डायलॉग इंडिया के संग आईआईटी खडग़पुर एल्युमनी फाउंडेशन एवं पैन आईआईटी एल्युम्नी इंडिया का संयुक्त आयोजन
च्च शिक्षा के लिए भारत एक गंतव्य अर्थात ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड: ञ्जद्धद्ग त्रद्यशड्ढड्डद्य ष्ठद्गह्यह्लद्बठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठ द्घशह्म् ॥द्बद्दद्धद्गह्म् श्वस्रह्वष्ड्डह्लद्बशठ्ठ पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन आईआईटी खडग़पुर एल्युमनी फाउंडेशन एवं पैन आईआईटी एल्युम्नी इंडिया के सहयोग से नई दिल्ली में होटल अशोक, चाणक्यपुरी में 10 जून 2017 को किया गया। इस कार्यक्रम में पूरे देश भर से न केवल आईआईटी एवं आईआईएम बल्कि देश के प्रमुख शिक्षा नियामकों अर्थात एआईसीटीई से भी प्रतिनिधि उपस्थित थे। कार्यक्रम का विधिवत आरम्भ सम्मानीय अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के माध्यम से किया गया, जिनमें मानव संसाधन मंत्रालय के सचिव श्री के के शर्मा, पैन आईआईटी के चेयरमैन श्री अशोक मधुकर, आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रेम व्रत, आईआईटी खडग़पुर के निदेशक श्री पीपी चक्रवर्ती एवं आईआईटी खडग़पुर एल्युमनी फाउंडेशन के प्रेसिडेंट कमांडर वीके जेटली उपस्थित थे।
दीप प्रज्ज्वलन के उपरान्त पैन आईआईटी एल्युमनी के चेयर मैन श्री अशोक मधुकर के द्वारा सभी सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया गया। अपने स्वागत उद्बोधन में उन्होंने कार्यक्रम के उद्देश्यों के विषय में बतलाते हुए कहा कि जैसे ही हम ज्ञान के अपने प्राचीन केन्द्रों जैसे तक्षशिला, नालंदा, समर्पुरा या पुष्पागिरी की बात करते हैं, वैसे ही हमारे चेहरे गर्वमिश्रित मुस्कान के साथ खिल जाते हैं। हमारे अन्दर अतीत के गौरव के क्षण कुलांचे मारने लगते हैं। यह कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है। हमें लगता है कि अब समय आ गया है जब हम भारतीयों के मस्तिष्क को एक बार फिर से यह भरोसा दिला सकते है कि उन्हें विदेशी शिक्षा के नाम पर किसी भी बाहरी विश्वविद्यालय की ओर देखना बंद करना होगा। उच्च शिक्षा के नाम पर हम हर वर्ष ढाई लाख बच्चों और 16 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष के प्रवाह को कम कर सकते हैं। इस सम्मलेन का उद्देश्य है अपने देश में पूरे विश्व से विद्यार्थियों को आकर्षित करना और उन्हें ऐसी शिक्षा और वातावरण प्रदान करना, जो वैश्विक है।
इस सम्मलेन के विषय पर और प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर प्रेम व्रत ने इस कार्यक्रम का थीम डॉक्युमेंट प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा सबसे पहले तो हमें वैश्विक गंतव्य अर्थात ग्लोबल डेस्टिनेशन शब्द का अर्थ है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों से ज्ञान की चाह में लोगों को भारत की तरफ आकर्षित किया जाए और इस प्रकार भारत से शिक्षा की चाह में भारत से बाहर जाने वालों के प्रवाह को रोका जाए, और हम बाहर से आने वाले विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता, रोजगार के अवसरों से भरपूर शिक्षा के द्वारा आकर्षित कर सकें।
