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उठो, फिर चलो स्टार्ट-अप के प्रेरणा स्रोतों

भारत में स्टार्ट-अप के शुरूआती दौर के प्रेरणा स्रोत के रूप में उभरे फ्लिपकार्ट के संस्थापक सचिन बंसल और बिन्नी बंसल की जल्दी-जल्दी से अपनी ही कंपनी से विदाई कई संदेश दे गई है। ताजा घटनाक्रम में बिन्नी बंसल ने फ्लिपकार्ट समूह के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) के पद से गंभीर व्यक्तिगत कदाचार के आरोपों के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लगभग छह माह पहले जब फ्लिपकार्टपरअमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट ने नियंत्रण कर लिया था, तब सचिन बंसल ने फ्लिपकार्ट को छोड़ दिया था। तब कहा गया था कि वे नई स्थितियों में फ्लिपकार्ट से जुड़े रहने में असमर्थ हैं। पर तब बिन्नी ने कंपनी को नहीं छोड़ा था। अब उन्होंने भी एक बेहद निराशाजनक स्थितिमें फ्लिपकार्ट को  छोड़ दिया। तो इसका मतलब तो यह हुआ कि भारत के तमाम भावी स्टार्ट-अप, जिस कंपनी और उद्यमियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते थे, उस कंपनी से उसके दो मूल संस्थापक अलग हो चुके हैं। यह कोई सुखद स्थिति तो नहीं ही मानी जाएगी।

बिन्नी बंसल और सचिन बंसल ने संयुक्त रूप से देश की सबसे बड़ी आनलाइन रिटेल कंपनी फ्लिपकार्ट की 2007 में स्थापना की थी। देखा जाए तो बिन्नी को भी अपने मित्र के साथ फ्लिपकार्ट को छोड़ देना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए था कि वालमार्ट के टेकओवर करने के बाद फ्लिपकार्ट की कार्य संस्कृति बदल जाएगी। वहां पर नया प्रबंधन अपने तरीके से चीजों को देखे समझेगा और करेगा। सचिन समझदार निकले और तब ही उन्होंने फ्लिपकार्ट को अलविदा कह दिया। पर बिन्नी सी.ई.ओ.की कुर्सी से चिपके रहे।

मुझे याद है कि जब फार्मा सेक्टर की शीर्ष रैनबैक्सी कंपनी पर जापान की दाइची नामक कंपनी ने अधिग्रहण किया,तब रैनबैक्सी के चैयरमेन मलविंदर मोहन सिंह को नई कंपनी में भी चेयरमेन का पद मिला रहा। ये बात दीगर है कि कुछ समय के बाद ही मलविंदर मोहन सिंह को भी बड़े ही बे-आबरू होकर दाइची को छोड़ना पड़ा था। आपको इस तरह के बहुत से और भी उदाहरण मिल जाएंगे।

अब बिन्नी या सचिन के सामने विकल्प ही क्या बचे हैं? सचिन बंसल ने तो फ्लिपकार्ट पर वालमार्ट के टेकओवर करने के बाद अपने सारे शेयर बेचकर हजारों करोड़ रुपये अपनी जेब में रख लिए हैं।  देर-सवेर बिन्नी अब भी यही करेंगे। यानी दोनों के पास हजारों करोड़ रुपये से खेलने का मौका है। सिटी ब्यूटिफूल यानी चंडीगढ़ में पले-बढ़े इन दोनों ने ई-कॉमर्स के धंधे की बारिकियों को तब सीखा थाजब ये अमेजन में काम कर रहे थे। इनकी मूलतः पुस्तकों की ऑनलाइन खरीद-बिक्री के लिए बनी फ्लिपकार्ट  अपने ग्राहकों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और अन्य वस्तुएं खरीदने का विकल्प देने लगी। फ्लिपकार्ट पर क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, ई-गिफ्ट वाउचर और सुपुर्दगी पर नकद अदायगी (कैश ऑन डिलीवरी) के ज़रिये भुगतान संभव हो गया। इस तरह से इन्होंने  देश में खरीददारी की व्याकरण को ही बदला डाला। फ्लिपकार्ट के करोड़ों पंजीकृत उपभोक्ता बन गए। हर दिन कंपनी कई लाख उत्पादों की सप्लाई करने लगी। कह सकते हैं कि इन दोनों ने हिन्दुस्तानियों को आनलाइन खरीददारी सिखाई।

