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खुद को हर कीमत पर साबित करना

एक बहुत ही पुरानी कहावत है वीर भोग्या वसुंधरा। हर सुबह ही अपने आप को वीर या श्रेष्ठ साबित करने की एक दौड़ शुरू हो जाती है, अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने की एक दौड़ शुरू हो जाती है। बाघ हिरन के पीछे दौड़ता है जिससे वह उसे पकड़ सके। अब हिरन अपने आप तो बाघ के पास जाकर कहेगा नहीं कि मुझे खाओ, अपनी भूख मिटाओ। बाघ को हिरन को पकडऩे के लिए अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करना ही होता है। इसी प्रकार हिरन के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती होती है अपने आप को बचाना और दिन भर के लिए जिंदा रहना। तो हर रोज़ हिरन को भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होता है, न केवल हर दिन बल्कि हर घंटे, हर मिनट। क्योंकि उसे नहीं पता होता कि कब उस पर कोई बड़ा जंगली जानवर आक्रमण कर देगा और उसे अपना शिकार बना लेगा।
आज हम जिस प्रतिस्पर्धी संसार में रहते हैं, वह किसी भी प्रकार से अलग नहीं है। एक सेल्समैन अपना दिन इसी उम्मीद के साथ शुरू करता है कि वह शाम तक अपने मैनेजर के सामने एक बढिय़ा रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकेगा। उसके लिए न केवल अपनी नौकरी बचाए रखना एक चुनौती है बल्कि उसके सामने यह भी चुनौती होती है कि वह अपने अगले प्रमोशन तक सही सलामत पहुँच सके। उसके काम का खराब प्रदर्शन कुछ दिन तो टाला या देखा जा सकता है, मगर काफी लम्बे समय तक नहीं। जिन लोगों को नौकरी से निकाला जाता है उनमें से नब्बे प्रतिशत लोगों को उनके खराब प्रदर्शन के कारण निकाला जाता है, केवल दस प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्हें बाकी अन्य कारणों जैसे अनुशासन हीनता या खराब आचरण के कारण अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। चूंकि अगर आपका काम शानदार रहा है या आपका प्रदर्शन बहुत शानदार रहता है तो आपकी कुछ कमियों को और गलतियों को प्रबंधन कुछ हद तक बर्दाश्त करता है और आपको हमेशा ही मौके देता है। मगर आप एक खराब प्रदर्शन करने वाले हैं, तो प्रबंधन केवल मौके खोजता है कि आप कोई गलती करें और आपको बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
कुछ संस्थान हैं और ख़ास तौर से सरकारी संस्थान जहां पर खराब प्रदर्शन करने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है। अगर मैं परेतो सिद्धांत का हवाला दूं तो मैं कह कसता हूँ कि 80 प्रतिशत कार्यबल खराब प्रदर्शन करने वाला है और संस्थान केवल और केवल 20 प्रतिशत अच्छे कार्य करने वालों के कारण ही जिंदा हैं। अब ये 80 प्रतिशत खुद को जिंदा रख सकते हैं, और इन्हें प्रमोशन भी मिल सकता है। मगर देखा जाए तो ये समाज के लिए परजीवी हैं। अपने विभाग में ही इन पर कोई ध्यान नहीं देता है। वहीं दूसरी तरफ वे बीस प्रतिशत जो दिल लगाकर काम करते हैं, शानदार प्रदर्शन करते हैं और कंपनी के लिए अपना दिलोजान कुर्बान करने के लिए तैयार होते हैं, उन पर हर कोई ध्यान देता है, कोई भी उन्हें जाने नहीं देता। उन्हें समय पर प्रमोशन मिलता है और देखा जाए तो वे समाज के लिए सहयोग करते हैं। और इन बीस प्रतिशत में से भी बहुत ही कम ऐसे होते हैं, जो आत्मसंतुष्टि के लिए काम करते हैं, जो खुद के संतोष के लिए काम करते हैं, जो एक वृहद द्रष्टिकोण के साथ काम करते हैं, और यकीन मानिए यही वे लोग हैं जो भविष्य के नेतृत्व कर्ता हैं। 80 प्रतिशत आलसी लोग केवल उन 20 प्रतिशत के कारण ही अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सफल होते हैं। यह अनुपात कुछ कम ज्यादा हो सकता है, मगर यह उस प्रवृत्ति को परिलक्षित तो करता ही है कि आखिर हमारा समाज काम कैसे करता है।
क्या आप सीमा पर किसी ऐसे सैनिक की कल्पना कर सकते हैं जो सचेत नहीं है और जो शत्रु सेना के सामने आने पर भी काम नहीं कर रहा है? उसे शत्रु की गोली से लेकर हर बात के प्रति हर समय सचेत होना होता है।, और उसे बिगड़ते मौसम से लेकर दुश्मन क्षेत्रों तक हर तरह से सावधानी का परिचय देना होता है। उसे अपने हथियार हर समय तेज रखने होते हैं। वह लड़ते समय किसी भी तरह की लापरवाही नहीं कर सकता है। उसे या तो दुश्मन की गोली मार देगी या फिर वह किसी सांप का शिकार हो सकता है या फिर वह बर्फीले तूफान की चपेट में आ सकता है और अगर वह पूरी तरह से सावधान नहीं है तो एकदम बर्बाद भी हो सकता है। मर सकता है। तो इस सैनिक को जिंदा रहने के लिए न जाने कितने मोर्चों पर एक साथ लोहा लेना होता है।