अतीत की शिक्षा प्रणाली पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर प्रेम व्रत ने नालंदा विश्वविद्यालय का उल्लेख किया जहां पर जापान, कोरिया, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, पर्शिया, और तुर्की एवं कई अन्य देशों से विद्वान् ज्ञानार्जित करने आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग सातवीं शताब्दी में पांच वर्षों तक अध्ययन के लिए यहाँ रुका था। नालंदा विश्वविद्यालय में 2000 प्रोफेसर के लिए रहने का प्रबंध था एवं दस हजार विद्यार्थियों के लिए छात्रावास की सुविधा थी। नब्बे करोड़ पुस्तकों/प्रतिलिपियों को समेटे हुए 9 मंजिल का पुस्तकालय था। नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन, कला, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, राजनीति एवं युद्ध कौशल का ज्ञान प्रदान किया जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय में कई विशेषताएं थी जैसे उसमें 3 से 5 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक का अनुपात था। परिसर में रहने वाले विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए शत प्रतिशत आवासीय प्रवृत्ति। यदि हम केवल उसी प्रणाली को एक बार फिर से अपना लें तो हम भारत से कई विद्यार्थियों को बाहर जाने से रोक सकते हैं और बाहर से विद्यार्थियों को आकर्षित कर सकते हैं। वर्तमान में कई उच्च शिक्षण संस्थानों की रेटिंग कई एजेंसी द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार बहुत नीची है। भारतीय इंजीनियर स्नातक में रोजगार की क्षमता 25-30प्रतिशत है। और शायद यही कारण है कि भारी संख्या में विद्यार्थी अंडरग्रेज्युट पाठ्यक्रमों के लिए भी विदेश का रुख कर रहे हैं। हम भारतीय संस्थानों में विदेशी विद्यार्थियों को आकर्षित करने में अक्षम रहे हैं, वर्तमान में भारत में 42,000 विद्यार्थी ही भारत में अध्ययन के लिए आकर्षित हो रहे है। भारत से उच्च शिक्षा के लिए हर वर्ष 3.6 लाख विद्यार्थी बाहर जाते हैं, जिनमें से 85 प्रतिशत अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जाते हैं। हालांकि मेडिकल के लिए चीन और अन्य विषयों के लिए जर्मनी भी अब उभर कर आ रहा है। भारत को उच्च शिक्षा के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने के लिए उन्होंने कई शक्तियाँ भी बताईं जिसमें भारत की जनसंख्या को एक मुख्य तत्व बताया क्योंकि 55 प्रतिशत भारतीय पच्चीस वर्ष से कम आयु के हैं और यदि हम उन्हें उच्च गुणवत्ता परक शिक्षा के माध्यम से रोजगार के योग्य बना सकें तो ही यह यह लाभ होगा नहीं तो यह बढ़ी हुई जनसँख्या देश के लिए आपदा होगी। देश में बढ़ती तकनीकी शिक्षा के लिए आधारभूत संरचना के लिए सरकार के साथ निजी क्षेत्र को भी आगे आना होगा। भारतीयों को बौद्धिक रूप से बहुत तेज और अभिनव माना जाता है। भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग मध्य वर्ग है, जो हर कीमत पर अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ शिक्षा चाहता है, तो इसलिए भारत में गुणवत्ता परक शिक्षा का एक निश्चित बाजार है। उन्होंने निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानों के बीच अंतर को कम करने पर बल दिया. उनका कहना है हमें बाजार उन्मुखी होना चाहिए। विद्यार्थी और शिक्षक का अनुपात एक पर पांच या दस का होना चाहिए। उन्होंने चार द्घ की बात करते हुए कहा कि निजी क्षेत्रों में द्घड्डष्ह्वद्यह्ल4, द्घह्वठ्ठस्रद्बठ्ठद्द, द्घह्म्द्गद्गस्रशद्व और द्घद्यद्ग3द्बड्ढद्बद्यद्बह्ल4 होनी चाहिए। निजी क्षेत्र 85 से 90 प्रतिशत स्नातक देते हैं, मगर उन्हें भारत सरकार से शायद ही मदद कोई मिलती हो। तकनीकी और प्रबंधन स्नातकों की निम्न रोजगार क्षमता भी एक बड़ा कारण है जिससे विदेशी छात्र भारतीय विश्वविद्यालयों की तरफ आकर्षित नहीं होते हैं।
