र्ण व्यवस्था के तहत ब्राह्मण यानि मेधा शक्ति, क्षत्रिय यानि रक्षा शक्ति, वैश्य यानि वाणिज्य शक्ति, शूद्र यानि श्रम शक्ति थी |
मेधाशक्ति, रक्षा शक्ति, वाणिज्य शक्ति तथा श्रम शक्ति एक दूसरे की समानंतर और पूरक व्यवस्थाएं थी | यदि पूरे विश्व में इससे कोई अलग व्यवस्था चल रही हो तो बताइए ?
क्या कभी आपने विचार नहीं किया कि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र जातियां नही वर्ण है ? और यदि जातियां हैं तो कब से हैं ? क्यों हैं ? कैसे हैं ? आश्चर्य है की ये कार्य कितने योजनाबद्ध तरीके से किया गया और ये अहसास भी नहीं होने पाया |
मैं आप लोगों से पूछता हूँ मनुस्मृति में क्या इनको जाति लिखा गया है ? लेकिन H H Risley ने मनुस्मृति का हवाला देकर इनको 1901 में जाति बना दिया | दुर्भाग्य देखिए आज इसाइयों (अंग्रेजों) का षड्यंत्र संविधान का अंग है |
वेदों में ‘शूद्र’ शब्द लगभग बीस बार आया है | कहीं भी उसका अपमानजनक अर्थों में प्रयोग नहीं हुआ है | और वेदों में किसी भी स्थान पर शूद्र के जन्म से अछूत होने, उन्हें वेदाध्ययन से वंचित रखने, अन्य वर्णों से उनका दर्जा कम होने या उन्हें यज्ञादि से अलग रखने का उल्लेख नहीं है |
वेदों में अति परिश्रमी कठिन कार्य करने वाले को शूद्र कहा है (“तपसे शूद्रम”-यजु. 30.5), और इसीलिए पुरुष सूक्त शूद्र को सम्पूर्ण मानव समाज का आधार स्तंभ कहता है | वैदिक समाज मानव मात्र को एक ही जाति, एक ही नस्ल मानता है | वैदिक समाज में श्रम का गौरव पूर्ण स्थान है और प्रत्येक व्यक्ति अपनी रूचि से वर्ण चुनने का समान अवसर पाता है | किसी भी किस्म के जन्म आधारित भेद मूलक तत्व वेद एवं शास्त्रों में नहीं मिलते |
मात्र 116 साल पूर्व वर्ण, जो कि श्रम-विभाजन का आधार था, उसको समाप्त कर गोरे इसाई अंग्रेजों ने भारतीय समाज को जातियों में विखंडित किया और वर्ण के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र को आज जाति बनाकर पेश किया और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ शूद्रकर्म पर आधारित व्यवसाय नष्ट किया तो उनके वंशजों को SC बनाकर 1936 मे संविधान का भाग बना दिया | बाद में काले अंग्रेजों ने उन्हीं की नकल कर एक OBC वर्ग अलग चिन्हित किया |
ध्यान देने की बात यह है कि *शूद्र यानि श्रमशक्ति, जो 2000 वर्ष से 1750 तक के लिखित इतिहास के अनुसार और उसके पूर्व न जाने कितने वर्षों से भारत की GDP का निर्माता था (35 से 25 % के विश्व GDP का हिस्सेदार भारत 0 AD से 1750 AD तक था, जबकि ब्रिटेन और अमेरिका मिलकर मात्र 2% GDP के शेयर होल्डर थे), उनको बताया गया कि मनु और पुरुषोक्ति के कारण तुमको मेनिअल जॉब अलोट किया गया है |*
वर्ण समाप्त कर दिया गया 1901 में, अब तो जाति बची है | भारत का संविधान जाति को पोषित करता है | जबकि मनुस्मृति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे किसी सम्पूर्ण जाति को शूद्र घोषित किया जा सके, लेकिन भारतीय संविधान में ऐसा अनुच्छेद है |
इस संविधान में आदमी अपना देश, व्यवसाय, धर्म, पेशा, यहाँ तक लिंग बदल सकता है लेकिन अपनी जाति नहीं बदल सकता, ये तो मनुस्मृति से भी अधिक कठोर है |
शोषक, भेदभावपूर्ण व जाति वादी कौन ? मनुस्मृति या संविधान ?