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Why friendship with Pakistan?

दुर्जन से कैसी सज्जनता …⁉

क्या पाकिस्तान के अनेक अपमानजनक व अमर्यादित कटु व्यवहारों के बाद भी हम मौन रहें और उसे सहते रहें , पर कब तक और क्यों ? अधिक पीछे न जाते हुए अभी पिछले सप्ताह ऐसा ही एक प्रकरण हुआ जिसमें पाकिस्तान की एक जेल में बंद हमारे नागरिक कुलभूषण जाधव से मिलने गई उनकी माँ और पत्नी के साथ हुआ । उनके साथ किये गये दुर्व्यवहार ने हमारी धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंचा कर पाकिस्तान ने अपनी वहीं धूर्त व घृणित इस्लामिक मानसिकता का ही परिचय दिया । ध्यान रहें जाधव की माँ और पत्नी को उनसे मिलवाने से पहले उन दोनों के मंगल सूत्र, बिंदी , चूड़ियां आदि हिन्दू सुहागिनों के प्रतीक चिन्हों को उतरवाया गया व उनके वस्त्र भी परिवर्तित करायें गयें । यहां तक की सुरक्षा के नाम पर कुलभूषण की पत्नी के जूते तक भी उतरवा कर रख लिये। परंतु नकारात्मक व संदेहास्पद सोच के कारण वापसी में उनको बदले हुए जूते/चप्पल दिये गये। इससे पहले भी वर्षो पाकिस्तानी जेल में बंद रहें व वहीं मृत्यु पाने वाले सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर के साथ भी यही हुआ था उनका कहना है कि जब वह भी वहां अपने भाई से मिलने गई थी तो उन्होंने भी उनकी बिंदी व सिंदूर हटाने के बाद उनकी कृपाण भी रखवा ली थी, यह जानकारी उन्होनें तत्कालीन मनमोहनसिंह सरकार को दी थी परंतु उन्हें दुख है कि वे मौन रहें।
क्या अब हमें पाकिस्तान द्वारा वर्षो से हो रही कपटी व धूर्त नीतियों से सावधान रहकर वीर शिवाजी के समान शत्रु पर आक्रामक नही होना चाहिए। वह वर्षो से हमारे सैनिकों व नागरिकों को छुप छुप कर मारता आ रहा है , जबकि हम केवल उसके प्रतिउत्तर में कुछ सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्यवाही करके अपने को वीर मान कर वाह वाही का वातावरण बनाने से नही चूकते । क्या हमको भी वीर शिवाजी से प्रेरित होकर ऐसे कपटी शत्रु के लिए कपट व धूर्तता पूर्ण व्यवहार नही करना चाहिए ? क्या जन्मजात दुर्जन के साथ सज्जनता बनायें रखने का कोई औचित्य हैं ? दुर्जनों को यह ज्ञान कराना भी आवश्यक हैं कि सज्जनता प्रत्यक्ष रुप में कितनी ही उदार व क्षमाशील हो परंतु उसमें भी दुष्ट के साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार करने की उससे अधिक सामर्थ्य होती हैं ।
इतिहास साक्षी हैं कि🏼वीर शिवाजी अपनी विवेकशीलता से “कब साहस करना, कब धैर्य दिखाना, कब आक्रामक होना व कब मौन रहना आदि से निर्णायक भूमिका निभाने में सफल रहें थे। धूर्त अफजल खान को मारने पर जब उनको कुछ लोगों ने धोखेबाज व दगाबाज कहा तो उन्होंने सबका मुहं बंद करने के लिए स्पष्ट किया कि… “हां मैने धोखा किया, वो (अफजल खान) मुझे जिंदा या मुर्दा पकड़ कर ले जाने की प्रतिज्ञा के साथ आया था, तो मैं क्या करुं ? मैं अपने लिए जीना नही चाहता । यह नवनिर्मित स्वराज है , यह बढेगा, इसका वटवृक्ष होगा , उसके पहले उसे काटने वाले ( अफजल आदि) को मैं उसे काटने दूँ ? मैने उसे धोखा दिया क्योंकि वह धोखा मन में लेकर आया था। वह कपट कर रहा था मैंने उसका उत्तर दिया।”
परंतु हम फिर भी बार बार कपटी पाकिस्तान के बिमार नागरिकों के इलाज को प्राथमिकता देकर मानवीय मूल्य का परिचय देतें हैं, क्यों ? हमने पठानकोट एयरबेस पर हुए पाकिस्तानी आतंकियों की जॉच के लिए पाक की गुप्तचर संस्था व अन्य अधिकारियों का स्वागत क्या सोच कर किया था ? यह उचित है कि विश्व के सभी राष्ट्रों से हम प्रेम रखें लेकिन सर्वप्रथम हमें अपने देश के स्वाभिमान और सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान देना होगा । शत्रु और मित्रो में भेद का आवश्यक ज्ञान नही होगा तो हमारे नागरिकों की आस्थाओं से इसी प्रकार का दुराचार होता ही रहेगा। 