उन्होंने भारतीय शिक्षा के प्रति मैकाले की सोच को बताते हुए कहा कि चूंकि हमारे दिमाग में मैकाले की शिक्षापद्धति ने इस प्रकार अपना प्रभुत्व स्थापित किया हुआ है कि हम अपनी पुरातन शिक्षा प्रणाली को सीखने से हिचकते हैं, और हम अंग्रेजी या विदेशी को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। विडंबना यह भी है कि अन्य दूतावासों की तरह भारतीय दूतावास विदेशों में भारतीय शिक्षा को प्रोत्साहित नहीं करता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा पर और अधिक खर्च किए जाने की जरूरत है और कम से कम जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। भारतीय प्रतिभाओं को यहीं पर बेहतर रोजगार के विकल्प देकर रोकना चाहिए। उच्च शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ शिक्षण और शोध को बराबर महत्ता मिलनी चाहिए। शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु पर रोक हटनी चाहिए। सरकारी और निजी संस्थानों में दान के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। पुस्तकालय बडे से बडे होने चाहिए और भारतीय दूतावासों को उच्च शिक्षा को विदेशों में प्रोत्साहित करने के लिए जोडऩा चाहिए। भारत में पढने वाले विदेशी विद्यार्थियों के लिए प्रवेश प्रक्रिया को और सरल एवं सहज बनाना चाहिए। अंत में उन्होंने कहा किसी भी देश की शिक्षा में गिरावट का अर्थ है, उस देश का पतन तो किसी भी देश के लिए शिक्षा हमेशा ही उच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र होनी चाहिए। हमें हर प्रकार के कदमों को उठाकर अतीत की गौरवशाली शिक्षा को वापस लाना होगा.
आईआईटी खडग़पुर के निदेशक प्रोफेसर पीपी चक्रवर्ती ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमें देखना होगा कि क्या क्या बदलाव हो रहे हैं। हमें अतीत की तरफ देखते हुए आगे कदम बढ़ाने होंगे। नए और पुराने के साथ चलना होगा। हर देश में नए का और पुराने का मॉडल एकदम अलग है। हमें कई ऐसे कदम उठाने होंगे जो हमारे तमाम शिक्षा संस्थानों को एक साथ जोड़ दें। कई शिक्षण संस्थान ऐसे थे जहां पर खूब धन आया, जिन्होनें देश के लिए काम भी किया। देश के सभी शिक्षण संस्थानों को एक साथ जोडऩे का कार्य नैशनल डिजिटल लाइब्रेरी कर रही है, इस कदम का आरम्भ सबसे पहले आईआईटी खडग़पुर ने किया था। और आज इसमें कई संस्थान जुड़े हुए हैं, लाखों विद्यार्थी इसके माध्यम से शोध कर रहे हैं। हमने शोधकर्ताओं के लिए तमाम सुविधाएं दी हैं। जब हम ग्लोब्लाइजेशन की बात करते है तो हमें यह भी सोचना होगा कि जो भी कदम अब तक उठाए हैं, क्या उनसे ग्लोब्लाइजेशन हुआ? क्या इससे नए उपकरण बने? क्या इससे विदेशी विद्यार्थी पढने आए? हमें यह भी देखना होगा कि एशिया से कौन क्या सीखने आता है और अन्य देशों से कौन क्या सीखने आता है? एशिया से लोग दर्शन पढने आते हैं तो वहीं अफ्रीका से तकनीक के छात्र होते हैं। हमें यह तय करना ही होगा कि आखिर हमें किसके लिए काम करना है और कौन हमारा मुख्य क्लाइंट है। उन्होंने विचार से अधिक क्रियान्वयन पर बल देते हुए कहा कि हममें से सभी के पास विचार हैं, और सपने हैं, मगर एक चीज जो सबको अलग बनाती है वह है क्रियान्वयन।