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कब सुधरेगी किसानों की दशा

पिछले दिनों करीब 30,000 किसानों ने लाल झंडे के तले बम्बई मार्च किया। उनकी प्रमुख मांग कर्जा माफ़ी की थी।

पर क्या कर्जा माफ़ी ही किसानों की समस्याओं का हल है? आंखिर क्यों आजादी के 70 साल बाद भी किसान बदहाल हैं?

सानों की आत्महत्या कुछ सालों से सुर्खियों में रही है। यूं भी उनकी दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। कुछ समय पहले की ही बात है जब किसानों को प्याज एक रुपया डेढ़ रुपया बेचने पर मजबूर होना पड़ा था। लगातार ये खबरें आती रही हैं कि किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलता है। किसान कर्जे तले दबे हैं व मजबूरी में आत्महत्या कर रहे हैं।

पिछले साल मोदी जी ने अपने एक भाषण में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही थी। उनके इस भाषण का कथित बुद्धिजीवी अभी तक मजाक बनाते हैं। मीडिया और विपक्षी पार्टी पूछते हैं कि ये कैसे संभव है। अगर किसानों की आय डबल हुई तो महंगाई कितनी बढ़ेगी क्योंकि कृषि उपज का दाम भी उसी अनुपात में बढ़ेगा। सवाल तो है ये। लेकिन पहला सवाल ये है कि किसानों की आय इतनी कम कैसे है? विकसित देशों में कृषि एक सफल बिजनेस माना जाता है। फिर भारत में किसान होना मजबूरी क्यों है?

आजादी के पहले देश में जमींदारी प्रथा थी। किसानों से उनकी उपज का आधे से अधिक हिस्सा लगान के रूप में वसूल लिया जाता था। किसान जिस खेत को जोतते थे उसी के मालिक नहीं थे। आजादी के बाद पाक और पवित्र कांग्रेस सरकार आयी। उसने जमींदारी प्रथा ख़त्म की। भूमि सुधार कानून बनाये। फिर किसानों की तो हालत बेहतर होनी चाहिए थी। क्योंकि जैसा हम सभी जानते हैं कि भारत में कृषि आय पर इनकम टैक्स भी नहीं है। इतनी सुविधाओं के बाद भी किसान हालत इतनी बदतर क्यों है? लगभग हर दशक में सरकारें खासतौर पर कांग्रेस सरकार किसानों के कर्जे माफ़ करती आयी है। अंग्रेज जो नहरें बनाते थे उसके पानी को सिंचाई पर देने के लिए किसानों से टैक्स लेते थे। अब नहर के पानी पर टैक्स नहीं है। अक्सर बिजली भी मुफ्त कर दी जाती है। किसान क्रेडिट कार्ड मिलते हैं।

 

फिर दिक्कत कहां है ? क्या है ?

पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने एक पुराने कानून महाराष्ट्र एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्किट कमेटी एक्ट 1963 को ख़त्म किया। इस कानून में किसानों की फसल बिक्री के लिए मंडी बनाने का फैसला हुआ। सरकार इस मंडी में व्यापारियों लाइसेंस देती। लाइसेंस प्राप्त व्यापारी ही फसल खरीद सकते थे। और इसके अलावा एक प्रावधान और था। किसान अपनी फसल को सिर्फ इसी मंडी में बेच सकते थे। इस कानून से किसानों को जमींदारों से बचाकर व्यापारियों के हवाले कर दिया गया। किसानों की फसल पर पहले जमींदारों का नियंत्रण था अब व्यापारियों का हो गया। व्यापारियों ने अपना संगठन बना लिया। और उसके बाद शोषण की शुरुआत हुई।

किसान जब अपनी उपज लेकर मंडी आते तो उनपर तरह तरह के टैक्स लगने लगे। कुछ सरकारी, कुछ मंडी के, एंट्री टैक्स, लोडिंग टैक्स टर्नओवर टैक्स। किसानों को जो दाम मिलता उसका करीब 10 प्रतिशत टैक्स में चला जाता। और इन सबके अलावा किसान उस व्यापारी को कमीशन भी देते जो उनकी उपज खरीदता था।

 

सोचिये एक बार। फिर कैसे किसान हालत सुधरती।

और अत्यंत न्यूनतम कीमत पर उपज खरीदने के बाद इसे बेहद महंगे दाम पर जनता को बेचा जाता है। इन मंहगी कीमतों का फायदा कभी किसान को नहीं मिला। प्याज की बढ़ती कीमतों और एक रुपया डेढ़ रुपया बिकने की खबरों में आपने नासिक मंडी का बहुत नाम सुना होगा।

महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने इस कानून को ख़त्म कर दिया। इसके विरोध में व्यापारियों ने लंबी हड़ताल की लेकिन सरकार नहीं झुकी। दरअसल मोदी सरकार ने पिछले साल सभी राज्यों को दिशा निर्देश दिए कि ऐसे मंडी कानून बदले जाएं जहां किसानों को व्यापारियों के हाथों मजबूर होना होता है।

मोदी सरकार ने इन कानूनों की वजह से किसानों की बुरी हालत को रेखांकित करते हुए मॉडल कानून का ड्राफ्ट जारी किया है और राज्य सरकारों से कहा की इसकी तर्ज पर वो कानून बनाये। सिर्फ सात राज्यों ने अब तक अपने यहां कानून बदले हैं। जिनमे अधिकतर बीजेपी शासित प्रदेश हैं। बिहार ने इस मॉडल कानून को ही ख़ारिज कर दिया है।

हालांकि मोदी सरकार समझती है कि मात्र कानून बदलने से समस्या का हल नहीं होने वाला। सबसे बड़ी जरूरत उपज खरीदने के लिए ढेरों विकल्प बनाने की जरूरत है। जब तक मार्किट में कंपीटिशन नहीं होगा, व्यापारी, थोक विक्रेता, फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, बड़ी रिटेल चेन, ई-कॉमर्स चैनल, सरकारी फ़ूड कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया, सरकारी प्रोक्योरमेंट एजेंसीस, कॉर्पोरेटिव संस्थाएं, जब ये सभी होंगी तभी किसानों को फेयर प्राइस मिल सकेगा। तब किसान अपनी उपज का बादशाह होगा। इसीलिए सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मंडी की शुरुआत की है जहां किसान सिर्फ एक मंडी तक सीमित नहीं है। उसके सामने अब ई-नेशनल एग्रीकल्चर मार्किट का विकल्प है।

 

किसानों की आय कैसे दुगुनी की जा सकती है?

समय के साथ जो चुनौतियां खेती से जुड़ती चली गईं, वे चुनौतियां ही किसान की आय कम करती हैं, उसका नुकसान करती हैं, खेती पर होने वाला उसका खर्च बढ़ाती हैं। अत: किसान की आय दोगुनी करना और इनके जीवन को आसान बनाने के लिए अभिनव तरीके से कार्य करना होगा।

आज देश में 11 करोड़ से ज्यादा सॉयल हेल्थ कार्ड बांटे जा चुके हैं, जिससे मिल रही जानकारी के आधार पर किसानों की पैदावार बढऩे के साथ-साथ खाद पर खर्च भी कम हो रहा है। यूरिया की 100 प्रतिशत नीम कोटिंग से भी खाद की खपत कम हुई है और प्रति हेक्टेयर अनाज उत्पादन बढ़ा है। यह बचत और बढ़ा हुआ उत्पादन आय है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से किसानों को सबसे कम प्रीमियम पर फसल बीमा उपलब्ध कराया गया है और ये प्रावधान किया गया कि पूरी राशि का बीमा किया जाए। इस योजना के बाद अब प्रति किसान मिलने वाली क्लेम राशि दोगुने से भी अधिक हो गई है। जो सिंचाई परियोजनाएं दशकों से अधूरी पड़ी थी, उन्हें 80 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करके पूरा किया जा रहा है। खेत से लेकर बाजार तक, पूरी सप्लाई चेन को मजबूत किया जा रहा है, आधुनिक एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है।

मोदी सरकार ने तय किया है कि अधिसूचित फसलों के लिए, न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि कि एमएसपी उनकी लागत का कम से कम डेढ़ गुना घोषित किया जाएगा। एमएसपी के लिए जो लागत जोड़ी जाएगी, उसमें दूसरे श्रमिक के परिश्रम का मूल्य, अपने मवेशी-मशीन या किराए पर लिए गए मवेशी या मशीन का खर्च, बीज का मूल्य, सभी तरह की खाद का मूल्य, सिंचाई के ऊपर किया गया खर्च, राज्य सरकार को दिया गया लैंड रेवेन्यू, वर्किंग कैपिटल के ऊपर दिया गया ब्याज, लीज ली गई जमीन के लिए दिया गया किराया, और अन्य खर्च शामिल हैं। इतना ही नहीं किसान के द्वारा खुद और अपने परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए श्रम के योगदान का भी मूल्य, उत्पादन लागत में जोड़ा जाएगा।