जाहिर है, इतनी चमत्कारी उपलब्धियों के बाद बिन्नी और सचिन की फिल्पकार्ट से विदाई दुखद ही मानी जाएगी। आखिर इन्होंने चंडीगढ़ से बैंगलुरू में जाकर एक छोटे से दफ्तर से अपनी कंपनी को शुरू करके उसे सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाया। इन्होंने हजारों लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए। जो सफलता अधिकतर उद्यमी दशकों में प्राप्त करते हैं,उसे इन दोनों ने कुछ सालों में ही प्राप्त कर लिया।

अब इनके सामने क्या विकल्प हैं? चूंकि इनके पास आइडिया की कोई कमी नहीं होगी इसलिए ये फिर से कुछ नया करके अपने लिए एक शानदार मुकाम प्राप्त कर सकते हैं। फ्लिपकार्ट को शुरू करते हुए इनके पास पूंजी का नितांत अभाव था। अब इनके पास हजारों करोड़ रुपये हैं। इनके किसी भी वैंचर में निवेश करने वालों की लाइन लग जाएगी। इसलिए इन्हें पैसे की तो कोई समस्या  नहीं है। हालांकि अब ये दोनों मिलकर भी शायद ही कोई नया प्रोजेक्ट लाएं। सबको पता है कि फ्लिपकार्ट के अधिग्रहण के वक्त ही दोनों में दूरिया बढ़ने लगी थीं। इसलिए सचिन ने फ्लिपकार्ट को छोड़ दिया था, पर बिन्नी वहां पर जमे रहे थे।

निश्चत रूप से बिन्नी भी अपनी भावी योजनाओं की घोषणा करेंगे। हालांकि वे अब भी फ्लिपकार्ट के बोर्ड में हैं, पर वे अपना कुछ करना चाहेंगे। अभी वे मात्र 36 साल के हैं। उनके सामने अभी लंबा करियर पड़ा है। ये ही बात सचिन के लिए भी कही जा सकती है। सचिन का कहना है कि अब वे कुछ पर्सनल प्रोजेक्ट्स को पूरा करेंगे। वे यह भी रहे हैं कि वे एक लंबा ब्रेक लेंगे। पर इतना सक्रिय उद्यमी घर में बैठा तो नहीं रह सकता।

दरअसल अब देश में अवसरों की सुनामी आ चुकी है। इसलिए ये दोनों अपने लिए कुछ अवश्य सोच रहे होंगे। इन्हें सोचना भी होगा। इन्हें समझना होगा कि ये देश के लाखों स्टाई-अप के रोल मॉडल हैं। इनकी सफलता से प्रेरणा लेकर रोज नए उद्यमी सामने आ रहे हैं।यह सच है कि इन्होंने हजारों करोड़ रुपये कमा लिये हैं। पर एक समय के बाद पैसे का कोई मतलब नहीं रहता। आखिर आपकी आवश्यकताएँ तो सीमित ही हैं। आपको अपने धन का इस समाज के कल्याण पर उपयोग करना होगा। सचिन या बिन्नी भी यही करेंगे।  बिन्नी पर लगे आरोपों के बाद हो सकता है कि कुछ लोगों को निराशा हुई हो। पर वे उन आरोपों को कसकर खंडन कर रहे हैं। ये समय उनके लिए चुनौतीपूर्ण है। निश्चित रूप से वे इस कठिन समय से निकलकर आगे बढ़ेंगे। पर ये भी सच है कि बेहद सफल उद्यमियों के सारे के सारे वैंचर सफल ही नहीं होते। आप रतन टाटा से लेकर भारतीय एयरटेल के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल को ही लीजिए। जहां टाटा समूह की टीसीएस तथा टाटामोटर्स बेहद शानदार प्रदर्शन कर रही हैं, वहीं अन्य कंपनियां उस तरह से सफल नहीं हैं। जहां तक सुनील भारती मित्तल का सवाल है तो उन्हें भी एयरटेल में शनदार कामयाबी मिली, पर उनका इंश्योरेंस सेक्टर में निवेश का अनुभव कोई बहुत सफल नहीं माना जा सकता। कुल मिलाकर मतलब ये है कि कोई भी उधमी सदैव सफल नहीं होता। यही तो जीवन है। यहां पर सफलता-असफलता साथ-साथ चलती है। ये छोटी सी बात बिन्नी और सचिन को भी मालूम होगी। उनका भारत के एक खास किस्म के युवा जगत में जो साख और मुकाम बन चुका है, उसे उन्हें और आगे लेकर जाना ही होगा।

आर.के. सिन्हा

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

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