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सचिव श्री के के शर्मा ने इस आयोजन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपनी बात की कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पूरे विश्व में क्या क्या हो रहा है, हमें देखना होगा, भारत के नजरिये से देखें तो तमाम तरह की योजनाएं भारत में लागू की गयी हैं, मगर उन योजनाओं की परिणिति भी देखनी होगी कि आखिर क्या उन्होंने अपना यथीष्ट पाया है? यदि ऐसा नहीं है तो कारण क्या है? यदि अंतर हैं तो क्या अंतर है? और उन अंतरों को दूर करने के लिए क्या क्या कदम उठाए जा रहे हैं। भारत सरकार में सचिवों का एक समूह बना है जो प्रधानमंत्री को उचित कदम उठाने के लिए समय समय पर सलाह देता है। सरकार सकारात्मक वातावरण दे रही है। हम सुझाव चाहते हैं। हम चाहते हैं कि शिक्षाविद हमें सुझाव दें जिससे हम उन्हें क्रियान्वित कर सकें। शिक्षा के हित में यदि होगा तो हम फैकल्टी की आयु में भी वृद्धि कर सकते हैं। नालंदा के बाद यदि हम देखें कि भारत का नाम शिक्षा के क्षेत्र में किसी शैक्षणिक संसथान ने रोशन किया है तो वह है आईआईटी। सरकार शिक्षा को आगे बढ़्ाना चाहती है और सरकार यह भी देख रही है कि यदि नए नियम बनने में देर लगे तो कुछ नियमों को ही ढीला कर दिया जाए। यूनिवर्सिटी की हृ्र्रष्ट मान्यता के भी अपने लाभ हैं। कई डीम्ड विश्वविद्यालय बहुत अच्छे कदम उठा रहे हैं, अच्छा प्रदशन कर रहे हैं। सरकार सभी हितधारकों से सुझाव मांग रही है, आई आई एम के लिए सरकार एक नया अधिनियम ला रही है। यूनिवर्सिटी के लिए फंडिंग प्रस्ताव भी है। पहले उच्च शिक्षा के लिए ऋण की कोई एजेंसी नहीं थी, पर सरकार ने अब यह शुरू कर दी है। ऐसे ही कई और कदम सरकार उठा रही है और आज के सम्मलेन की चर्चा से निकले निष्कर्ष को भी सरकार संज्ञान में रखेगी।
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार (स्वतंत्र प्रभार) श्री महेंद्र नाथ पाण्डेय इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे, हालांकि मुख्य अतिथि तो माननीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर थे, जो किन्हीं कारणों से नहीं आ पाए थे मगर उन्होंने अपना वीडियो सन्देश अवश्य ही सम्मेलन के लिए प्रेषित कर दिया था। श्री पाण्डेय ने आयोजकों को बधाई और शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि के के शर्मा ने जिस तरह से विभाग द्वारा उठाए गए कदमों को बताया है वह काबिले तारीफ है। जो कार्यक्रम यहाँ हो रहा है वह चिंतन का बड़ा विषय है, जो देश की दिशा के लिए बहुत जरूरी है। इस अभियान एक लिए आयोजकों का शुक्रिया। उन्होंने विद्वानों की महत्ता के बारे में बात करते हुए कहा कि कहा गया है स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वदा पूज्यते.
