Shadow

बढ़ती बीमारियों के लिए तंबाकू से अधिक जिम्मेदार है वायु प्रदूषण

भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में बीमारियों को बढ़ावा देने और असमय मौतों के लिए वायु प्रदूषण को तंबाकू उपभोग से भी अधिक जिम्मेदार पाया गया है। विश्व की 18 प्रतिशत आबादी भारत में रहती है, जिसमें से 26 प्रतिशत लोग वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न बीमारियों और मौत का असमय शिकार बन रहे हैं।

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज नामक वैश्विक पहल के अंतर्गत किए गए इस अध्ययन में देश के विभिन्न राज्यों में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों, बीमारियों के बढ़ते बोझ और कम होती जीवन प्रत्याशा का आकलन किया गया है। शोधकर्ताओं ने उपग्रह चित्रों और एयर मॉनिटरिंग स्टेशनों से वायु गुणवत्ता संबंधी आंकड़े प्राप्त किए हैं। इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित किए गए हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार, वायु प्रदूषण स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले न्यूनतम स्तर से कम हो तो भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 1.7 वर्ष अधिक हो सकती है। वायु गुणवत्ता मानकों की सुरक्षित सीमा से अधिक प्रदूषण बड़ी संख्या में लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। बढ़े हुए पीएम-2.5 के स्तर के कारण देश की 77 प्रतिशत आबादी की सेहत प्रभावित हो सकती है।

वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 70 साल से कम उम्र के लोगों की पिछले साल हुई 12.4 लाख मौतों में से आधी मौतों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वायु प्रदूषण को जिम्मेदार पाया गया है। इसके लिए बाहरी वातारण में होने वाले प्रदूषण के साथ-साथ घरेलू प्रदूषण भी कम जिम्मेदार नहीं है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बाहरी वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कणों से 6.7 लाख मौतें और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण 4.8 लाख मौतें हुई हैं।

यह अध्ययन आईसीएमआर, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई), इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स ऐंड इवेल्यूएशन (आईएचएमई) और स्वास्थ्य मंत्रालय की संयुक्त पहल पर आधारित है। इससे संबंधित रिपोर्ट भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) में जारी की गई है। रिपोर्ट जारी करते हुए आईसीएमआर के महानिदेशक प्रो. बलराम भार्गव ने कहा कि “देश के विभिन्न राज्यों मे वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव का आकलन महत्वपूर्ण है। इसकी मदद से वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों की रोकथाम में मदद मिल सकती है।”

पीएचएफआई से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रो. ललित डांडोना ने कहा कि “स्वास्थ्य से जुड़ी सार्वजनिक एवं नीतिगत बहसों में वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से निपटने की चर्चा हाल के वर्षों में बढ़ी है। विभिन्न राज्यों के अलग-अलग प्रदूषण स्तर, उन राज्यों में होने वाली मौतों एवं जीवन प्रत्याशा की दर में कमी और प्रदूषण से उनके संबंध की जानकारी होने से सही रणनीतियां बनाने में मददगार हो सकती है।”

स्वास्थ्य सेवाएं, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के निदेशक डॉ एस. वेंकटेश के ने बताया कि “पांच साल से कम उम्र के बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं वायु प्रदूषण के खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से गर्भवती महिलाओं में अपरिपक्व प्रसव की संभावना बढ़ जाती है। बच्चों का मानसिक विकास और संज्ञानात्मक क्षमता भी इसके कारण प्रभावित होती है और उनमें अस्थमा एवं फेफड़ों की कार्यप्रणाली प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है।”

वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों में श्वसन संक्रमण, फेफड़ों में अवरोध, हार्टअटैक, स्ट्रोक, मधुमेह  और फेफड़ों का कैंसर मुख्य रूप से शामिल है। देश के उत्तरी राज्यों में प्रदूषण का पीएम-2.5 का स्तर सबसे अधिक दर्ज किया गया है। पीएम-2.5 का सर्वाधिक स्तर दिल्ली में दर्ज किया गया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में पीएम-2.5 की दर सबसे अधिक पायी गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार, प्रदूषण स्तर कम होने के कारण जीवन प्रत्याशा में सुधार होने की दर भी विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हो सकती है। प्रदूषण स्तर निर्धारित मानकों से कम हो तो राजस्थान में जीवन प्रत्याशा 2.5 वर्ष, उत्तर प्रदेश में 2.2 वर्ष और हरियाणा में 2.1 वर्ष अधिक हो सकती है।  (इंडिया साइंस वायर)

उमाशंकर मिश्र

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *