ललित गर्ग
भारतीय जन-जीवन की आर्थिकी से लेकर सांस्कृतिक परिदृश्य तक भारतीय रेल एक सतत महत्वपूर्ण आधार और सशक्त माध्यम है, इसीलिए उसकी अव्यवस्था और बदहाली राष्ट्रीय चिंता का बड़ा कारण मानी जाती है। तरह-तरह की उपलब्धियों के बावजूद रेल यात्रियों को सफर में हर कदम पर कठिनाइयों से जूझना पड़ता है। लेकिन सबसे शोचनीय पहलू यह है कि मुसाफिरों के लिए जो चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है, वह है रेल्वे का खाना। लम्बे समय से रेल्वे के घटिया, नुकसानदायी एवं बीमार बनाने वाले खाने को लेकर विभिन्न मंचों पर चर्चाएं होती रही हैं। भारतीय रेलवे के खाने की घटिया क्वालिटी पर यात्रियों के हवाले से मीडिया ने कई बार सवाल उठाए हैं, लेकिन अब तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में बाकायदा इस पर घटियापने की मोहर लगा दी है। जो न केवल रेलवे प्रशासन पर बल्कि भारत सरकार की नीतियों एवं व्यवस्थाओं पर एक दाग है। तमाम रेलवे की सफलता के कीर्तिमान इस एक दाग के कारण धुंधला रहे हैं, इस पर वर्तमान रेलमंत्री सुरेश प्रभु को गंभीरता सोचना होगा, क्योंकि भारतीय रेल सुधरेगी तो देश की तस्वीर सुधरेगी।
नया भारत एवं सशक्त भारत के निर्माण का आधार है भारतीय रेलवे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेलवे का कायाकल्प चाहते हैं और उसे देश की जीवनरेखा बताते हुए कई बैठकों में रेलवे को चाक-चैबंद करने की हिदायतें दे चुके हैं। सुरेश प्रभु को नये-नये प्रयोग करने एवं रेलवे की दिशा और दशा को सुधारने का अधिकार भी दिया गया है। रेल मंत्री भी हर संभव उपाय आजमा रहे हैं। कई नामी लोगों को वे सलाहकार बना रहे हैं और अनेक समितियां बना कर विभिन्न पहलुओं की पड़ताल कर रहे हैं। लेकिन इन सब स्थितियों के बावजूद रेलवे अव्यवस्था, धीमी रफ्तार, असुरक्षा, स्टेशनों पर साफ-सफाई या घटिया खान-पान, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के दागों से मुक्त नहीं है।
एक तरफ देश में बुलेट ट्रेन चलाने का सपना दिखाया जा रहा है, दूसरी तरफ यात्रियों को बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। खानपान का स्तर गिरा है, तो इसके लिए किसी ठेकेदार की कारस्तानी से ज्यादा रेलवे में व्याप्त भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। हाल के वर्षों में खानपान की गुणवत्ता में गिरावट और अधिक दाम वसूली के कई मामले आने के बाद रेलमंत्री सुरेश प्रभु को नई खानपान नीति लाने के लिए विवश होना पड़ा लेकिन उसका कोई खास फायदा नहीं हो पाया है। सीएजी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक रेलगाड़ियों में और स्टेशनों पर मुसाफिरों को न सिर्फ महंगा खाना दिया जा रहा है बल्कि वह गुणवत्ता में भी मानकों के अनुरूप नहीं होता। बीते शुक्रवार को संसद में पेश की गई यह रिपोर्ट बताती है कि गाड़ियों में और स्टेशनों पर परोसी जा रही चीजें प्रदूषित एवं बीमार करने वाली हैं। डिब्बाबंद और बोतलबंद चीजें एक्सपायरी डेट निकल जाने के बाद भी बेची जा रही हैं। सीएजी और रेलवे की जॉइंट टीम ने 74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के मुआयने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने जांच में यह भी पाया कि रेलवे परिसरों और ट्रेनों में साफ-सफाई का बिलकुल ध्यान नहीं रखा जा