हम पहले से ही वैश्विक हैं, हमारा चिंतन पहले से उदार है। मगर हममें बाह्य आक्रमणों से प्रतिरोध की क्षमता होनी चाहिए थी, जिससे हमारा नालंदा विश्वविद्यालय कम से कम जलता नहीं। मगर आज स्थिति अलग है, हमारे देश के पास सामर्थ्यवान सीमाएं हैं। आज सरकार आप सबके योगदान और सहयोग से हर क्षेत्र में सुधार कर रही है और हम शिक्षा के क्षेत्र में भी आप सबके सहयोग से कदम उठाएंगे। नई पीढ़ी आगे बढना चाहती है, वह आगे बढ़ेगी और यही पीढी हमें भी दिशा दिखाएगी। हमें मूल्यों को आगे लेकर बढऩे की जरूरत है। जिसके लिए हमने कौशल विकास योजना जैसी योजनाएं बनाई हैं। आईआईटी खडग़पुर बहुत काम कर रहा है, और इसने कई तकनीकों को भारतीय परिवेश के अनुकूल किया है। उन्होंने आईआईटी द्वारा प्रकाशित जर्नल की तारीफ करते हुए कहा कि हमें तो आपके पब्लिकेशन से ही पता चलता है कि आखिर हो क्या रहा है। आने वाला समय प्रतिस्पर्धा का है और हमें समन्वयकारी प्रतिस्पर्धा पर बल देना होगा। उन्होंने क्रियान्वयन पर बल देते हुए कहा कि हमने आधारभूत बदलाव किए हैं। ऐसा नहीं है कि पहले की सरकारों ने काम नहीं किया, मगर कहीं न कहीं कुछ तो ठहराव आया।
श्री प्रकाश जावडेकर ने अपने वीडियो सन्देश में आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि हमें ब्रेनड्रेन से ब्रेन गेन की तरफ बढना है। हमने रिसर्च पर कई छात्रवृत्ति आरम्भ की है। हम चाहते हैं, कई उच्च कोटि के शोध हों, हम चाहते हैं कि हमारे पास वर्ष में कम से कम से 1000 से 2000 सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क हों। मोदी सरकार के आने के बाद उनके नेतृत्व में लोग अपने देश की सेवा करने के लिए बाहर से वापस आ रहे हैं। हमने नए काम शुरू हुए हैं। हर साल नए प्रोफेसर आ रहे हैं। हमारा प्रयास है कि भारत जल्द ही उच्च शिक्षा के लिए एक गंतव्य बने। हमें आप सुझाव दें जिससे हम नए कदम उठा सकें। इससे पहले उन्होंने अपने लिखित सन्देश में आयोजकों को बधाई देते हुए यह उम्मीद व्यक्त की थी कि यह सम्मलेन एक शुरुआत होगा न कि कोई अंत। इस चर्चा से जो विचार उभर कर आएं वह एक नई शुरुआत की नींव हों। उन्होंने अपने लिखित सन्देश में यह भी खुशी जाहिर की थी कि उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भारी कमी हो रही है और विदेशी पूंजी का प्रवाह भी कम हो रहा है।
मुख्य अतिथि के वीडियो भाषण के उपरान्त पुस्तिका का विमोचन किया गया जिसमें इस सम्मलेन के उद्देश्य, थीम लेकचर एवं सभी वक्ताओं के विवरण थे।
उद्घाटन के उपरान्त प्रथम सत्र में सत्र की अध्यक्षता कर रहे एनबीए के अध्यक्ष प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रसाद का कहना था कि हमें लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। चूंकि हम सभी यहाँ पर कोई न कोई उद्देश्य या अपेक्षा या महत्वाकांक्षा के साथ आए हैं तो हमें यह तय करना होगा कि हम यहाँ पर सार्थक चर्चा करें। उन्होंने कहा कि यह हम सबका उद्देश्य है कि विदेशी छात्र हमारे यहाँ पढने के लिए आएं, मगर यह भी उतना ही सच है कि हमें विदेशी छात्रों की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा। हमें डिलीवरी प्रणाली पर ध्यान देना होगा। हमें उससे में बदलाव करना होगा। सिद्धांत चूंकि तकनीकी और अन्य शिक्षा के लिए एक समान है तो हमें कई कदमों को उठाए जाने की जरूरत है। आईआईटी अधिनियम के अनुसार आईआईटी को अन्य स्थानों पर कई तरह की भूमिकाएं निभानी हैं। और आई आईटी यह बखूबी कर रहा है। वह कई तरह के योगदान दे रहा है। अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त एमबीए शिक्षा के क्षेत्र में गेम चेंजर की भूमिका निभा सकता है, एनबीए द्वारा दी जा रही मान्यता एक मंच है, और हमें इसका प्रयोग अन्य संस्थानों को मार्ग दिखाने के लिए करना चाहिए और आईआईटी को यह मार्ग दिखाना चाहिए.
