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चमचो के सहारे टिकी “राजनीति”

भारत में चमचो का इस्तेमाल आम तौर पर रसोईघर में ही होता रहा है| सारे
बर्तन होने के बाद भी चमचे का स्थान सबसे अलग है.सभी तरीके का खाना बनाने
के बाद उस खाने में स्वाद लाने के लिए विशेष रूप से चमचे का इस्तेमाल ही
किया जाता है, ठीक उसी प्रकार भारत में वर्तमान समय की राजनीति में
नेताओं के “चमचो” का विशेष महत्त्व है. चमचो से अभिप्राय उस प्राणी से है
जो आपको नेता जी से मिलने का समय से लेकर, जुगाड़ तुगाड़ लगाकर आपके न होने
वाले कार्यो को भी नेता जी द्वारा करवाए जाने वाले व्यक्ति से है. आज
चमचो का राजनीति में अपना एक विशेष स्थान है. सत्ता में आने के बाद अपने
अपने चमचो की तादात दिखने का चलन भी तेजी से बढ़ा है| इस प्रकार का चाव जो
नेताओं में बढ़ा है वो उन्हें विलासी बना रहा है. जिस नेता का कोई चमचा
नही होगा वो स्वयं किसी न किसी का चमचा होगा और जो खुद बड़ा नेता होगा
उसके घर के बाहर तो चमचो की फ़ौज कड़ी हर वक़्त मिलेगी, जो दिन रात बस नेता
जी की हाँ में हाँ और रामधुनी में लगी रहती है| ऐसे ही चमचो के कारण नेता
भोपूं और निखट्टू भी होते जा रहे है तथा अपनि कैसेट इन्ही चमचो के सहारे
पूरी दुनिया में बजवाते घूमते है| आज कल शुभचिन्तक का दूसरा नाम ही चमचा
है, यदि आपने किसी नेता की अच्छी आदत का बखान किसी विरोधी के सामने कर
दिया तो आप उसके लिए बस एक चमचा ही कहलाओगे.
वर्तमान राजनीति में सत्ता के किसी भी गलियारे में आपको कोई भी
काम किसी भी नेता से करवाना है तो चमचो से ही संपर्क साधना पड़ेगा. कभी भी
अगर आपने बिना चमचे की स्वीकृति से काम करवाने की कोशिश की तो हो सकता है
की आपका बना बनाया काम बिगड़ जाये. इसीलिए पहले चमचो को साधना बहुत जरूरी
है. आज कल की राजनीति में मजाल क्या आप किसी साधारण से विधायक या
चेयरमैंन से सीधे मिल पाए, आपको उनके चमचे की जरूरत जरुर महसूस होगी.
2000 साल पहले कालिदास जी ने एक ग्रंथ लिखा था
“अभिज्ञानशाकुंतलम”. कालिदास ने उसमे लिखा था की राजा दुष्यंत जंगल गये,
महर्षि कर्ण की बेटी शकुन्तला पर मोहित हुए और गन्धर्व विवाह किया, वहां
एक रात रुके और फिर अपने महल को वापस चले आये. सात महीने बाद माता गौतमी
अपनी सात माह की गर्भवती बेटी को लेकर रात के तीन बजे राजा दुष्यंत के
महल पहुंची और वहां दरवाजे पर खड़े प्रहरी से पूछा- क्या ये राजा दुष्यंत
का महल है और क्या मैं उनसे मिल सकती हूँ?
एक पंक्ति इसी ग्रंथ में आती है “अभीश्रोम्यम लोक तंत्रस्य सर्वाधिकार”
अर्थात ये आपका संवैधानिक अधिकार है कि आप अपने राजा से किसी भी समय
मिले. उस प्रहरी ने कहा- घंटा बजाइए, सोता हुआ राजा दुष्यंत उठकर महल से
बहार आएगा और आपसे मिलेगा|

ये था आज से 2000 वर्ष पूर्व का लोकतंत्र और वर्तमान में हमारी हिम्मत
नही कि सामान्य नागरिक होते हुए हम किसी राजनेता से सीधे मिल सके.
राजनीति, नौकरी सभी क्षेत्रों में चमचो का दखल है. राजनीति में आप
चमचागिरी के सहारे एक साधारण कार्यकर्त्ता से बड़ी जल्दी ही मंत्री पद पा
सकते है. अगर मंत्री पद नही भी मिला तो कोई एम०एल०सी० या फिर किसी खाद
निगम की चेयरमैनी पक्की|
सही मायनो में तो नेताओं को चमचा बनाने की जरुरत नही है बल्कि खुद जनता
का चमचा बनने की जरूरत है और जिसकी उम्मीद में जनता वर्षो से बैठी है कि
शायद कोई नया आयेगा……..

अपूर्व बाजपेयी

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