रहा। रिपोर्ट में खानपान में गड़बड़ी के कारणों की ओर भी इशारा किया गया है। इसमें बार-बार बदलती कैटरिंग पॉलिसी पर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस उठापटक से कैटरिंग सर्विस मुहैया कराने वाला मैनेजमेंट हमेशा दुविधा में रहता है। दिक्कत यह है कि रेलवे में जिन पर क्वालिटी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है, वे खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। रेलवे खानपान के संबंध में यह प्रावधान है कि वस्तुएं निर्धारित दरों पर बेची जाएंगी, प्रत्येक वस्तु का मूल्य रेल प्रशासन तय करेगा, यात्रियों से अधिक कीमत नहीं ली जाएगी। लेकिन यह देखा गया कि बिस्कुट, सीलबंद उत्पाद, मिठाइयां आदि (पीएडी वस्तुएं) खुले बाजार की तुलना में भिन्न वजन और भिन्न मूल्य से रेलवे स्टेशनों पर बेची जा रही थीं। जुर्माना लगाए जाने के बाद भी मुसाफिरों से ज्यादा कीमत वसूलने और शोषण के मामले जारी रहे। इस रिपोर्ट से ठेकेदारों की मनमानी जाहिर है। पर सवाल है कि रेल प्रशासन क्या करता है जिस पर निगरानी रखने और गड़बड़ी किए जाने पर कार्रवाई करने का जिम्मा है?
भारतीय रेलवे देश की जीवन रेखा मानी जाती है, विकास को गति देने का मजबूत माध्यम है, उसकी बेहतरी को लेकर बहसें घरों, नुक्कड़ों और ट्रेनों से लेकर संसद तक होती रहती है। रेलवे में क्रांतिकारी बदलाव के लिये माधवराज सिंधिया के रेलमंत्री का कार्यकाल आज भी गर्व से याद किया जाता है। उस समय ट्रेनों में विशेषकर राजधानी में परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता एवं स्वाद की चर्चा आमजनता के बीच होती थी। उस दौर के बाद ट्रेनों में खाने का स्तर लगातार गिरता ही रहा है। स्टेशनों के अलावा रेलगाड़ियों के भीतर मिलने वाले भोजन को लेकर भी शिकायतें आम हैं। सुस्वादु होना तो दूर, उसे सेहत के लिए निरापद भी नहीं कहा जा सकता। बनाने-पकाने के दौरान अपेक्षित सावधानी और सफाई नहीं बरती जाती। जब राजधानी जैसी आला दर्जे की ट्रेनों में सफर करने वाले अक्सर यह शिकायत करते मिलते हैं, तो सामान्य श्रेणी की ट्रेनों में क्या हाल होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
दरअसल, मुसाफिर रोजाना जो भुगतते रहे हैं, सीएजी की रिपोर्ट ने उसी की पुष्टि की है। कुछ सालों से रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने का दम भरा जा रहा है। इसके लिए विदेशी निवेश आमंत्रित करने तथा कुछ देशों की विशेषज्ञता का लाभ लेने की बातें कही जाती रही हैं। लेकिन ये सब दीर्घकालीन परियोजनाएं हैं और इस दिशा में प्रगति का आकलन अभी नहीं हो सकता। पर सुरक्षा, ट्रेनों के समय से परिचालन तथा समय से गंतव्य पर पहुंचने, साफ-सफाई व खान-पान सेवा में सुधार जैसी कसौटियों पर खरा उतरे बिना भारतीय रेलवे अपनी वास्तविक मंजिल को नहीं पा सकेगी। फिलहाल रेलवे को वोट बैंक की राजनीति से बाहर निकाल कर आमजनता की सुविधा से जोड़ना होगा। देश के लाखों गांवों-कस्बों को तीव्रगामी गाड़ियों से जोड़ने और रेल यात्रा को सुहाना सफर बनाने का लक्ष्य तभी हासिल होगा जब राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त एवं समग्र नीति बने। नीति के साथ-साथ चरित्र भी बनाना होगा। क्योंकि राष्ट्र केवल व्यवस्था से ही नहीं जी सकता। उसका सिद्धांत पक्ष भी सशक्त होना चाहिए। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की इमारतों की ऊंचाई या रेलों की तेज गति से नहीं मापी जाती बल्कि वहां के नागरिकों एवं नीति-निर्माताओं के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है। हमारी सबसे बड़ी असफलता है कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी राष्ट्रीय चरित्र नहीं बन पाया। राष्ट्रीय चारित्र का दिन-प्रतिदिन नैतिक हृास हो रहा है। हर गलत-सही तरीके से हम सब कुछ पा लेना चाहते हैं। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कत्र्तव्य को गौण कर दिया है। इस तरह से जन्मे हर स्तर पर भ्रष्टाचार ने राष्ट्रीय जीवन के साथ-साथ भारतीय रेलवे में एक विकृति पैदा कर दी है।
भारतीय रेलवे को फर्राटेदार बनाने के साथ-साथ संवेदनशील और अनुशासित भी बनाना होगा। इसमें जनता की भागीदारी को भी सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए मुसाफिरों को जागरूक करना होगा, ऐसा माहौल बनाना होगा कि सफर के दौरान सफाई का ध्यान रखने का मनोवैज्ञानिक दबाव हर किसी को महसूस हो। पर भोजन तैयार करने की प्रक्रिया में स्वच्छता, गुणवत्ता तथा सेहत के तकाजे की जो अनदेखी होती है, उसका ठीकरा रेलवे किसके सिर फोड़ेगा? फ्रेट कॉरीडोर बनाने और रेलगाड़ियों की रफ्तार बढ़ाने आदि की महत्त्वाकांक्षी योजनाएं अपनी जगह हैं, इनका हवाला देकर रेलवे मुसाफिरों के प्रति रोजाना की अपनी जिम्मेवारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता। यही वह क्षण है जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और यह वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण शेष रहे कामों को पूर्णता देने का, क्योंकि रेलवे का भविष्य ही भारत का भविष्य है।
सुरेश प्रभु को रेलवे का प्रभु बनना होगा, तमाम चुनौतियों से जूझ रही भारतीय रेल को पटरी पर लाने के लिए रेल की दशा और दिशा को संतोषजनक बनाना होगा। सरकार को अब बहानेबाजी छोड़कर लंबी यात्राओं में यात्रियों को इंसान के खाने लायक खाना उपलब्ध कराना चाहिए और रेलवे में भ्रष्टाचार रोकने के लिए जो भी उपाय संभव हों, उन्हें अमल में उतारने में देर नहीं करनी चाहिए। भारत में रेलवे सबसे बड़ी परिवहन सेवा है, सफर और माल ढुलाई दोनों के लिहाज से। रोजाना करोड़ों लोग किसी न किसी दूरी तक रेल से सफर करते हैं। आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और व्यवसाय की दृष्टि से भी रेलवे की अहमियत जाहिर है। धीमी रफ्तार के साथ-साथ कई और भी बाधाएं भारतीय रेलवे के हाथ-पांव बांध देती है। जगह-जगह टूट-फूट चुके रेलवे ट्रैक से लेकर असुरक्षित डिब्बों और अपनी उम्र पार कर चुके पुलों के कारण रेलवे वक्त से काफी पीछे छूट चुकी है। नई तकनीक के अभाव में पुराने ढंग से ट्रैक, कोच और वैगनों से काम चलाया जा रहा है। यह लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं और जरूरतों को पूरा कर सके, इसके लिये ट्रैक से लेकर रोलिंग स्टाॅक तक और स्टेशन से लेकर सिग्नल प्रणाली तक, साफ-सफाई से लेकर गुणवत्तापूर्ण खाने तक सब कुछ बदलना होगा। इस बिन्दु पर सोच उभरती है कि हम दायें जाएं चाहे बायें, अगर रेलवे को श्रेष्ठ बनाना है तो दृढ़ मनोबल चाहिए। मनोबल एवं संकल्प ही है, जिसके सहारे रेलवे की कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। प्रे्रेषकः
(ललित गर्ग)