जब भी मैं कहता हूं कि सरकार के कदम सही दिशा में नहीं हैं तो राष्ट्रवादियों के कान खड़े हो जाते हैं । फोन पर फोन … मेसेज पे मेसेज आने लगते हैं ।
समझाया जाता है कि पांच साल में हिन्दू अपने लिए खड़ा होने लगा है । ये हमारी सफलता है । ये सुनकर मन करता है कि माथा पीट लूं ।
कैसे समझाऊँ कि पांच साल में सिर्फ लोगों को अपने लिए खड़ा करना हमारा उद्देश्य नहीं था । हमारा उद्देश्य होना चाहिए था कि प्रशासन में, संगठन में, शिक्षा में, कला में, साहित्य में, खेल में, मीडिया में हर जगह अपने प्रतिनिधि स्थापित हों ।
कहीं से भी अगर कुछ भी गलत हो तो अकेले एक आदमी विरोध में न हो । बल्कि हर क्षेत्र हर विधा के लोग समवेत स्वर में अपनी आवाज़ उठायें ।
होता क्या है कि अखलाख को रोने वाले हजारों में हैं लेकिन प्रशान्त पुजारी गुमनामी में मारे जाते हैं । बंगाल के मालदा में हुई आगजनी के ऊपर लिखने वालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है ।
इस मामले में कांग्रेस बहुत घाघ है । मप्र में एक महीने के अंदर कई प्रशासनिक अधिकारियों को समायोजित किया गया है । वंदे मातरम पर बैन लगाने की कोशिश की जा चुकी है । अब कुलपतियों की बारी है । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जगदीश उपासने सर से जबरदस्ती इस्तीफा लिखवा लिया गया है । छत्तीसगढ़ व राजस्थान का भी यही हाल है ।
यहां एक बात गौर करने की है । जब मुकुल रोहतगी की नियुक्ति हुयी थी तब पूरी मीडिया ने स्यापा किया था । कल्लूरी पर भी जार जार रोया गया था । लेकिन मप्र सरकार के अत्याचार पर सभी शांत हैं ।
सबरीमाला मंदिर की पवित्रता भंग कर दी गयी । यहां तक कि श्री रामलला तक को तारीख पर तारीख दे रही है ज्यूडिशरी । वो ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपना सिंडिकेट बनाया हुआ है । किंतु अपनी तरफ से छिटपुट आवाजों के अलावा कोई वजनदार व्यक्तित्व इनके विरोध में नही दिखता । और न ही इनके समर्थन में ज्यूडिशरी और ब्यूरोक्रेसी दिखती है ।
उसका एक ही कारण है हमने कभी अपने लोगों को इन सब जगह प्रतिस्थापित करने का ईमानदार प्रयास नहीं किया । जबकि आज़ादी के तुरन्त बाद से कांग्रेस ने ऐसा किया और सफलता पूर्वक 60 साल शासन किया ।
भाजपा सरकार को इस मामले में सीख लेनी चाहिए । अभी भी लगभग 15 राज्यों में भाजपा और उनके सहयोगी दलों की सरकार है । तमाम यूनिवर्सिटीज में वामपंथी और कांग्रेसी भरे पड़े हैं । इन्हें लात मार कर बाहर कर एक कड़ा संदेश दीजिये ।
बता दीजिए कि राइट विंगर्स की ध्वजा अब कमजोर हाथों में नहीं है । 6 महीने बचे हैं राष्ट्रनीति बहुत हो चुकी अब राजनीति भी कर ही लीजिए ।
उसूलों पे जहां आंच आये वहां टकराना जरूरी है …
जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है …
-अनुज अग्रवाल