क्या_आप_जानते_हैं ?
मोदी सरकार देश में ट्रेनों की लेट लतीफी को खत्म करने के लिए क्या कर रही है ? यदि आप ट्रेनों की लेट लतीफी से परेशान है तो यह खबर आपको राहत देने वाली है, लेकिन साथ ही आपको थोड़ा और धैर्य रखना होगा और मोदी सरकार पर विश्वास, और अपना आशीर्वाद बनाए रखना होगा.
मोदी सरकार देश में डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर बना रही है, जिसपर सिर्फ मालगाड़ियां चलेंगी. इस फ्रेट कॉरिडोर के निर्माण के बाद ट्रेनों की लेट लतीफी काफी हद तक कम हो जाएगी.
इसके अलावा पुराने रेलवे ट्रैक को बदल कर नए रेलवे ट्रैक बिछाने का काम तेज गति से चल रहा है, इस नए ट्रैक की खासियत ये होगी की इसपर आने वाले समय में आधुनिक सेमी हाई स्पीड ट्रेन 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकेगी. उदाहरण के तौर पर ट्रेन-18 ऐसे ही आधुनिक रेलवे ट्रैक पर 180kmph की रफ्तार से दौड़ रही है.
मोदी सरकार रेलवे ट्रैक का दोहरीकरण कर रही है, जहां सिंगल रेलवे लाइन है वहां एक नई रेलवे लाइन बिछाई जा रही है.
साथ ही मोदी सरकार पूरे देश के रेलवे ट्रैक का इलेक्ट्रिफिकेशन भी कर रही है, जो नए ट्रैक बिछाए जा रहे है वो भविष्य को ध्यान में रख कर बिछाए जा रहे है.
सरकार रेलवे के पुराने ट्रैफिकिंग सिस्टम को आधुनिक ट्रैफिकिंग सिस्टम से बदल रही है.
मोदी सरकार में देश भर की सभी मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग को बंद किया जा रहा है, रेलवे क्रॉसिंग पर गार्ड तैनात कर के, अंडर ब्रिज और ओवर ब्रिज बना कर के समाप्त किया जा रहा है.
ये तो हो गई कुछ मोटे मोटे काम की बात जो भारतीय रेलवे में हो रहे है, अब आइए जानते है डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के विषय में :
डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर को दो भागों में बांट गया है :
ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
वेस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
कुल लंबाई : 2822 किलोमीटर
(ईडीएफसी 1318 किमी + डब्लयूडीएफएस 1504 किमी)
1504 किलोमीटर का वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर दादरी से मुंबई में जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट तक बनाया जा रहा है
1318 किलोमीटर का ईस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर पंजाब के लुधियाना से पश्चिम बंगाल में डंकुनी तक बनाया जा रहा है
परियोजना लागत : 814.59 अरब रुपए
लक्ष्य : फ्रेट कॉरिडोर का पूरा काम दिसंबर 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है
परियोजना चरण : ईस्टर्न और वेस्टर्न कॉरिडोर का काम 15 चरण में किया जा रहा है
पहला चरण :
परियोजना की लंबाई : 649 किलोमीटर
️ वेस्टर्न कॉरिडोर : 306 किमी
️ ईस्टर्न कॉरिडोर 343 किमी
वेस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के पहले चरण का काम पूरा हो चुका है.
कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें :
कांग्रेस सरकार द्वारा 2006 में डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड का गठन किया गया था.
2010 में इस प्रोजेक्ट पर निर्माण कार्य शुरू किया गया था और 2016-17 लक्ष्य प्राप्ति समय निर्धारित किया गया था, लेकिन कांग्रेस सरकार की नीतियों के कारण रेलवे भूमि अधिग्रहण नहीं कर सकी.
8 साल बाद कांग्रेस सरकार मार्च 2014 तक अनुबंधों का केवल 18.45
प्रतिशत भूमि अधिग्रहण करने में सक्षम थी/अनुबंध करने में सक्षम थी.
12 साल बाद मोदी सरकार के आने से अब इस परियोजना में तेज़ी अाई है. और पहले चरण का काम पूरा होने वाला है.
जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी पश्चिमी भारत परियोजना के लिए 387.22 अरब रुपये का ऋण प्रदान कर रही है.
पूर्वी डीएफसी (मुगलसराय-इलाहाबाद-कानपुर-खुर्
पिछले चार वर्षों में इस ऋण की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई है,
इस साल की शुरुआत में, रेलवे ने पश्चिमी डीएफसी के अटेलि-फुलेरा सेक्शन पर प्रति घंटे 100 किमी की अधिकतम गति से एक परीक्षण किया था, अगस्त में इसे चालू किया जा चुका है.
अटेलि से फुलेरा तक की यात्रा को पूरा करने में चार घंटे से भी कम समय लगा.
पश्चिमी कॉरिडोर में कम से कम 10 फीडर लाइनें केवल मेन लाइन को आपूर्ति माल ढुलाई से जोड़ती हैं,
यह व्यस्त मार्गों में आधे से ज्यादा यातायात को कम करने वाला है,
कांग्रेस सरकार की अटकाना, लटकाना, भटकाना नीति के कारण इस परियोजना की लागत 2008 में 281.81 अरब रुपये की तुलना में 189% बढ़कर 814.59 अरब रुपये हो गई है, इसमें उच्च भूमि लागत शामिल है,
ईडीएफसी के लिए 266.74 अरब रुपये और डब्ल्यूडीएफसी के लिए 467.18 अरब रुपये, 80.67 अरब रुपये भूमि के लिए कुल लागत में शामिल है,
सीएजी के अनुसार, 2014 तक भूमि लागत में अनुमानित 44.42 अरब रुपये की वृद्धि हुई थी,
भारतीय रेलवे ने परियोजना के लिए आवश्यक 11,000 हेक्टेयर भूमि का 98% से अधिक अधिग्रहण कर लिया है और यह अधिग्रहित भूमि के लिए लगभग 15,000 करोड़ रुपये मुआवजे के रूप में दिया गया है.
ईस्टर्न & वेस्टर्न कॉरिडोर परियोजना पूरी होने के बाद राष्ट्रीय ट्रांसपोर्टर की फ्रेट ले जाने की क्षमता वर्तमान में 1200 मिलियन टन से लगभग 2300 मिलियन टन तक बढ़ाई जाएगी, और माल ढुलाई की लागत को कम करने में भी मदद मिलेगी.
दिल्ली – मुंबई और दिल्ली – कोलकाता के बीच रेल मार्गों पर मौजूदा सभी माल ढुलाई लाइनों के भार कम हो कर इन कॉरिडोर में चला जाएगा, दूसरी तरफ भारी मात्रा में कोयले से लदी ट्रेन झारखंड के कोल बेल्ट से हो कर गुजरती है.
लाभ :
दोनों कॉरिडोर का निर्माण पूरा होने के बाद यात्री ट्रेनों की लेट लतीफी काफी हद तक कम हो जाएगी या खत्म हो जाएगी,
अभी तक माल गाड़ी और यात्री ट्रेनें दोनों ही एक ट्रैक पर चलाई जाती थी, यह कॉरिडोर बन जाने के बाद अधिकतर माल गाड़ियां इसी कॉरिडोर पर चलेंगी,
मालगाड़ी की रफ्तार 100+kmph होगी,
माल ढुलाई लागत व समय में बचत होगी,
देश के पश्चिमी और पूर्वी तटों पर बंदरगाहों के साथ मुख्य भूमि को जोड़ने के लिए 2822 किमी लंबे कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है, जो 2020 तक पूरा होने की उम्मीद है.
अधिकारियों के मुताबिक परियोजना की प्रगति पर अब प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा बारीकी से निगरानी की जा रही है.
Bhavesh Kumar .