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ये बाहरी-बिहारी क्या है, कमलनाथ जी

कमलनाथ भी उन गैर जिम्मेदार कांग्रेसी नेताओं की सूची में शामिल हो गए हैं,जिन्हें बिहार और उत्तर प्रदेश के श्रमवीरों (मजदूरों) से नफरत है। इन्हें ये मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ‘बाहरी’ कहते हैं। मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस  की जैसे-तैसे हुई विजय के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होते ही कमलनाथ ने अपनी संकुचित मानसिकता प्रदर्शित करनी चालू कर दी। उन्हें संविधान का ज्ञान नहीं हैं जो भारत के समस्त नागरिकों को देश के किसी भी भाग में रहने और कम करने की स्वंत्रता देता है। उन्होंने सूबे में स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिलने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों का जिम्मेदार बता दिया। कुछ इसी तरह की हल्की राय शीला दीक्षित ने दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए जाहिर की थी। ये दोनों भूल गए थे कि देश के संविधान की धारा19 ने हरेक नागरिक को कहीं भी जाकर नौकरी करने और बसने का अधिकार दिया हुआ है। इसलिए वे कोई खैरात नहीं बांट रहे हैं। उन्हें किसी को बाहरी कहने का भी अधिकार नहीं है। देश की आबादी के एक तिहाई से ज्यादा लोगों को अपमान करने वाले कमलनाथ को पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।

देखा जाए तो कमलनाथ स्वयं खुद भी मध्य प्रदेश से नहीं हैं। उनका जन्म कानपुर में हुआ, बंगाल में पढ़े और वे हमेशा दिल्ली में ही रहे। हां,सिर्फ लोकसभा का चुनाव मध्य प्रदेश से जरूर लड़ते हैं। उनका ताजा बयान स्वयं उनके लिए और समूची कांग्रेस पार्टी के लिए शर्मनाक है। बिहार और उत्तर प्रदेश का अपमान कर उन्होंने एक ही लाइन से पूरे नेहरु-गाँधी परिवार संविधान सभा के अध्यक्ष और प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न राजेंद्र प्रसाद और तमाम बिहार यूपी से जुड़े लोगों को अपमानित कर दिया । वे यह क्यों भूल रहे हैं कि मध्यप्रदेश के लोग भी पूरे देश मे बिखरे पड़े हैं। ये वे भी रोजगार की तलाश में दूर-दूर काम-धंधा करने जाते हैं। कमलनाथ जी का स्वयं का चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा कितना विकसित है इसका अंदाज़ा आप मैदानी क्षेत्रों में फसल कटाई के समय या किसी भी सड़क या भवन के निर्माण स्थल पर जाकर देख सकते हैं । आप आसानी से लगा सकते है जब फसल कटाई के लिए हजारों आदिवासी उन्हीं के क्षेत्र से पलायन कर मैदानी क्षेत्रों में आते हैl अगर उन्हें अपने खुद के गांव पंचायत में ही रोज़गार मिल जाए तो आख़िरकार कोई बाहर क्यों जाएगा ? रोज़गार की तलाश में एक जिले से दूसरे जिले और एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश लोगों का आना जाना सदियों से स्वाभाविक रूप से होता रहा हैl समस्या इस या उस प्रदेश की नहीं बल्कि देश में व्याप्त भयंकर बेरोज़गारी की हैl जिसके लिए कमोबेश बारी बारी से आने वाली सभी सरकारें उत्तरदायी हैंl कमलनाथ जी और यूपी ,बिहार के मुख्यमंत्री इस मूल समस्या पर बिना प्रान्तीयता की भावना फैलाये कुछ ठोस काम करके दिखाएं तब तो बात बने। सिर्फ भाषणबाजी और आरोप-प्रत्यारोप से क्या भला होगा, मध्य प्रदेश का या बिहार का?

आज का मध्य प्रदेश गर्व करता है कि वहां पर मराठी,गुजराती,पंजाबी,बंगाली भी बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। ये सभी बाहरी इधर आकर यहां के ही हो गए। यहां से सांसद भी बने। अटल बिहारी बाजपेई प्रधानमंत्री भी बने। देश के बंटवारे के बाद जबलपुर, भोपाल, इंदौर वगैरह में हजारों पंजाबी हिन्दू-सिख-सिन्धी आकर बसे थे।तमिल भाषी मीनाक्षी नटराजन मंदसौर से सांसद रहीं। देखा जाए तो कमलनाथ को मध्य प्रदेश की विविधता पर गर्व करना चाहिए। पर वे स्थानीय और बाहरी के विवाद में फंस रहे हैं। उन्हें बाहरी कहना या मानना देश के संघीय ढांचे को ललकराने के समान है। यह स्थिति हर हालत में रूकनी ही चाहिए। चाहिए तो यह कि माननीय राष्ट्रपति संविधान की धारा 19 के खुलेआम उल्लंघन के लिए कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त करें और क्षेत्रीय वैमनस्य फ़ैलाने के लिए भा.द.वि.153 के अंतर्गत मुकदमा कायम किया जाये जिसमें 3 वर्ष सश्रम कारावास का प्रावधान है।