अब जरा किसी पायलट के कन्धों पर आने वाली जिम्मेदारी की कल्पना करिए। हज़ारों लोगों की जि़न्दगी उसके हाथों में होती है। क्या वह एक सेकण्ड के लिए भी लापरवाह होने की गुस्ताखी कर सकता है? नहीं, बिलकुल नहीं! उसकी आँख और कान पूरी तरह 100 प्रतिशत सचेत होने चाहिए, उसे हर आहट सुनाई देनी चाहिए और उसके हाथ कोक्पिट के किसी कोने से आने वाली आवाज़ पर कदम उठाने के लिए एकदम सावधान रहने चाहिए।
आज तो राजनीतिक दलों को भी यह बात समझ आ गयी है कि अगर वे सही से काम नहीं करेंगे तो कल वे नहीं बचेंगे। उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में फ़ेंक दिया जाएगा। लोग अब नए काम करने वालों को मौका देने के लिए तैयार बैठे हैं, लोग अब नए लोगों के वादों और इरादों पर भरोसा करने वाले हैं। भ्रष्टाचार मिटाने का सपना दिखाकर एक पार्टी तीन साल पहले शानदार बहुमत से दिल्ली में सरकार में आई थी आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषक इस बारे में तमाम तरह के कारण बता सकते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ मगर यह कहा जा सकता है कि चूंकि उन्होंने सही से काम नहीं किया या कहा जाए कि वे वादा निभाने में विफल रहे, यही कारण है कि उनका यह हश्र हुआ। लोगों ने उनकी वादाखिलाफी को कतई भी बर्दाश्त नहीं किया।
जिन व्यापारिक घरानों ने बदलते परिवेश से सबक नहीं लिया, या बदलते समय के साथ नहीं बदले वे नष्ट हो गए, अगर वे अपने पुराने ही ढर्रे पर काम करते रहे, या उन्होंने अपना काम करने का तरीका नहीं बदला तो वे समय के पटल से गायब हो गए। आज देखिये कोडक कहाँ है? क्या आप नोकिया फोन को बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करते हुए देखते हैं? वहीं दूसरी तरफ कई ऐसी देशी विदेशी कम्पनी हैं जिन्होनें समय के साथ न केवल खुद को स्थापित किया बल्कि सफलता पूर्वक परिवर्तनों के सभी दौर पार किये और वे बाज़ार में अग्रणी बने रहे। पेप्सी जहाँ नीबूज़ के साथ नीम्बू पानी के बाज़ार में उतरी वहीं कोक ने भी इस बाज़ार पर नजऱ गढाते हुए अपना नीम्बू पानी का ब्रांड लौंच किया। यूनिलीवर ने पतंजली से मुकाबला करने के लिए अपने टूथपेस्ट को हर्बल रूप रंग दिया। तो इन कम्पनियों ने खुद को बचाए रखने के लिए तरह तरह के बदलाव करना चालू रखा। उन्होंने समय की बदलती जरूरतों के हिसाब से उत्पादों में विविधता प्रदान की, और नए फ्लेवर लोगों के सामने रखे। उन्होंने जनता के मन को समझा। और अपने उपभोक्ताओं के हिसाब से खुद में बदलाव लाए।
अपने निजी जीवन में भी यह बहुत जरूरी है कि हम खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए काम करें। उसे आचरण में उतारना होगा। अभ्यास करना होगा। निरंतर अभ्यास ही व्यक्ति को उसके प्रदर्शन के शीर्ष तक पहुंचा सकता है। भारतीय बैडमिन्टन खिलाड़ी संधू इस समय बहुत शानदार खेल रही हैं, और वह और बेहतर करती जा रही हैं, क्या वह आलस कर सकती है? नहीं! कभी नहीं!
तो यह किसी भी पेशे के लिए सच हो सकता है, किसी भी चरण पर किसी भी स्तर पर कि हमें काम करना ही होगा, अगर हमें खुद को नष्ट होने से बचाना है। हम अपने अपने क्षेत्र में अपनी अपनी दौड़ दौड़ रहे हैं। हम खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए निरंतर चल रहे हैं। हमारे प्रदर्शन की एक सीमा है, हम उससे नीचे जाएंगे तो हमारा अस्तित्व खतरे में आएगा मगर यदि हम उससे अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो यकीन मानिए हम लगातार आगे बढ़ते जाएंगे। हमें खुद की नौकरी बचानी है, हमें अपने काम के तरीके में व्यवधानों से बचना है और हमें खुद को नष्ट होने से बचाना है।
तो हम जो कर रहे हैं, उसमें और बेहतर होने की कोशिश करते हैं, खुद को बेहतर करते हैं, कोई भी क्षेत्र हो, श्रेष्ठ हों, श्रेष्ठ कार्य करें।

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