आईआईएम बंगलुरु से आए प्रोफेसर जी रघुराम ने कहा कि अब तक आई आई एम की चार शाखाए हैं और चारों ही सफल रही हैं। अब कई और शाखाएं अस्तित्व में आ रही हैं। विदेशी भारत को एक बड़ा बाजार देखते हैं। हमने कई पाठ्यक्रम आरम्भ किए हैं, जो येल यूनिवर्सिटी के साथ हैं। एक सप्ताह के पाठ्यक्रम को कहीं से भी कोई कर लेता है। सांस्कृतिक एक्सचेंज के माध्यम से कई विद्यार्थी आते हैं। कई तरह के एमओयू, आईआईएम बंगलुरु ने साइन किए हैं। जो भी विदेशी विद्यार्थी आईआईएम में आते हैं वे हमारे पाठ्यक्रम की गुणवत्ता से प्रभावित होते हैं। हम ड्यूएल डिग्री प्रोग्राम भी करा रहे हैं। आईआईएम अहमदाबाद 5 टॉप रैंक संस्थानों के साथ यह कार्यक्रम कर रहा है। इसमें अभी 22 विद्यार्थी हैं, हालांकि यह संख्या अभी कम है। हमें रिसर्च पर ध्यान देना है। और हमें यह भी ध्यान देना होगा कि हमें किन देशों से विद्यार्थी चाहिए।
आईआईटी खडगपुर के निदेशक प्रोफेसर पीपी चक्रवर्ती ने कहा कि चूंकि हमारे पास पर्याप्त धन होता है तो हम यह नियत कर सकते हैं कि हमें क्या कार्य करना है, परिवर्तन करना है। हम एक ऐसा प्लेटफॉर्म बना सकते हैं जिससे कोई भी पढ़ सके। हमने नैशनल डिजिटल लाइब्रेरी बनाई है जिसके साथ कई विद्यार्थी जुडे हैं। अब एक डिग्री का जमाना चला गया है। लोग अब पेयर वाले पाठ्यक्रम चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें तकनीक और संगीत दोनों की डिग्री साथ मिलें। हमें कई संस्थानों के साथ मिलकर कार्य करना होगा कि हम ये कोम्बिनेशन भी उन्हें प्रदान कर सकें। प्रश्न यही है कि हम इसे करने में कैसे सक्षम होंगे। और यदि हम नैशनल डिजिटल लाइब्रेरी जैसे संसथान और बना सके तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.
प्रोफेसर एमपी पुनिया ने एक नई बात रखते हुए कहा कि चूंकि हमारे यहाँ मेंटरिंग अर्थात दिशानिर्देश का अभाव हो गया है तो हमारे यहाँ भूमिकाएँ बदल गयी हैं। सरकारी स्कूल जिस तरह से पहले परिवार की तरह मेंटर करते थे, वह भी नहीं है। तो हमें शिक्षा तो चाहिए, मगर कैसी शिक्षा चाहिए, यह भी देखना होगा। हमें शिक्षा तक एक्सेस बढाना होगा। हमें पाठ्यक्रम पर बात करनी होगी, पाठ्यक्रम में आमूल्चूक बदलाव की आवश्यकता है। हमारे यहाँ विडंबना है कि चर्चित बुलेट ट्रेन हमारे ही इन्जीएनियर ने बनाई हैं परंतु हम अभी तक पाठ्यक्रम में भाप वाले इंजन ही पढ़ रहे हैं। एआईसीटीई अकेला ही चमत्कार नहीं कर सकता है.
आईआईआईटीएम ग्वालियर के निदेशक प्रोफेसर एसजी देशमुख ने कहा कि सरकार में फैकल्टी और प्रवेश परीक्षा के कारण कई सुविधाएं हैं। अभी तक अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को लाने के लिए किसी की पूरी क्षमताओं का प्रयोग नहीं हुआ है। आधारभूत संरचना और शिक्षण क्षमताओं का पूरा प्रयोग संस्थान नही करते हैं। आज का बाजार प्रतिस्पर्धी है, जिसमें बने रहने के लिए कई कदम उठाने होंगे। बाजार को समझना होगा, उपभोक्ताओं को समझना होगा। आज का उपभोक्ता बहुत स्मार्ट है, उसके पास इन्टरनेट है, सोशल मीडिया है, फोन है और वह पूरी तरह से पारदर्शी है। उसे सब पता है। विद्यार्थी को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा देना भी एक चुनौती है। हमें पूर्वाग्रह छोड़कर बात करनी होगी। क्लास रूम और ऑनलाइन पाठ्यक्रम में अंतर बताए जाने की जरूरत है। सरकारी संस्थानों की सबसे बड़ी समस्या है कि वे सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं है तभी वहां बाहर से छात्र नहीं आते हैं। हमें फेसबुक, ट्विटर आदि पर सक्रिय होना होगा।
दूसरे सत्र में जिसका विषय था ष्टशठ्ठह्लह्म्द्बड्ढह्वह्लद्बशठ्ठ शद्घ क्कह्म्द्ब1ड्डह्लद्ग स्द्गष्ह्लशह्म् ढ्ढठ्ठह्यह्लद्बह्लह्वह्लद्बशठ्ठह्य ड्डठ्ठस्र द्घह्वह्लह्वह्म्द्ग श्चद्यड्डठ्ठह्य मे चर्चा की शुरुआत में प्रोफेसर पीबी शर्मा, ने सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि निजी और सरकारी दोनों ही संस्थानों के लिए एक खतरे की घंटी बज चुकी है। मैंने पूरी जिन्दगी निजी क्षेत्रों में ही बिताई है, अब निजी क्षेत्रों को गुणवत्ता पर बात करनी होगी। सरकारी संस्थानों में नियामक सुविधाएं नहीं हैं तो हमें कई बार गलतियाँ करने से बचना चाहिए.