सरकार प्रयास कर रही है कि किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़े।  ग्रामीण रीटेल एग्रीकल्चर मार्केट की अवधारणा इसी का परिणाम है। इसके तहत देश के 22 हजार ग्रामीण हाटों को जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ अपग्रेड किया जाएगा जिससे अपने खेत के 5-6 किलोमीटर के दायरे में किसान के पास ऐसी व्यवस्था होगी, जो उसे देश के किसी भी मार्केट से कनेक्ट कर देगी।  किसान इन ग्रामीण हाटों पर ही अपनी उपज सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकेगा। आने वाले दिनों में ये हाट, किसानों की आय बढ़ाने, रोजगार और कृषि आधारित ग्रामीण एवं कृषि अर्थव्यवस्था को बनाने में मदद होगी।

इस स्थिति को और मजबूत करने के लिए सरकार फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेजाइनेशन को बढ़ावा दे रही है। किसान अपने क्षेत्र में, अपने स्तर पर छोटे-छोटे संगठन बनाकर भी ग्रामीण हाटों और बड़ी मंडियों से जुड़ सकते हैं। आप कल्पना करिए, जब गांव के किसानों का एक बड़ा समूह इक_ा होकर खाद खरीदेगा, उसे ट्रांसपोर्ट करके लाएगा, तो पैसे की कितनी बचत होगी। इसी तरह वे कीटनाशक दवा के दाम में, बीज में, बड़ा डिस्काउंट भी प्राप्त कर सकेंगे। इसके अलावा जब वही समूह गांव में अपनी पैदावार इक_ा करके, उसकी पैकेजिंग करके, बाजार में बेचने निकलेगा, तो भी उसके हाथ ज्यादा पैसे आएंगे। खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने के बीच में जो कीमत बढ़ती है, उसका ज्यादा लाभ किसानों को ही मिलेगा।

आज देश में 22 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर ऑर्गेनिक  फार्मिंग  होती है। सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत ऑर्गेनिक  फार्मिंग  को पूरे देश में प्रोत्साहित करने में जुटी है। विशेष रूप से उत्तर पूर्व को ऑर्गेनिक खेती के हब के तौर पर विकसित किया जा रहा है। ग्रीन और व्हाइट रेवोल्यूशन के साथ ही जितना ज्यादा हम ऑर्गेनिक  रेवोल्यूशन, वाटर  रेवोल्यूशन, ब्लू  रेवोल्यूशन (मछली उत्पादन), स्वीट  रेवोल्यूशन (शहद उत्पादन) पर बल देंगे, उतना ही किसानों की आय बढ़ेगी। एग्रीकल्चर में भविष्य इसी तरह के नए सेक्टर्स की उन्नति, किसानों की उन्नति में सहायक होगी।

इसी तरह अतिरिक्त आय का एक और माध्यम है सोलर फार्मिंग। ये खेती की वो तकनीक है जो ना सिर्फ सिंचाई की जरूरत को पूरा कर रही है बल्कि पर्यावरण की भी मदद कर रही है। खेत के किनारे पर सोलर पैनल से किसान पानी की पंपिंग के लिए जरूरी बिजली तो लेता ही है, साथ में अतिरिक्त बिजली सरकार को बेच सकता है। इससे उसे पेट्रोल-डीजल से मुक्ति मिल जाएगी और पेट्रोल-डीजल की खरीद में लगने वाले सरकारी धन की भी बचत होगी। बीते तीन साल में सरकार ने लगभग पौने 3 लाख सोलर पंपों को किसानों तक पहुंचाया है और इसके लिए लगभग ढाई हजार करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। गांव में बड़ी मात्रा में बायो वेस्ट निकलता है, जो गांव में गंदगी का बड़ा कारण बनता है। एक  योजना के तहत इस वेस्ट को अब कंपोस्ट, बायो गैस और बायो सीएनजी में बदला जाएगा, जो  किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित होगी।

फसल के जिस अवशेष को किसान सबसे बड़ी आफत मानते हैं उससे पैसा भी बनाया जा सकता है। नारियल-जटा और खोल हों, बम्बू के टुकड़े हो, फसल कटने के बाद खेत में बची पौध हो, इन सभी को किसानों की आय से जोडऩे का काम किया जा रहा है। ये देखा गया है कि पराली को खेत में मिलाने की वजह से मिट्टी की सेहत में जबरदस्त सुधार आता है, खाद की आवश्यकता में कमी आती है और पैदावार भी बढ़ती है। कुल मिलाकर ये किसान की आय में बढ़ोत्तरी करती है।

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