1999 में अघोषित कारगिल युद्ध के समय कैप्टन सौरभ कालिया व उनके 5 अन्य साथी सैनिकों की निर्मम हत्या व उनके मृत शरीर से किये गए अत्याचारों को आज 18 वर्ष बाद भी उनके अभिभावक न्याय की आस लगायें बैठे हैं । क्या हमको 8 जनवरी 2013 की वह दर्दनाक घटना विचलित नही करती जब सीमा पर पाक सेना ने हमारे लॉस नायक हेमराज व सुधाकर सिंह के सिर धड़ से अलग कर दिए थे। इतना ही नही उस समय वे पाकिस्तानी इतने अधिक क्रूर थे कि वे हमारी सेना के वीर जवान हेमराज का कटा हुआ शीश भी अपने साथ ले गए थे। प्राप्त आंकड़ों से ज्ञात होता है कि 2010–2013 में इसके अतिरिक्त हमारे 6 जवानों के शीश काटे गए थे, तो इससे भी यही निष्कर्ष निकलता है कि पाक सेना अभी भी घृणित मध्यकालीन मुस्लिम मानसिकता से अत्यधिक ग्रस्त हैं। इस ऐतिहासिक सत्य को झुठलाया नही जा सकता कि मुगल आदि आक्रांताओं को हिंदुओं ने अनेक बार पराजित किया , किन्तु हिन्दू न तो विजय का लाभ ले पायें और न ही आक्रांताओं को रोक पायें । इतिहास साक्षी हैं कि आक्रांता मोहम्मद गौरी को राजा पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार निरंतर पराजित तो किया फिर भी वे गौरी का बार बार आक्रमण करने की जिहादी मनोवृति को समाप्त नही कर सके ।
पाकिस्तान अपने अस्तित्व में आने (1947) के तत्काल बाद से ही हमारे साथ कपट और धूर्तता का व्यवहार बनाये हए है । यह भी ज्ञात होना चाहिये कि पाकिस्तान के बनने पर लगभग ढाई करोड़ लोग बेघर हुए और 10 से 15 लाख लोगों के मारे जाने व 5 लाख से अधिक महिलाओं के बलात्कार का इतिहास अभी तक मानवता को शर्मसार किये हुए हैं। वह अपनी धार्मिक कट्टरता के वशीभूत जिहाद के लिए हमको अपमानित करने, हमसे भिड़ने व छदम युद्ध के लिए कोई भी मार्ग अपनाने से नही चुकता। अनेक युद्धों में पराजय के उपरांत भी वह वर्षो से युद्धविराम उल्लंघन व आतंकियों की घुसपैठ करवाके हमसे हज़ार वर्षो तक लड़ने का दुःस्वप्न पाले हुए है। उसके नीतिनियन्ताओ का नारा “हस के लिया है पाकिस्तान लड़के लेंगे हिंदुस्तान” वहां के वातावरण को अभी भी प्रदूषित किये हुए है। क्या उसे हमारी वह सहृदयता स्मरण नही रही जब 1971 में उसके लगभग 93 हज़ार युद्धबंदी सैनिकों को हमने अपने देश की विभिन्न सैनिक छावनियों में रखा और तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्रीमति इंदिरा गांधी के निर्देशानुसार उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार हुआ था । ऐसी ही अनेक विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने अपनी विराटता का परिचय देते हुए 9 दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान से आये हुए एक प्रतिनिधि मंडल के समक्ष राज्य सभा में कहा था कि “भारत मज़बूत, स्थाई व समृद्ध पाकिस्तान देखना चाहता है।” इस पर भी हमें सोचना होगा कि क्या अपने देश को सुरक्षित बनायें रखना हमारे शासन-प्रशासन के साथ साथ हम मूल नागरिकों का प्रमुख दायित्व नही हैं ? हमारी पाकिस्तान संबंधित नीतियां कब तक संघर्षों के समाधान के स्थान पर और नये-नये संघर्षो को जन्म देती रहेगी ? अतः ऐसा कोई भी समझौता जो हमारे धर्म व संस्कृति के साथ साथ मानवीय आचरणों के विरुद्ध हो और राष्ट्रीय स्वाभिमान को ठेस पहुँचाता तो उसके लिए आक्रामक कूटनीति का सहारा लेकर उसको नष्ट करना ही श्रेयस्कर होगा। किसी ने ठीक ही लिखा था कि “समझदार व सभ्य लोग युद्ध का विकल्प ढूंढते हैं परंतु यदि युद्ध पिपासु आक्रामक ही बना रहे तो उसकी मृत्यु के लिये युद्ध ही एकमात्र विकल्प है “।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी लेखक व चिंतक)
गाज़ियाबाद

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