बिमटेक के निदेशक डॉ एच चतुर्वेदी का कहना था कि भारत सरकार, नियामक इकाइयों और निजी संस्थानों के बीच संबंध होना चाहिए। भारत के संस्थान अपनी मार्केटिंग बाहर नहीं करतेहैं तो यहाँ पर यह पता ही नहीं है कि आखिर स्टूडेंट कहाँ से आएँगे? कौन से कदम उठाए जाएं, इन के लिए एक पोर्टल बनाना जरूरी है। हम यूरोप और अमेरिका से विद्यार्थी नहीं बुला सकते हैं। तो हमें देश खोजने होंगे। हमें सार्क और अफ्रीकी देशों को खोजना होगा जो भारत को अपेक्षाकृत शांत देश मानते हैं। हमारे अन्दर जो सबसे बड़ी कमी है वह है संवेदनशीलता की। हमें अपने देशवासियों को यह बताना होगा कि ये हमारे मेहमान है, हमारे अन्दर सह अस्तित्व की भावना को विकसित करना होगा। काउंसलर की व्यवस्था करनी होगी।
इसी बात को आगे बढाते हुए श्री संजय कौल ने कहा कि मैं कई उद्योगों को खोजते खोजते आज तक यह नहीं खोज पाया कि आखिर उद्योग क्या चाहते हैं। इतनी चुनौतियां, प्रतिभा? मैं प्रतिभा खोजने के लिए 80 से अधिक विश्वविद्यालयों में गया हूँ। कंटेंट के बारे में बात की, मगर क्या हम कुछ बदलना चाहते हैं जो नहीं हो रहा है। क्या हम बहुत कुछ बदलाव करना चाहते है? हमें खोजना होगा। हमें उद्योगों के अनुसार ही शिक्षा का सृजन क्जरना होगा। हमें नई ईको प्रणाली की आवश्यकता है। हम शिक्षा और व्यापार के बीच फँस गए हैं। हम निजी और सरकारी के बीच फँस गए हैं। हमें सरकार से बात करनी होगी। हमें अपने अन्दर के स्टार्टअप और नौकरी के बीच के द्वन्द से बाहर निकलना होगा।
हिन्दुस्तान टाइम्स के एग्जेक्युटिव डायरेक्टर श्री राजेश मोहापात्रा ने कहा कि यहाँ आकर मुझे लग रहा है कि मैं अकेला ही नहीं हूँ जो इस अनिश्चितता के भ्रम में है। मेरे पास सवाल कई है पर जबाव कहाँ है? हमारे देश में रोजगार की समस्या और रोजगार देने वाली शिक्षा का अभाव सबसे बडी समस्या है। जो समस्या आज से कई साल पहले थी वह आज भी है। वह गायब नहीं हुए है। पाठ्यक्रम की समस्या है। जब तक हम बड़े आर्थिक पहलू को नहीं देखेंगे हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे। ये सवाल हमें करने होंगे कि आखिर क्यों हमारे यहाँ विदेशी नहीं आएँगे? जब तक हम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उनके प्रति भेदभावपरक अवधारणाएं बनाते रहेंगे, हम विदेशी छात्रों को आकर्षित नहीं कर पाएंगे। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अपने अनुभव को बतलाते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय का कक्षा के बाहर का माहौल विद्यार्थी की पूरी सोच को परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त है।
लंच के बाद आरम्भ हुए सत्र का आरम्भ करते हुए थापर यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष श्री राजीव थापर ने कहा कि गुणवत्ता के लिए हमें विदेशी सस्थानों के साथ सहयोग करना ही होगा। और इसके लिए हमारी प्रणाली सरल होनी चाहिए। हमने एक नया कार्यक्रम आरम्भ किया है और हमने थापर ट्रिनिटी प्रोफेसरशिप को भी आरम्भ किया है, मुझे जो लगता है कि हमारे मार्कीटिंग प्रयास बहुत बेहतर होने चाहिए, हमें अपने विद्यार्थियों को मार्किट करना चाहिए। हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मार्केट की तरफ देखना चाहिए, पहले हमें एशिया की तरफ देखना चाहिए और फिर ही कहीं और देखना चाहिए। हमें प्रबंधन समस्याओं की समीक्षा करनी चाहिए.
