डेंगू वायरस शरीर को संक्रमित करता है, तो सफेद रक्त कोशिकाएं इससे लड़ने के लिए सक्रिय हो जाती हैं। लेकिन, वायरस सफेद रक्त कोशिकाओं पर आक्रमण करके उन्हें भी संक्रमित कर देता है और वे वायरस को नष्ट नहीं कर पातीं। इस तरह वायरस मनुष्य के प्रतिरक्षा तंत्र को भ्रमित करके दूसरी कोशिकाओं को भी संक्रमित करने लगता है। सफेद रक्त कोशिकाएं लिम्फैटिक प्रणाली के जरिये प्रवाहित होती हैं, इसलिए वायरस पूरे शरीर में तेजी से फैलने लगता है।
भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम के नेतृत्व में संयुक्त रूप से किए गए नये अध्ययन में एक खास प्रोटीन की पहचान की गई है, जो एंटी-वायरल साइटोकिन्स को अवरुद्ध करके मानव शरीर में डेंगू और जापानी एन्सेफलाइटिस वायरस को बढ़ने में मदद करता है। डेंगू और जापानी एन्सेफलाइटिस के उपचार के लिए प्रभावी एजेंट विकसित करने में यह खोज उपयोगी हो सकती है।
आमतौर पर पूर्ण एंडोथीलियम परत वाली रक्त वाहिकाओं के जरिये प्लेटलेट्स प्रवाहित होता है तो वह अपनी मूल निष्क्रिय अवस्था में होता है। डेंगू संक्रमण होने पर प्लेटलेट्स सक्रिय हो जाते हैं और वे प्लेटलेट फैक्टर-4(PF4) नामक सेल-सिग्नलिंग प्रोटीन की उच्च मात्रा छोड़ते हैं।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने डेंगू मरीजों के रक्त के नमूनों का अध्ययन करने पर पाया कि प्लेटलेट फैक्टर-4 इंटरफेरॉन जैसे एंटी-वायरल साइटोकिन्स (छोटे प्रोटीन) के स्राव को रोककर प्रतिरक्षा कोशिकाओं के एंटी-वायरल तंत्र को नियंत्रित करता है। प्लेटलेट फैक्टर-4 के कार्य को रोकने के लिए वैज्ञानिक सीएक्ससीआर-3 नामक इसके रिसेप्टर को निशाना बना रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि सीएक्ससीआर-3 के एक छोटे प्रतिरोधी अणु का उपयोग करके कृत्रिम एवं जैविक रूप से वायरस को बढ़ने से रोक सकते हैं।
फरीदाबाद स्थित रीजनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी से जुड़े शोधकर्ता डॉ प्रसेनजित गुछैत ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस अध्ययन में हमने दिखाया है कि पीएफ4-सीएक्ससीआर3 अक्ष में अवरोध वायरस की प्रतिकृति बनने से रोक सकता है। हमारा मानना है कि इसी तरह का तंत्र दूसरे वायरसों में भी हो सकता है। इसीलिए, यह खोज प्रभावी एंटी-वायरल दवा बनाने में कारगर हो सकती है।”
यह नयी खोज न केवल डेंगू, बल्कि जापानी एंसीफ्लाइटिस जैसे वायरसों की रोकथाम के लिए प्रभावी एंटी-वायरल दवा खोजने में मददगार हो सकती है। इसीलिए, शोधकर्ता अब इसका परीक्षण जानवरों पर भी कर सकते हैं। इसके लिए निष्क्रिय पीएफ-4 जीन वाले आनुवांशिक रूप से संशोधित चूहों का उपयोग वैज्ञानिक कर सकते हैं। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि ऐसे चूहों में इन वायरसों से होने वाले संक्रमण का कम स्तर देखने को मिल सकता है। इसी के साथ शोधकर्ता पीएफ-4 या सीएक्सआर3 के खिलाफ बेहतर अणुओं को डिजाइन करने पर भी काम कर रहे हैं।
शोध दल में अमृता ओझा, अंगिका भसीम, गौतम अन्नारापु, टीना भाकुनी, सुधांशु व्रती, प्रसेन्नजित गुछैत (रीजनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी, फरीदाबाद); श्रीप्रणा मुखर्जी, इरशाद अकबर और अनिर्बान बसु (राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र, मानेसर); तूलिका सेठ, नवल के. विक्रम (एम्स, दिल्ली); शंकर भट्टाचार्य (ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, फरीदाबाद) शामिल थे। इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका ई-बायोमेडिसिन में प्रकाशित किए गए हैं। (इंडिया साइंस वायर)
योगेश शर्मा