा है, यह ब्रेकिंग न्यूज बनाती रही। इससे अलग थोड़ी बात हुई तो उस पूरी बातचीत के केन्द्र में बस्तर के पूर्व आईजी कल्लूरी रहे। लेकिन आयोजकों के लिए कार्यक्रम का स्वरूप इससे अलग था और उनकी दष्टि भी मीडिया से अलग थी।