इसके उपरान्त एसपी जैन इंस्टिटयूट ऑफ एम एंड आर के डीन श्री रंजन चटर्जी का कहना था कि संबंध हमेशा दो तरफा होते हैं, आपको आत्मविश्वास के साथ जाकर अपने विद्यार्थियों की क्षमताओं को रखना होता है और बराबरी के दर्जे पर बात करनी होती है। हमें किसी भी प्रकार की शर्मिंदगी को छोड़कर बात करनी होती है। जब हम बराबरी के आधार पर बात करते हैं तो विदेशी संसथान हमारे साथ संबंध बनाने के लिए विवश हो जाते हैं। हमें यह कहते हुए बहुत ही गर्व हो रहा है कि जब हमारे विद्यार्थी बाहर से आते हैं तो वे आकर हमारे संस्थान की तारीफ करते हैं।
बौद्धिक रूप से उपनिवेशवादी नहीं होना चाहिए। हमें वैश्विक की परिभाषा को सच्चे अर्थों में समझना चाहिए। पहले भारत की समस्या को सुलझाएं और उसके बाद ही हम बाहर को देखे। एक और समस्या है कि आप किसी भी उद्योग पति से बात करें और उससे पूछे कि उसके मनपसन्द दस थॉट लीडर कौन हैं तो वह सारे नाम बाहर के देगा। भारत में यह सोच अभी विकसित करने की आवश्यकता है।
आईआईटी चेन्नई से प्रशिक्षित परंतु जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में कार्यरत श्री एम जगदीशन का कहना था कि जेएनयू में चार सौ से अधिक विदेशी छात्र हैं और हमें समस्या के कई और पहलुओं की तरफ देखना होगा। हम एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं और कभी कभी विश्वविद्यालय में होने वाले धरने प्रदर्शनों में ये विदेशी छात्र भी सम्मिलित होते हैं। भारत में इस समय 300 मिलियन लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है। यह सच है कि तकनीक और मार्केटिंग किसी भी देश के विकास के लिए सबसे अधिक आवश्यक हैं, मगर उसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि हम मानवीय द्रष्टिकोण को भी ध्यान में रखें। हमें विकसित और अर्ध विकसित की तरफ भी देखना होगा। श्री योगेन्द्र ने मानवीय द्रष्टिकोण से शिक्षा को देखने की बात की। सत्र का अंत इस निष्कर्ष के साथ हुआ कि हमें केवल नौकरी चाहने वाले ही नहीं बल्कि उद्यमी उत्पन्न करने चाहिए। हमारे पास नए और मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम होने चाहिए। हमारे पास सरकारी और निजी संस्थानों के लिए मार्केटिंग प्रणाली होनी चाहिए। हमारे पास एलायंस पार्टनर होने चाहिए। इलेक्ट्रोनिक शिक्षा एक देश के विकास के लिए कई भूमिकाएं निभा सकती है।
सत्र के समापन पर सवाल और जबाव का भी दौर था। जिसमें कई तरह के सवाल पूछे गए एवं आयोजकों तथा विभिन्न पैनलिस्ट ने उनके उत्तर दिए।
कार्यक्रम में मीडिया सहयोगी रहे डायलॉग इंडिया पत्रिका के ग्रुप संपादक श्री अनुज अग्रवाल एवं पत्रिका की प्रबंध संपादक श्रीमती सारिका अग्रवाल को भी आईआईटी खडग़पुर एल्युमनी फाउंडेशन के प्रेसिडेंट कमांडर वीके जेटली द्वारा सम्मानित किया
गया।