अब शीला दीक्षित की भी बात कर लीजिए। वो वैसे तो पंजाब से आती हैं। उनका विवाह उत्तर प्रदेश के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ। पर दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें भी उत्तर प्रदेश और बिहारी “बाहरी” लगने लगे। दिल्ली में अपने मुख्यमंत्रित्वकाल के दौरान शीला दीक्षित ने 2007 में राजधानी की तमाम समस्याओं के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से आकर बसनेवाले लोगों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था।  तब शीला दीक्षित ने  कहा था कि “दिल्ली एक संपन्न राज्य है और यहाँ जीवनयापन के लिए बाहर से और विशेषकर उत्तर प्रदेश तथा बिहार से बड़ी संख्या में लोग आते है और यहीं बस जाते हैं। इस कारण से यहां की मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराना कठिन हो गया है ।” वे भूल  गई कि यदि दिल्ली में उच्च-स्तरीय मूलभूत सुविधायें कायम हुई हैं तो इनमें लगभग शत-प्रतिशत योगदान बिहार, यू.पी., झारखण्ड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के श्रमवीरों का ही है।

कमलनाथ-शीला दीक्षित जैसे नेताओं को क्यों समझ नहीं आता है कि सिर्फ समावेशी समाज ही आगे बढ़ते हैं। आपके सामने है अमेरिका का उदाहरण है। सारा संसार अमेरिका को ही अपना आदर्श मानता है।  उसकी यह स्थिति इसीलिए बनी क्योंकि वहां पर सबके लिए आगे बढ़ने के समान अवसर हैं। वहां पर दुनिया के कोने-कोने से लोग आकर बसते हैं। उधर जाते ही सब अमेरिकी हो जाते हैं। अमेरिका‘हम’ और‘तुम’ की तर्ज पर नहीं चलता।

महाभारत का युद्ध ही इसीलिए हुआ क्यों कि धृतराष्ट्र “ममका: पन्द्वाश्चैव” (मेरेऔरपांडवोंकेपुत्र) कीभावनासेग्रसितहोगयाथा।

बिहार और उत्तर प्रदेश  के लोगों को “बाहरी” कहना अब फैशन सा हो गया है। इन पर अक्सर कुछ प्रदेशों में हमले होते हैं। असम के तिनसुकिया इलाके में सन 2015 में संदिग्ध उल्फा आतंकवादियों के हाथों एक हिंदी-भाषी व्यापारी और उसकी बेटी की हत्या कर दी गई थी। असम में वह इस प्रकार के हिंसा की कोई पहली घटना नहीं थी जब हिन्दी भाषियों पर हमला हुआ था। उल्फा को केंद्र के सामने अपनी ताकत दिखानी होती है, तबवह निर्दोष हिंदी भाषियों (उत्तर प्रदेश-बिहार वालों) को मारने लगता है। असम तथा मणिपुर में  हिन्दी भाषियों पर लगातार हमले होते हैं। तमिलनाडु, मुम्बई और कर्नाटक में भी ऐसी घटनायें हो रही हैं। हिन्दी भाषी सीधा मतलब बिहारी और यूपी वाले। ये पूर्वोत्तर में दशकों से बसे हुए हैं। उन क्षेत्रों के विकास में लगे हुए है। भारत सबका है,यहां के संसाधन भी हर भारतीय के हैं। इसलिए किसी के साथ कहीं भी उसकी जाति,धर्म,रंग,प्रदेश आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना असहनीय अमानवीय है और असंवैधानिक है।इस मानसिकता पर तुरंत रोक लगाने की आवश्यकता है।

कमलनाथ को मध्य प्रदेश में बिहारी और उत्तर प्रदेश के मजदूरों से शिकायत है। क्या वे अपने गाजियाबाद में चल रहे मैनेजमेंट कॉलेज में भी बिहारी और उत्तर प्रदेश के नौजवानों के प्रवेश पर रोक लगाने के संबंध में सोच रहे हैं। इस तरह का कदम वे कतई नहीं उठाएंगे क्यों उन्हीं छात्रों से उनके कॉलेज को हर साल करोड़ो की मोटी आय होती है।

एक अनुमान के मुताबिक, फिलहाल दो-ढाई करोड़ भारतीय संसार के अलग-अलग भागों में रोजगार के लिए गए हुए हैं या फिर वहां पर  बसे गए हैं। अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया में  भारतीयों की आबादी 25-25 लाख से अधिक है। खाड़ी देशों में भी लाखों भारतीय काम कर रहे हैं। ये हर साल अरबों डॉलर  भारत भेजते हैं। जरा सोचिए, कि अगर इन्हें बाहरी होने के आधार पर निकाल दिया जाए तो देश की आर्थिक स्थिति क्या हो जायेगी। पर ये बात कमलनाथ जैसों को समझ में कैसे आएगी? वे तो ओछीसंकुचित मानसिकता से ग्रस्त हैं। उनका दृष्टिकोण बेहद छोटा है।

आर.के.सिन्हा

 (लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

 

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